ऐतिहासिक काल कितने प्रकार के होते हैं? - aitihaasik kaal kitane prakaar ke hote hain?

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हिंदी साहित्य के इतिहास के चरणों में काल विभाजन के लिए प्राइस 4 पदों का नाम जो है सबसे पहले लिया जाता है पहली पद्धति के अनुसार संपूर्ण इतिहास का विभाजन चार काल खंडों में किया गया जैसे कि आदिकाल भक्तिकाल रीतिकाल आधुनिक काल

hindi sahitya ke itihas ke charno mein kaal vibhajan ke liye price 4 padon ka naam jo hai sabse pehle liya jata hai pehli paddhatee ke anusaar sampurna itihas ka vibhajan char kaal khando mein kiya gaya jaise ki aadikaal bhaktikal ritikal aadhunik kaal

हिंदी साहित्य के इतिहास के चरणों में काल विभाजन के लिए प्राइस 4 पदों का नाम जो है सबसे पहल

        

ऐतिहासिक काल कितने प्रकार के होते हैं? - aitihaasik kaal kitane prakaar ke hote hain?
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ऐतिहासिक काल कितने प्रकार के होते हैं? - aitihaasik kaal kitane prakaar ke hote hain?

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इतिहास शब्द की उत्पत्ति 302 से हुई है इति का अर्थ है जैसे हुआ वैसे ही है का अर्थ है सचमुच तथा पास का अर्थ है निरंतर रहना या बोध होना हिस्ट्री शब्द का प्रयोग हेरोडोटस ने अपनी पहली पुस्तक स्टोरी का नहीं किया था इसलिए यारों दोस्त को इतिहास का जनक माना जाता है इतिहास छह प्रकार के होते हैं जैसे आर्थिक इतिहास मोदी की इतिहास राजनीति इतिहास कूटनीतिक इतिहास सांस्कृतिक इतिहास सामाजिक इतिहास धन्यवाद

itihas shabd ki utpatti 302 se hui hai iti ka arth hai jaise hua waise hi hai ka arth hai sachmuch tatha paas ka arth hai nirantar rehna ya bodh hona history shabd ka prayog herodotas ne apni pehli pustak story ka nahi kiya tha isliye yaaron dost ko itihas ka janak mana jata hai itihas cheh prakar ke hote hai jaise aarthik itihas modi ki itihas raajneeti itihas kutanitik itihas sanskritik itihas samajik itihas dhanyavad

आज से लगभग 27000 साल पहले फ़्रान्स की एक गुफ़ा में एक प्रागैतिहासिक मानव ने अपने हाथ के इर्दगिर्द कालख लगाकर यह छाप छोड़ी

प्रागितिहास (Prehistory) मानव अतीत के उस भाग को प्रागितिहास कहते हैं जबकि मानव का अस्तित्व तो था परन्तु लेखन कला का आविष्कार अभी नहीं हुआ था . विश्व इतिहास में लेखन कला का आरंभ सबसे पहले मेसोपोटामिया सभ्यता में लगभग ३२०० ई॰पू॰ से माना जाता है .।[1] इस तरह प्रागितिहास, लगभग 33 लाख साल पहले होमिनिन मानव द्वारा पत्थर के उपकरणों के प्रथम उपयोग और ३२०० ई॰पू॰ में लेखन प्रणालियों के आविष्कार के बीच की अवधि है।

इस काल में मानव-इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाएँ हुई जिनमें हिमयुग, मानवों का अफ़्रीका से निकलकर अन्य स्थानों में विस्तार, आग पर स्वामित्व पाना, कृषि का आविष्कार, कुत्तों व अन्य जानवरों का पालतू बनना इत्यादि शामिल हैं। ऐसी चीज़ों के केवल चिह्न ही मिलते हैं, जैसे कि पत्थरों के प्राचीन औज़ार, पुराने मानव पड़ावों के अवशेष और गुफाओं की चित्रकारी इत्यादि । पहिये का आविष्कार भी इस काल में हो चुका था जो प्रथम वैज्ञानिक आविष्कार था।

