विष्णु भगवान की पूजा कैसे किया जाता है? - vishnu bhagavaan kee pooja kaise kiya jaata hai?

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गुरुवार के दिन भगवान विष्णु को पसन्न करने के लिए व्रत किया जाता है, जिससे आपकी हर मनोकामना पूर्ण होगी.

विष्णु भगवान की पूजा कैसे किया जाता है? - vishnu bhagavaan kee pooja kaise kiya jaata hai?

Lord Vishnu Puja: हिंदू धर्म में सप्ताह का प्रत्येक दिन किसी भगवान का समर्पित है और गुरुवार के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं. भगवान विष्णु की पूजा पूरे विधि-विधान और नियम से करनी चाहिए. इस दिन व्रत के कुछ नियम होते हैं जिनके बारे में आपको जानकारी होनी जरूरी है. यदि आप भी गुरुवार का व्रत रखते हैं या​ रखना चाहते हैं तो यहां हम आपको इस व्रत के नियम और पूजन विधि के बारे में जानकारी दे रहे हैं.

हिंदू शास्त्रों और पुराणों के अनुसार गुरुवार भगवान विष्णु का दिन होता है और इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है. मां लक्ष्मी के प्रसन्न होने से भक्तों के घर—परिवार में सुख शांति और धन धान्य की कमी नहीं रहती. भक्तों को यश, सम्मान और वैभव की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं भगवान विष्णु को प्रसन्न के लिए पूजा विधि और उपाय.

गुरुवार के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के सरल उपाय

  • गुरुवार के दिन यदि आप व्रत करते हैं तो सुबह जल्दी उठकर स्नान ध्यान करके साफ कपड़ें पहनें.
  • पूजा स्थल पर बैठें और चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर उनके सामने घी का दीपक जलाएं.
  • फिर बीज मंत्र का 108 बार जाप करें. ‘ॐ बृं बृहस्पतये नम:’
  • गुरुवार की पूजा में पीले रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए. पीला रंग भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है.
  • इन दिन भगवान विष्णु को पीले रंग का ही टीका लगाना चाहिए और भगवान खुश होते हैं.
  • गुरुवार के दिन केले के पेड़ के सामने घी का दीपक जलाकर पूजा की जाती है. संभव हो तो केले के पेड़ के पास बैठकर ही बृहस्पति देव की कथा पढ़नी चाहिए.
  • गुरुवार के दिन पीले रंग का भोजन करना चाहिए.
  • भोग के लिए गुड़ और चने की दाल का प्रसान बनाएं.

गुरुवार के दिन न करें ये काम

  • यदि आप गुरुवार का व्रत करते हैं और भगवान विष्णु को खुश करना चाहते हैं तो इस दिन केले का सेवन न करें. क्योंकि इस दिन केले की पूजा होती है.
  • गुरुवार के दिन पीली वस्तुओं को दान करना चाहिए.
  • गुरुवार के व्रत के नमक का ग्रहण नहीं करना चाहिए.

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गुरुवार के दिन विष्णु जी और केले के पेड़ की उपासना करनी चाहिए। इस व्रत से आपकी मनोकामना पूरी होती है और ऐसा माना जाता है कि अगर इस व्रत को एक साल तक रखा जाए, तो घर में सुख-शांति बनी रहती है और पैसे की भी कमी  नहीं होती है। बृहस्पतिवार के व्रत की खास विधियां होती हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर व्रत रखना चाहिए। 16 गुरुवार के व्रत रखना काफी लाभकारी साबित हो सकता है। शुक्ल पक्ष विष्णु जी का प्रतीक माना जाता है इसलिए व्रत की शुरुआत इसी महीने में करनी चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए और पीले रंग के कपड़े पहनने चाहिए, आप चाहें तो ये व्रत केले के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा कर सकते हैं, इसमें केला और चावल चढ़ाने चाहिए या आप अपने घर में भी इस पूजा को कर सकते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु जी और बृहस्पति देव जी की आरती करनी चाहिए। 

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विष्णु-पूजन-विधि: 

प्रात:काल स्नान-सन्ध्या आदि नित्यकर्मसे निवृत्तहोकर विष्णु-पूजनार्थ पवित्र आसन पर बैठ कर आचमन, प्राणायाम कर ॐ अपवित्र: पवित्रो वा०’ इससे अपने शरीरका और पूजासामग्रीका पवित्र जलसे सम्प्रोक्षण करे ।

