राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 Show (1992 का अधिनियम संख्यांक 19) [17 मई, 1992] राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन करने और उससे संसक्त या उसके आनुषंगिक विषयों का उपबन्ध करने के लिए अधिनियम भारत गणराज्य के तैंतालीसवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :- अध्याय 1 प्रारम्भिक 1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 है । (2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर है । (3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे । 2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,- (क) आयोग" से धारा 3 के अधीन गठित राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अभिप्रेत है ; (ख) सदस्य" से आयोग का सदस्य अभिप्रेत है [और इसके अंतर्गत उपाध्यक्ष भी है] ; (ग) अल्पसंख्यक" से इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए वह समुदाय अभिप्रेत है जो केन्द्रीय सरकार द्वारा उस रूप में अधिसूचित किया जाए ; (घ) विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है । अध्याय 2 राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग 3. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन-(1) केन्द्रीय सरकार एक निकाय का, जो राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के नाम से ज्ञात होगा, इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने और उसे समनुदिष्ट कृत्यों का पालन करने के लिए, गठन करेगी । (2) यह आयोग [एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और पांच सदस्यों से] मिलकर बनेगा जिन्हें केन्द्रीय सरकार द्वारा विख्यात, योग्य और सत्यनिष्ठ व्यक्तियों में से नामनिर्दिष्ट किया जाएगा : परन्तु अध्यक्ष को मिलाकर पांच सदस्य अल्पसंख्यक समुदायों में से होंगे । 4. अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि और सेवा की शर्तें-(1) अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य, उस तारीख से जब वह पद ग्रहण करता है, तीन वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेगा । (2) अध्यक्ष या सदस्य केन्द्रीय सरकार को स्वहस्ताक्षरित लेख द्वारा संबोधित करते हुए किसी भी समय, यथास्थिति, अध्यक्ष या सदस्य के पद को त्याग सकेगा । (3) केन्द्रीय सरकार, उपधारा (2) में निर्दिष्ट अध्यक्ष या सदस्य के पद से किसी व्यक्ति को हटा देगी यदि वह व्यक्ति- (क) अनुन्मोचित दिवालिया हो जाता है ; (ख) किसी ऐसे अपराध के लिए, जिसमें केन्द्रीय सरकार की राय में नैतिक अधमता अन्तर्वलित है, दोषसिद्ध और कारावास से दंडादिष्ट किया जाता है ; (ग) विकृतचित्त हो जाता है और किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया जाता है ; (घ) कार्य करने से इंकार करता है या कार्य करने में असमर्थ हो जाता है ; (ङ) आयोग से अनुपस्थित रहने की इजाजत लिए बिना आयोग के लगातार तीन अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है; या (च) केन्द्रीय सरकार की राय में अध्यक्ष या सदस्य के पद का ऐसा दुरुपयोग करता है जिससे उस व्यक्ति का पद पर बना रहना अल्पसंख्यकों के हितों या लोकहित में अहितकर हो गया है : परन्तु इस खंड के अधीन कोई व्यक्ति तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक उसे उस मामले में सुनवाई का उचित अवसर न दे दिया गया हो । (4) उपधारा (2) के अधीन या अन्यथा होने वाली रिक्ति नए नामनिर्देशन द्वारा भरी जाएगी । (5) अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते और उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएं । 5. आयोग के अधिकारी और अन्य कर्मचारी-(1) केन्द्रीय सरकार, आयोग के लिए एक सचिव और उतने अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की व्यवस्था करेगी जितने इस अधिनियम के अधीन आयोग के कृत्यों का दक्षतापूर्ण पालन करने के लिए आवश्यक हों । (2) आयोग के प्रयोजन के लिए नियुक्त अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते और उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएं । 6. वेतन और भत्तों का अनुदानों में से संदाय-(1) अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते और प्रशासनिक व्यय, जिनके अन्तर्गत धारा 5 में निर्दिष्ट अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन भी हैं, धारा 10 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट अनुदानों में से संदत्त किए जाएंगे । 7. रिक्तियों, आदि से आयोग की कार्यवाहियों का अविधिमान्य न होना-आयोग के किसी कार्य या कार्यवाही को आयोग में केवल किसी रिक्ति के होने या उसके गठन में किसी त्रुटि के आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा और न ही वह अविधिमान्य होगा । 8. प्रक्रिया का आयोग द्वारा विनियमित किया जाना-(1) आयोग का अधिवेशन आवश्यकतानुसार ऐसे समय और स्थान पर होगा जो अध्यक्ष ठीक समझे । (2) आयोग अपनी प्रक्रिया स्वयं विनियमित करेगा । (3) आयोग के सभी आदेश और विनिश्चय सचिव द्वारा या इस निमित्त सचिव द्वारा सम्यक् रूप से प्राधिकृत आयोग के किसी अन्य अधिकारी द्वारा अधिप्रमाणित किए जाएंगे । अध्याय 3 आयोग के कृत्य 9. आयोग के कृत्य-(1) आयोग निम्नलिखित सभी या किन्हीं कृत्यों का पालन करेगा, अर्थात् :- (क) संघ और राज्यों के अधीन अल्पसंख्यकों के विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना ; (ख) संविधान में और संसद् तथा राज्य विधान-मंडलों द्वारा अधिनियमित विधियों में उपबंधित रक्षोपायों के कार्य को मानीटर करना ; (ग) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकारों द्वारा अल्पसंख्यकों के हितों की संरक्षा के लिए रक्षोपायों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सिफारिशें करना ; (घ) अल्पसंख्यकों को उनके अधिकारों और रक्षोपायों से वंचित करने के बारे में विनिर्दिष्ट शिकायतों की जांच पड़ताल करना और ऐसे मामलों को समुचित प्राधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत करना ; (ङ) अल्पसंख्यकों के विरुद्ध किसी विभेद के कारण उत्पन्न समस्याओं का अध्ययन करना और उनको दूर करने के लिए अध्युपायों की सिफारिश करना ; (च) अल्पसंख्यकों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास से संबंधित विषयों का अध्ययन, अनुसंधान और विश्लेषण करना ; (छ) किसी अल्पसंख्यक के संबंध में ऐसे समुचित अध्युपायों का सुझाव देना जो केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकारों द्वारा किए जाने चाहिए ; (ज) अल्पसंख्यकों से संबंधित किसी विषय पर, और विशिष्टतया उनके सामने आने वाली कठिनाइयों पर, केन्द्रीय सरकार को कालिक या विशेष रिपोर्टें देना; और (झ) कोई अन्य विषय जो केन्द्रीय सरकार द्वारा उसे निर्दिष्ट किया जाए । (2) केन्द्रीय सरकार, उपधारा (1) के खंड (ग) में निर्दिष्ट सिफारिशों को संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, एक ज्ञापन के साथ रखवाएगी जिसमें संघ से संबंधित सिफारिशों पर की गई या की जाने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई और किन्हीं ऐसी सिफारिशों को, यदि कोई हों, स्वीकार न किए जाने के लिए कारणों का स्पष्टीकरण होगा । (3) जहां उपधारा (1) के खंड (ग) में निर्दिष्ट कोई सिफारिश या उसका कोई भाग, किसी राज्य सरकार से संबंधित है वहां, आयोग ऐसी सिफारिश या उसके भाग की एक प्रति ऐसी राज्य सरकार को भेजेगा जो उसे राज्य के विधान-मंडल के समक्ष, एक ज्ञापन के साथ, रखवाएगी जिसमें राज्य से संबंधित सिफारिशों पर की गई या की जाने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई और किन्हीं ऐसी सिफारिशों या उनके भाग को, यदि कोई हों, स्वीकार न किए जाने के लिए कारणों का स्पष्टीकरण होगा । (4) आयोग को उपधारा (1) के उपखंड (क), उपखंड (ख) और उपखंड (घ) में वर्णित कृत्यों में से किसी का पालन करते समय, और विशिष्टतया निम्नलिखित विषयों की बाबत, किसी वाद का विचारण करने वाले सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी, अर्थात् :- (क) भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना ; (ख) किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना ; (ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना ; (घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतिलिपि की अपेक्षा करना ; (ङ) साक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना ; और (च) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाए । अध्याय 4 वित्त, लेखा और संपरीक्षा 10. केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान-(1) केन्द्रीय सरकार, संसद् की विधि द्वारा इस निमित्त सम्यक् विनियोग किए जाने के पश्चात्, आयोग को अनुदानों के रूप में उतनी धनराशि का संदाय करेगी जितनी केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाने के लिए ठीक समझे । (2) आयोग उतनी धनराशि खर्च कर सकेगा जितनी वह इस अधिनियम के अधीन कृत्यों का पालन करने के लिए ठीक समझे और वह धनराशि उपधारा (1) में निर्दिष्ट अनुदानों में से संदेय व्यय मानी जाएगी । 