प्रागैतिहासिक काल में मानवों का वातावरण बहुत भिन्न था। अक्सर मानव छोटे क़बीलों में रहते थे और उन्हें जंगली जानवरों से जूझते हुए शिकारी - संग्राहक का जीवन व्यतीत करना पड़ता था। विश्व की अधिकतर जगहें अपनी प्राकृतिक स्थिति में थीं।[2] ऐसे कई जानवर थे जो आधुनिक दुनिया में नहीं मिलते, जैसे कि मैमथ और बालदार गैंडा।[3] विश्व के कुछ हिस्सों में आधुनिक मानवों से अलग भी कुछ मानव जातियाँ थीं जो अब विलुप्त हो चुकी हैं, जैसे कि यूरोप और मध्य एशिया में रहने वाले निअंडरथल मानव।

प्रागैतिहास में हम इन्हीं विभिन्न मानव प्रजातियों और उनके समाज के क्रमिक उद्विकास को समझने का प्रयास करते हैं. प्रागैतिहास को अपनी बहुत सी सामग्री मानव विज्ञान (एंथ्रोपोलॉजी), उद्विकास (एवोल्यूशन) और पुरातत्वविज्ञान ( आर्कियोलोजी) से प्राप्त होती है .

इतिहास का प्रयोग विशेषतः दो अर्थों में किया जाता है। एक है प्राचीन अथवा विगत काल की घटनाएँ और दूसरा उन घटनाओं के विषय में धारणा इतिहास शब्द (इति + ह + आस ; अस् धातु, लिट् लकार अन्य पुरुष तथा एक वचन) का तात्पर्य है "यह निश्चित था"। ग्रीस के लोग इतिहास के लिए "हिस्टरी" (history) शब्द का प्रयोग करते थे। "हिस्टरी" का शाब्दिक अर्थ "बुनना" था। अनुमान होता है कि ज्ञात घटनाओं को व्यवस्थित ढंग से बुनकर ऐसा चित्र उपस्थित करने की कोशिश की जाती थी जो सार्थक और सुसंबद्ध हो। इस प्रकार इतिहास शब्द का अर्थ है - परम्परा से प्राप्त उपाख्यान समूह (जैसे कि लोक कथाएँ), oo (जैसे कि महाभारत) या ऐतिहासिक साक्ष्य।[1] इतिहास के अंतर्गत हम जिस विषय का अध्ययन करते हैं उसमें अब तक घटित घटनाओं या उससे संबंध रखनेवाली घटनाओं का कालक्रमानुसार वर्णन होता है।[2] दूसरे शब्दों में मानव की विशिष्ट घटनाओं का नाम ही इतिहास है।[3] या फिर प्राचीनता से नवीनता की ओर आने वाली, मानवजाति से संबंधित घटनाओं का वर्णन इतिहास है।[4] इन घटनाओं व ऐतिहासिक साक्ष्यों को तथ्य के आधार पर प्रमाणित किया जाता है।

आम तौर पर यह समझा जाता है कि इतिहास की परंपरा सूत व चारण परंपरा से विकसित हुई, जिनके स्तुति काव्य स्वाभाविक रूप से राजाओं और उनके पूर्वजों के वीरता के कृत्यों, विजय और धार्मिकता की कहानियों पर केंद्रित था। इस तरह के पाठ और, बाद में, शिलालेख और साहित्यिक रचनाएँ, सम्राट की महानता और अक्सर उसके दिव्य-वंश की पुष्टि करने का काम करते। यह है एक शैली है जिसमे अतिशयोक्ति को किसी भी प्रकार से दोष नहीं माना जाता। परिणामस्वरूप,  रघुवंश और भरत वंश के राजवंशों की यशकाव्य की यह रचनाएं हैं एकत्रित होकर अंततः रामायण और महाभारत के स्मारकीय इतिहास-काव्यों में विकसित हुईं।[5]

