भारत में मंद औद्योगिक विकास के क्या कारण है? - bhaarat mein mand audyogik vikaas ke kya kaaran hai?

औद्योगिक विकास के स्तर का किसी देश की आर्थिक सम्पन्नता से सीधा सम्बन्ध है। विकसित देशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, रूस की आर्थिक सम्पन्नता इन देशों की औद्योगिक इकाइयों की प्रोन्नत एवं उच्च विकासयुक्त वृद्धि से जुड़ा है। औद्योगिक दृष्टि से अविकसित देश अपने प्राकृतिक संसाधानों का निर्यात करते हैं तथा विनिर्मित वस्तुओं को अधिक मूल्य चुकाकर आयात करते हैं। इसीलिये आर्थिक रूप से ये देश पिछड़े बने रहते हैं।

भारत में विनिर्माण उद्योग का सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 30% का योगदान है। इन औद्योगिक इकाइयों द्वारा करीब 280 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराए जाते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि निर्माण उद्योग राष्ट्रीय आय तथा रोजगार के प्रमुख स्रोत हैं।

इस पाठ के अन्तर्गत हम भारत में विकसित विभिन्न प्रकार के निर्माण उद्योग, उनके वर्गीकरण तथा उनके क्षेत्रीय वितरण कर अध्ययन करेंगे।

उद्देश्य
इस पाठ का अध्ययन करने के पश्चात आपः
- भारत में विनिर्माण उद्योगों के ऐतिहासिक विकास को जान सकेंगे;
- हमारे देश के आर्थिक विकास एवं प्रगति में इन औद्योगिक इकाइयों के योगदान को समझ सकेंगे;
- उद्योगों का विभिन्न लक्षणों के आधार पर वर्गीकरण कर सकेंगे;
- औद्योगिक विकास का सम्बन्ध कृषि, खनिज तथा ऊर्जा के साथ स्थापित कर सकेंगे;
- उद्योगों के स्थानीयकरण को प्रभावित करने वाले कारकों का परीक्षण कर सकेंगे;
- कुछ प्रमुख कृषि-आधारित उद्योगों तथा खनिज आधारित उद्योंगों के स्थानिक वितरण का वर्णन कर सकेंगे;
- भारत के मानचित्र पर कुछ चुने हुए उद्योगों की अवस्थितियों को दर्शा सकेंगे और उनकी पहचान कर सकेंगे;
- भारत में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिये बनाई गई विभिन्न नीतियों के योगदान को समझा सकेंगे;
- औद्योगिक विकास और क्षेत्रीय विकास के बीच सम्बन्ध स्थापित कर सकेंगे;
- स्थान-विशेष पर स्थापित उद्योगों के विकास एवं वृद्धि पर आर्थिक उदारीकरण के प्रभाव का वर्णन कर सकेंगे;
- औद्योगिक विकास के पर्यावरण पर पड़ रहे प्रभाव की व्याख्या कर सकेंगे।

24.1 आधुनिक उद्योगों का संक्षिप्त इतिहास
भारत में आधुनिक औद्योगिक विकास का प्रारंभ मुंबई में प्रथम सूती कपड़े की मिल की स्थापना (1854) से हुआ। इस कारखाने की स्थापना में भारतीय पूँजी तथा भारतीय प्रबंधन ही मुख्य था। जूट उद्योग का प्रारंभ 1855 में कोलकाता के समीप हुगली घाटी में जूट मिल की स्थापना से हुआ जिसमें पूँजी एवं प्रबंध-नियन्त्रण दोनो विदेशी थे। कोयला खनन उद्योग सर्वप्रथम रानीगंज (पश्चिम बंगाल) में 1772 में शुरू हुआ। प्रथम रेलगाड़ी का प्रारंभ 1854 में हुआ। टाटा लौह-इस्पात कारखाना जमशेदपुर (झारखण्ड राज्य) में सन 1907 में स्थापित किया गया। इनके बाद कई मझले तथा छोटी औद्योगिक इकाइयों जैसे सीमेन्ट, कांच, साबुन, रसायन, जूट, चीनी तथा कागज इत्यादि की स्थापना की गई। स्वतंत्रता पूर्व औद्योगिक उत्पादन न तो पर्याप्त थे और न ही उनमें विभिन्नता थी।

