चंद्रगुप्त नाटक के किसी एक विदेशी पात्र का नाम - chandragupt naatak ke kisee ek videshee paatr ka naam

“चन्द्रगुप्त नाटक में एक ओर तो राजनैतिक चालें और चाणक्य का सूत्र-संचालन है और दूसरी ओर इनका इन सब से विरक्त ब्राम्हण व्यक्तित्व है।इससे उस पात्र में अंतर्द्वंद्व तो आ ही गया है,शील वैचित्र्य भी आ गया है।

प्रथम अंक – पहला  दृश्य 

संसार भर की नीति और शिक्षा का अर्थ मैंने यही समझा है कि आत्मसम्मान के लिए मर मिटना ही दिव्य जीवन है- चन्द्रगुप्त का कथन 

प्रायः मनुष्य,दूसरों को अपने मार्ग पर चलाने के लिए रुक जाता है,और अपना चलना बंद कर देता है – अलका का कथन 

जीवन-काल में भिन्न-भिन्न मार्गों की परीक्षा करते हुए जो ठहरता हुआ चलता है,वह दूसरों को लाभ पहुँचाता है।यह क्श्त्दायक तो है; परंतु निष्फल नहीं-सिंहरण का कथन 

द्वितीय दृश्य-

  • तुम कनक किरन के अंतराल में,लुक छिप कर चलते हो क्यों ?- सुवासिनी 
  • निकल मत बाहर दुर्बल आह,लगेगा तुझे हंसी का शीत।- राक्षस 

तीसरा दृश्य –

  • तुझे उलट दूँगा! नया बनाऊँगा,नहीं तो नाश ही करूँगा -चाणक्य 

चतुर्थ दृश्य –

  • मुझे विश्वास है कि दुराचारी सदाचार के द्वारा शुद्ध हो सकता है,और बौद्ध मत इसका समर्थन करता है – सुवासिनी 

पंचम दृश्य –

  • राजनीति महलों में नहीं रहती,इसे हमें लोगों के लिए छोड़ देना चाहिए।- राक्षस का कथन 

षष्टम दृश्य –

  • तुम राजद्रोही हो – यवन का कथन सैनिक के प्रति 

सप्तम दृश्य –

  • दया किसी से न माँगूँगा और अधिकार तथा अवसर मिलने पर किसी पर न करूँगा -चाणक्य का कथन 
  • भाषा ठीक करने से पहले मैं मनुष्यों को ठीक करना चाहता हूँ – चाणक्य का कथन 
  • मैं कुत्ता साधारण युवक और इंद्र कभी एकसूत्र में नहीं बाँध सकता – चाणक्य का कथन 

अष्टम दृश्य –

  • उन्नति के शिखर पर नाक की सीधे चढ़ने में बड़ी कठिनता है – राजा का कथन  

नवम दृश्य –

  • ब्राह्मणत्व एक सार्वभौमिक शाश्वत बुद्धि-वैभव है – चाणक्य का कथन 

दशम दृश्य-

  • भारतीय कृतघ्न नहीं होते- चंद्रगुप्त का कथन

एकादशम दृश्य-

  • जिस वस्तु को मनुष्य दे नहीं सकता,उसे ले लेने की स्पर्द्धा से बढ़कर दूसरा दम्भ नहीं।- (दाण्डायन का कथन)
  • देखो यह भारत का भावी सम्राट तुम्हारे सामने बैठा है।- (दाण्डायन का कथन)

द्वितीय अंक-(प्रथम दृश्य)

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।-(कार्नेलिया का कथन)

  • ग्रीक लोग केवल देशों को विजय करके समझ लेते हैं कि लोगों के हृदय पर पर भी अधिकार कर लिया।- (कार्नेलिया का कथन)
  • स्वच्छ हृदय भीरु कायरों की-सी वंचक शिष्टता नहीं जानता।-(चन्द्रगुप्त का कथन)

द्वितीय दृश्य-

  • पौधे अंधकार में बढ़ते हैं,और मेरी नीतिलता भी उसी भाँति विपत्ति-तम में लहलही होगी।-(चाणक्य का कथन)
  • मनुष्य ऐसे कुटिल विषधरों को भी वश में लड़ सकता है परंतु मनुष्य को नहीं।- (कल्याणी का कथन)

तृतीय दृश्य-

  • धर्मयुद्ध में प्राण-भिक्षा माँगने वाले भिखारी हम नहीं।जाओ,उन भगोड़ों से एक बार जननी के स्तन्य की लज्जा के नाम पर रुकने के लिए कहो।-(पर्वतेश्वर का कथन)
  • वीरता भी एक सुंदर कला है, उस पर मुग्ध होना आश्चर्य की बात नहीं-(पर्वतेश्वर का कथन)

चतुर्थ दृश्य-

  • युद्ध ही हमारी आजीविका है।-(चन्द्रगुप्त का कथन)

पंचम दृश्य-

  • मालव देश की स्वतंत्रता तुम्हारी आशा में है-(अलका का कथन सिंहरण से)


प्रथम यौवन-मदिरा से मत्त, प्रेम करने की थी परवाह
और किसको देना है ह्रदय, चीन्हने की न तनिक थी चाह।-(अलका का कथन)


षष्टम दृश्य-

  • प्रबल प्रतिरोध करने के लिए दोनो सैन्यो में एकाधिपत्य का होना आवश्यक है।-(चाणक्य का कथन