पश्चात अपने दाहिने हाथमें अक्षत, पुष्प तथा जल लेकर इस प्रकार सङ्कल्प करे---

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमद्‌भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावतैंकदेशान्तर्गते अमुकक्षेत्रे अमुकनगरे अमुकग्रामे विक्रमशके बौद्धावतारे अमुकनामसंवत्सरे अमुकायने अमुकऋतौ महामाङ्गल्यप्रदमासोत्तमे मासे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकनक्षत्रे अमुकयोगे अमुककरणे अमुकराशिस्थिते चन्द्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकराशिस्थिते देवगुरी शेषेषु ग्रहेषु यथायथाराशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणगर्णावशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ अमुकगोत्र: अमुकशर्माऽहम् अमुकवर्माऽहम्, अमुकगुप्तोऽहम् ममात्मन : श्रुति-स्मृति-पुराणोक्तफलप्राप्त्यथ धर्मार्थकाममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं यथोपचारै: श्रीविष्णुपूजनमहं करिष्ये ।’ 

ध्यान---

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगनसद्दशं मेधवर्ण शुभाङ्गम् ।

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं 

वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥

आवाहन---

ॐ सहस्रशीर्षा पुरुष: सहस्राक्ष: सहस्रपात् ।

स भूमिर्ठ० सर्व्वतस्पृत्त्वात्त्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम् ॥

आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव ।

यावत्पूजां करिष्यामि तावत्त्वं सन्निधौ भव ।

श्रीभगवते विष्णवे नम: आवाहयामि स्थार्पयामि ।

असान---

ॐ पुरुष ऽएवेदर्ठ० सर्व्वं यद् भूतं वच्च भाव्यम् ।

उतामृतत्त्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥

रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्वसौख्यकरं शुभय ।

आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: आसनं समर्पयामि ।

पाद्य---

ॐ एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुष: ।

पादोऽस्य व्विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥

उष्णोदकं निर्मलं च सर्वसौगन्ध्यसंयुतम् ।

पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगृह्यताम् ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: पादयो: पाद्यं जलं समर्पयामि ।

अर्घ---

रजत अथवा ताम्रके अध्यपात्रमें गङ्गाजल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, तुलसीदल लेकर भगवान् विष्णुको अर्ध्य प्रदान करें---

ॐ त्रिपादूर्ध्व ऽउदैत्पुरुष: पादोऽस्येहा भवत्पुन: ।

ततो व्विष्वङ व्यक्क्रा मत्साशनानशने ऽअभि ॥

अध्य गृहाण देवेश गन्धपुष्पाक्षतै: सह ।

करुणाकर  मे देव गृहाणार्ध्यं नमोऽस्तु ते ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: हस्तयोरर्घ समर्पयामि ।

आचमन---

ॐ ततो व्विराडजायत व्विराजो ऽअधिपूरुष: ।

स जातो ऽअत्यरिच्यत पश्चाद्‌भूमिमथो पुर: ॥

सर्वतीर्थसमायुक्तं सुगन्धिं निर्मलं जलम् ।

आचम्यतां मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वर ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

स्नान

ॐ तस्माद्यज्ञात् सर्व्वहुत: सम्भृतं पृषदाज्यम् ।

पशूँस्ताँश्चक्क्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च वे ॥

गङ्गासरस्वतीरेवापयोष्णी नर्मदाजलै: ।

स्नांपितोऽसि मया देव तथा शान्तिं कुरुष्व मे ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: स्नानार्थं जलं समर्पयामि ।

पञ्चामृतस्नान

ॐ पञ्च नद्य: सरस्वतीमपियन्ति सस्रोतस: ।

सरस्वती तु पञ्चधा सोऽदेशे भवत्सरित् ॥

पञ्चामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं मधु \

शर्करा च समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ।

शुद्धोदकस्नान

ॐ शुद्धबाल: सर्व्वशुद्धवालो

मणिवालस्त ऽआश्विना: ।

श्येत: श्येताक्षोऽरुणस्ते रुद्राय पशुपतये कर्ण्णा वामा 

ऽअवलिप्ता रौद्‌द्रा नभोरूपा: पार्ज्जन्या: ॥

मलयाचलसम्भूतं चन्दनागुरुसम्भवम् ।

चन्दनं देवदेवेश स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

श्रीविष्णवे नम: शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

सुगन्धिद्रव्यस्नान

ॐ त्र्यम्बकं वजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम् ।

उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: सुगन्धिद्रव्यस्नानं समर्पयामि ।

पश्चात् ‘ॐ सहस्रशीर्षा पुरुष:०’ इस पुरुषसूक्त 

से तथा ‘ॐ इदं विष्णुर्व्विचक्रमे०’, ‘ॐ व्विष्णो: कर्म्माणि०’, 

‘ॐ तद्विष्णो: परमं पदम्०’, ‘ॐ तद्विप्रासो व्विपन्यव:० इन 

मन्त्रोंसे विष्णु भगवान्‌का अभिषेक करे ।

वस्त्र

ॐ तस्माद्यज्ञात्सर्व्वहुत ऽऋच: सामानि जज्ञिरे ।

छन्दा सि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ॥

सर्वभूषाधिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे ।

मयोपपादिते तुभ्यं गृह्येतां वाससी शुभे ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: वस्त्रं समर्पयामि ।

