आंखों का तिरछापन कैसे दूर करें - aankhon ka tirachhaapan kaise door karen

आंख के तिरछेपन से घबराएं नहीं, कराएं इलाज

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : एक आंख सीधी और दूसरी आंख जब ऊपर-नीचे, अंदर-बाहर होने लगती है, तो यह आंख

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : एक आंख सीधी और दूसरी आंख जब ऊपर-नीचे, अंदर-बाहर होने लगती है, तो यह आंख का तिरछापन (स्कि्वन्ट) कहलाता है। बचपन से ही होने वाली इस बीमारी से कई बार आंख की रोशनी कम होने लगती है। साथ ही ऐसी आंखों वाले लोग खूबसूरती को लेकर भी मानसिक रूप से परेशान रहते हैं। डॉ. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. नितिन मल्होत्रा का कहना है कि आंख के तिरछेपन का इलाज है। अगर समय पर इलाज करा लिया जाए, तो इससे होने वाली कई तरह की तकलीफों से बचा जा सकता है। डॉ. मल्होत्रा रविवार को दैनिक जागरण के हैलो डॉक्टर प्रोग्राम में कुमाऊं के लोगों के सवालों का जवाब दे रहे थे। उन्होंने लोगों को आंखों की अन्य बीमारियों के बारे में भी सलाह दी। आप भी बातचीत पर आधारित सलाह का लाभ ले सकते हैं।

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दिखने की समस्या को गंभीरता से लें

एंबलाइओपिया यानी सुस्त आंख। बच्चे के आंख में तिरछापन है, तो मस्तिष्क उस आंख को निष्क्रिय कर देता है। कई बार उस आंख से देखना बंद हो जाता है। डॉ. मल्होत्रा ने बताया कि ऐसा इसलिए होता है, ताकि चीजें दो-दो न दिखें। खूबसूरत दिखने के लिए भी इलाज कराया जा सकता है। इन लोगों में हीन भावना आ जाती है। इसलिए इस बीमारी का इलाज जरूरी है।

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तिरछपेन का तीन तरह से इलाज

तिरछेपन का इलाज तीन तरीके से है। बचपन में अगर दिक्कत है तो चश्मा लगाने की सलाह दी जाती है। चश्मा लगने के बाद कई बच्चों में तिरछापन खत्म हो जाता है। पैचिंग के जरिये भी है और ऑपरेशन से भी तिरछेपन का इलाज संभव है।

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बढ़ रहा कंप्यूटर विजन सिंड्रेाम का खतरा

कंप्यूटर, लैपटॉप व मोबाइल पर काम का प्रचलन बढ़ गया है। इस वजह से कंप्यूटर विजन सिंड्रोम की समस्या भी बढ़ गई है। लंबे समय तक स्क्रीन में देखने से आंखों में जलन, पानी आना और लालिमा की दिक्कत होने लगती है। डॉ. मल्होत्रा सलाह देते हैं कि इसके लिए रूल 20-20 का प्रयोग करें। यानी स्क्रीन में देखने के 20 मिनट बाद 20 सेकेंड के लिए आंखों से 20 फीट दूर की चीज देखते रहें।

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आंखों में अपने मन से न डालें स्टीरॉयड

इस समय आइ फ्लू का खतरा बढ़ गया है। ऐसे में लोग बच्चों की आंखों में अपने मन से स्टीरॉयड दवाइयां डालने लगे हैं। इस दवा का लंबे समय तक प्रयोग घातक है। इससे काला मोतिया, सफेद मोतियाबिंद की समस्या होने लगती है।

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इन लोगों ने किया फोन

बीडी जोशी पिथौरागढ़, मो. नूर काशीपुर, चंद्र पाठक रामनगर, नरेश बिष्ट दिनेशपुर, राजकुमार काशीपुर, विनय जोशी पिथौरागढ़, मुकेश चम्पावत, मदन सिंह सितारगंज, हाशिम बरखेड़ा पांडे काशीपुर, राजीव अल्मोड़ा, चंद्रप्रकाश नैनीताल, रोजी मदान रुद्रपुर, ममता चम्पावत, सुरेश जोशी बागेश्वर, तारा प्रसाद डीडीहाट आदि ने फोन किया।

Edited By: Jagran

हमारी दोनों आंखों में अच्छा समन्वय/तालमेल होता है, दोनों आंखे एक ही दिशा में और एक ही बिंदु पर फोकस करती हैं।

लेकिन कई बच्चे जन्म से ही भैंगेपन के शिकार होते हैं। जब मस्तिष्क दोनों आंखों से अलग-अलग दृश्य संकेत प्राप्त करता है, तो वह कमजोर आंखों से मिलने वाले संकेत को नज़रअंदाज़ कर देता है, अगर मस्तिष्क दोनों संदेशों को ग्रहण करने लगता है तो डबल विज़न की समस्या हो जाती है।

यह समस्या अक्सर बच्चों में होती है, लेकिन यह जीवन में बाद में भी विकसित हो सकती है। भैंगेपन की समस्या किसी दुर्घटना के कारण आंख में चोट लगने या किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या के कारण भी हो सकती है।

अगर इसका समय रहते उपचार न कराया जाए तो देखने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।

जानिए क्या होता है भैंगापन?

