मैं 1 महीने की गर्भवती हूं और मुझे यह बच्चा नहीं चाहिए कि कौन सी गोलियां?

क्या केवल खाने की गोलियां से सुरक्षित तथा गर्भपात संभव है?

हाँ| विशेषकर वैसी महिलाओं का जिनका गर्भ डेढ़ महीने का या अंतिम मासिक धर्म के पहले दिन से 49वें दिन तक 7यानि  सप्ताह तक तक का हो|

गर्भपात में ये दवाएं कैसे काम करती है

दवा सम्बन्धित गर्भपात में दो प्रकार की दवाओं का इस्तेमाल होता है| इस प्रकिया में जाँच के बाद पहली दवा (मिफी) खाने के लिए दी जाती है| पहली दवा के दो दिन एक बाद दूसरी दवा (मिसो) दी जाती है| दूसरी गोली खाई जा सकती है अथवा योनि में रखी जा सकती है|

ये दोनों ही दवा बाजार में उपलब्ध है| परन्तु किसी प्रसूति विशेषज्ञ या अनुभवी डॉक्टर के निर्देश पर ही इन्हें खरीदा जा सकता है|

पहली दवा गर्भ के अंदर की भ्रूण को हटाने का काम करती है जबकि दूसरी दवा गर्भाशय का मुहं खोलता है तथा भ्रूण निकलने में सहयता करता है|

दवा के द्वारा गर्भपात ज्यादा प्रचलित विधि है

  • पहला, यह सुरक्षित एवं प्रभावी होता है| चीरफाड़ का कोई डर नही होता है|
  • दूसरा, इसे गुप्त रखा जा सकता है| इसके लिए अस्पताल में भर्ती होने की जरुरत नहीं पड़ती| भविष्य में गर्भधारण करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता| मगर इस प्रक्रिया के लिए कम से कम तीन बार मरीज को चिकित्सक के पास जाना पड़ता है|

परन्तु दवा द्वारा गर्भपात की कुछ सीमाएं है

  1. तीन बार चिकित्सक के पास जाना जरुरी है|
  2. गर्भपात की प्रकिया में दस से पंद्रह दिन का समय लगता है|
  3. कभी –कभी असफलता भी होती है|
  4. दवा लेने के बावजूद यदि गर्भधारण रहा तो जन्मजात विकृति आती है| इसलिए उस स्थिति में शल्य चिकित्सा द्वारा गर्भपात करवाना बहुत जरुरी है|

दवा से गर्भपात की प्रक्रिया

यदि कोई महिला दवा से गर्भपात कराना चाहती हो तो उसे तथा उसके साथी को इसकी पूरी प्रक्रिया पर परामर्श दिया जान चाहिए| उन्हें निम्नलिखित बिदुओं पर जानकारी अवश्य दें:-

  1. दवा से गर्भपात करवाने के लिए उन्हें डॉक्टर के क्लिनिक पर तीन बार बताये गए निश्चित समय पर दवा खाने अवश्य आना है|
  2. गर्भ 49 दिन तक का हो,
  3. गर्भपात की प्रकिया तेज पेट दर्द एवं थक्के के साथ गिरने वाले खून के साथ होती है एवं यह खून जारी 8 से 15 दिनों तक होती है|
  4. घर के पुरुष एवं अन्य सदस्य सहायता के लिए जरुर हो|
  5. दो से पांच प्रतिशत में, शल्य चिकित्सा द्वारा गर्भपात को पूर्ण करवाने के स्थिति आ सकती है जिसके लिए उन्हें पास के सूर्या क्लिनिक या अस्पताल की सही जानकारी एवं पहुँचने का साधन जरुर होना चाहिए|