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की अर्थव्यवस्था अविकसित थी, जिसमें कृषि का योगदान भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 60% से अधिक था तथा देश की अधिकांश निर्यात से आय कृषि से ही थी। स्वतंत्रता के 60 वर्षों के बाद भारत ने अब अग्रणी आर्थिक शक्ति बनने के संकेत दिए हैं।

भारत में औद्योगिक विकास को दो चरणों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम चरण (1947-80) के दौरान सरकार ने क्रमिक रूप से अपना नियन्त्रण विभिन्न आर्थिक-क्षेत्रों पर बढ़ाया। द्वितीय चरण (1980-97) में विभिन्न उपायों द्वारा (1980-1992 के बीच) अर्थव्यवस्था में उदारीकरण लाया गया। इन उपायों द्वारा उदारीकरण तात्कालिक एवं अस्थाई रूप से किया गया था। अतः 1992 के पश्चात उदारीकरण की प्रक्रिया पर जोर दिया गया तथा उपागमों की प्रकृति में मौलिक भिन्नता भी लाई गई।

स्वतंत्रता के पश्चात भारत में व्यवस्थित रूप से विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत औद्योगिक योजनाओं को समाहित करते हुए कार्यान्वित किया गया और परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में भारी और मध्यम प्रकार की औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की गई। देश की औद्योगिक विकास नीति में अधिक ध्यान देश में व्याप्त क्षेत्रीय असमानता एवं असंतुलन को हटाने में केन्द्रित किया गया था और विविधता को भी स्थान दिया गया। औद्योगिक विकास में आत्मनिर्भरता को प्राप्त करने के लिये भारतीय लोगों की क्षमता को प्रोत्साहित कर विकसित किया गया। इन्हीं सब प्रयासों के कारण भारत आज विनिर्माण के क्षेत्र में विकास कर पाया है। आज हम बहुत सी औद्योगिक वस्तुओं का निर्यात विभिन्न देशों को करते हैं।

उत्तर प्रदेश में खनिजों का अभाव है, अतः यहाँ खनिजों पर आधारित उद्योगों का विकास नहीं हो सका है, यहाँ कृषि पर आधारित एवं अन्य उद्योगों का ही विकास हुआ है। उत्तर प्रदेश देश के प्रमुख चीनी उत्पादक राज्यों में से एक है। हथकरघा उद्योग यहाँ का सबसे बड़ा उद्योग है। यहाँ सूती व ऊनी कपड़ा, चमड़ा और जूता, शराब, कागज, रासायनिक पदार्थ, कृषि उपकरण तथा कांच का सामन बनाने के उद्योग उन्नत दशा में है। उत्तर प्रदेश के प्रमुख औद्योगिक नगरों में कानपुर का नाम अग्रणी है यहाँ अनेक औद्योगिक इकाइयाँ केन्द्रित हैं अन्य औद्योगिक नगरों में आगरा, अलीगढ़, मेरठ, गाजियाबाद, गोरखपुर, लखनऊ, मिर्जापुर, मोदीनगर, वाराणसी और बरेली हैं।

औद्योगिक रूप से तो उत्तर प्रदेश एक पिछड़े हुए प्रदेश की श्रेणी में आता है। यहाँ पर औद्योगिक वातावरण का अभाव है। नये आर्थिक दौर में तो यह चुनौती प्रदेश में वढ़ गयी है। प्रदेश के औद्योगिक विकास में आने वाली बाधाओं के कुछ कारक अग्रांकित हैं जिन्हें औद्योगिक पिछड़ेपन के कारण भी कहा जा सकता है-

उत्तर प्रदेश में औद्योगिक पिछड़ेपन के कारण

(1) उत्तर प्रदेश में गतिशील आर्थिक नीतियों का अभाव है जिससे औद्योगिकरण को गति नहीं मिल पा रही है।

