तत्व यौगिक एवं मिश्रण भौतिक एवं रासायनिक अभिक्रियाएं धातु एवं अधातु-1 धातु एवं अधातु-2 प्रकाश लैंस विधुत धारा पारिस्थितिकी जन्तुओं का आर्थिक महत्त्व पोषक पदार्थ (विटामिन,प्रोटिन,वसा,खनिज,जल) पादपों का आर्थिक महत्त्व मानव तंत्रिका तंत्र(मस्तिष्क, मेरूरज्जु.......) अंतःस्त्रावी तंत्र(ग्रंथियां एवं हार्मोन्स) रक्त परिसंचरण तंत्र(हृदय, रक्त एवं रक्त वाहिनियां) मानव पाचन तंत्र उत्सर्जन तंत्र मानव रोग(कारक, कारण व निवारण) न्यूटन की गति के नियम अंतरिक्ष अनुसंधान कोशिका Show विज्ञानतत्व यौगिक एवं मिश्रण भौतिक एवं रासायनिक अभिक्रियाएं धातु एवं अधातु-1 धातु एवं अधातु-2 प्रकाश लैंस विधुत धारा पारिस्थितिकी जन्तुओं का आर्थिक महत्त्व पोषक पदार्थ (विटामिन,प्रोटिन,वसा,खनिज,जल) पादपों का आर्थिक महत्त्व मानव तंत्रिका तंत्र(मस्तिष्क, मेरूरज्जु.......) अंतःस्त्रावी तंत्र(ग्रंथियां एवं हार्मोन्स) रक्त परिसंचरण तंत्र(हृदय, रक्त एवं रक्त वाहिनियां) मानव पाचन तंत्र उत्सर्जन तंत्र मानव रोग(कारक, कारण व निवारण) न्यूटन की गति के नियम अंतरिक्ष अनुसंधान कोशिकाPlease enable JavaScript रक्त परिसंचरण तंत्र(हृदय, रक्त एवं रक्त वाहिनियां)रक्त परिसंचरण तंत्र की खोज विलियम हार्वे ने कि। पक्षियों एवं स्तनधारियों में बंद परिसंचरण (रक्त वाहिनियों में बहता है।) तंत्र होता है। कीटों में खुला परिसंचरण (रक्त सिधा अंगों के सम्पर्क में रहता है।)तंत्र होता है। इसके मुख्य रूप से 3 अंग है।
हृदयमानव हृदय लाल रंग का तिकोना, खोखला एवं मांसल अंग होता है, जो पेशिय उत्तकों का बना होता है। यह एक आवरण द्वारा घिरा रहता है जिसे हृदयावरण कहते है। इसमें पेरिकार्डियल द्रव भरा रहता है जो हृदय की ब्राह्य आघातों से रक्षा करता है। हृदय में मुख्य रूप से चार प्रकोष्ट होते हैै जिन्हें लम्बवत् रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है। दाहिने भाग में - बायां आलिन्द एवं बायां निलय बायें भाग में - दायां आलिन्द एवं दायां निलय हृदय का कार्य शरीर के विभिनन भागों को रक्त पम्प करना है। यह कार्य आलिन्द व निलय के लयबद्ध रूप से संकुचन एवं विश्रांती(सिकुड़ना व फैलना) से होता है। इस क्रिया में आॅक्सीकृत रक्त फुफ्फुस शिरा से बांये आलिन्द में आता है वहां से बायें निलय से होता हुआ महाधमनी द्वारा शरीर में प्रवाहित होता है। शरीर से अशुद्ध या अनाक्सीकृत रक्त महाशिरा द्वारा दाएं आलिंद में आता है और दाएं निलय में होता हुआ फुफ्फुस धमनी द्वारा फेफड़ों में आॅक्सीकृत होने जाता है। यही क्रिया चलती रहती है। एक व्यस्क मनुष्य का हृदय एक मिनट में 72 बार धड़कता है। जबकि एक नवजात शिशु का 160 बार। एक धड़कन में हृदय 70 एम. एल. रक्त पंप करता है। हृदय में आलींद व निलय के मध्य कपाट होते है। जो रूधिर को विपरित दिशा में जाने से रोकते हैं। कपाटों के बन्द होने से हृदय