यज्ञोपवीत

ॐ तस्मादश्वा ऽअजायन्त वे के चोभयादत: ।

गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता ऽअजावय: ॥

नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामय

उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: यज्ञोपवीतं समर्पयामि । 

यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जजं समर्पयामि ।

चन्दन

ॐ तं वज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रत: ।

तेन देवा ऽअयजन्त साध्या ऽऋषयश्च वे ॥

श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरम् ।

विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: चन्दनं समर्पयामि ।

पुष्पमाला

ॐ वत्पुरुषं व्यदधु: कतिधाव्यकल्पयन् ।

मुखं किमस्यासीत् किं बाहू किमूरू पादा ऽउच्येते ॥

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो ।

मयाऽऽनीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: पुष्पमालां समर्पयामि ।

तुलसीदल

ॐ इदं व्विष्णुर्व्विचक्क्रमे त्रेधा निदधे पदम् ।

समूढमस्य पा सुरे स्वाहा ॥

तुलसीं हेमरूपां च रत्नरूपां च मञ्जरीम् ।

भवमोक्षप्रदां तुभ्यमर्पयामि हरिप्रियाम् ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: तुलसीदलानि समर्पयामि ।

अङ्गपूजन

ॐ दामोदराय नम: पादौ पूजयामि । ॐ माधवाय नम: जानुनी: पूजयामि । ॐ पद्मनाभाय नम: नाभिं पूजयामि । ॐ विश्वमूर्तये नम: उदरं पूजयामि । ॐ ज्ञानगम्याय नम: हृदयं पूजयामि । ॐ श्रीकण्ठाय नम: कण्ठं पूजयामि । ॐ सहस्नभानवे नम: बाहु पूजयामि । ॐ योगिने नम: नेत्रे पूजयामि । ॐ उरगाय नम: ललाटं पूजयामि । ॐ नाकसुरेश्वराय नम: नासिकां पूजयामि । ॐ श्रवणेशाय नम: श्रोत्रे पूजयामि । ॐ सर्वकर्मप्रदाय नम: शिखां पूजयामि । ॐ सहस्नशीर्ष्णे नम: शिर: पूजयामि । ॐ सर्वस्वरूपिणे नम: सर्वाङ्गं पूजयामि ।

ॐ ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्य: कृत: ।

ऊरू तदस्य वद्वैश्य: पद्‌भ्यार्ठ० शूद्रो ऽअजायत ॥

वनस्पतिरसोद्‌भूतो गन्धाढयो गन्ध उत्तम: ।

आघ्रेय: सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: धूपमाघ्रपयामि ।

दीप

ॐ चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षो: सूर्व्वो ऽअजायत ।

श्रोत्त्राद् व्वायुश्च प्प्राणश्च मुखादग्निरजायत ॥

साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया ।

दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: दीपं दर्शयामि । हस्तप्रक्षालनम् ।

नैवेद्य

ॐ नाब्भ्या ऽआसीदन्तरिक्षर्ठ० शीर्ष्णो द्यौ: समवर्त्तत ।

पद्‌भ्यां भूमिर्द्दिश: श्रोत्रात्तथा लोकाँ२ ऽअकल्पयन् ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: नैवेद्यं निवेदयामि । 

नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं सर्पयामि ।

इसके बाद नैवेद्यमें तुलसी छोड कर उसको अभ्युक्षण कर, गन्ध और पुष्पसे आच्छादित करे ।

पश्चात् धेनुमुद्रासे अमृतीकरण कर योनिमुद्राको दिखला कर घण्टा बजावे ।

पश्चात् ग्रासमुद्राको दिखलावे और ॐ प्राणाय स्वाहा । (कनिष्ठिका, अनामिका और अँगूठा मिलावे ) ।

ॐ अपानाय स्वाहा । (तर्जनी, मध्यमा, अनासिका और अँगूठा मिलावे) । 

ॐ व्यानाय स्वाहा । (मध्यमा, तर्जनी और अँगूठा मिलावे ) । ॐ समानाय स्वाहा । (समस्त अँगुलियाँ तथा अँगूठा मिलावे )

इस प्रकार उञ्चारण करे और बीच-बीचमें जल समर्पित करे । उत्तरापोशनार्थ पुन: नैवेद्य निवेदन करे । हस्तप्रक्षालनार्थं 

