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आजादी के इस अमृत महोत्सव पर हमें यह जानना भी जरूरी है कि आखिर हम अपने देश और तिरंगे को कितना जानते हैं. तिरंगे के तीन रंगों की विशेषताएं लगभग हर भारतीय को पता होंगी. लेकिन क्या अशोक चक्र के बारे में आपको कुछ जानकारी है.Ashoka Chakra Specification: 15 अगस्त 2022 को लेकर देशभर में तैयारियां जोरों पर है. इस दौरान भारत सरकार द्वारा हर घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है जिसके तहत लगभग 20 करोड़ घरों में तिरंगा फहराए जाने की योजना है. आजादी के इस अमृत महोत्सव पर हमें यह जानना भी जरूरी है कि आखिर हम अपने देश और तिरंगे को कितना जानते हैं. तिरंगे के तीन रंगों की विशेषताएं लगभग हर भारतीय को पता होंगी. लेकिन क्या अशोक चक्र के बारे में आपको कुछ जानकारी है. अशोक चक्र का अस्तित्व? (Ashoka Chakra Establishment)बता दें कि वाराणसी के सारनाथ में अशोक चक्र को चक्रवर्ती सम्राट अशोक द्वारा स्थापित किया गया था. इस अशोक चक्र पर एक शेर को स्थापित किया गया है जोकि भारत का राष्ट्रीय प्रतीक भी है. अशोक चक्र का निर्माण सम्राट अशोक के बहुत से शिलालेखों पर बनाए गए हैं. भारत के राष्ट्रीय ध्वज में इसी अशोक चक्र को स्थान दिया गया है जिसमें कुल 24 तीलियां होती हैं और इस अशोक चक्र का रंग हमेशा नीला ही होता है. ऐसे में मन में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि अशोक चक्र का रंग नीला ही क्यों होता है. अशोक चक्र का रंग नीला ही क्यों? (Why Ashoka Chakra Spokes are Blue)अशोक चक्र का नीला रंग आकाश, महासागर और सार्वभौमिक सत्य को दर्शाता है. यही कारण है कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज की सफेट पट्टी के बीच में अशोक चक्र बना होता है. इसमें 24 तीलियां होती है. जो कि मनुष्य के 24 गुणों को दर्शाती हैं. अशोक चक्र की 24 तीलियों से ही मनुष्य के लिए बनाएं गए 24 धर्म मार्ग की तुलना की है. इसलिए इन्हें मनुष्य के लिए 24 धर्म मार्ग भी कहा जाता है. साथ ही अशोक चक्र समाज के चहुमुखी के प्रति देशवासियों को उनके अधिकारों व कर्तव्यों के बारे में बताती है. चरखे को हटाकर तिरंगे में शामिल किया गया अशोक चक्र (Ashoka Chakra Importance in Indian National Flag)भारत के राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण की प्रक्रिया जब जारी थी तो एक वक्त ऐसा था जब संविधान निर्माण से पूर्व राष्ट्रीय ध्वज में अशोक चक्र के स्थान पर चरखे को स्थापित किया गया था लेकिन संविधान निर्माताओं द्वारा चरखे को हटार अशोक चक्र को स्थापित किया गया. इसके बाद 22 जुलाई 1947 को संविधान संभा ने इस तिरंगे को देश को राष्टीय ध्वज के रूप में स्वीकार कर लिया. अशोक चक्र सम्मान (Ashoka Chakra Award)अशोक चक्र के नाम पर ही भारत में अशोक चक्र सम्मान पदक देने की शुरुआत की गई. अशोक चक्र पदक सम्मान भारतीय सेना के जवान, आम नागरिकों को जीवित या मरणोपरांत दिया जाता है. साल 1947 के बाद से अबतक यह सम्मान लगभग 90 लोगों को दी जा चुकी है. इस सम्मान पदक की स्थापना 4 जनवरी 1952 को हुई थी. सबसे पहले बार अशोक चक्र पदक नायब सूबेदार श्याम बहादुर सिंह को दिया गया था. देश के कई अहम पदकों व सम्मानों, भवनों पर अशोक चक्र की तस्वीर आपको आमतौर पर देखने को मिल जाती है. अशोक चक्र अपने आप में नायाब है. यह गौतम बुद्ध के धम्म चक्र परिवर्तन को भी दर्शाता है. ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें फेसबुक पर लाइक करें या ट्विटर पर फॉलो करें. India.Com पर विस्तार से पढ़ें एजुकेशन और करियर की और अन्य ताजा-तरीन खबरें 22 जुलाई 1947 में भारतीय संविधान सभा की बैठक में सभी भारतवासियों को एक सूत्र में बांधने वाले तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया था। राष्ट्रीय ध्वज अंगीकरण दिवस (22 जुलाई) पर योगेंद्र माथुर बता रहे हैं हमारे राष्ट्रीय ध्वज की गौरवगाथा... योगेंद्र माथुर। प्रत्येक देश का एक राष्ट्रीय ध्वज होता है और उसकी संरचना का अपना एक विशेष अर्थ होता है। हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है, जो हमें अपनी जान से भी बढ़कर प्यारा है। इसमें हमारी आशा, अभिलाषा, संकल्प व बलिदान सब कुछ निहित है। इसी तिरंगे से प्रेरणा और शक्ति पाकर आजादी की हर लड़ाई हमनें लड़ी है। भारत के राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास पर यदि हम दृष्टि डालें तो पाएंगे कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज की विकास यात्रा में कई महत्वपूर्ण पड़ाव आए हैं। वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज के पहले कई ध्वज बदल चुके हैं। भारत के राष्ट्रीय ध्वज की सर्वप्रथम कल्पना सन 1906 में कई गई थी। भारत का पहला गैर आधिकारिक ध्वज 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता (अब कोलकाता) के पास बागान चौक (ग्रीन पार्क) में कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया था। यह ध्वज स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा तैयार किया गया था। इस ध्वज में हरे, पीले व लाल रंग की तीन आड़ी पट्टियाँ थीं। ऊपर की ओर हरी पट्टी में आठ कमल थे और नीचे की लाल पट्टी में सूरज व चाँद बनाए गए थे। बीच की पीली पट्टी में "वंदे मातरम" लिखा गया था। लगभग इसी समय फ्रांस में अपना निर्वासन काल व्यतीत कर रहीं महिला क्रांतिकारी भीकाजी रुस्तम जी कामा द्वाराअपने साथियों के साथ भारत के एक और राष्ट्रीय ध्वज की योजना को मूर्त रूप दिया गया। उनकी योजना के अनुसार ध्वज में तीन रंग थे। आरंभ में केसरिया, मध्य में पीला व अंत में हरा रंग रखा गया। केसरिया भाग में आठ तारे, पीले भाग में नागरलिपि में "वंदे मातरम" एवं हरे भाग में द्वितीया का चंद्र व सूर्य अंकित किये गए थे। यह ध्वज 22 अगस्त 1907 को जर्मनी के स्टटगार्ड में हुई इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांफ्रेंस में फहराया गया था। सन 1918 के होमरूल आंदोलन ने एक नये राष्ट्रध्वज को जन्म दिया। डॉ. एनी बेसेन्ट, लोकमान्य तिलक व अन्य नेताओं ने, जिस बंगले में वे नजरबंद थे, एक झंडा फहराया। इस ध्वज में पाँच लाल व चार हरे रंग की पट्टियाँ एक के बाद एक क्रमवार थीं। ऊपर बाईं ओर यूनियन जेक तथा दाईं ओर चंद्रमा अंकित था। निचले भाग पर सप्तऋषि मंडल के सात तारों का अंकन था। उस समय भारत में नौ प्रांत थे और यह नौ पट्टियाँ उन्ही की प्रतीक थीं। लाल तथा हरा रंग हिन्दू-मुस्लिम एकता के द्योतक थे। असहयोग आंदोलन के दौरान एक बार पुन: राष्ट्रीय ध्वज पर विचार की आवश्यकता महसूस की गई। सन 1921 के कांग्रेस के बेजवाड़ा ( वर्तमान विजयवाड़ा ) अधिवेशन में आंध्रप्रदेश के पिंगली वैंकेया नें महात्मा गांधी के सम्मुख एक नए ध्वज की डिजाइन प्रस्तुत की, जिसमें लाल व हरे रंग की दो पट्टियाँ थीं, जो कि हिन्दू-मुस्लिम एकता की प्रतीक मानी गईं। बाद में गांधी जी के कहे अनुसार अन्य धर्मों का सूचक श्वेत रंग भी उसमें सम्मिलित कर लिया गया क्योंकि राष्ट्रीय ध्वज के लिए अत्यंत आवश्यक था कि वह प्रत्येक धर्म तथा वर्ग का प्रतिनिधित्व करता हो।