नोट: उपर्युक्त बातों पर जानकारी देने के बाद यह सुनिश्चित कर लें कि महिला एवं उनके पति ने इन बातों को समझा या नहीं क्योकिं एक बार दवा द्वारा प्रकिया शुरू करने के बाद गर्भपात का पूरा होना या करवाना अत्यंत आवश्यक है| यदि बच्चा बढता रहा तो उसमें जन्मजात विकृति की पूरी संभावना रहती है| यदि महिला उपर्युक्त बातों को समझ न पा रही हो या इमरजेन्सी में शल्य विधि के लिए तैयार न हो तो दवा न दें |

जब दवा द्वारा गर्भपात नहीं करवाना चाहिए

  • महिला में खून की कमी हो 150 प्रतिशत से कम खून में दवा न दें 8 ग्राम से कम
  • महिला को उच्च रक्त चाप की बीमारी हो|
  • कॉपर टी लगे रहने के साथ गर्भ ठहर गया हो
  • पूर्व में सिजेरियन ऑपरेशन हुआ हो
  • महिला की उम्र 35 साल से ज्यादा हो तथा उसे बीडी सिगरेट की आदत हो|

स्रोत:- जननी/ जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची|

शाम अपने शबाब पर है और मुंबई में बांद्रा के अपने पसंदीदा पब में जाने की तैयारी कर रही शिल्पी मदान क्रेडिट कार्ड, आइफोन और 'बेलगाम मजे’ के लिए आइ-पिल अपने बड़े से ब्राउन बैग में डाल रही हैं. 23 वर्षीया इंटीरियर डिजाइनर शिल्पी और जिंदगी को बिंदास अंदाज से जीने वाली उनके जैसी लड़कियों को निश्चिंत रखने वाली आइ-पिल मानो ईश्वर का वरदान है.

जाम के कुछेक घूंट गले से नीचे उतारने के बाद उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता कि वे जिस पुरुष की बांहों में झूल रही हैं, उसकी जेब में कंडोम है या नहीं. अनचाही प्रेग्नेंसी से बचने का शर्तिया उपाय उनके अपने ही बैग में पड़ा हुआ है. मदान कहती हैं, ''ज्यादातर स्थितियों में सेक्स पहले से ही सोचकर या तय करके नहीं होता, यह तो बस हो जाता है. लेकिन गोली पास होने से सब कुछ एकदम आसान लगने लगता है. अगर उस समय गोली न भी हो तो आपके पास इसे लेने के लिए 72 घंटे होते हैं. इसे किसी भी केमिस्ट से आसानी से खरीदा जा सकता है.”

मैं 1 महीने की गर्भवती हूं और मुझे यह बच्चा नहीं चाहिए कि कौन सी गोलियां?

भारत के कई शहरों में युवतियां 'जिंदगी की रंगीनियों में वापस’ रमने के इस मौके का भरपूर फायदा उठा रही हैं—जैसा आइ-पिल का ऐड कैंपेन इमरजेंसी गर्भनिरोधक के फायदे गिनाता है.  अनचाही प्रेग्नेंसी से निजात दिलाने वाला यह आसान और सस्ता उपाय है. अकसर युवतियों को इसे लेने से कोई गुरेज नहीं है. मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल के डिपार्टमेंट ऑफ गाइनोकोलॉजी की प्रमुख डॉ. किरण कोएल्हो कहती हैं, ''2006 के दौरान इसका विज्ञापन शुरू होते ही इसके इस्तेमाल में तेजी आ गई थी. हर महीने मुझे करीब दस नए यूजर्स दिखते हैं, जिनमें किशोर उम्र की लड़कियां भी शामिल हैं.”

गोलियों की बढ़ती लोकप्रियता की ओर इससे जुड़े आंकड़े बखूबी इशारा कर देते हैं. 2010-11 में राज्यों में कराए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में पता चला कि जहां कंडोम का इस्तेमाल करने वाले पुरुषों की संख्या करीब 1.6 करोड़ है वहीं इमरजेंसी कॉन्ट्रसेप्टिव लेने वाली युवतियों की संख्या 8.3 करोड़ दर्ज हुई है. कुछ इसे प्रभावी विज्ञापन का नतीजा मानते हैं, जिसमें कंडोम का फटना या अनियमित बर्थ कंट्रोल खुराक जैसी समस्याओं में इस गोली को रामबाण माना गया है. कुछ इसे महिला सशक्तीकरण के रूप में देखते हैं, जिसमें संभावित प्रेग्नेंसी से बचाव का कामयाब नुस्खा औरतों की मुट्ठी में बंद है.

