आंखों से धुंधला दिखाई देने पर क्या करें - aankhon se dhundhala dikhaee dene par kya karen

जब भी लोगों को आंखों से धुंधला या कम दिखाई देने लगता है तो उन्हें लगता है आंखों में कोई दिक्कत हुई होगी या बढ़ती उम्र का असर होगा. बहुत कम लोग ही आंखों की नजर कमजोर होने पर उसका कारण जानने की कोशिश करते हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि आंखों में होने वाली दिक्कतों के पीछे डायबिटीज भी एक मुख्य कारण हो सकता है.

यह तो हम सब जानते हैं कि अनियंत्रित डायबिटीज हमारे शरीर के कई अंगों जैसे दिल और किडनी को प्रभावित करता है और इससे कई तरह की बीमारियाँ होने लगती हैं. हमारी आँखें भी इस गंभीर बीमारी से अछूती नहीं रहती हैं. डायबिटीज की वजह से आंखों की रोशनी से जुड़ी कई समस्याएं हो सकती हैं. जिनमें से डायबिटिक रेटिनोपैथी और मैकुलर एडिमा मुख्य हैं. इसके अलावा मोतियाबिंद, ग्लूकोमा और अंधेपन का खतरा बढ़ सकता है. भारत में आंखों के अस्पताल में जाने वाले डायबिटीज के मरीजों में से लगभग 45% मरीज इस बीमारी का पता चलने से पहले ही अपनी आंखों की रोशनी खो चुके होते हैं.[1]

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डायबिटीज का हमारी आंखों पर प्रभाव (Impact of Diabetes on our eyes)
हालाँकि यह ज़रूरी भी नहीं कि आंखों से जुड़ी सभी समस्याएं डायबिटीज के कारण ही हुई हों लेकिन लंबे समय तक डायबिटीज का होना निश्चित तौर पर आंखों को नुकसान पहुंचाता है. डायबिटीज हमारे शरीर की छोटी रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाता है और उन्हें कमजोर करता है. जिससे ब्लड सप्लाई में रूकावट आने लगती है.

ब्लड सप्लाई में होने वाली इस दिक्कत का सीधा असर रेटिना पर पड़ता है जो कि हमारी आंखों का एक मुख्य भाग है. रेटिना से जुड़ी इस समस्या को ‘डायबिटिक रेटिनोपैथी (Diabetic Retinopathy)’ कहा जाता है. इस बीमारी की वजह से रेटिना के मुख्य हिस्से (मैक्यूला) में सूजन हो जाती है जिसे “डायबिटिक मैकुलर एडिमा (Diabetic Macular Edema)” के रूप में जाना जाता है.

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अनियंत्रित डायबिटीज के कारण होने वाली आंखों से जुड़ी कई समस्याओं के लिए मेडिकल भाषा में ‘डायबिटिक आई डिजीज (Diabetic Eye Disease)’ शब्द का प्रयोग किया जाता है. इन बीमारियों में डायबिटिक रेटिनोपैथी, ग्लूकोमा, डायबिटिक मैक्यूलर एडिमा और मोतियाबिंद शामिल हैं.[2] भारत में करीब 16.9% लोग डायबिटिक रेटिनोपैथी के मरीज हैं. [4]

क्या आपको भी हो सकती हैं डायबिटीज से जुड़ी आंखों की बीमारियां? (Can you also get eye diseases related to diabetes?)
डायबिटिक रेटिनोपैथी की समस्या टाइप-1 या टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ित किसी भी मरीज को हो सकती है. जितने लंबे समय से आपको डायबिटीज है उतना ही इसका खतरा बढ़ता जाता है. इसलिए जैसे ही आपको डायबिटीज का पता चले उसी समय आपको अपनी आंखों की जांच खासतौर पर रेटिना की जांच ज़रूर करा लेनी चाहिए.

जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, डायबिटीज के आधे से अधिक मरीजों को डायबिटिक रेटिनोपैथी के लक्षण दिखने लगते हैं. इसलिए हमें यह समझने की जरूरत है डायबिटिक रेटिनोपैथी के लक्षणों का दिखना डायबिटीज होने की अवधि पर निर्भर करता है. इसी तरह इस बीमारी का बढ़ना आपके मेटाबोलिज्म के साथ-साथ ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल लेवल पर निर्भर करता है. ध्यान रखें कि यह एक गंभीर बीमारी है और इलाज में लापरवाही करने से आपकी मुश्किलें काफी बढ़ सकती हैं.

