Solutions For All Chapters Vitan Class 11 Show
प्रश्न 1: लेखक ने पाठ में गानयन का उल्लेख किया है। पाठ के संदर्भ में स्पष्ट करते हुए बताएँ कि आपके विचार में इसे प्राप्त करने के लिए किस प्रकार के अभ्यास की आवश्यकता है? उत्तर – ‘गानपन’ का अर्थ है-गाने से मिलने वाली मिठास और मस्ती। जिस प्रकार
‘मनुष्यता’ नामक गुणधर्म होने के कारण हम उसे मनुष्य कहते हैं उसी प्रकार गीत में ‘गानपन’ होने पर ही उसे संगीत कहा जाता है। लता के गानों में शत-प्रतिशत गानपन मौजूद है तथा यही उनकी लोकप्रियता का आधार है। गानों में गानपन प्राप्त करने के लिए नादमय उच्चार करके गाने के अभ्यास की आवश्यकता है। गायक को स्वरों के उचित ज्ञान के साथ उसकी आवाज में स्पष्टता व निर्मलता होनी चाहिए। रसों के अनुसार उसमें लय, आघात तथा सुलभता होनी चाहिए। प्रश्न 2: लेखक ने लता की गायकी की किन विशेषताओं को उजागर किया है? आपको लता की गायकी में कौन-सी विशेषताएँ नजर आती हैं? उदाहरण सहित बताइए। उत्तर – लेखक ने लता की गायकी की निम्नलिखित विशेषताओं को उजागर किया है 1. सुरीलापन-लता के गायन में सुरीलापन है। उनके स्वर में अद्भुत मिठास, तन्मयता, मस्ती तथा लोच आदि हैं, उनका उच्चारण मधुर गूंज से परिपूर्ण रहता है। 2. स्वरों की निर्मलता-लता के स्वरों में निर्मलता है। लता का जीवन की ओर देखने का जो दृष्टिकोण है, वही उसके गायन की निर्मलता में झलकता है। 3. कोमलता और मुग्धता-लता के स्वरों में कोमलता व मुग्धता है। इसके विपरीत नूरजहाँ के गायन में मादक उत्तान दिखता था। 4. नादमय उच्चार-यह लता के गायन की अन्य विशेषता है। उनके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अंतर स्वरों के आलाप द्वारा सुंदर रीति से भरा रहता है। ऐसा लगता है कि वे दोनों शब्द विलीन होते-होते एक-दूसरे में मिल जाते हैं। लता के गानों में यह बात सहज व स्वाभाविक है। 5. शास्त्र-शुदधता-लता के गीतों में शास्त्रीय शुद्धता है। उन्हें शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी है। उनके गीतों में स्वर, लय व शब्दार्थ का संगम होने के साथ-साथ रंजकता भी पाई जाती है। हमें लता की गायकी में उपर्युक्त सभी विशेषताएँ नजर आती हैं। उन्होंने भक्ति, देश-प्रेम, श्रृंगार तथा विरह आदि हर भाव के गीत गाए हैं। उनका हर गीत लोगों के मन को छू लेता है। वे गंभीर या अनहद गीतों को सहजता से गा लेती हैं। एक तरफ ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत से सारा देश भावुक हो उठता है तो दूसरी तरफ ‘दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएँगे।’ फिल्म के अलहड़ गीत युवाओं को मस्त करते हैं। वास्तव में, गायकी के क्षेत्र में लता सर्वश्रेष्ठ हैं। प्रश्न 3: लता ने करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया है, जबकि श्रृंगारपरक गाने वे बड़ी उत्कटता से गाती हैं-इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? उत्तर – एक संगीतज्ञ की दृष्टि से कुमार गंधर्व की टिप्पणी सही हो सकती है, परंतु मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ। लता ने करुण रस के गाने भी बड़ी उत्कटता के साथ गाए हैं। उनके गीतों में मार्मिकता है तथा करुणा छलकती-सी लगती है। करुण रस के गाने आम मनुष्य से सीधे नहीं जुड़ते। लता के करुण रस के गीतों से मन भावुक हो उठता है। ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत से पं जवाहरलाल नेहरू की आँखें भी सजल हो उठी थीं। फिल्म ‘रुदाली’ का गीत ‘दिल हुँ-हुँ करे’ विरही जनों के हृदय को बींध-सा देता है। इसी तरह ‘ओ बाबुल प्यारे’ . गीत में नारी-मन की पीड़ा को व्यक्त किया है। अत: यह सही नहीं है कि लता ने करुण रस के गीतों के साथ न्याय नहीं किया है। प्रश्न 4: सगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण हैं। वहाँ अब तक अलक्षित, असशोधित और अदूष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्राप्त है तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं-इस कथन को वर्तमान फ़िल्मी संगीत के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए। उत्तर – यह सही है कि संगीत का क्षेत्र बहुत विशाल है, इसमें अनेक संभावनाएँ छिपी हुई हैं। यह ऐसा क्षेत्र है जहाँ हर रोज नए स्वर, नए यंत्रों व नई तालों का प्रयोग किया जाता है। चित्रपट संगीत आम व्यक्ति का संगीत है। इसने लोगों को सुर, ताल, लय व भावों को समझने की समझ दी है। आज यह शास्त्रीय संगीत का सहारा भी ले रहा है। दूसरी तरफ लोकगीतों को बड़े स्तर पर अपना रहा है। संगीतकारों ने पंजाबी लोकगीत, राजस्थानी, पहाड़ी, कृषि गीतों का प्रयोग करना शुरू कर दिया है। पाश्चात्य संगीत का लोकगीतों के साथ मेल किया जा रहा है कभी तेज संगीत तो कभी मंद संगीत लोगों को मदहोश कर रहा है। इसी तरह फ़िल्मी संगीत नित नए-नए रूपों का प्रयोग कर रहा है। प्रश्न 5: चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए-अकसर यह आरोप लगाया जाता रहा है। इस संदर्भ में कुमार गंधर्व की राय और अपनी राय लिखें। उत्तर – शास्त्रीय संगीत के समर्थक अकसर यह आरोप लगाते हैं कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए। कुमार गंधर्व उनके इस आरोप को सिरे से नकारते हैं। वे मानते हैं कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान सुधारे हैं। इसके कारण लोगों को सुरीलेपन की समझ हो रही है। उन्हें तरह-तरह की लय सुनाई दे रही है। आम आदमी को लय की सूक्ष्मता की समझ आ रही है। इसने आम आदमी में संगीत विषयक अभिरुचि को पैदा किया है। लेखक ने लोगों का शास्त्रीय संगीत को देखने और समझने में परिवर्तित दृष्टिकोण का श्रेय लता के चित्रपट संगीत की दिया है। चित्रपट संगीत पर हमारी राय कुछ अलग है। पुरानी जमाने के चित्रपट संगीत ने सुरीलापन दिया, परंतु आज का संगीत तनाव पैदा करने लगा है। अब गानों में अश्लीलता बढ़ गई है कानफोड़ें संगीत का फैलाव हो रहा है। धुनों में ताजगी नहीं आ रही है। आज चित्रपट संगीत तेज भागती जिंदगी की तरह हो गया है। प्रश्न 6: शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्व का आधार क्या होना चाहिए? कुमार गंधर्व की इस संबंध में क्या राय है? स्वयं आप क्या सोचते हैं? उत्तर – कुमार गंधर्व का स्पष्ट मत है कि चाहे शास्त्रीय संगीत हो या चित्रपट संगीत, वही संगीत महत्वपूर्ण माना जाएगा जो रसिकों और श्रोताओं को अधिक आनंदित कर सकेगा। दोनों प्रकार के संगीत का मूल आधार होना चाहिए रंजकता। इस बात का महत्त्व होना चाहिए कि रसिक को आनंद देने का सामथ्र्य किस गाने में कितना है? यदि शास्त्रीय संगीत में रंजकता नहीं है तो वह बिल्कुल नीरस हो जाएगा। अनाकर्षक लगेगा और उसमें कुछ कमी-सी लगेगी। गाने में गानपन का होना आवश्यक है। गाने की सारी मिठास, सारी ताकत उसकी रंजकता पर अवलंबित रहती है और रंजकता का मर्म रसिक वर्ग के समक्ष कैसे प्रस्तुत किया जाए, किस रीति से उसकी बैठक बिठाई जाए और श्रोताओं से कैसे सुसंवाद साधा जाए, इसमें समाविष्ट है। अत: लेखक का मत बिल्कुल सत्य है। हमारी