में लब-डब की आवाज आती है। हृदय धड़कन का नियंत्रण पेस मेकर करता है। जो दाएं आलिन्द में होता है इसे हृदय का हृदय भी कहते है। हृदय धड़कन का सामान्य से तेज होना - टेकीकार्डिया हृदय धड़कन का सामान्य से धीमा होना -ब्रेडीकार्डिया तथ्यहृदय का वजन महिला - 250 ग्राम, पुरूष - 300 ग्राम हृदय के अध्ययन को कार्डियोलाॅजी कहते है। प्रथम हृदय प्रत्यारोपण - 3 दिसम्बर 1967 डा. सी बर्नार्ड(अफ्रिका) भारत में प्रथम 3 अगस्त 1994 डा. वेणुगोपाल हृदय में कपाटों की संख्या - 4 होती है। जारविस -7 प्रथम कृत्रिम हृदय है। जिसे राॅबर्ट जार्विक ने बनाया। सबसे कम धड़कन ब्लु -व्हेल के हृदय की है - 25/मिनट सबसे अधिक धड़कन छछुंदर - 800/मिनट एक धड़कन में हृदय 70 एम. एल. रक्त पंप करता है। मानव शरीर का सबसे व्यस्त अंग हृदय है। हृदय में चार प्रकोष्ठ होते हैं। रक्तरक्त एक प्रकार का तरल संयोजी ऊतक है। रक्त का निर्माण लाल अस्थि मज्जा में होता है तथा भ्रूणावस्था में प्लीहा में रक्त का निर्माण होता है। सामान्य व्यक्ति में लगभग 5 लीटर रक्त होता है। रक्त का Ph मान 7.4(हल्का क्षारीय) होता है। रक्त का तरल भाग प्लाज्मा कहलाता है। जो रक्त में 55 प्रतिशत होता है। तथा शेष 45 प्रतिशत कणीय(कणिकाएं) होता है। प्लाज्माप्लाज्मा में लगभग 92 प्रतिशत जल व 8 प्रतिशत कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ घुलित या कोलाॅइड के रूप में होते है। प्लाज्मा शरीर को रोगप्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है। उष्मा का समान वितरण करता है। हार्मोन को एक स्थान से दुसरे स्थान पर ले कर जाता है। कणिय भाग(कणिकाएं)रूधिर कणिकाएं तीन प्रकार की होती है। 1. लाल रूधिर कणिकाएं(RBC) ये कुल कणिकाओं का 99 प्रतिशत होती है। ये केन्द्रक विहीन कोशिकाएं है। इनमें हिमोग्लोबिन पाया जाता है। जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है।हीमोग्लोबिन O2 तथा CO2 का शरीर में परिवहन करता है। इसकी कमी से रक्तहीनता(एनिमिया) रोग हो जाता है। लाल रक्त कणिकाएं प्लीहा में नष्ट होती है। अतः प्लीहा को लाल रक्त कणिकाओं का कब्रिस्तान भी कहते है। एक व्यस्क मनुष्य में लाल रक्त कणिकाओं की संख्या लगभग 50 लाख/mm3 होती है इसका जिवन काल 120 दिन होता है। 2. श्वेत रक्त कणिकाएं(WBC) ये प्रतिरक्षा प्रदान करती है। इसको ल्यूकोसाइट भी कहते है। इनकी संख्या 10 हजार/mm3 होती है। ये अस्थि मज्जा में बनती है। केन्द्रक की आकृति व कणिकाओं के आधार पर श्वेत रक्त कणिकाएं 5 प्रकार की होती है। रक्त में श्वेत रक्त कणिकाओं का अनियंत्रित रूप से बढ़ जाना ल्यूकेमिया कहलाता है। इसे रक्त कैसर भी कहते है। 3. रक्त पट्टिकाएं(प्लेटलेट्स) ये केन्द्रक विहिन कोशिकाएं है जो रूधिर का धक्का बनने में मदद करती है।