इतिहास के मुख्य आधार युगविशेष और घटनास्थल के वे अवशेष हैं जो किसी न किसी रूप में प्राप्त होते हैं। जीवन की बहुमुखी व्यापकता के कारण स्वल्प सामग्री के सहारे विगत युग अथवा समाज का चित्रनिर्माण करना दुःसाध्य है। सामग्री जितनी ही अधिक होती जाती है उसी अनुपात से बीते युग तथा समाज की रूपरेखा प्रस्तुत करना साध्य होता जाता है। पर्याप्त साधनों के होते हुए भी यह नहीं कहा जा सकता कि कल्पनामिश्रित चित्र निश्चित रूप से शुद्ध या सत्य ही होगा। इसलिए उपयुक्त कमी का ध्यान रखकर कुछ विद्वान् कहते हैं कि इतिहास की संपूर्णता असाध्य सी है, फिर भी यदि हमारा अनुभव और ज्ञान प्रचुर हो, ऐतिहासिक सामग्री की जाँच-पड़ताल को हमारी कला तर्कप्रतिष्ठत हो तथा कल्पना संयत और विकसित हो तो अतीत का हमारा चित्र अधिक मानवीय और प्रामाणिक हो सकता है। सारांश यह है कि इतिहास की रचना में पर्याप्त सामग्री, वैज्ञानिक ढंग से उसकी जाँच, उससे प्राप्त ज्ञान का महत्व समझने के विवेक के साथ ही साथ ऐतिहासक कल्पना की शक्ति तथा सजीव चित्रण की क्षमता की आवश्यकता है। स्मरण रखना चाहिए कि इतिहास न तो साधारण परिभाषा के अनुसार विज्ञान है और न केवल काल्पनिक दर्शन अथवा साहित्यिक रचना है। इन सबके यथोचित संमिश्रण से इतिहास का स्वरूप रचा जाता है।

लिखित इतिहास का आरम्भ पद्य अथवा गद्य में वीरगाथा के रूप में हुआ। फिर वीरों अथवा विशिष्ट घटनाओं के संबंध में अनुश्रुति अथवा लेखक की पूछताछ से गद्य में रचना प्रारंभ हुई। इस प्रकार के लेख खपड़ों, पत्थरों, छालों और कपड़ों पर मिलते हैं। कागज का आविष्कार होने से लेखन और पठन पाठन का मार्ग प्रशस्त हो गया। लिखित सामग्री को अन्य प्रकार की सामग्री-जैसे खंडहर, शव, बर्तन, धातु, अन्न, सिक्के, खिलौने तथा यातायात के साधनों आदि के सहयोग द्वारा ऐतिहासिक ज्ञान का क्षेत्र और कोष बढ़ता चला गया। उस सब सामग्री की जाँच पड़ताल की वैज्ञानिक कला का भी विकास होता गया। प्राप्त ज्ञान को सजीव भाषा में गुंफित करने की कला ने आश्चर्यजनक उन्नति कर ली है, फिर भी अतीत के दर्शन के लिए कल्पना कुछ तो अभ्यास, किंतु अधिकतर व्यक्ति की नैसर्गिक क्षमता एवं सूक्ष्म तथा क्रांत दृष्टि पर आश्रित है। यद्यपि इतिहास का आरंभ एशिया में हुआ, तथापि उसका विकास यूरोप में विशेष रूप से हुआ।

एशिया में चीनियों, किंतु उनसे भी अधिक इस्लामी लोगों को, जिनको कालक्रम का महत्व अच्छे प्रकार ज्ञात था, इतिहासरचना का विशेष श्रेय है। मुसलमानों के आने के पहले हिंदुओं की इतिहास संबंध में अपनी अनोखी धारणा थी। कालक्रम के बदले वे सांस्कृतिक और धार्मिक विकास या ह्रास के युगों के कुछ मूल तत्वों को एकत्रित कर और विचारों तथा भावनाओं के प्रवर्तनों और प्रतीकों का सांकेतिक वर्णन करके संतुष्ट हो जाते थे। उनका इतिहास प्राय: काव्यरूप में मिलता है जिसमें सब कच्ची-पक्की सामग्री मिली जुली, उलझी और गुथी पड़ी है। उसके सुलझाने के कुछ-कुछ प्रयत्न होने लगे हैं, किंतु कालक्रम के अभाव में भयंकर कठिनाइयाँ पड़ रही हैं।

वर्तमान सदी में यूरोपीय शिक्षा में दीक्षित हो जाने से ऐतिहासिक अनुसंधान की हिंदुस्तान में उत्तरोत्तर उन्नति होने लगी है। इतिहास की एक नहीं, सहस्रों धाराएँ हैं। स्थूल रूप से उनका प्रयोग राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में अधिक हुआ है। इसके सिवा अब व्यक्तियों में सीमित न रखकर जनता तथा उसके संबंध का ज्ञान प्राप्त करने की ओर अधिक रुचि हो गई है।