राय भी उनके समान ही है। मूल्यपरक प्रश्ननिम्नलिखित गदयांशों को पढ़कर पूछे गए मूल्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिए- (क) मुझे लगता है ‘बरसात’ के भी पहले के किसी चित्रपट का वह कोई गाना था। तब से लता निरंतर गाती चली आ रही है और मैं भी उसका गाना सुनता आ रहा हूँ। लता से पहले प्रसिदध गायिका नूरजहाँ की चित्रपट संगीत में अपना जमाना था। परंतु उसी क्षेत्र में बाद में आई हुई लता उससे कहीं आगे निकल गई। कला के क्षेत्र में ऐसे चमत्कार कभी-कभी दीख पड़ते हैं। जैसे प्रसिद्ध सितारिये विलायत खाँ अपने सितारवादक पिता की तुलना में बहुत ही आगे चले गए। मेरा स्पष्ट मत है कि भारतीय गायिकाओं में लता के जोड़ की गायिका हुई ही नहीं। लता के कारखा चित्रपट संगीत को विलक्षण लोकप्रियता प्राप्त हुई है, यही नहीं लोगों को शास्त्रीय संगीत की ओर देखने का दृष्टिकोण भी एकदम बला है। प्रश्न: उत्तर
– (ख) लता की लोकप्रियता का मुख्य मर्म यह ‘गानपन’ ही है। लता के गाने की एक और विशेषता है, उसके स्वरों की निर्मलता। उसके पहले की पाश्र्व गायिका नूरजहाँ भी एक अच्छी गायिका थी, इसमें संदेह नहीं तथापि उसके गाने में एक मादक उत्तान दीखता था। लता के स्वरों में कोमलता और मुग्धता है। ऐसा दीखता है कि लता का जीवन की ओर देखने का जो दृष्टिकोण है वही उसके गायन की निर्मलता में झलक रहा है। हाँ, संगीत दिग्दर्शकों ने उसके स्वर की इस निर्मलता का जितना उपयोग कर लेना चाहिए था, उतना नहीं किया। मैं स्वयं संगीत दिग्दर्शक होता तो लता को बहुत जटिल काम देता, ऐसा कहे बिना रहा नहीं जाता। लता के गाने की एक और विशेषता है, उसका नादमय उच्चार। उसके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अंतर स्वरों के अलाप दवारा बड़ी सुंदर रीति से भरा रहता है और ऐसा प्रतीत होता है कि वे दोनों शब्द विलीन होते-होते एक-दूसरे में मिल जाते हैं। प्रश्न (ग) एक प्रश्न उपस्थित किया जाता है कि शास्त्रीय संगीत में लता का स्थान कौन-सा है। मेरे मत से यह प्रश्न खुद ही प्रयोजनहीन है। उसका कारण यह है कि शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत में तुलना हो ही नहीं सकती। जहाँ गंभीरता शास्त्रीय संगीत का स्थायीभाव है वहीं जलदलय और चपलता चित्रपट संगीत का मुख्य गुणधर्म है। चित्रपट संगीत का ताल प्राथमिक अवस्था का ताल होता है, जबकि शास्त्रीय संगीत में ताल अपने परिष्कृत रूप में पाया जाता है। चित्रपट संगीत में आधे तालों का उपयोग किया जाता है। उसकी लयकारी बिलकुल अलग होती है, आसान होती है। यहाँ गीत और आघात को ज्यादा महत्व दिया जाता है। सुलभता और लोच को अग्र स्थान दिया जाता है; तथापि चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होना आवश्यक है और वह लता के पास नि:संशय है। तीन-साढ़े तीन मिनट के गाए हुए चित्रपट के किसी गाने का और एकाध खानदानी शास्त्रीय गायक की तीन-साढे तीन घटे की महफिल, इन दोनों का कलात्मक और आनंदात्मक मूल्य एक ही है, इससे आप कहाँ तक सहमत हैं? ऐसा मैं मानता हूँ। प्रश्न (घ) सच बात तो यह है कि हमारे शास्त्रीय गायक बड़ी आत्मसंतुष्ट वृति के हैं। संगीत के क्षेत्र में उन्होंने अपनी हुकुमशाही स्थापित कर रखी है। शास्त्र-शुदधता के कर्मकांड को उन्होंने आवश्यकता से अधिक महत्व दे रखा है। मगर चित्रपट संगीत दवारा लोगों की अभिजात्य संगीत से जान-पहचान होने लगी है। उनकी चिकित्सक और चौकस वृत्ति अब बढ़ती जा रही है। केवल शास्त्र-शुद्ध और नीरस गाना उन्हें नहीं चाहिए, उन्हें