इसका जिवन काल 5-9 दिन का होता है। ये केवल स्तनधारियों में पाई जाती है। रक्त फाइब्रिन की मदद से जमता है। लसिका तंत्रहल्के पीले रंग का द्रव जिसमें RBC तथा थ्रोम्बोसाइट अनुपस्थित होता है। केवल WBC उपस्थित होती है। कार्यरक्त की Ph को नियंत्रित करना। रोगाणुओं को नष्ट करना। वसा वाले ऊतकों को गहराई वाले भागों तक पहुंचाना। लम्बी यात्रा करने पर लसिका ग्रन्थि इकठ्ठा हो जाती हैैै तब पावों में सुजन आ जाती है। तथ्यरक्त का अध्ययन हिमोटाॅलाॅजी कहलाता है। रक्त निर्माण की प्रक्रिया हीमोपोइसिस कहलाती है। ऊट व लामा के RBC में केन्द्रक उपस्थित होता है। रक्त का लाल रंग फेरस आयन के कारण होता है जो हिमाग्लोबिन में पाया जाता है। ऊंचाई पर जाने पर RBC की मात्रा बढ़ जाती है। लाल रक्त कणीका का मुख्य कार्य आक्सीजन का परिवहन करना है। मानव शरीर में सामान्य रक्त चाप 120/80 एम.एम. होता है। लाल रक्त कणीकाओं का जीवनकाल 120 दिन का होता है। रक्त समुहमनुष्य के रक्त समुहों की खोज कार्ल लैण्डस्टीनर ने कि इन्हें चार भागों में बांटा जा सकता है।
प्रतिजन(Antigen) - ये ग्लाइको प्रोटीन के बने होते है। ये RBC की सतह पर पाये जाते है। ये दो प्रकार के होते है।
प्रतिरक्षी(Antibody) - ये प्रोटिन के बने होते है। ये प्लाज्मा में पाए जाते है। ये दो प्रकार के होते है।
ये रक्त में प्रतिजन से विपरित यानि A प्रतिजन वाले रक्त में b प्रतिरक्षि होते है। Blood GroupAntigenAntibodyAAbBBaABA,BNILONila,bयदि दो भिन्न समुह के रूधिर को व्यक्ति में प्रवेश करवाया जाये तो प्रतिरक्षी व प्रतिजन परस्पर क्रिया कर चिपक जाते है। जिसे रक्त समुहन कहते है। Rh factor(आर एच कारक) इसकी खोज लैण्डस्टीनर तथा वीनर ने की यह एक प्रकार का प्रतिजन है। जिन व्यक्त्यिों में यह पाया जाता है उन्हें Rh +ve व जिनमें नहीं पाया जाता उन्हें Rh -ve कहते है। यदि Rh +ve पुरूष का विवाह Rh -ve महिला से होता है तो पहली संतान तो सामान्य होगी परन्तु बाद वाली संतानों की भ्रूण अवस्था में मृत्यु हो जाती है। या बच्चा कमजोर और बिमार पैदा होता है इससे बचाव के लिए पहले बच्चे के जन्म के बाद Rh o का टिका लगाया जाता है जिससे गर्भाश्य में बने प्रतिरक्षी निष्क्रीय हो जाते है। समान रूधिर समुह व भिन्न आर. एच. कारक वाले व्यक्तियों के मध्य रक्तदान कराने पर भी रूधिर समुहन हो जाने से रोगी की मृत्यु हो जाती है। ‘पीपी’ ब्लड ग्रुपकर्नाटक में कस्तूरबा मेडिकल काॅलेज ने एक रेयर ब्लड गुप का पता लगाया है। इसका नाम ‘पीपी’ या ‘पी नल फेनोटाइप’ है। डाॅक्टरों का कहना है कि यह देश का पहला और अभी तक का इकलौता ऐसा व्यक्ति है। मरीज के ब्लड में ‘पीपी फेनोटाइप’ सेल्स हैं। तथ्यएक बार में मनुष्य 10 प्रतिशत रक्तदान कर सकता है। 