भारत में इतिहास के स्रोत हैं: ऋग्वेद और अन्‍य वेद जैसे यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद ग्रंथ, इतिहास पुराणस्मृति ग्रंथ आदि। इन्हें ऐतिहासिक सामग्री कहते हैं।

पश्चिम में हिरोडोटस को प्रथम इतिहासकार मानते हैं।

इतिहास का क्षेत्र बड़ा व्यापक है। प्रत्येक व्यक्ति, विषय, अन्वेषण आंदोलन आदि का इतिहास होता है, यहाँ तक कि इतिहास का भी इतिहास होता है। अतएव यह कहा जा सकता है कि दार्शनिक, वैज्ञानिक आदि अन्य दृष्टिकोणों की तरह ऐतिहासिक दृष्टिकोण की अपनी निजी विशेषता है। वह एक विचारशैली है जो प्रारंभिक पुरातन काल से और विशेषत: 17वीं सदी से सभ्य संसार में व्याप्त हो गई। 19वीं सदी से प्राय: प्रत्येक विषय के अध्ययन के लिए उसके विकास का ऐतिहासिक ज्ञान आवश्यक समझा जाता है। इतिहास के अध्ययन से मानव समाज के विविध क्षेत्रों का जो व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है उससे मनुष्य की परिस्थितियों को आँकने, व्यक्तियों के भावों और विचारों तथा जनसमूह की प्रवृत्तियों आदि को समझने के लिए बड़ी सुविधा और अच्छी खासी कसौटी मिल जाती है।

इतिहास प्राय: नगरों, प्रांतों तथा विशेष देशों के या युगों के लिखे जाते हैं। अब इस ओर चेष्ठा और प्रयत्न होने लगे हैं कि यदि संभव हो तो सभ्य संसार ही नहीं, वरन् मनुष्य मात्र के सामूहिक विकास या विनाश का अध्ययन भूगोल के समान किया जाए। इस ध्येय की सिद्ध यद्यपि असंभव नहीं, तथापि बड़ी दुस्तर है। इसके प्राथमिक मानचित्र से यह अनुमान होता है कि विश्व के संतोषजनक इतिहास के लिए बहुत लंबे समय, प्रयास और संगठन की आवश्यकता है। कुछ विद्वानों का मत है कि यदि विश्वइतिहास की तथा मानुषिक प्रवृत्तियों के अध्ययन से कुछ सर्वव्यापी सिद्धांत निकालने की चेष्टा की गई तो इतिहास समाजशास्त्र में बदलकर अपनी वैयक्तिक विशेषता खो बैठेगा। यह भय इतना चिंताजनक नहीं है, क्योंकि समाजशास्त्र के लिए इतिहास की उतनी ही आवश्यकता है जितनी इतिहास को समाजशासत्र की। वस्तुत: इतिहास पर ही समाजशास्त्र की रचना संभव है।

सैन्य इतिहास युद्ध, रणनीतियों, युद्ध, हथियार और युद्ध के मनोविज्ञान से संबंधित है। 1970 के दशक के बाद से "नए सैन्य इतिहास" जो जनशक्ति से अधिक सैनिकों के साथ, एवं रणनीति से अधिक मनोविज्ञान के साथ और समाज और संस्कृति पर युद्ध के व्यापक प्रभाव से संबंधित है।[6]

धर्म का इतिहास सदियों से धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक इतिहासकारों दोनों के लिए एक मुख्य विषय रहा है, और सेमिनार और अकादमी में पढ़ाया जा रहा है। अग्रणी पत्रिकाओं में चर्च इतिहास, कैथोलिक हिस्टोरिकल रिव्यू, और धर्म का इतिहास शामिल है। विषय व्यापक रूप से राजनीतिक और सांस्कृतिक और कलात्मक आयामों से लेकर धर्मशास्त्र और मरणोत्तर गित तक फैला हुआ है।[7] यह विषय दुनिया के सभी क्षेत्रों और जगहों में धर्मों का अध्ययन करता है जहां मनुष्य रहते हैं।[8]

सामाजिक इतिहास, जिसे कभी-कभी "नए सामाजिक इतिहास" कहा जाता है, एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें सामान्य लोगों के इतिहास और जीवन के साथ सामना करने के लिए उनकी रणनीतियाँ शामिल हैं। अपने "स्वर्ण युग" 1960 और 1970 के दशक में यह विद्वानों के बीच एक प्रमुख विषय था, और अभी भी इतिहास के विभागों में इसकी अच्छी पैठ है। 1975 से 1995 तक दो दशकों में, अमेरिकी इतिहास के प्रोफेसरों का अनुपात सामाजिक इतिहास के साथ-साथ 31% से बढ़कर 41% हो गया, जबकि राजनीतिक इतिहासकारों का अनुपात 40% से 30% तक गिर गया।