(2) उत्तर प्रदेश में सर्वत्र भ्रष्टाचार एवं लाल फीताशाही व्याप्त है जो औद्यागिक पिछड़ेपन का एक प्रमुख कारण है।

(3) उत्तर प्रदेश चारों ओर से भू-आच्छादित है तथा इसके चारों तरफ समुद्र तट का अभाव है और ये दशायें औद्योगीकरण के प्रतिकूल हैं।

(4) प्रदेश में जो श्रम कानून हैं वे भी कहीं न कहीं औद्योगीकरण पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।

(5) उत्तर प्रदेश में कृषि क्षेत्र भी पर्याप्त रूप से विकसित एवं विविधीकृत नहीं है।

(6) प्रदेश में आधारभूत संरचना का भी पर्याप्त रूप से विकास नहीं हुआ है। यहाँ पर विद्युत की उपलब्धि भी आवश्यकता या माँग से कम है।

(7) प्रदेश में परिवहन एवं सड़क का भी गुणवत्तापरक तथा पर्याप्त न होना भी एक महत्वपूर्ण बाधा है।

(8) प्रदेश में जो लघु इकाइयाँ कार्य कर रही हैं इन इकाइयों में कुशलता का अभाव है तथा इनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विपणन में भी समस्याएँ आती हैं।

(9) केन्द्र सरकार द्वारा उत्तराखण्ड को विशेष महत्व दिया गया है जिसके कारण प्रदेश में औद्योगिक सम्भावनाएँ कमजोर हो जाती हैं। क्योंकि जो निवेशक हैं वे उत्तर प्रदेश को छोड़कर उत्तराखण्ड में निवेश करना चाहते हैं।

(10) प्रदेश में विश्व व्यापार संगठन के नये प्रावधानों के कारण भी औद्योगीकरण में कई बार बाधाएँ सामने आती हैं। इनका उपयुक्त निराकरण आवश्यक है।

(11) राज्य में जो राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण पाया जाता है वह भी औद्योगीकरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

भारत में औद्योगिक विकास के मार्ग में मुख्य बाधा क्या?

Solution : भारत में औद्योगिक विकास की मुख्य समस्याएँ हैं: क्षमता का कम प्रयोग, औद्योगिक रुग्णता, रोजगार सृजन में असफलता, उत्पादन की ऊँची लागते आदि।

भारत के औद्योगिक विकास के बारे में आप क्या जानते हैं?

भारत में औद्योगिक विकास का प्रारंभ 1854 में मुम्बई में आधुनिक सूती वस्त्र कारखाने की स्थापना से हुआ। और तब से यह उद्योग उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त कर रहा है। वर्ष 1952 में इसकी कुल 378 औद्योगिक इकाइयाँ थीं जो मार्च 1998 में बढ़कर 1998 हो गई। भारत की अर्थव्यवस्था में कपड़ा उद्योग का योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण है।

औद्योगिक कारण से आप क्या समझते हैं?

औद्योगीकरण एक सामाजिक तथा आर्थिक प्रक्रिया का नाम है। इसमें मानव-समूह की सामाजिक-आर्थिक स्थिति बदल जाती है जिसमें उद्योग-धन्धों का बोलबाला होता है। वस्तुत: यह आधुनीकीकरण का एक अंग है। बड़े-पैमाने की उर्जा-खपत, बड़े पैमाने पर उत्पादन, धातुकर्म की अधिकता आदि औद्योगीकरण के लक्षण हैं

भारत में औद्योगिक विकास की वर्तमान स्थिति क्या है?

वर्ष 2020-21 की प्रथम छमाही की तुलना में वर्ष 2021-22 की प्रथम छमाही में औद्योगिक क्षेत्र की विकास दर 22.9 प्रतिशत दर्ज की गई और चालू वित्त वर्ष में औद्योगिक विकास दर 11.8 प्रतिशत रहने की आशा है। औद्योगिक क्षेत्र का प्रदर्शन बेहतर हो गया है, जो औद्योगिक उत्‍पादन सूचकांक (आईआईपी) के समग्र विकास में नजर आता है।