डायबिटिक रेटिनोपैथी के इन लक्षणों को ना करें अनदेखा (Diabetic Retinopathy symptoms in Hindi)

ऐसा भी हो सकता है कि डायबिटिक रेटिनोपैथी के शुरुआती चरण में कोई लक्षण ही ना दिखें. इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि आंखों में कोई दिक्कत ना हो तो भी आप नियमित अंतराल पर आंखों की जाँच करवाते रहें. हालाँकि नीचे बताए गए कुछ लक्षणों से आप डायबिटिक रेटिनोपैथी की पहचान कर सकते हैं :

-बार-बार चश्मे का पावर बदलना
-अखबार पढ़ने या बहुत छोटे फोंट में लिखे हुए शब्दों को पढ़ने में कठिनाई
-धुंधला दिखाई देना
-आंखों के सामने काले या लाल रंग के धब्बे या तार जैसी आकृति (फ्लोटर्स) दिखाई देना
-आंखों के सामने अँधेरा छा जाना

इन महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें (Keep these important factors in mind)
-आपका डायबिटीज कंट्रोल में होने के बावजूद भी आपको डायबिटिक रेटिनोपैथी की समस्या हो सकती है.
-लंबे समय से डायबिटीज का होना ही डायबिटिक रेटिनोपैथी की शुरुआत के लिए सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर है.
-चश्मे की दुकानों पर होने वाले सामान्य आई-चेकअप में डायबिटिक रेटिनोपैथी के होने या ना होने का पता नहीं चल पाता है.
-डायबिटिक रेटिनोपैथी का पता सिर्फ़ तभी लगाया जा सकता है जब आंखों के डॉक्टर द्वारा आई-ड्रॉप्स से आपकी पुतलियों को फैलाकर रेटिना की जांच की जाए.

डायबिटिक रेटिनोपैथी से बचाव : डायबिटीज की ABC को करें कंट्रोल (How to prevent Diabetic Retinopathy in Hindi)

यह तो अब हम जान ही चुके हैं कि डायबिटीज का मरीज अगर लंबे समय तक डायबिटीज से पीड़ित रहता है तो उसे डायबिटिक रेटिनोपैथी होना निश्चित है. डायबिटिक रेटिनोपैथी के जोखिम को कम करने के लिए सबसे कारगर उपाय है कि आप अपने डायबिटीज को कंट्रोल में रखें. इसका मतलब है डायबिटीज की ABC को कंट्रोल करें : यहां A का मतलब A1c, B का मतलब ब्लडप्रेशर और C का मतलब कोलेस्ट्रॉल है.

डायबिटिक रेटिनोपैथी के जोखिम को कम करने के लिए ये ABC हमेशा सही रेंज में होने चाहिए. आमतौर पर आपका A1c 7.0% से कम, ब्लड प्रेशर 130/80 mmHg से कम और कोलेस्ट्रॉल (LDL-C) 100 mg प्रति dL से कम होना चाहिए.[3]

ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन (A1c या HbA1c) पिछले 2-3 महीनों का औसत ब्लड शुगर लेवल होता है, जिससे यह पता चलता है कि आप डायबिटीज को कितनी अच्छी तरह से कंट्रोल कर रहे हैं. रोजाना कुछ देर एक्सरसाइज या कोई फिजिकल एक्टिविटी करें, पौष्टिक आहार लें और डॉक्टर की सलाह के अनुसार डायबिटीज की दवाएं या इंसुलिन समय पर लें.

अगर डायबिटीज के साथ हाई ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल की भी समस्या है तो ऐसे में डायबिटिक रेटिनोपैथी का खतरा और बढ़ सकता है. इसलिए बेहतर होगा कि आप ब्लडप्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रण में रखें ताकि आंखों की रोशनी जाने के खतरे को कम किया जा सके.

नोट : डायबिटिक रेटिनोपैथी के लक्षण शुरूआती स्टेज में नहीं दिखते हैं इसलिए अगर आपको डायबिटीज है तो नियमित अंतराल पर आखों की जांच कराते रहें.

डायबिटिक रेटिनोपैथी की जांच (Diagnosis of Diabetic Retinopathy in Hindi)

विभिन्न प्रकार के डायबिटीज के लिए डायबिटिक रेटिनोपैथी की स्क्रीनिंग में अलग तरीके अपनाए जाते हैं.