भैंगापन जिसे स्क्विंट या स्ट्राबिस्मस या क्रॉस्ड आईस कहते हैं, आंखों से संबंधित एक समस्या है, जिसमें दोनों आंखें एक सीध (ठीक तरह से अलाइन) में नहीं होती हैं।

एक आंख अंदर की ओर या बाहर की ओर या नीचे की ओर या उपर की ओर हो जाती है। ऐसी स्थिति में, दोनों आंखें एक साथ एक बिंदु पर केंद्रित नहीं हो पाती हैं। दोनों आंखें अलग-अलग दिशाओं में देखती हैं, और अलग- अलग बिंदुओं पर फोकस होती है।

यह समस्या आंख की मांसपेशियों पर खराब नियंत्रण के कारण होती है, क्योंकि इन्हें तंत्रिकाओं के दोषपूर्ण संकेत मिलते हैं।

यह ऐसी समस्या नहीं है, जिसे ठीक नहीं किया जा सकता है, अधिकतर मामलों में आंखों का भेंगापन पूरी तरह ठीक हो जाता है।

प्रकार

आंख की स्थिति के आधार पर यह भैंगेपन की समस्या अलग-अलग प्रकार की होती है।

आंखों का तिरछापन कैसे दूर करें - aankhon ka tirachhaapan kaise door karen
An illustration showing various types of Starbismus

हाइपरट्रोपिया

हाइपरट्रोपिया जब आंख उपर की ओर मुड़ जाती है।

हाइपोट्रोपिया

हाइपोट्रोपिया जब आंख नीचे की ओर मुड़ जाती है।

एसोट्रोपिया

एसोट्रोपिया जब आंख अंदर की ओर चली जाती है।

एक्सोट्रोपिया

एक्सोट्रोपिया जब आंख बाहर की ओर चली जाती है।

क्या हैं कारण?

अधिकतर मामलों में भैंगेपन की समस्या जन्मजात होती है, लेकिन कुछ बीमारियां या दुर्घटनाएं भी इसका कारण बन सकती हैं।

  • जन्मजात विकृति:  बच्चों में भैंगेपन के अधिकतर मामले जन्मजात ही होते हैं। गर्भ में शारीरिक विकास में समस्या आने पर मस्तिष्क, आंख की मांसपेशियों और तंत्रिकाओं में संप्रेषण/संचार असामान्य हो जाता है, जिससे दोनों आंखों का समन्वय/तालमेल प्रभावित होता है।
  • अनुवांशिकी (जिनैटिक): अगर परिवार के किसी सदस्य में भैंगेपन की शिकायत है, तो नवजात शिशु में इसके होने की आशंका बढ़ जाती है। कई बच्चों में यह जन्म के पहले पांच वर्षों में भी विकसित हो जाती है।
  • दुर्घटनाएं: किसी दुर्घटना के कारण मस्तिष्क में चोट लग जाना या आंखों की तंत्रिकाओं या आँख का पर्दे (रेटिना) का क्षतिग्रस्त हो जाना।
  • आंखों से संबंधित समस्याएं: आंखों से संबंधित किसी अन्य समस्या जैसे निकट दृष्टिदोष, दूर दृष्टिदोष या एस्टिग्मेटिज़्म के कारण भी भैंगेपन की समस्या हो सकती है।
  • वायरस का संक्रमण: वायरस का संक्रमण जैसे वायरल फिवर, चेचक, खसरा, मेनेजाइटिस आदि इसका कारण बन सकते हैं।
  • अन्य स्वास्थ्य समस्याए: मस्तिष्क विकार, मस्तिष्क का ट्यूमर, स्ट्रोक, मधुमेह(डायबिटीज़) या मस्तिष्क पक्षाघात (सेरिब्रल पाल्सी) जैसी समस्याएं भैंगेपन के लिए एक जोखिम कारक हैं।

