शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए क्या-क्या सुविधाएं होनी चाहिए - shaareerik roop se aksham logon ke lie kya-kya suvidhaen honee chaahie

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शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए ट्रेन के छोर पर डिब्बे होना ठीक नहीं: उच्च न्यायालय

ट्रेनों में यात्रा करने वाले अक्षम लोगों को समान अवसर देने के लिए रेलवे द्वारा नियुक्त समिति की सिफारिशों को लागू नहीं करने को लेकर भी दिल्ली उच्च न्यायालय ने नाराज़गी प्रकट की.

शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए क्या-क्या सुविधाएं होनी चाहिए - shaareerik roop se aksham logon ke lie kya-kya suvidhaen honee chaahie

(फोटो साभार: irctc-co.in)

नई दिल्ली: ट्रेनों में अक्षम लोगों के लिए डिब्बों को दोनों छोर पर लगाने को लेकर रेल महकमे से नाराज़गी जताते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि इस तरह के क़दम के पीछे व्यावसायिक हितों के अलावा कोई उचित वजह नहीं हो सकती.

ट्रेनों में यात्रा करने वाले अक्षम लोगों को समान अवसर देने के लिए रेलवे द्वारा नियुक्त समिति की सिफारिशों को लागू नहीं करने को लेकर भी अदालत ने नाराज़गी प्रकट की.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की पीठ ने कहा कि पिछली बार रिपोर्ट को लागू करने के लिए मामले को स्थगित किया गया था लेकिन कुछ भी नहीं हुआ.

अदालत ने कहा, अक्षम लोगों के लिए ट्रेन के शुरू में और आख़िर में एक-एक डिब्बा लगाने के पीछे व्यावसायिक हितों के अलावा दूसरी कोई उचित वजह नहीं हो सकती.

उन्होंने कहा, दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोई समयसीमा तय नहीं की गई और रेलवे के वकील यह बताने में असमर्थ हैं कि सिफारिशों को कब लागू किया जाएगा. समिति ने अक्षम लोगों को रेलवे से यात्रा करने के लिए समान अवसर देने के लिहाज़ से महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं. जवाब अस्वीकार्य है.

पीठ की ये टिप्पणी उसकी ही जनहित याचिका पर आई हैं जिसमें एक दृष्टिबाधित व्यक्ति के मुद्दे को आधार बनाया गया जो ट्रेन की आरक्षित बोगी अंदर से बंद होने की वजह से इस पर नहीं चढ़ सका और एम. फिल की परीक्षा नहीं दे पाया.

अदालत ने भारतीय रेलवे के पूर्व महाप्रबंधक सरबजीत अर्जन सिंह को न्यायमित्र नियुक्त किया था. सिंह ने रेलवे को विकलांगों के लिए अनुकूल बनाने के सुझावों के साथ एक लेख लिखा था.

उच्च न्यायालय ने कहा कि इस घटना में रेलवे की व्यवहार की वजह से वह व्यक्ति ट्रेन में नहीं चढ़ सका. न्यायालय ने कहा कि अधिकांश स्टेशनों पर दिव्यांगों के लिए आरक्षित कोच रेलवे प्लेटफॉर्म के आख़िर में होते हैं, जहां तक पहुंचना मुश्किल होता है.

21 दिसंबर को होने वाली मामले की अगली सुनवाई में उच्च न्यायालय ने रेलवे के कार्यकारी निदेशक स्तर के एक अधिकारी को अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया है.

इसके अलावा उच्च न्यायालय ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय भी किसी व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा से ख़ुद को अलग नहीं कर सकता. विश्वविद्यालय को दूसरे आवेदकों की तरह ही उस व्यक्ति को शैक्षणिक वर्ष 2017-18 की एम. फिल प्रवेश परीक्षा में शामिल होने का एक मौका देना चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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Q.13: शारीरिक रूप से विकलांग बालकों की शिक्षा व्यवस्था कैसे की जानी चाहिये? व्याख्या करें।

उत्तर : शारीरिक न्यूनता से ग्रसित बालकों को अधिगम व समायोजन की विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं के कारण बालकों में हीन भावना का विकास होता है यह बालक सामान्य बालकों से अलग है इसलिए इन्हें विशेष शैक्षणिक सुविधा प्रदान किया जाना आवश्यक है । उचित प्रयासों द्वारा इन बालकों को कुछ हद तक शिक्षित किया जा सकता है। शिक्षा की निम्न सुविधा द्वारा इन्हें शिक्षित व कभी– कभी भी किया जा सकता है।

शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए क्या-क्या सुविधाएं होनी चाहिए - shaareerik roop se aksham logon ke lie kya-kya suvidhaen honee chaahie