टाइप-1 डायबिटीज के मामले में डायबिटीज की शुरुआत के 5 सालों के भीतर ही ‘डाईलेटेड फंडस एग्जामिनेशन’ (Dilated fundus examination) के साथ आंखों की विस्तृत जांच कराने की सलाह दी जाती है. डाईलेटेड फंडस एग्जामिनेशन में आंखों की पुतलियों को दवाओं के जरिए फैलाकर रेटिना की जांच की जाती है.

टाइप -2 डायबिटीज के मामले में डायबिटीज का पता चलते ही ‘डाईलेटेड फंडस एग्जामिनेशन’ के साथ आंखों की विस्तृत जांच करानी चाहिए और फिर डायबिटिक रेटिनोपैथी की स्टेज के हिसाब से आगे नियमित अंतराल पर चेकअप करवाते रहें.

डायबिटिक रेटिनोपैथी का इलाज (Diabetic retinopathy treatment in Hindi)

डायबिटिक रेटिनोपैथी का इलाज संभव है. आज के समय में इलाज के कई विकल्प मौजूद है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी बीमारी किस स्टेज में है और कितनी बढ़ चुकी है.

इलाज के मुख्य तरीके निम्न हैं :

लेजर विधि : इसका उपयोग रेटिना में विकसित हुई नई रक्त कोशिकाओं के इलाज में किया जाता है

आंखों में इंजेक्शन : रेटिना के केंद्र वाले भाग को मैक्यूला कहा जाता है. जब डायबिटिक रेटिनोपैथी के कारण मैक्युला में सूजन गंभीर स्थिति तक बढ़ जाती है तब इसके इलाज के लिए आंखों में दवाओं के इंजेक्शन दिए जाते हैं.

विट्रोरेटिनल आई सर्जरी (Vitreoretinal Eye Surgery) : अगर रेटिनोपैथी की समस्या काफी बढ़ जाए जिससे उसका इलाज लेजर विधि से संभव ना हो तो उस अवस्था में सर्जरी के जरिए रक्त कोशिकाओं (ब्लड सेल्स) या धब्बों को निकाला जाता है.

डायबिटीज से आंखों को होने वाले खतरे से जुड़ी जागरूकता के लिए TATA 1mg ने इस क्षेत्र की सम्मानित संस्था विट्रो-रेटिनल सोसाइटी इंडिया (VRSI) के साथ हाथ मिलाया है. यह एकमात्र ऐसी संस्था है जिसमें पूरे देश के 90% से अधिक विट्रो-रेटिना स्पेशलिस्ट डॉक्टर, डायबिटीज से पीड़ित मरीजों को रेटिना से संबंधित स्पेशलाइज्ड सेवाएं देने के लिए समर्पित हैं.

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आंखों का धुंधलापन कैसे ठीक हो?

कैसे करें इससे बचाव?.
धूप में बाहर जाते समय ऐसे चश्मा पहनें जो आंखों को सुरक्षा प्रदान कर सके।.
आंखों के लिए स्वस्थ पोषक तत्वों से भरपूर आहार लें। ... .
धूम्रपान न करें।.
नियमित रूप से आंखों की जांच करवाएं, खासकर अगर आपके परिवार में किसी को आंखों की बीमारी रह चुकी हो।.

आंख से धुंधला दिखने का क्या कारण है?

जब लेंस क्लाउडी हो जाता है तो लाइट लेंसों से स्पष्ट रूप से गुजर नहीं पाती जिससे जो इमेज आप देखते हैं वो धुंधली हो जाती है, इस कारण दृष्टि के बाधित होने को मोतियाबिंद या सफेद मोतिया कहते हैं। नजर धुंधली होने के कारण मोतियाबिंद से पीड़ित लोगों को पढ़ने, नजर का काम करने, कार चलाने (विशेषकर रात के समय) में समस्या आती है।

2 दिन में आंखों की रोशनी कैसे बढ़ाएं?

Health Tips : इन घरेलू नुस्खों को अपनाकर बढ़ाएं अपनी आंखों की रोशनी, जानिए उपाय.
बादाम बादाम में ओमेगा 3 फैटी एसिड, विटामिन ई और एंटीऑक्सीडेंट गुण पाएं जाते हैं। ... .
आंवला आंवला सेहत के साथ-साथ आंखों की रोशनी के लिए काफी असरदार होता है। ... .
एक्सरसाइज ... .
गुलाब जल ... .
सरसों का तेल ... .
त्रिफला.