1980 और 1990 के दशक में सांस्कृतिक इतिहास ने सामाजिक इतिहास कि जगह ले ली। यह आम तौर पर नृविज्ञान और इतिहास के दृष्टिकोण को भाषा, लोकप्रिय सांस्कृतिक परंपराओं और ऐतिहासिक अनुभवों की सांस्कृतिक व्याख्याओं को देखने के लिए जोड़ती है। यह पिछले ज्ञान, रीति-रिवाजों और लोगों के समूह के कला के अभिलेखों और वर्णनात्मक विवरणों की जांच करता है। लोगों ने कैसे अतीत की अपनी स्मृति का निर्माण किया है, यह एक प्रमुख विषय है। सांस्कृतिक इतिहास में समाज में कला का अध्ययन भी शामिल है, साथ ही छवियों और मानव दृश्य उत्पादन (प्रतिरूप) का अध्ययन भी है।

राजनयिक इतिहास राष्ट्रों के बीच संबंधों पर केंद्रित है, मुख्यतः कूटनीति और युद्ध के कारणों के बारे में। हाल ही में यह शांति और मानव अधिकारों के कारणों को देखता है। यह आम तौर पर विदेशी कार्यालय के दृष्टिकोण और लंबी अवधि के रणनीतिक मूल्यों को प्रस्तुत करता है, जैसा कि निरंतरता और इतिहास में परिवर्तन की प्रेरणा शक्ति है। इस प्रकार के राजनीतिक इतिहास समय के साथ देशों या राज्य सीमाओं के बीच अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के संचालन का अध्ययन है। इतिहासकार म्यूरीयल चेम्बरलेन ने लिखा है कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद, "राजनयिक इतिहास ने ऐतिहासिक जांच के प्रमुख के रूप में संवैधानिक इतिहास का स्थान ले लिया, जोकि कभी सबसे ऐतिहासिक, सबसे सटीक और ऐतिहासिक अध्ययनों में सबसे परिष्कृत था"।[9] उन्होंने कहा कि 1945 के बाद, प्रवृत्ति उलट गई है, अब सामाजिक इतिहास ने इसकी जगह ले ली है।

यद्यपि 19वीं सदी के उत्तरार्ध से ही आर्थिक इतिहास अच्छी तरह से स्थापित है, हाल के वर्षों में शैक्षिक अध्ययन पारंपरिक इतिहास विभागों से स्थानांतरित हो कर अधिक से अधिक अर्थशास्त्र विभागों की तरफ चला गया है। व्यावसायिक इतिहास व्यक्तिगत व्यापार संगठनों, व्यावसायिक तरीकों, सरकारी विनियमन, श्रमिक संबंधों और समाज पर प्रभाव के इतिहास से संबंधित है। इसमें व्यक्तिगत कंपनियों, अधिकारियों और उद्यमियों की जीवनी भी शामिल है यह आर्थिक इतिहास से संबंधित है; व्यावसायिक इतिहास को अक्सर बिजनेस स्कूलों में पढ़ाया जाता है

पर्यावरण का इतिहास एक नया क्षेत्र है जो 1980 के दशक में पर्यावरण के इतिहास विशेष रूप से लंबे समय में और उस पर मानवीय गतिविधियों का प्रभाव को देखने के लिए उभरा।

विश्व इतिहास पिछले 3000 वर्षों के दौरान प्रमुख सभ्यताओं का अध्ययन है। विश्व इतिहास मुख्य रूप से एक अनुसंधान क्षेत्र की बजाय एक शिक्षण क्षेत्र है। इसे 1980 के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और अन्य देशों में लोकप्रियता हासिल हुई थी, जिससे कि छात्रों को बढ़ते हुए वैश्वीकरण के परिवेश में दुनिया के लिए व्यापक ज्ञान की आवश्यकता होगी।