और मुखप्रक्षालनार्थ जल समर्पण करे । पुन: आचमनीय जल अर्पित करे ।

करोद्वर्त्तन चन्दन

ॐ अर्ठ० शुनाते ऽअर्ठ० शु: पृच्यतां परुषा परु: ।

गन्धस्ते सोममवतु मदाय रसो ऽअच्युत: ॥

करोद्वर्त्तनकं देव सुगन्धै: परिवासितै: ।

गृहीत्वा मे वरं देहि परत्र च परां गतिम् ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: करोद्वर्त्तनार्थे गन्धं समर्पयामि । हस्तप्रक्षालनार्थं जलं समर्पयामि ।

ऋतुफल

ॐ वा: फलिनीर्व्वा ऽअफला ऽअपुष्पा वाश्च पुष्पिणी: ।

बृहस्पतिप्प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वर्ठ० हस: ॥

नानाविधानि दिव्यानि मधुराणि फलानि वै ।

भक्त्यार्पितानि सर्वाणि गृहाण परमेश्वर ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: ऋतुफलानि समर्पयामि ।

ताम्बूल (पूगफल-एला-लवङ्ग सहित)

ॐ वत्पुरुषेण हविषा देवा वज्ञमतन्वत ।

व्वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्नीष्म ऽइध्म: शरद्धवि: ॥

पूगीफलादिसहितं कर्पूरेण च संयुतम् ।

ताम्बूलं कोमलं दिव्यं गृहाण परमेश्वर ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: मुखवासार्थं ताम्बूलं समर्पयामि ।

दक्षिणा

ॐ हिरण्यगर्भ: समवर्त्तताग्रे भूतस्प जात: पतिरेक ऽआसोत् । 

स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा व्विधेम ॥

हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसो: ।

अनन्तपुण्यफलदमत: शान्तिं प्रयच्छ मे ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: दक्षिणां समर्पयामि ।

आरती 

ॐ इदर्ठ० हवि: प्रजननं मे ऽअस्तु दशवीरर्ठ० सर्व्वगणर्ठ० स्वस्तये ।

आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि ॥

अग्नि: प्रजां बहुलां मे करोत्त्वन्नं पयो रेतो ऽअस्मासु धत्त ॥१॥

ॐ आ राञ्रि पार्थिवर्ठ० रज: पितुरप्प्रायि धामभि: ।

दिव: सदा सि बृहती व्वि तिष्ठ्ठस ऽआ त्त्वेषं व्वर्त्तते तम: ॥

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।

सदावसन्तं ह्रदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ॥

श्रीभगवते विष्णवे नम: आरार्तिक्यं समर्पयामि ।

प्रदक्षिणा

ॐ सप्तास्यासन्परिधयस्

भगवान विष्णु की प्रतिदिन पूजा कैसे करें?

भगवान विष्णु जी की पूजा विधि (puja vidhi of lord vishnu) गुरुवार के दिन सुर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहन लें. इसके बाद एक चौकी पर साफ कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखें. बता दें कि विष्णु जी को पीला रंग अधिक प्रिय था. इसलिए उनके आगे पीले फूल और पीले रंग के फलों का भोग लगाएं.

विष्णु भगवान की पूजा में क्या क्या चढ़ाना चाहिए?

विष्णु भगवान को पीला रंग बेहद प्रिय है, ऐसे में उन्हें पीले फूल चढ़ाना चाहिए. इसके साथ ही उन्हें पीले रंग के फलों का ही भोग लगाना चाहिए. भगवान विष्णु की पूजा करने के साथ उन्हें धूप-दीप दिखाना चाहिए. इसके बाद विष्णु जी की आरती करना बेहद जरूरी है.

भगवान विष्णु की आराधना कैसे करें?

भगवान विष्णु की पूजन विधि (Lord Vishnu Pujan Vidhi) पूजा के दौरान उन्हें पीले रंग के फूल, पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं. भगवान विष्णु को हल्दी का तिलक लगाएं और अपने माथे पर भी लगाएं. इसके बाद तुलसी की माला या फिर चंदन की माला से भगवान विष्णु की कम से कम एक माला जाप करें.

विष्णु भगवान की पूजा कैसे होती है बताइए?

भगवान विष्णु की पूजन विधि इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा में उनकी मूर्ति को स्नान कराने के बाद उन्हें पीले रंग के वस्त्र पहनाएं और पूजा में पीले रंग के फूल और प्रसाद में पीले रंग की मिठाई चढ़ाएं. भगवान विष्णु की पूजा में हल्दी के तिलक का प्रयोग करें और और उसे प्रसाद स्वरूप अपने माथे पर भी लगाएं.