Show संगीत और नृत्य के कारण फिल्मों की पहचानपटना । भारतीय सिनेमा में गीत संगीत एवं नृत्य की प्रधानता आरंभ काल से रही है। संगीत और नृत्य के कारण ही फिल्मों की पहचान है। मूक दौर मे भी भारतीय सिनेमा संगीत से अलग नहीं रहा। ये बातें संगीत मर्मज्ञ पद्मश्री गजेन्द्र नारायण सिंह ने गोलघर स्थित मॉरिसन भवन में कही। मौका था बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम द्वारा भारतीय सिनेमा में गीत संगीत एवं नृत्य की परंपरा विषय पर सेमिनार का आयोजन का। सेमिनार पर आयोजित विषय पर प्रकाश डालते हुए गजेन्द्र नारायण ने कहा कि सांगीतिक रोचकता और रौनकता प्रदान करने में सलिल चौधरी, सी रामचंद्रन, मदन मोहन, नौशाद जैसे संगीतकारों का विशेष योगदान रहा। गीत संगीत एवं नृत्य भारतीय सिनेमा की पहली पहचान है। विभिन्न विधाओं का संगम है सिनेमा : विषय पर प्रकाश डालते हुए शास्त्रीय नृत्यांगना एवं प्रशासक नीलम चौधरी ने कहा भारतीय सिनेमा में अक्सर प्रेम प्रधान कथाओं को चित्रित करता आ रहा है। जिसकी प्रस्तुति में संगीत की महत्वपूर्ण भूमिका शुरू से रही है, ेकिन आजकल के अधिकांश फिल्मों में गीत, संगीत या नृत्य विलास से अधिक अंग विलास को ध्यान में ज्यादा रखा जा रहा है। जबकि शुरुआती दौर में ऐसी प्रथा नहीं रही। संगीत रहित भारतीय सिनेमा की परिकल्पना अधूरी सेमिनार को संबोधित करते हुए आरएन दास ने कहा कि संगीत रहित भारतीय सिनेमा की कल्पना नहीं की जा सकती। निगम के प्रबंध निदेशक गंगा कुमार ने नीलम चौधरी, गजौंद्र नारायण सिंह को मिथिला पेटिंग से चित्रित अंग-वस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया। सेमिनार में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी मिथिलेश मिश्र, फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम, डॉ. शंकर प्रसाद, शास्त्रीय गायक राजीव सिन्हा, कला समीक्षक विनय कुमार, वरिष्ठ रंगकर्मी सुमन कुमार, डॉ. मनीषा, राजेश मिश्र, कुमार संभव आदि मौजूद थे। नई दिल्ली: हिंदी सिनेमा अन्य सिनेमा की तुलना में काफी अलग है, जहां एक तरफ हॉलीवुड समेत अन्य इंडस्ट्री में गानों को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता है. वहीं बॉलीवुड में कोई भी फिल्म ऐसी नहीं होगी जिसमें संगीत न हो. गाने फिल्म से पहले रिलीज होते है जो की फिल्म को प्रसिद्ध करते है बता दें कि भारतीय सिनेमा में संगीत काफी मुख्य रोल निभाता है. गानों की वजह से एक फिल्म के दौरान हमें छोटे-छोटे ब्रेक भी मिल जाते है. गाने फिल्म से पहले रिलीज होते है जो की फिल्म को प्रसिद्ध करने का काम करते है. उसी वजह से दर्शकों के दिल में मूवी को देखने की चाह बढ़ जाती है. हिंदी गाने कई बार इतने सशक्त होते है कि फिल्म को एक पल दर्शक भूल जाए लेकिन संगीत को नही भूल पाते है. भारतीयों की ज्यादातर भावना संगीत के माध्यम से उजागर होती है आपको बता दें कि भारतीयों की ज्यादातर भावना संगीत के माध्यम से उजागर होती है. फिर चाहे वो सुख हो या दुख. बॉलीवुड की फिल्म में एक नहीं बल्कि कई गाने दर्शाये जाते है. जिनके बोल लोगों के जुबान पर हमेशा देखने को मिलते है. कहते है न जैसे दूध बगौर खीर बनाना संभव नहीं ठीक उसी तरह बॉलीवुड में गानों के बगौर मूवी बनाना संभव नही. दोनों ही एक दूसरे के पूरक