1857 में दिल्ली का सम्राट कौन था?

Archit Gupta | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: Jan 27, 2022, 5:08 PM

बहादुर शाह जफर (Bahadur Shah Zafar) को मुगलों के आखिरी शासक, उनकी उर्दू शायरी और हिंदुस्तान से उनकी मोहब्बत के लिए याद किया जाता है।

1857 में दिल्ली का सम्राट कौन था?
Bahadur Shah Zafar: बादशाह बहादुर शाह जफर की तस्वीर

हाइलाइट्स

  • स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर याद किए जाते हैं बहादुर शाह जफर।
  • सन् 1857 क्रांति का नेतृत्व करने पर अंग्रेजों ने कैद कर भेज दिया था बर्मा।
  • 132 साल बाद सन् 1992 में मिला थी कब्र।

भारत में मुगलों ने सन् 1526 से लेकर 1857 तक शासन किया। बाबर द्वारा स्थापित इस साम्राज्य का खात्मा अंग्रेजों ने किया। मुगलों के 331 साल के शासन काल में भारत ने औरंगजेब, अकबर जैसे कई ताकतवर बादशाह देखें, जिनके द्वारा किए गए कार्यों से इतिहास के पन्‍ने भरे पड़े हैं। वहीं, इस सल्‍तनत के अंतिम शासक बहादुर शाह जफर को इतिहास में कम जगह मिली है। बहादुर शाह जफर एक सूफी संत, उर्दू भाषा कवि और बिना अधिकारों के एक बादशाह थे। साथ ही वे ईस्ट इंडिया कंपनी के एक मात्र पेंशनभोगी भी थे। इतिहास में इन्‍हें कई तरह से याद किया जाता है, ये भारतीय इतिहास में एक प्रतिष्ठित और दिलचस्प व्यक्ति हैं। हालांकि उनके शासन की तुलना अकबर या औरंगजेब जैसे इनके प्रसिद्ध पूर्वजों से नहीं की जा सकती थी।

बिना शक्ति के बादशाह थे बहादुर शाह जफर

बहादुर शाह जफर के पैदा होने के पहले से ही ईस्ट इंडिया कंपनी इस क्षेत्र वास्तविक शासक था। हालांकि उन्‍होंने तब तक खुद को शासक के रूप में घोषित नहीं किया था, वे मुगलों के नाम पर शासन करते, लोगों से कर वसूलते थे। यहां तक कि जब मराठों ने दिल्ली पर विजय प्राप्त की थी, तो उन्होंने कभी भी इस पर शासन नहीं किया, बल्कि एक मुगल बादशाह को अपने शासक के रूप में बहाल कर दिया, जबकि उस समय भी वास्तविक शक्ति मराठों के पास थी। इसलिए जब अंग्रेजों ने मराठों से दिल्ली पर अधिकार किया, तो उन्होंने मुगल सम्राट को गद्दी पर बैठाया रखा। अंग्रेजों से मिले इस सम्मान के बावजूद भी मुगलों के पास कोई शक्ति नहीं थी।

छोटे-छोटे मामलों में भी अंग्रेजी की सहमति लेना जरूरी होता था। यह ऐसी व्यवस्था में बहादुर शाह जफर का जन्म 24 अक्टूबर 1775 को मुगल सम्राट अकबर द्वितीय के यहां हुआ। बहादुर शाह का असली नाम अबू जफर सिराज उद दीन मुहम्मद था। एक राजकुमार के रूप में पले-बढ़े जफर को ताज के मामलों में बहुत कम दिलचस्पी थी और कविता में अधिक दिलचस्पी थी। उत्तराधिकारी के रूप में वह अपने पिता की पहली पसंद भी नहीं थे। उनके पिता अपनी पत्नी के प्रभाव में मिर्जा जहांगीर को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे, हालांकि, ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा मिर्जा जहांगीर को निर्वासित करने के बाद, जफर को अपने पिता के सिंहासन पर बैठना पड़ा।