अत: राष्ट्रीय ध्वज का तिरंगा स्वरूप स्वीकार किया गया। इस ध्वज में सबसे ऊपर श्वेत, मध्य में हरी व सबसे नीचे की पट्टी लाल रंग की रखी गई और तीनों पट्टियों पर पूरे आकार का चरखे का चिन्ह अंकित किया गया। सन 1923 राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास में विशेष रूप से स्मरणीय है। इस वर्ष राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान की रक्षा के लिए किये गए जबलपुर व नागपुर के झंडा आंदोलन ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को देशव्यापी लोकप्रियता प्रदान की तथा साथ ही जनमानस में राष्ट्रीय ध्वज के प्रति श्रद्धा व सम्मान के भाव उतपन्न किए। 31 दिसम्बर 1929 की संध्या व नूतन वर्ष के आगमन की बेला में राष्ट्रीय ध्वज के आरोहण के साथ रावी के तट पर कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता को अपना लक्ष्य बनाया। चूंकि उपरोक्त राष्ट्रीय ध्वज के रंग सम्प्रदाय के प्रतीक माने गए थे। अत: इस सम्बन्ध में मतभेद बढऩे के कारण बाद में कांग्रेस कार्यसमिति नें राष्ट्रीय ध्वज समिति का गठन कर उसे सर्वमान्य राष्ट्रीय ध्वज तैयार करने का कार्य सौंपा। इस समिति ने सुझाव प्रस्तुत किया कि ध्वज में तीन रंगों के स्थान पर केवल एक रंग केसरिया रखा जाए तथा ऊपर बाईं ओर कोने में चरखे का चिन्ह अंकित किया जाए। किंतु कांग्रेस कार्यसमिति नें इस सुझाव को अस्वीकृत कर स्वयं अपने ऊपर यह कार्यभार ले लिया। इस कार्यसमिति नें जो ध्वज तैयार किया, उसमें पूर्व ध्वज में क्रमिक संशोधन कर आड़े आकार में तीन रंग रखे गए। आरंभ में केसरिया, मध्य में श्वेत और अंत में हरा रंग रखा गया। श्वेत रंग की पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का चरखा अंकित किया गया। ध्वज के सम्बन्ध में जो नई परिभाषा की गई उसके अनुसार रंगों को साम्प्रदायिकता के प्रतीक न मानते हुए गुणों का प्रतीक माना गया। केसरिया रंग साहस व त्याग, श्वेत रंग सत्य व शांति और हरा रंग विश्वास व शौर्य का प्रतीक माना गया। चरखा जनता की आशा का प्रतीक माना गया। वर्ष 1931 तिरंगे के इतिहास का वह महत्वपूर्ण पड़ाव है जब कांग्रेस के कराची अधिवेशन में तिरंगे ध्वज को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किये जाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया और इसे राष्ट्र ध्वज के रूप में मान्यता मिली। भारत की आजादी की प्रक्रिया के दौरान पूर्व ध्वजों में सकारात्मक बदलाव के साथ राष्ट्रीय ध्वज तैयार करने हेतु डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक ध्वज समिति का गठन किया गया। इस समिति ने यह निर्णय लिया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के झंडे को कुछ परिवर्तनों के साथ राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार कर लिया जाए। यह तिरंगा हो और इसके बीच मे अशोक चक्र हो। सन 1906 के बाद से अनेक रूप, रंग व अर्थ बदलता हुआ हमारे राष्ट्रीय ध्वज का वर्तमान स्वरूप भारत की संविधान सभा द्वारा 22 जुलाई 1947 को अपनाया गया तथा 14 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को राष्ट्र को सौंपा गया। वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज अनुप्रस्थ तीन रंगों का बना है। इसमें समान अनुपात की तीन आड़ी पट्टियाँ हैं। सबसे ऊपर की पट्टी केसरिया रंग की, मध्य में श्वेत रंग की व अंत में हरे रंग की पट्टी है। बीच की श्वेत पट्टी के मध्य में, जहाँ पहले चरखा था, वहाँ 24 शलाकाओं का गहरे नीले रंग का गोल चक्र है, जिसका स्वरूप सारनाथ स्थित सम्राट अशोक निर्मित सिंह स्तम्भ पर बनें चक्र की भाँति है। इस चक्र का व्यास श्वेत पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है। ध्वज की लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 होता है। राष्ट्रीय ध्वज में प्रयुक्त रंगों व चक्र के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की व्याख्याएँ की गईं हैं।। सर्वमान्य व्याख्या के अनुसार केसरिया रंग शौर्य व त्याग का, श्वेत रंग शांति व सत्य का एवं हरा रंग प्रकृति की सुंदरता व समृद्धि का प्रतीक माना गया है। बौद्ध धर्म के अनुसार चक्र धर्म व न्याय का प्रतीक है। चक्र की शालाकाएँ दिन-रात के 24 घण्टों की प्रतीक हैं जो सक्रियता के द्योतक हैं। आजादी की लड़ाई के साक्षी राष्ट्रीय ध्वज "तिरंगे" के गौरव, मान-मर्यादा और सम्मान की रक्षा व संरक्षा अत्यंत आवश्यक मानी गई है। जाने-अनजाने में स्वाधीनता के इस महान प्रतीक "तिरंगे" के प्रति अज्ञानतावश अपकार न हो, इसलिए एक राष्ट्रीय ध्वज संहिता बनाई गई है। तिरंगे की प्रतिष्ठा सुरक्षित रखने के उद्देश्य से इस ध्वज संहिता में तात्कालिक आवश्यकताओं को देखते हुए राष्ट्रहित में समय-समय पर संशोधन किये जाते रहे हैं लेकिन तिरंगे के प्रति हमारी आस्था व विश्वास सदैव एक-सा बना रहा है। हम भारतवासी राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को आज स्वतंत्रता दिवस पर शत-शत नमन करते हैं। (देश के विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में लेखक के 500 से अधिक आलेख, लघुकथा, व्यंग्य व हाइकु आदि प्रकाशित हो चुके हैं) Edited By: Sanjay Pokhriyal भारत के तिरंगे में चरखे की जगह अशोक चक्र को कब अपना गया?इसके बाद आई 22 जुलाई 1947 की तारीख
चरखे के स्थान पर सारनाथ स्तम्भ का चक्र इसमें जोड़ा गया. 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज को भारतीय गणतंत्र के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अपनाया था...
चरके के स्थान पर चक्र को राष्ट्रीय ध्वज में संविधान सभा ने कब मोहर लगाई?इस दिन समिति ने तय किया कि राष्ट्रीय ध्वज के प्रस्ताव को संविधान सभा में जवाहरलाल नेहरू पेश करेंगे। इस प्रकार भारत के राष्ट्रीय ध्वज का वर्तमान स्वरुप 22 जुलाई 1947 को भारतीय विधान परिषद् (संविधान सभा) में स्वीकृत किया गया।
22 जुलाई 1947 को क्या हुआ था?22 जुलाई 1947 को कॉन्स्टीट्यूशन हॉल में संविधान सभा की बैठक हुई। पंडित नेहरू ने तिरंगे को राष्ट्रध्वज के रूप में अपनाने का प्रस्ताव रखा जिसे सभा ने स्वीकार कर लिया। इस तरह, हमारा राष्ट्रीय ध्वज अस्तित्व में आया। स्वतंत्र भारत में पहली बार राष्ट्रध्वज फहराने का सौभाग्य पंडित नेहरू को मिला।
तिरंगे में अशोक चक्र कहाँ से लिया गया है?सम्राट अशोक के बहुत से शिलालेखों पर प्रायः एक चक्र (पहिया) बना हुआ है। इसे अशोक चक्र कहते हैं। यह चक्र धर्मचक्र का प्रतीक है। उदाहरण के लिये सारनाथ स्थित सिंह-चतुर्मुख (लायन कैपिटल) एवं अशोक स्तम्भ पर अशोक चक्र विद्यमान है।
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