लक्षण

भैंगेपन का सबसे सामान्य लक्षण है, दोनों आंखों का एकसाथ एक बिंदु पर फोकस नहीं हो पाना। इसके अलावा निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं।

  • दृष्टि प्रभावित होना।
  • दोहरी दृष्टि (डबल विज़न)।
  • गहराई की अनुभूति प्रभावित होना।
  • आंखों में खिंचाव या सिरदर्द।

यह लक्षण लगातार भी बने रह सकते हैं या तब दिखाई दे सकते हैं, जब आप थके हुए हों या अच्छा महसूस नहीं कर रहे हों।

डायग्नोसिस (मूल्यांकन)

  1. कार्नियल आई रिफ्लेक्स टेस्ट: भैंगेपन का पता लगाने के लिए कार्नियल आई रिफ्लेक्स टेस्ट किया जाता है। इसमें यह पता लगाया जाता है कि आंख में भैंगापन कितना है और किस प्रकार का है।
  2. विज़ुअल एक्युटी टेस्ट: यह पता लगाने के लिए की पीड़ित की दृष्टि सामान्य है या भैंगेपन के कारण कोई प्रभाव पड़ा है, विज़ुअल एक्युटी टेस्ट किया जाता है।

अगर मरीज में भैंगेपन के अलावा कुछ शारीरिक लक्षण भी दिखाई दें रहे हों तो दूसरी स्थितियों का पता लगाने के लिए मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की जांच की जाती है।

उपचार

अगर शुरूआत में ही इसका डायग्नोसिस/ मूल्यांकन हो जाए तो उपचार अधिक प्रभावी रहता है, स्थिति गंभीर होने पर इसका पूरी तरह उपचार संभव नहीं है।

छह साल की उम्र तक उपचार कराना काफी प्रभावी रहता है, वैसे इसका उपचार कभी भी किया जा सकता है। जब किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या के कारण भैंगेपन की समस्या होती है तो उसका उपचार जरूरी हो जाता है।

अगर समय रहते सर्जरी करा ली जाए तो परिणाम अच्छे प्राप्त होते हैं और 3 डी विज़न विकसित हो सकता है।

1. नेत्र व्यायाम (आई एक्सरसाइज)

कईं विज़न थेरेपी प्रोग्राम भी भैंगेपन के उपचार में शामिल किए गए हैं, यह आंखों में समन्वय/तालमेल को सुधारने में सहायता करते हैं।

आंखों की मांसपेशियों को मजबूत बनाने में नेत्र व्यायाम भी कारगर हैं। यह अस्पताल में एक मशीन पर भी की जा सकती है, जिसे साइनोप्टोफोरे कहते हैं या घर पर भी की जा सकती है।

पेंसिल पुश-अप्स व्यायाम को भैंगेपन के लिए सबसे अच्छी नेत्र व्यायाम माना जाता है। इसके स्टेप्स निम्नानुसार हैं;

  • पेंसिल को एक हाथ की दूरी पर रखें, दोनों आंखों के बीच में।
  • पेंसिल को देखते हुए, उसे नाक के पास लाएं। कोशिश करें कि इसकी एक इमेज/प्रतिबिंब बनाए रखें।
  • पेंसिल को लगातार नाक के पास लाएं, जब तक कि आप उसे एकमात्र इमेज/ प्रतिबिंब के रूप में न देख पाएं।
  • अब पेंसिल को उस बिंदु पर ले जाकर रोक कर रखें,जहां केवल एक इमेज/ प्रतिबिंब दिखाई दे।
  • अगर केवल एक इमेज/ प्रतिबिंब नहीं दिख रही हो तो फिर से शुरू करें।
  • 12 हफ्तों तक 20 बार इस नेत्र व्यायाम को करना, इस समस्या का एक आसान, मुफ्त और प्रभावी उपचार है।

2. चश्मा और कांटेक्ट लेंस

भैंगेपन को चश्मे या कांटेक्ट लेंसेस के द्वारा भी ठीक किया जा सकता है।

अगर दूरदृष्टि दोष के कारण भैंगेपन की समस्या होती है, तो चश्मे से ठीक हो जाती है। जब समस्या मामूली हो तो डॉक्टर प्रिज्म लगाने की सलाह दे सकते हैं, जो विशेष प्रकार के चश्मे होते हैं।

अगर चश्मे या कांटेक्ट लेंसों से स्थिति ठीक न हो तो सर्जरी जरूरी हो जाती है।

3. आई पैच (आंख की पट्टी)

जिस आंख में भैंगापन होता है, उसमें आई पैच/आंख की पट्टी के इस्तेमाल द्वारा दृष्टि को बेहतर बनाया जाता है।