जूलियस औरेलिउस जेनोबियस अभिलेख, पलमायरा

इतिहासकार पिछली घटनाओं की जानकारी एकत्र करते हैं, इकट्ठा करते हैं, व्यवस्थित करते हैं और प्रस्तुत करते हैं। वे इस जानकारी को पुरातात्विक साक्ष्य के माध्यम से खोजते हैं, जो भूतकाल में प्राचीन स्रोतों जैसे पाण्डुलिपि, शिलालेख आदि से लिये गये और लिखे गए होते हैं। जैसे जगह के नाम, उनकी विचारधारा आवास, व्यवस्था, सामाजिक संस्था, सामाजिक उत्थान और भाषा आदि।

इतिहासकारों की सूची में, इतिहासकारों को उस ऐतिहासिक काल के क्रम में समूहीकृत किया जा सकता है, जिसमें वे लिख रहे थे, जो जरूरी नहीं कि वह अवधि, जिस अवधि में वे विशेषीकृत थे या निपुण थे क्रॉनिकल्स और एनलिस्ट, हालांकि वे सही अर्थों में इतिहासकार नहीं हैं, उन्हें भी अक्सर शामिल किया जाता है।

छद्मइतिहास उन लेखों/रचनाओं के लिये प्रयुक्त किया जाता है जिनकी सामग्री की प्रकृति 'इतिहास जैसी' होती है किन्तु वे इतिहास-लेखन की मानक विधियों से मेल नहीं खाती। इसलिये उनके द्वारा दिये गये निष्कर्ष भ्रामक एवं अविश्वसनीय बन जाते हैं। प्राय: राष्ट्रीय, राजनैतिक, सैनिक, एवं धार्मिक विषयों के सम्बन्ध में नये एवं विवादित और काल्पनिक तथ्यों पर आधारित इतिहास को छद्मइतिहास की श्रेणी में रखा जाता है।

मानव सभ्यता का इतिहास वस्तुत: मानव के विकास का इतिहास है, पर यह प्रश्न सदा विवादग्रस्त रहा है कि आदि मनव और उसकी सभ्यता का विकास कब और कहाँ हुआ। इतिहास के इसी अध्ययन को प्रागैतिहास कहते हैं। यानि इतिहास से पूर्व का इतिहास। प्रागैतिहासिक काल की मानव सभ्यता को ४ भागों में बाँटा गया है।

  • आदिम पाषाण काल
  • पूर्व पाषाण काल
  • उत्तर पाषाण काल
  • धातु काल

असभ्यता से अर्धसभ्यता, तथा अर्धसभ्यता से सभ्यता के प्रथम सोपान तक हज़ारों सालों की दूरी तय की गई होगी। लेकिन विश्व में किस समय किस तरह से ये सभ्यताएँ विकसित हुईं इसकी कोई जानकारी आज नहीं मिलती है। हाँ इतना अवश्य मालूम हो सका है कि प्राचीन विश्व की सभी सभ्यताएँ नदियों की घाटियों में ही उदित हुईं और फली फूलीं। दजला-फ़रात की घाटी में सुमेर सभ्यता, बाबिली सभ्यता, तथा असीरियन सभ्यता, नील की घाटी में प्राचीन मिस्र की सभ्यता तथा सिंधु की घाटी में सिंधु घाटी सभ्यता का विकास हुआ।

ऐतिहासिक कितने प्रकार के होते हैं?

अनुक्रम.
2.1 सैन्य इतिहास.
2.2 धर्म का इतिहास.
2.3 सामाजिक इतिहास.
2.4 सांस्कृतिक इतिहास.
2.5 राजनयिक इतिहास.
2.6 आर्थिक इतिहास.
2.7 पर्यावरण इतिहास.
2.8 विश्व इतिहास.

इतिहास में कितने काल होते हैं?

सामान्यतः इतिहास के अध्ययन को तीन भागों में बाँटा जाता है- प्राचीनकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल

आज ऐतिहासिक काल को कितने भागों में बांटा गया है?

'आद्य इतिहास काल' उस काल को कहते हैं, जिस काल में लेखन कला के प्रचलन के बाद भी उपलब्ध लेख को पढ़े नहीं जा सके हैं।

अतीत के तीन काल कौन कौन से थे?

इस आधार पर इतिहासकार प्राय: इतिहास को तीन काल खण्डों में विभाजित करते हैं—प्राचीनकालीन इतिहास, मध्यकालीन इतिहास और आधुनिक इतिहास।।