2 सप्ताह बाद पुनः कर सकता है। अधिकत्म 42 दिन तक रक्त को रक्त बैंक में रख सकते है। रक्त को 4.4 oC तापमान पर रखा जाता है। रक्त को जमने से रोकने के लिए इसमें सोडियम साइट्रेट, सोडियम ड्रेक्सट्रेट व EDTA मिलाते है जिसे प्रतिस्कन्दक कहते है। ये कैल्शीयम को बांध लेते है। जिससे रक्त जमता नहीं है। Rh factor की खोज रीसस बंदर में कि गई। सर्वदाता रक्त-समूह ओ 'O' है। रक्त समूह AB को सर्वग्राही रक्त-समूह कहा जाता है। रक्त वाहिनियांशरीर में रक्त का परिसंचरण वाहिनियों द्वारा होता है। जिन्हें रक्त वाहिनियां कहते है। मानव शरीर में तीन प्रकार की रक्त वाहिनियां होती है। 1. धमनी 2. शिरा 3. केशिका धमनीशुद्ध रक्त को हृदय से शरीर के अन्य अंगों तक ले जाने वाली वाहिनियां धमनी कहलाती है। इनमें रक्त प्रवाह तेजी व उच्च दाब पर होता है। महाधमनी सबसे बड़ी धमनी है। फुफ्फुस धमनी में अशुद्ध रक्त प्रवाहित होता है। शिराशरीर के विभिन्न अंगों से अशुद्ध रक्त को हृदय की ओर लाने वाली वाहिनियां शिरा कहलाती है। फुफ्फुस शिरा में शुद्ध रक्त होता है। केशिकाएंये पतली रूधिर वाहिनियां है इनमें रक्त बहुत धीमे बहता है। रूधिर दाबहृदय जब रक्त को धमनियों में पंप करता है तो धमनियों की दिवारों पर जो दाब पड़ता है उसे रक्त दाब कहते है। एक सामान्य मनुष्य में रक्त दाब 130/90 होता है। रक्त दाब मापने वाले यंत्र को स्फिग्नोमिटर कहते है। तथ्यप्रत्येक रक्त कण को शरीर का चक्र पुरा करने में लगभग 60 सैकण्ड लगते हैं। सामान्य मनुष्य के शरीर में 5 लीटर रक्त होता है प्रत्येक धड़कन में हृदय लगभग 70 एम.एल. रक्त पंप करता है। सामान्य मनुष्य का हृदय एक मिनट(60 सैकण्ड) में 70-72 बार धड़कता है। अतः 70X70 - 4.9 ली. जो की लगभग सामान्य मनुष्य के कुल रक्त के बराबर है। Start Quiz! « Previous Next Chapter » ExamHere You can find previous year question paper and model test for practice. Start ExamCurrent AffairsHere you can find current affairs, daily updates of educational news and notification about upcoming posts. अशुद्ध रक्त कौन ले जाता है?Detailed Solution
शिराएं अशुद्ध रक्त ले जाती हैं। फुफ्फुसीय शिरा एकमात्र शिरा है जो शुद्ध रक्त वहन करती है। फुफ्फुसीय शिरा फेफड़ों से रक्त को बाएं अलिन्द तक ले जाती है।
हृदय से फेफड़ों तक अशुद्ध रक्त कौन ले जाता है?फुफ्फुसीय धमनियां: फुफ्फुसीय धमनी कार्बन डाइऑक्साइड युक्त रक्त को हृदय से फेफड़ों तक ले जाती है।
हृदय तक रक्त कौन ले जाता है?इनके द्वारा शरीर में रक्त का परिवहन होता है। तीन मुख्य प्रका की रक्त वाहिकाएं होती हैं: धमनियां, जो हृदय से रक्त को शरीर में ले जाती हैं; वे रक्त वाःइकाएं, जिनके द्वारा कोशिकाओं एवं रक्त के बीच, जल एवं रसायनों का आदान-प्रदान होता है; व शिराएं, जो रक्त को वापस एकत्रित कर हृदय तक ले आती हैं।
अशुद्ध रक्त कहाँ बहता है?Solution : हृदय के बाएँ भाग में शुद्ध रुधिर तथा दाहिने भाग में अशुद्ध रुधिर पाया जाता है।
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