(1) विशेष कक्षा– सामान्य कक्षा व विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला शिक्षक विकलांग विद्यार्थियों की विशेष आवश्यकताओं से पूरी तरह परिचित नहीं होता है इसलिए इन विद्यार्थियों को एक ऐसे शिक्षक की आवश्यकता होती है जो इनके मनोविज्ञान को समझते हुए न केवल इन्हें शिक्षित करें बल्कि इनके सामाजिक, संवेगात्मक व शारीरिक विकास की तरफ भी ध्यान दें। इस स्थिति में हर विद्यालय में एक विशेष प्रशिक्षित अध्यापक होना चाहिये इसके अलावा विशेष विजिटिंग अध्यापक की भी नियुक्ति की जा सकती है जो सभी विद्यालयों में भ्रमण कर विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों हेतु कार्य कर सकते हैं इस तरह से विजिटिंग अध्यापक द्वारा विद्यालय के अन्य विद्यार्थियों को भी विशिष्ट बालकों की आवश्यकताएं, समस्याओं व शैक्षिक प्रावधानों के बारे में जानने समझने का मौका मिलता रहेगा।

(2) विशेष कक्षा– कुछ विद्यार्थी या विशेष बालक इस तरह के होते हैं कि उन्हें सामान्य बालकों के साथ पढ़ाना मुश्किल हो जाता है उस स्थिति में विद्यालय में एक अलग कक्ष तैयार किया जाता है जहाँ कुछ समय के लिये विद्यार्थी अध्ययन करते हैं। धीरे– धीरे उन्हें सामान्य कक्षाओं हेत तैयार किया जाता है, व सामान्य विद्यार्थियों के साथ पढ़ने योग्य हो जाते हैं।

(3) अतिरिक्त कक्षा– ऐसे विकलांग बालक जो नियमित कक्षाओं से पूर्णतया लाभान्वित नहीं हो पाते हैं इस प्रकार के विद्यार्थियों के लिये अतिरिक्त कक्षा का आयोजन किया जा सकता है। इस प्रकार के विद्यार्थियों को सामान्य कक्षा के साथ कुछ अतिरिक्त ध्यान देने की आवश्यकता होती है अतः इन बालकों के लिये स्कूल के उपरान्त या छुट्टियों के दिन भी थोड़े समय के लिये कक्षा का आयोजन करना चाहिये जिससे शिक्षक बालकों की व्यक्तिगत, सामाजिक, संवेगात्मक समस्याओं को समझ कर उन्हें हल कर सकेगा।

(4) विशेष विद्यालय– कुछ विकलांगिक अक्षम बालकों को विशेष कक्षाएं व अतिरिक्त कक्षाएं भी उन्हं लाभ नहीं पहुंचा पातीं। ऐसी स्थिति में विशेष विद्यालय इन बालकों को शिक्षित करने में सहायक होते हैं । इन विद्यालयों में निम्न सुविधाएं होनी चाहिये जिससे कि इन बालकों का विकास किया जा सके–

(i) शारीरिक उपचार कक्ष; (ii) व्यायामशाला; (iii) कार्यशाला; (iv) पहियेदार कुर्सियाँ, बड़े दरवाजे, एलिवेटर; (v) कक्षा– कक्ष व्यवस्थायें; (vi) विश्राम कक्ष; (vii) पानी की व्यवस्था; (viii) छात्रावास (आवश्यकतानुसार); (ix) कुशल व प्रशिक्षित अध्यापक; (x) पुस्तकालय।

(5) विशेष पाठ्यक्रम – विकलांगिक अक्षम बालकों के लिये पाठ्यक्रम में कुछ परिवर्तन लाना अति अनिवार्य है। चूंकि इन बालकों के कुछ अंग ढंग से कार्य नहीं करते इसलिये वे इनका प्रयोग नहीं करते अतः पाठ्यक्रम में उन भागों को नहीं डालना चाहिये जिसके लिये कुछ खास अंगों की आवश्यकता पड़े। यदि बालक का हाथ नहीं है तो लिखने हेतु समस्या का सामना करना पड़ता है । तब उसे पैर से लिखने हेतु तैयार किया जा सकता है । पाठ्यक्रम ऐसा हो जिससे विद्यार्थी को स्वावलम्बी बनाया जाये व उसे रोजगार प्राप्त करने के अवसर प्राप्त हो सकें।

(6) उपचार सुविधा– इन बालकों के लिये उपचार की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिये योग्य व कुशल चिकित्सक द्वारा समय– समय पर इनकी जाँच की जाना आवश्यक है। इन बालकों को समय– समय पर चिकित्सालय में भर्ती करने की आवश्यकता भी पड़ सकती है ऐसी स्थिति में उन्हें विद्यालय से समय– समय पर अनुपस्थित होना पड़ सकता है अत: उन्हें उपस्थिति संबंधित छूट दी जानी चाहिए। इन बालकों की सफलता के लिए मापदण्ड सामान्य बालकों की तरह नहीं बनाना चाहिए ये मापदण्ड बालक का अक्षमता, रोग की गम्भीरता के अनुसार तय किये जाने चाहिये । इन बालकों की समुचित विकास जैसे सामाजिक, संवेगात्मक की ओर ध्यान देना भी शिक्षक का कर्तव्य बन जाता है। इसके लिए सामान्य बालकों में इन बालकों के लिये एक समझ व जागरुकता का विकास किया जाना चाहिये जिससे उन पर सकारात्मक प्रभाव डाला जा सके।

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