है. हमारा सिनेमा अन्य सिनेमा से इसलिए भी अलग है क्योंकि बॉलीवुड मूवी में आपको तमाम चीजें देखने को मिलेगी फिर चाहे वो एक्टिंग, संगीत, डांस, ड्रामा और कॉमेडी ही क्यों न हो. ड्रीम गर्ल हेमा का प्रसिद्ध गाना “मैं नाचूंगी जब तक है जान” भी सभी को याद रहता है यहीं कुछ कारण है जो हिंदी सिनेमा को ओर से अलग करता है. हम आज भी पुरानी कई फिल्मों को उनके गानों की वजह से ही याद रखते हैं. जहां शोले में जय-वीरू की जोड़ी याद है वहीं ड्रीम गर्ल हेमा का प्रसिद्ध गाना “मैं नाचूंगी जब तक है जान” भी सभी को याद रहता है. मुग़ल-ए-आज़म फिल्म का ‘प्यार किया तो डरना क्या’. वो कौन थी मूवी का गाना ‘लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो’. ये सभी गाने पहले के आइकोनिक गानों में से एक है. यह भी पढ़ें: अभिषेक बच्चन का बड़ा खुलासा, ऐश्वर्या की इस फिल्म को लेकर कही चौंकाने वाली बात गानों से अभिनेता और अभिनेत्रियों की भी एक अलग छवि देखने को मिली भारतीय इतिहास और वर्तमान में गीत, संगीत, नृत्य और साहित्य सभी खास महत्व रखते हैं. संगीत का हिंदी फिल्मों में अलग लगाव देखा जाता है. चाहे वो 60 का दिलीप कुमार का दौर हो या फिर 80 और 90 का सलमान और शाहरुख का, गानों की वजह से जितनी फिल्म इंडस्ट्री को अलग पहचान मिली, वहीं इन गानों से अभिनेता और अभिनेत्रियों की भी एक अलग छवि देखने को मिली. आज भी गानों का चलन बरकरार है, जो लोगों को थिरकने में मजबूर कर देता है. यहीं कारण है कि इसे कहते है भारतीय सिनेमा. सिनेमा में संगीत का क्या महत्व है?किसी फिल्म की शुरुआत में जब कोई नाटकीय दृश्य से प्लॉट स्थापित किया जा रहा हो , किसी चरित्र अच्छेसे जानने से पहले उसे अपनी दिनचर्या को करते देख रहे हो या फिर , दृश्यों के बीच में हो रहे समयांतरल । फिल्म को अपनी भावना दर्शकों तक संप्रेषित करने में संगीत का बड़ा योगदान होता हैं ।
हिंदी सिनेमा से आप क्या समझते हैं?हिन्दी सिनेमा, जिसे बॉलीवुड के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दी भाषा में फ़िल्म बनाने का उद्योग है। बॉलीवुड नाम अंग्रेज़ी सिनेमा उद्योग हॉलीवुड के तर्ज़ पर रखा गया है। हिन्दी फ़िल्म उद्योग मुख्यतः मुम्बई शहर में बसा है। ये फ़िल्में हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और विश्व के कई देशों के लोगों के दिलों की धड़कन हैं।
सिनेमा की क्या विशेषता है?वह लोकप्रिय कला, सार्वभौमिक अपील, परंपरागत कलाओं का एकत्रीकरण, विश्व सभ्यता का बहुमूल्य खजाना, यथार्थ और यथार्थ से परे लेकर जाने के लिए जादू की छड़ी, समय और समय के प्रतिबिंब को अंकीत करने का साधन, अपनी दुनिया का प्रदर्शन करने का तरीका, सबके लिए उपलब्ध सार्वजनिक कला, दुनिया को चौकानेवाली चमत्कारिक कला और बीसवीं सदी की ...
हिन्दी सिनेमा के गीत संगीत ने समाज पर क्या प्रभाव डाला?हिन्दुस्तानी सिनेमा को अपना पहला कवि मिला, मनुष्य की करुणा का गायक मिला। भारतीय सिनेमा में गीत संगीत का स्वर्णकाल भी इसी समय को माना जाता है । वर्तमान में भारतीय सिनेमा की यही पहचान है। शुरुआत में जहाँ इसका माखौल उड़ाया जाता था वहीं आज यह भारतीय सिनेमा के उर्जा के केंद्र बिन्दु के रूप में स्थापित हो गया है ।
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