तो सुरीला और भावपूर्ण गाना चाहिए। और यह क्रांति चित्रपट संगीत ही लाया है। चित्रपट संगीत समाज की संगीत विषयक अभिरुचि में प्रभावशाली मोड़ लाया है। चित्रपट संगीत की लचकदारी उसका एक और सामथ्र्य है, ऐसा मुझे लगता है। उस संगीत की मान्यताएँ, मर्यादाएँ, झंझटें सब कुछ निराली हैं। चित्रपट संगीत का तंत्र ही अलग है। यहाँ नव-निर्मिति की बहुत गुंजाइश है। जैसा शास्त्रीय रागदारी का चित्रपट संगीत दिग्दर्शकों ने उपयोग किया, उसी प्रकार राजस्थानी, पंजाबी, बंगाली, उत्तर प्रदेश के लोकगीतों के भंडार को भी उन्होंने खूब लूटा है, यह हमारे ध्यान में रहना चाहिए। प्रश्न निबंधात्मक प्रश्न प्रश्नप्रश्न 1: शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत में क्या अंतर है? प्रश्न 2: कुमार गंधर्व ने लता मंगेशकर को बेजोड़ गायिका माना है। क्यों? 1. उनके गायन में जो गानपन है, वह अन्य किसी गायिका में नहीं मिलता। प्रश्न 3: लता मंगेशकर ने किस तरह के गीत गाए हैं? पाठ के आधार पर स्पष्ट करें। लघूत्तरात्मक प्रश्नप्रश्न 1: लेखक लता के संगीत से कब स्वयं को जुड़ा महसूस करने लगे? प्रश्न 2:लता के नूरजहाँ से आगे निकल जाने का क्या कारण है? प्रश्न 3:
कुमार गंधर्व ने लता मंगेशकर के गायन को चमत्कार की संज्ञा क्यों दी है? प्रश्न
4: शास्त्रीय गायकों पर लेखक ने क्या टिप्पणी की है? प्रश्न 5: चित्रपट संगीत के विकसित होने का क्या कारण है? प्रश्न 6: लता की गायकी से संगीत के प्रति आम लोगों की सोच में क्या परिवर्तन आया है? प्रश्न 7: कुमार गंधर्व ने लता जी की गायकी के किन दोषों का उल्लेख किया है? प्रश्न 8: शास्त्रीय संगीत की तीन-साढ़े तीन घंटे की महफिल और चित्रपट संगीत के तीन मिनट के गान का आनंदात्मक मूल्य एक क्यों माना गया है? प्रश्न 9: लय कितने प्रकार की होती है? 1. विलंबित लय– यह धीमी होती है। लेखक ने लता की गायकी की किन विशेषताओं को उजागर किया है आपको लता की गायकी में कौन सी?लता के गाने की एक और विशेषता है, उसके स्वरों की निर्मलता। उसके पहले की पार्श्व गायिका नूरजहाँ भी एक अच्छी गायिका थी, इसमें संदेह नहीं तथापि उसके गाने में एक मादक उत्तान दीखता था। लता के स्वरों में कोमलता और मुग्धता है। ऐसा दीखता है कि लता का जीवन की ओर देखने का जो दृष्टिकोण है वही उसके गायन की निर्मलता में झलक रहा है।
लता जी की गायिका की कौन कौन सी विशेषताएं आप को प्रभावित करती हैं?लता के गाने की मुख्य विशेषता उनका 'गानपन' है। लता के गाने की एक और विशेषता उनके स्वरों की 'निर्मलता' है। लता के स्वरों में कोमलता और मुग्धता है। ऐसा अनुभव होता है कि लता का जीवन की ओर देखने का जो दृष्टिकोण है, वही उनके गायन की निर्मलता में झलकता है।
लता जी की गायकी की और एक विशेषता क्या है?हमारे अनुसार लता जी के गाने सुनकर मन दूसरे लोक का भ्रमण करने लगता है। उनके गाने का आनंद आप कहीं भी और किसी भी अवसर में उठा सकते हैं। उनके गानों को सुनकर आपको दुख नहीं सुख का आभास होता है।
क लता मंगेशकर को बेजोड़ गायिका क्यों माना गया है कोई दो कारण लिखिए?कोई तीन कारण लिखिए। (क) उनकी सुरीली आवाज़ जो ईश्वर की देन तो है ही, पर स्वयं लता जी ने उसे बहुत त्याग करके निखारा है। (ख) उनके गायन में जो 'गानपन' है वैसा किसी अन्य में नहीं मिलता। (ग) उच्चारण में शुद्धता और नाद का जैसा संगम है, जैसी भावों में निर्मलता है, उसने लता जी को सभी अन्य गायिकाओं से अलग बना दिया है।
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