बच्चे किस बात की आशा में नीड़ो से झाँक रहे - bachche kis baat kee aasha mein needo se jhaank rahe

बच्चे इस बात की आशा में नीड़ से झांक रहे होंगे कि उनके माता-पिता वापस लौट कर अपने घर आ रहे होंगे। बच्चों के मन में यह आशा है कि उनके माता-पिता उनके लिए भोजन लेकर आ रहे होंगे। भोजन और अपने माता पिता के आने की आस में वह नीड़ यानि अपने घोंसले से झांक रहे होंगे। बच्चों के मन में आशा है कि उनके माता-पिता आएंगे उनका माता-पिता से मिलन होगा। उनके माता-पिता उन्हें भोजन देंगे और उनके पेट की भूख शांत होगी। इस तरह वह माता-पिता की प्रतीक्षा करते हुए नीड़ से झांक रहे होंगे।

पाठ के बारे में…

इस पाठ में हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित दो कविताएं ‘आत्म परिचय’ एवं ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।’ प्रस्तुत की गई हैं।
‘आत्म परिचय’ कविता के माध्यम से कवि स्वयं को जानने की प्रक्रिया करता है। कवि के अनुसार स्वयं को जानना इस संसार को जानने से अधिक कठिन है। कवि के अनुसार समाज से व्यक्ति का नाता खट्टे मीठे अनुभव वाला होता है, लेकिन इस जगजीवन से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं होता। संसार वाले चाहे मनुष्य को कितना भी ताने उलहाने व्यंग बाण दें, लेकिन वह इस संसार से पूरी तरह कट नहीं सकता। उसकी अपनी अस्मिता, अपनी पहचान और उसका परिवेश ही ये जग-संसार है। यही मनुष्य का आत्मपरिचय होता है।
दूसरी कविता ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।’ कवि के ‘निशा-निमंत्रण’ नामक संग्रह से ली गई है। इस कविता में उन्होंने प्रकृति की दैनिक परिवर्तनशीलता और प्राणी वर्ग विशेषकर मनुष्य के धड़कते हृदय को सुनने का प्रयास किया है। उन्होंने पक्षी की क्रियायों को आधार बनाकर मनुष्य के हृदय के उद्गारों को व्यक्त करने का प्रयत्न किया है।

संदर्भ पाठ :

हरिवंशराय बच्चन, आत्मपरिचय/दिन जल्दी-जल्दी ढलता है। (कक्षा – 12, पाठ -1, हिंदी, आरोह)

बच्चे अपने माता पिता के जल्दी लौटने की आशा में नीड़ों से झाँक रहे थे क्योंकि उनके माता-पिता उनके भोजन की तलाश में सुबह जल्दी घोंसले से निकले जाते हैं। और बच्चे भूख से व्याकुल एवं माता-पिता के वात्सल्य से वंचित बच्चे अपने अभिभावकों के जल्दी-से-जल्दी घर लौटने की प्रतीक्षा में व्याकुल रहे होंगे। वे यह आशा कर रहे होंगे कि वापस लौटने पर उनके माता-पिता न सिर्फ उन्हें खाना देंगे, बल्कि ढेर सारा प्यार भी लुटायेंगे। इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि माता-पिता के सान्निध्य की प्रत्याशा में बच्चे नीड़ों से झाँक रहे होंगे।

बच्चे इस बात की आशा में नीड़ों (घोंसलों-घरों) से झाँक रहे होंगे कि उनके माँ-बाप लौटकर घर आ रहे होंगे। ये बच्चे भूखे प्यासे होंगे। उन्हें खाने की चीज मिलने की भी प्रतीक्षा होगी। वे सारे दिन अकेले रहकर तंग आ गए होंगे अत: वे अपने माता-पिता से मिलने को उत्सुक होंगे। इसीलिए वे नीड़ों से झाँककर उनके आने की प्रतीक्षा कर रहे होंगे।

बच्चों को लगता है शाम ढल आयी है। उनके माता-पिता अब उनके लिए भोजन लेकर आते ही होगें। अतः वे अपने माता-पिता को देखने के लिए नीड़ों से झाँक रहे हैं। माता-पिता से उनका मिलन हो जाएगा तथा उनके पेट की आग भी शांत हो जाएगी। इस तरह नीड़ों से झाँकना उनकी प्रतीक्षा को दर्शाता है।

कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ-विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?


यह सही है कि ये दोनों भाव विपरीत प्रतीत होते हैं, पर कवि स्वयं को जग से जोड़कर भी और जग से अलग भी महसूस करता है। उसे यह बात भली प्रकार ज्ञात है कि वह पूरी तरह से जग-जीवन से निरपेक्ष नहीं रह सकता। दुनिया उसे चाहे कितने भी कष्ट क्यों न दे फिर भी वह दुनिया से कटकर नहीं रह सकता। वह भी इसी दुनिया का एक अंग है।

इसके बावजूद कवि जग की ज्यादा परवाह नहीं करता। वह संसार के बताए इशारों पर नहीं चलता। उसका अपना पृथक् व्यक्तित्व है। वह अपने मन के भावों को निर्भीकता के साथ प्रकट करता है और वह इस बात का ध्यान नहीं रखता कि यह जग क्या कहेगा। उसकी स्थिति तो ऐसी है-’मैं दुनिया में हूँ, पर दुनिया का तलबगार नहीं हूँ।’