Show रंगीन दुनिया मृत्युभोज क्यों नहीं खाना चाहिए? आप भी जानिए
मृत्युभोज का सामान्य अर्थ परीवार में से किसी की भी सदस्य की मृत्यु होने पर प्रतिभोज करना पडता है, इसे ही मृत्युभोज कहते है! वास्तुशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है, जो व्यक्ति के आसपास के वातावरण के अनुसार ही उसकी सफलता और असफलता निर्धारित करता है। ये नहीं देखा तो क्या देखा (देखें Video) अर्थात- हे दुर्योधन, जब खिलाने वाले और खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए लेकिन जब दोनों के दिल में दर्द और पीड़ा हो ऐसी स्थिती में कभी भी भोजन नहीं करना चाहिए। महाभारत की इस कथा को बुद्धिजीवियों ने मृत्युभोज यानि तेरहवीं से जोड़ा है। जिसके अनुसार जब किसी सगे-संबंधी की मृत्यु हो जाती है। उस समय तेरहवीं पर आने वालों और जिनके घर में मौत हुई है, दोनों के मन में विरह का दर्द होता है। ऐसे में भोजन करवाने वाला और करने वाला दोनों ही दुखी होते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं, शोक में करवाया गया भोजन व्यक्ति की ऊर्जा का नाश करता है। अत: मृत्युभोज या तेरहवीं पर भोजन नहीं खाना चाहिए। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है ‘आत्मा अजर, अमर है, आत्मा का नाश नहीं हो सकता, आत्मा केवल युगों-युगों तक शरीर बदलती है।’ किसी भी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने के बाद हिंदू संस्कृति में बहुत सारे संस्कार किए जाने का विधान है। जिनमें से किसी की मृत्यु के तेरहवें दिन भोजन करवाए जाने का विधान है। दशकों पहले तो केवल ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता था लेकिन आज के बदलते दौर में मृत्युभोज आयोजित किया जाता है। कजरी तीज पर किस अचूक उपाय से शादी का योग बनेगा (देखें Video)
BTC$ 16540.13 Sun, Nov 27, 2022 08.36 AM UTC ETH$ 1214.01 Sun, Nov 27, 2022 08.36 AM UTC USDT$ 1 Sun, Nov 27, 2022 08.36 AM UTC BNB$ 313.6 Sun, Nov 27, 2022 08.36 AM UTC usd-coin$ 1 Sun, Nov 27, 2022 08.36 AM UTC XRP$ 0.4 Sun, Nov 27, 2022 08.37 AM UTC terra-luna$ 2.51 Tue, Oct 18, 2022 03.06 PM UTC solana$ 14.29 Sun, Nov 27, 2022 08.37 AM UTC Trending TopicsEngland win by 5 wickets RR 6.85 Most Read Storiesक्या मृत्यु भोज खाना पाप है?शास्त्रों में मृत्यु भोज वर्जित है। महाभारत में एक वाक्या मिलता है जिसमें कृष्ण कहते हैं कि कहीं भोजन करने तब भोजन कराने वाले और भोजन करवाने वालों का मन प्रसन्न हो । दु:ख के समय किसी को कहीं भोजन करने नहीं जाना चाहिये । कहीं कहीं तोमृत्यु वाले घर को सूतक लग मान कर लोग भोज में नहीं जाते ।
तेरहवीं का खाना क्यों नहीं खाना चाहिए?श्रीकृष्ण कहते हैं, शोक में करवाया गया भोजन व्यक्ति की ऊर्जा का नाश करता है। अत: मृत्युभोज या तेरहवीं पर भोजन नहीं खाना चाहिए। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है 'आत्मा अजर, अमर है, आत्मा का नाश नहीं हो सकता, आत्मा केवल युगों-युगों तक शरीर बदलती है।
मृत्यु भोज क्यों बंद होना चाहिए?निर्धनों पर आर्थिक बोझ है मृत्युभोज, यह बंद हो
यह कुप्रथा शोक की ऐसी लहर है, जो निर्धन व्यक्ति पर आर्थिक बोझ बनकर उसे कर्ज की ओर ले जाती है। इसलिए यह सामाजिक कुप्रथा बंद होनी चाहिए क्योंकि यह एक 'रूढ़िवादी कुप्रथा' है। जिसका कहीं कोई उल्लेख अथवा प्रमाण मौजूद नहीं है।
मृत्यु के बाद तेरहवीं क्यों की जाती है?आत्मा को मृत्युलोक से यमलोक पहुंचने में एक साल का समय लगता है. माना जाता है कि परिजनों द्वारा 13 दिनों में जो पिंडदान किया जाता है, वो एक वर्ष तक मृत आत्मा को भोजन के रूप में प्राप्त होता है. तेरहवीं के दिन कम-से-कम 13 ब्राह्मणों को भोजन कराने से आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है.
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