जोखिम भी साथ है
इमरजेंसी कॉन्ट्रसेप्टिव बेशक अनचाही प्रेग्नेंसी को रोकने का अचूक उपाय मालूम होते हैं लेकिन कुछ गड़बडिय़ां भी हैं. डॉक्टर इसके दुष्भावों के बारे में आगाह करते हैं, जिसमें मितली, उल्टी होने से लेकर पेट के निचले हिस्से में दर्द और वजन बढऩा शामिल है. अगर इसका बार-बार इस्तेमाल किया जाए तो हार्मोन पैटर्न के बदलने का खतरा है, जो बाद में प्रेग्नेंट होने की राह में मुश्किलें पैदा कर सकता है. डॉ. कोएल्हो का कहना है, ''इसका काफी दुरुपयोग हो रहा है, कुछ औरतें तो एक महीने में 10 गोलियां तक खा लेती हैं.” उन्होंने गोलियों के दुष्भाव झेल रहीं 16 साल जैसी कम उम्र की लड़कियों तक का भी इलाज किया है. वे बताती हैं, ''अगर इन गोलियों को खाने में सावधानी नहीं बरती गई तो पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (औरतों में डिंबग्रंथि संबंधी विकार) के उभरने का डर रहता है.”

इन गोलियों का दूसरा नुकसान यह है कि इनसे यौन संक्रमित रोगों (एसटीडी) को फैलने से नहीं रोका जा सकता. मुंबई के भाभा हॉस्पिटल के डिपार्टमेंट ऑफ गाइनोकोलॉजी ऐंड ऑब्स्टेट्रिक्स की मानद प्रमुख शुभदा खांडेपरकर बताती हैं, ''पिछले कुछ साल से हर्पीज, एचआइवी और हेपेटाइटिस के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है क्योंकि लोगों में कंडोम की बजाए गोलियों का इस्तेमाल बढ़ गया है. इसका व्यापक स्तर पर इस्तेमाल ह्युमन पैपिलोमावायरस को जन्म देता है—ऐसा वायरस जो यौन संबंधों से फैलता है और गांठ और सर्वाइकल कैंसर पैदा कर सकता है.” खांडेकर आगाह करती हैं कि इस गोली को महीने में दो बार से ज्यादा नहीं लेना चाहिए.

विशेषज्ञों का मानना है कि सामाजिक ढांचे में आए बदलावों की वजह से भी इन गोलियों के इस्तेमाल में तेजी नजर आ रही है. इमरजेंसी गोलियों के सामाजिक पहलुओं का स्वतंत्र अध्ययन कर रहीं मुंबई की सुधा देसाई मानती हैं, ''पश्चिमी संस्कृति के असर से युवाओं के बीच यह नजरिया पनपता जा रहा है कि कैजुअल सेक्स एक सामान्य बात है और ऐसे में ये गोलियां युवतियों को निश्चिंत रखने वाली सबसे मजबूत चीज हैं.” कोएल्हो देसाई से सहमत हैं, ''पहले हम लड़की को परदे के पीछे ले जाकर पूछते थे कि क्या वह सेक्सुअली एक्टिव है. आज मांएं खुद ही कॉन्ट्रसेप्टिव के बारे में पूछती हैं, जो इस ओर संकेत है कि वे जानती हैं, उनकी कम उम्र बेटियों के यौन संबंध हैं.”