पिता की मृत्यु के बाद जफर बनें बादशाह

अपने पिता की मृत्यु के बाद जफर को सितंबर 1837 में लाल किले में ताज पहनाकर बहादुर शाह द्वितीय की उपाधि दी गई। उनके शासनकाल में कोई खास कार्य नहीं किया गया, ज्यादातर वह अपने औपचारिक दरबार, मिर्जा गालिब और उस्ताद जौक जैसे कुछ प्रतिष्ठित उर्दू कवियों के साथ कविता सभाओं में भाग लेते थे और कविता लिखते थे। इस दौरान उन्‍होंने लाल किले में एक छोटा जफर महल और महरौली में जफर महल में कुछ संरचनाओं का निर्माण कराया। महरौली में जफर महल मुगलों द्वारा निर्मित अंतिम महल है। जिसे बहादुर शाह जफर मानसून के मौसम में देखने आते थे। लेकिन कुल मिलाकर बहादुर शाह अपने अधिकांश पूर्ववर्तियों की तरह कभी भी अधिकार का प्रयोग नहीं कर सके।

1857 विद्रोह और बहादुर शाह जफर का नेतृत्‍व

बहादुर शाह जफर को 1857 के विद्रोह और उसके बाद की घटनाओं में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है। जब भारतीय सैनिकों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह किया, तो अंग्रेज सिपाही दिल्‍ली की तरफ भागे। विद्रोही भी उनके पीछे दिल्‍ली पहुंच गए। दिल्ली पहुंचने के बाद विद्रोहियों ने जफर से इसका नेतृत्व करने का अनुरोध किया और उन्हें अपना राजा घोषित कर दिया। अनिच्छुक वृद्ध राजा ने अपने लोगों के साथ कुछ विचार-विमर्श के बाद उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया। लेकिन जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ा, कंपनी ने दिल्ली पर नियंत्रण वापस पा लिया।

भारतीय सैनिक हार गए और बहादुर शाह जफर हुमायूं के मकबरे में भाग गए। बाद में उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया और अंग्रेजों द्वारा उन पर मुकदमा चलाया गया। उनके दो बेटे और एक पोते को मार डाला गया। मुकदमें में उन्हें दोषी पाया गया और बाद में बर्मा निर्वासित कर दिया गया। 7 अक्टूबर 1858 को उन्हें अपनी पत्नियों और दो बेटों के साथ बैलगाड़ियों पर बर्मा भेज दिया गया। सदियों तक इस देश पर राज करने वाले मुगल सल्‍तनत के अंतिम बादशाह को बैलगाड़ी पर बैठकर राजधानी छोड़ना पड़ेगा इसका कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।

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132 साल तक छुपा रहा जफर का कब्र

अंग्रेजों की कैद में ही भारत के आखिरी मुगल शासक बहादुर शाह जफर का लकवा पड़ने से 7 नवंबर की सुबह 5 बजे मौत हो गई। रंगून में ही शाम को इस मुगल शासक को दफना दिया गया था। उन्‍हें दफनाने के बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने ये सुनिश्चित किया कि उनकी कब्र की पहचान ना की जा सके। उनकी मौत के 132 साल बाद साल 1991 में एक स्मारक कक्ष की आधारशिला रखने के लिए की गई खुदाई के दौरान उस कब्र का पता चला। कब्र में बादशाह जफर की निशानी और अवशेष मिले जिसकी जांच के बाद यह पुष्टि हुई की वह जफर की ही हैं। जिसके दो साल बाद 1994 में उसी जगह उनकी दरगाह बनी। इस दरगाह में महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग प्रार्थना करने की जगह बनी है।

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Web Title : Hindi News from Navbharat Times, TIL Network

1857 की क्रांति के समय दिल्ली के शासक कौन थे?

10 मई को वे दिल्ली के लिए आगे बढ़े। 11 मई को मेरठ के क्रांतिकारी सैनिकों ने दिल्ली पहुंचकर, 12 मई को दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इन सैनिकों ने मुगल सम्राट बहादुरशाह द्वितीय को दिल्ली का सम्राट घोषित कर दिया।

1857 की क्रांति के समय मुगल सम्राट कौन था?

बहादुर शाह ज़फर (1775-1862) भारत में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह, और उर्दू के जानेे-माने शायर थे। उन्होंने 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया।

1857 क्रांति के नायक कौन था?

1857 के सिपाही विद्रोह के नायक मंगल पांडे की आज जयंती है. एक बार फिर पढ़िए, उनके बारे में बीबीसी पर प्रकाशित हुआ एक विशेष लेख. मंगल पांडे को 8 अप्रैल, 1857 को फांसी दी गई थी.

अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब कब्जा किया था?

वैसे तो हमारे देश ने न जाने कितनी जंग और कत्लेआम देखे हैं लेकिन साल 1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी के दिल्ली पर दोबारा कब्जा आज ही के दिन हुआ था.