11. लेखे और संपरीक्षा-(1) आयोग समुचित लेखे और अन्य सुसंगत अभिलेख रखेगा और ऐसे प्ररूप में लेखाओं का वार्षिक विवरण तैयार करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के परामर्श से विहित किया जाए । (2) आयोग के लेखाओं की संपरीक्षा नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा ऐसे अन्तरालों पर की जाएगी जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं और ऐसी संपरीक्षा के संबंध में उपगत कोई व्यय आयोग द्वारा नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को संदेय होगा । (3) नियंत्रक-महालेखापरीक्षक तथा उसके द्वारा इस अधिनियम के अधीन आयोग के लेखाओं की संपरीक्षा के संबंध में नियुक्त किसी व्यक्ति को ऐसी संपरीक्षा के संबंध में वही अधिकार और विशेषाधिकार तथा प्राधिकार होंगे जो साधारणतया नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को सरकारी लेखाओं की संपरीक्षा के संबंध में होते हैं और विशिष्टतया बहियों, खातों, संबंधित वाउचरों तथा अन्य दस्तावेजों और कागज-पत्रों को पेश किए जाने की मांग करने और आयोग के किसी भी कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा । 12. वार्षिक रिपोर्ट-आयोग प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट, जिसमें पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के दौरान उसके क्रियाकलाप का पूर्ण विवरण होगा, ऐसे प्ररूप में और ऐसे समय पर, जो विहित किया जाए, तैयार करेगा और उसकी एक प्रति केन्द्रीय सरकार को भेजेगा । 13. वार्षिक रिपोर्ट और संपरीक्षा रिपोर्ट का संसद् के समक्ष रखा जाना-केन्द्रीय सरकार, वार्षिक रिपोर्ट, उसमें अन्तर्विष्ट सिफारिशों पर, जहां तक उनका संबंध केन्द्रीय सरकार से है, की गई कार्रवाई के ज्ञापन और ऐसी सिफारिशों में से किसी के अस्वीकार करने के कारण, यदि कोई हों, सहित, और संपरीक्षा रिपोर्ट, रिपोर्टों के प्राप्त होने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी । अध्याय 5 प्रकीर्ण 14. आयोग के अध्यक्ष, सदस्यों और कर्मचारिवृन्द का लोक सेवक होना-आयोग का अध्यक्ष, सदस्य और कर्मचारी भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक समझे जाएंगे । 15. नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यायान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी । (2) विशिष्टयता और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात् :- (क) धारा 4 की उपधारा (5) के अधीन अध्यक्ष और सदस्यों को और धारा 5 की उपधारा (2) के अधीन अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें ; (ख) धारा 9 की उपधारा (4) के खंड (च) के अधीन कोई अन्य विषय ; (ग) वह प्ररूप जिसमें लेखाओं का वार्षिक विवरण धारा 11 की उपधारा (1) के अधीन रखा जाएगा ; (घ) वह प्ररूप जिसमें और वह समय जब वार्षिक रिपोर्ट धारा 12 के अधीन तैयार की जाएगी ; (ङ) कोई अन्य विषय जिसे विहित किया जाना अपेक्षित है या किया जाए । (3) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के लिए पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा । 16. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति-(1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे उपबंध कर सकेगी जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हों और जो उस कठिनाई को दूर करने के लिए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत हों : परन्तु ऐसा कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा । (2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, उसके किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक संदन के समक्ष रखा जाएगा ।
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