4. बोटुलिनम टॉक्सिक इंजेक्शन या बॉटोक्स

जब यह पता नहीं चल पाता कि किस स्वास्थ्य समस्या के कारण भैंगापन विकसित हो गया है तब बोटॉक्स इंजेक्शन का विकल्प चुना जाता है। यह इंजेक्शन आंख की सतह की मांसपेशी में लगाया जाता है।

बोटॉक्स, उन मांसपेशियों को अस्थायी रूप से कमजोर कर देता है, यह आंखों को ठीक तरह से अलाइन/एक सीध में करने में सहायता कर सकता है।

5. सर्जरी (ऑपरेशन)

सर्जरी तब की जाती है जब दूसरे उपचारों से कोई लाभ नहीं होता है।

इसके द्वारा आंखों को रि-अलाइन/फिर से एक सीध में कर दिया जाता है और बाइनोक्युलर विज़न (द्विनेत्रीय दृष्टि) को पुनः स्थापित कर दिया जाता है।

कभी-कभी सही संतुलन पाने के लिए दोनों आंखों का ऑपरेशन करना पड़ता है।

सर्जरी के साइड इफेक्ट्स (ऑपरेशन के दुष्प्रभाव)

वैसे तो सर्जरी सुरक्षित है, लेकिन बहुत ही कम मामलों में जटिलताओं का खतरा होता है, इसमें सम्मिलित है:

आंखों का अलाइनमेंट/संरेखण पूरी तरह ठीक न होना।

  • डबल विज़न (दोहरी दृष्टि)।
  • संक्रमण।
  • घाव पड़ जाना।
  • दृष्टिहीनता।
  • ओवर करेक्शन (जरूरत से ज्यादा सुधार) के कारण दूसरी दिशा में भैंगापन आ जाना।

उपचार न कराने से होने वाली जटिलताएं

अगर उपचार ना कराया जाए तो भैंगापन लैजी आई या एम्बलायोपिया का कारण बन सकती है जिसमें मस्तिष्क एक आंख से मिलने वाले इनपुट्स (संकेतो) को नज़रअंदाज़ कर देता है।

कभी-कभी बचपन में सफल उपचार के बाद, भैंगापन व्यस्क आयु मे दोबारा हो जाता है। इससे डबल विज़न (दोहरी दृष्टि) की समस्या हो सकती है, क्योंकि इस समय तक मस्तिष्क दोनों आंखों से संकेतों को संग्रहित करने के लिए प्रशिक्षित हो जाता है। इसलिए, वह इनमें से एक को नज़रअंदाज़ नहीं कर पाता है।

भैंगेपन की अत्यधिक गंभीर समस्या दृष्टिहीनता का कारण बन सकती है।

तिरछी आंखों को कैसे ठीक करें?

तिरछेपन का इलाज तीन तरीके से है। बचपन में अगर दिक्कत है तो चश्मा लगाने की सलाह दी जाती है। चश्मा लगने के बाद कई बच्चों में तिरछापन खत्म हो जाता है। पैचिंग के जरिये भी है और ऑपरेशन से भी तिरछेपन का इलाज संभव है।

आंखें तिरछी क्यों होती है?

यह समस्या आंख की मांसपेशियों पर खराब नियंत्रण के कारण होती है, क्योंकि इन्हें तंत्रिकाओं के दोषपूर्ण संकेत मिलते हैं। यह ऐसी समस्या नहीं है, जिसे ठीक नहीं किया जा सकता है, अधिकतर मामलों में आंखों का भेंगापन पूरी तरह ठीक हो जाता है।

छोटी आंख बड़ी कैसे करें exercise?

आंखों को बड़ा करें इसे करने के लिए अपनी आंखों को 5 सेकेंड के लिए कसकर बंद करें और फिर उन्हें बड़ा करके खोलें। यह एक्सरसाइज पलक की मसल्स को मजबूत बनाती है ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करती है। इस एक्सरसाइज को लगभग 10 बार दोहराएं।

आंखों के लिए सबसे अच्छा क्या है?

विटामिन ए: विटामिन ए को रेटिनॉल भी कहा जाता है. इसे आंखों की रोशनी के लिए अच्छा माना गया है. विटामिन ए को आप शकरकंदी, गाजर, रेड पेपर, कददू, ऑरेंज, हरी सब्जियों, कॉड लिवर ऑयल आदि से प्राप्त कर सकते हैं. बी विटामिन्स: बी विटामिन्स वॉटर सॉल्युबल विटामिन्स हैं, जो सेल मेटाबॉलिज्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.