इन गोलियों के इस्तेमाल में बढ़ोतरी की भूमिका तभी बन गई थी, जब 2005 में प्रोजेस्टोजन वाली इन इमरजेंसी गोलियों को बिना किसी प्रेस्क्रिप्शन के दवा की दुकान से खरीदने को मंजूरी मिल गई थी और यह आसानी से उपलब्ध होने लगी थी. इसके बाद फार्मा कंपनियों ने बेतहाशा प्रचार कर गोलियों के प्रति लोगों में दिलचस्पी जगा दी थी. गुडग़ांव के फोर्टिस में गाइनोकोलॉजिस्ट सुनीता मित्तल कहती हैं, ''पहले दो गोलियां लेनी पड़ती थीं. लेकिन एक गोली वाली खुराक महिलाओं को ज्यादा पसंद आई, जिसे वे अपने आसपास के मेडिकल स्टोर से खरीद सकती थीं.”

असर की गारंटी नहीं
इमरजेंसी गर्भनिरोधक गोलियों में लेवोनोर्जेस्ट्रेल होता है. यह एक प्रोजेस्टोजन है, जो अंडाणुओं को गर्भाशय की दीवार भेदने से रोकता है और गर्भ नहीं ठहरने देता; ओवरी से अंडाणुओं को निकलने नहीं देता; अगर अंडाणु निकल चुके हैं तो स्पर्म को उससे मिलने नहीं देता; अगर यह भी हो चुका हो तो गर्भाशय की दीवार से उसे जुडऩे नहीं देता. कोएल्हो का कहना है, ''यह गर्भाशय की दीवार पर ढेरों रुकावटें पैदा करता है और प्रेग्नेंसी में मुश्किलें खड़ी करता है. हालांकि यह विधि पूरी तरह सुरक्षित नहीं है. अगर बिना किसी सुरह्ना के सेक्स करने के 72 घंटे की अवधि में गोली ले भी ली जाती है तो भी इसके असफल रहने की दर 20 से 25 फीसदी के बीच रहती है.”

दुनिया भर में गोलियों के इस्तेमाल के संबंध में अलग-अलग नियम हैं. अगर इंग्लैंड में लेवोनेल वन स्टेप—एक खुराक वाली प्रोजेस्टोजन दवा 16 साल से ज्यादा उम्र के किसी भी इंसान को बेची जा सकती है तो अमेरिका में बिना प्रेस्क्रिप्शन के यह दवा खरीदने वालों के लिए उम्र सीमा 18 साल है. कुछ देशों में नियम थोड़े सख्त हैं. चीन में यह दवा आसानी से बिक तो रही है लेकिन ज्यादातर फार्मेसीज में ग्राहकों से जुड़ी जानकारी का रिकॉर्ड रखा जाता है. जर्मनी में प्रेस्क्रिप्शन दिखाकर ही गोलियां खरीदी जा सकती हैं. नॉर्वे में दवा की दुकानों में दो खुराक वाली गोलियां सभी उम्र के लोगों के लिए उपलब्ध हैं.

बढ़ावा दो या निंदा करो?
विशेषज्ञों का कहना है कि मुश्किलों के बावजूद इमरजेंसी कन्ट्रासेप्टिव पिल्स का प्रयोग थमने वाला नहीं. इसकी तरफदारी या विरोध करने वालों के बीच बहस जारी रहेगी. केरल के एक चैरिटेबल फाउंडेशन कृपा प्रॉलिफायर्स के वकील के तौर पर गोलियों के दुष्प्रभावों पर सुप्रीम कोर्ट का ध्यान खींचने के लिए वरिष्ठ एडवोकेट एम.पी. राजू सामने आए. उन लोगों ने आइ-पिल के खिलाफ एक जनहित याचिका (पीआइएल) दायर की कि यह उत्पाद 1971 के मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ऐक्ट का उल्लंघन करता है.

हालांकि कोर्ट ने याचिका पर कोई सुनवाई नहीं की और ये गोलियां अब भी देशभर में दवा की दुकानों पर आसानी से उपलब्ध हैं. राजू कहते हैं, ''कन्ट्रासेप्टिव (जो अंडे बनना रोकती है) से उलट इमरजेंसी कन्ट्रासेप्टिव गर्भ गिरा देती हैं (वे फर्टिलाइजेशन से बन रही स्थिति को खत्म करने के लिए काम करती हैं) और उनके प्रयोग, खरीद और इन दोनों की लेबलिंग के बीच अंतर रखना जरूरी है.”