सप्तम दृश्य-

बिखरी किरन अलक व्याकुल हो विरस वदन पर चिंता लेख,
छायापथ में राह देखती गिनती प्रणय-अवधि की रेख।-(अलका का कथन)

  • पराधीनता से बढ़कर विडम्बना और क्या है-(अलका का कथन)

तृतीय अंक-

  • चाणक्य विलक्षण बुद्धि का ब्राम्हण है,उसकी प्रखर प्रतिभा कूट-राजनीति के साथ रात-दिन जैसे खिलवाड़ किया करती है।-(राक्षस का कथन)
  • यह स्वप्नों का देश ,यह त्याग और ज्ञान का पालना,यह प्रेम की रंगभूमि-भारत-भूमि क्या भुलाई जा सकती है?कदापि नहीं।अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि है;भारत मानवता की जन्मभूमि है।-(कार्नेलिया का कथन)
  • यह युद्ध ग्रीक और भारतीयों के अस्त्र का ही नहीं,इसमें दो बुद्धियाँ भी लड़ रही है।-(कार्नेलिया का कथन)

तृतीय दृश्य-

  • मैं तलवार खींचे हुए भारत में आया,हृदय देकर जाता हूँ।-(सिकंदर का कथन)

पंचम दृश्य


आज इस यौवन के माधवी कुंज में कोकिल बोल रहा।
मधु पीकर पागल हुआ,करता प्रेम-प्रलाप

षष्टम दृश्य-

  • समझदारी आने पर यौवन चला जाता है-(चाणक्य का कथन)

सप्तम दृश्य-

  • राजा प्रजा का पिता है-(स्त्री का कथन)
  • नंद नीच-जन्मा है न! यह विद्रोह उसी के लिए किया जा रहा है,तो फिर उसे भी दिखा देना है कि मैं क्या हूँ,यह नाम सुनकर लोग काँप उठें।प्रेम न सही,भय का ही सम्मान हो।
  • (नंद का कथन)

अष्टम दृश्य-

  • सफलता का एक ही क्षण होता है।आवेश और कर्तव्य में बहुत अंतर है।- (चाणक्य का कथन)
  • उत्पीड़न की चिनगारी को अत्याचारी अपने ही अंचल में छिपाए रहता है।- (चाणक्य का कथन)

चतुर्थ अंक-(प्रथम दृश्य)


सुधा-सिकर से नहला दो
लहरें डूब रही हों रस में।-(कल्याणी)

  • प्रणय के प्रेम-पीड़ा-को मैं पैरों से कुचल कर,दबाकर खड़ी रही!अब मेरे लिए कुछ भी अवशिष्ट नहीं रहा।- (कल्याणी का कथन)
  • महत्वकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीपी में रहता है।-(चाणक्य)

द्वितीय दृश्य

  • मैं अनाथ थी ,जीविका के लिए मैंने चाहे कुछ भी किया हो;पर स्वीत्व नहीं बेचा।-(सुवासिनी का कथन)
  • तुम मेरे रूप और गुण के ग्राहक हो,और सच्चे ग्राहक हो-(सुवासिनी)


कैसी बड़ी रूप की ज्वाला?
पड़ता है पतंग-सा इसमें मन होकर मतवाला।-(नेपथ्य से किसी का गान)

  • परिणाम में भलाई ही मेरे कामों की कसौटी है-(चाणक्य)

चतुर्थ दृश्य-


मधुप कब एक कली का है!
पाया जिसमें प्रेमरस,सौरभ और सुहाग।-(मालविका का कथन)


बज रही वंशी आठों याम की।
अब तक गूँज रही है बोली प्यारे मुख अभिराम की।-(मालविका का कथन)

  • जीवन एक प्रश्न है और मरण है उसका अटल उत्तर।-(मालविका का कथन)


ओ मेरी जीवन की स्मृति! ओ अंतर के आतुर अनुराग! बैठ गुलाबी विजन उषा में गाते कौन मनोहर राग?- मालविका का कथन

चंद्रगुप्त नाटक के पात्र कौन कौन से हैं?

इसलिए इस नाटक का नायक नाटककार ने चंद्रगुप्त को ही माना है और नाटक का नाम भी 'चंद्रगुप्त' ही रखा है। इसके अतिरिक्त मगध सम्राट नंद, मालवगण सिंहरण, राजकुमार आम्भीक, पर्वतेश्वर, अलक्षेद्र, राक्षस, मालविका, कार्नेलिया, अलका, सुवासिनी आदि चरित्र महत्वपूर्ण व्यक्तित्व है।

सिंहरण किस रचना का पात्र है इसके रचनाकार कौन हैं ?`?

मुलाकात आज्ञा जयशंकर प्रसाद विरचित 'चंद्र‌गुप्त नाटक में सिंहरण का चरित्र काफी महत्त्वपूर्ण है। भी सिंहरण अपनी युद्ध-कुशलता से करता है।

चंद्रगुप्त नाटक के लेखक का नाम क्या है?

सन्दर्भ एवं प्रसंग : प्रस्तुत अंश सुप्रसिद्ध नाटककार जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित नाटक 'चन्द्रगुप्त' के द्वितीय अंक के प्रथम दृश्य से लिया गया है।

चंद्रगुप्त नाटक में विष्णुगुप्त किसका नाम है?

चाणक्य (अनुमानतः 376 ई॰पु॰ - 283 ई॰पु॰) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे कौटिल्य या विष्णुगुप्त नाम से भी विख्यात हैं।