दिल्ली में सेंटर फॉर विमेंस डेवलपमेंट स्टडीज की डिप्टी डायरेक्टर और प्रोफेसर रेणु अदलखा आसानी से उपलब्ध इन गोलियों का विरोध न होने के पीछे सामाजिक परिदृश्य और नजरिए में आ रहे बदलाव को जिम्मेदार ठहराती हैं. उनका कहना है, ''इमरजेंसी कन्ट्रासेप्टिव के इस्तेमाल और प्रभाव के बारे में कहीं खुलकर चर्चा नहीं होती.” लेकिन डॉक्टर ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है कि ये गोलियां बच्चों के जन्म पर रोक लगाती हैं, खास कर बिना सोचे-समझे या जबरदस्ती किए गए सेक्स में. आबादी नियंत्रण की पुरजोर वकालत करने वाली खांडेपरकर मानती हैं कि ये गोलियां बेशक दवा की दुकानों पर बिकें पर इनके दुष्प्रभावों से भी जरूर आगाह किया जाना चाहिए.

जनसाधारण में इमरजेंसी कन्ट्रासेप्टिव को लेकर कोई विरोध नहीं, न ही कोई बहस उठती नजर आ रही है. दवा की दुकानों पर आसानी से उपलब्ध होना, नित नए ब्रांड का बाजार में दस्तक देना इस ओर इशारा कर रहा है कि भारत के शहरों में युवाओं के बीच ये गोलियां तेजी से अपनी जगह बनाती जा रही हैं.

मैं 1 महीने की गर्भवती हूं और मुझे यह बच्चा नहीं चाहिए कौन सी गोलियां?

दरअसल गर्भनिरोधक गोलियों (Contraceptive Pills) में लेवोनोर्गेस्‍ट्रेल नामक एक हॉर्मोन का इस्तेमाल किया जाता है. इसे मॉर्निंग आफ्टर पिल भी कहा जाता है. अनचाहे प्रेग्नेंसी से बचने के लिए महिलाएं इस गोली का सेवन कर सकती हैं. इससे वह अनचाहे गर्भ के ठहरने से खुद को बचा सकती हैं.

बच्चा कितने दिन का गिरा सकते हैं?

कोई भी महिला, अगर सफाई करवाना चाहे, तो 5 महीने या 20 हफ्ते तक के गर्भ की सफाई करवा सकती है। भारत सरकार ने 1971 से महिलायों को गर्भपात (यानी सफाई) करने की अनुमति दी है। कानून “M.T.P. एक्ट 1971” के अनुसार कोई भी महिला 20 हफ्ते (5 महीने) तक के गर्भ की सफाई करवा सकती है।

15 दिन का बच्चा कितना होता है?

आपके बच्‍चे का आकार अब एक संतरे के बराबर हो गया होगा। उसका वजन लगभग 70 ग्राम के आसपास है। यह नन्‍हा मेहमान अब आपके पेट में चैन से नहीं बैठेगा। वह कुदरती तौर पर हर पल उन चीजों को बार-बार दोहराएगा जो उसे आपके पेट से बाहर आकर करनी हैं ताकि उसका जीवन बना रहे।

प्रेगनेंसी रोकने की टेबलेट का नाम क्या है?

अनचाहे गर्भधारण को रोकने के लिए हाल ही में एक ऐसी दवा को लाइसेंस मिला है जिसका सेवन महिलाएं यौन संबंध बनाने के पाँच दिनों बाद भी कर सकती हैं. स्कॉटलैंड के शोधकर्ताओं ने पाया है कि नई गोली यूलीप्रिस्टल अभी तक सबसे ज़्यादा इस्तेमाल हो रही गर्भनिरोधक गोली लेवनरजेस्त्रल से भी ज़्यादा असरदायक है.