शिक्षक और विद्यार्थी के लिए ध्यान का क्या महत्व है? - shikshak aur vidyaarthee ke lie dhyaan ka kya mahatv hai?

योग का शिक्षक के जीवन में महत्व विद्यार्थी के जीवन में महत्व

योग का शिक्षक के जीवन में महत्व विद्यार्थी के जीवन में महत्व
योग स्मृति और सीखने की क्षमता में वृद्धि कारक है योग के अभ्यास में जब हम आसन और प्राणायाम करते हैं। हमारी स्वास्थ्य लंबी और गहरी हो जाती है। हम अपने ध्यान को एक निश्चित बिंदु पर केंद्रित करते हैं। जब यह केंद्रित मन अध्ययन के लिए प्रयोग किया जाता है तो यह विचारों और धारणाओं को भलीभांति समझ लेता है। यह याद करने की सामग्री को और अधिक प्रभावपूर्ण ढंग से याद रखता है।

योग मानसिक संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है यदि हम कभी बहुत कठिन अध्ययन अध्यापन करते हैं और अप्रत्याशित परिणाम नहीं पाते हैं तब हमारा मन चिंता और उदासी में डूब जाता है। योग का निरंतर अभ्यास हमें उदासी से मुक्त करता है। योग हमें सिखाता है कि कैसे हम आत्म संलग्न होकर अच्छा से अच्छा करने की कोशिश कर सकते हैं। यह मानसिक संतुलन बनाए रखता है। यादा क्षमता अधिक करता है।

योग चिंता तनाव एवं अन्य मनो विकारों को दूर करता है विद्यालय में छात्रों को अध्यापन के दौरान अनेक प्रकार के तनाव एवं मानसिक उलझनों का सामना करना पड़ता है। यदि शिक्षक अपनी दैनिक चर्या में योग व्यायाम जैसे ध्यान को सम्मिलित करने तो इस प्रकार के अवांछित तनाव पर नियंत्रण पाया जा सकता है। मानसिक एवं शारीरिक तंत्रों को शांत एवं सहज तरीके से कार्य करना तनाव मुक्त जीवन का आधार है। योग ही एक ऐसा साधन है जिससे शिक्षक तनावों चिंताओं एवं नकारात्मक सोच को दूर कर सकते हैं। शिक्षक व विद्यार्थी योग के जरिए अपने मन को शांत स्वस्थ रख सकते हैं।

संवेगात्मक संतुलन में योग की भूमिका शिक्षकों को सामाजिक संबंधों के साथ ही स्वयं को समायोजित करना पड़ता है। छात्र-छात्राओं से अध्यापकों से मित्रों तथा अन्य सामाजिक संबंधों से सामाजिक परिवेश में मिलकर कार्य करना होता है। अपने चारों तरफ के लोगों से संबंध हमारे लिए सुख और दुख दोनों ही लेकर आते हैं। दूसरों के प्रति असहिष्णु होना और अनावश्यक चिड़चिड़ापन हमारे मन को दूषित करता है। हम दोस्तों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया के प्रति जागरूक हो सकते हैं और नकारात्मक परिस्थिति में भी सकारात्मक प्रत्युत्तर की आदत उत्पन्न कर सकते हैं। यह संवेगात्मक संतुलन है। यह केवल योग के निरंतर अभ्यास से ही प्राप्त किया जा सकता है। योग संवेगात्मक संतुलन बनाए रखता है जिससे हम किसी भी प्रकार की स्थिति में होने के बावजूद अपना सकारात्मक प्रत्युत्तर देते हैं।

कार्य में कुशलता आत्म अभिव्यक्ति और अभिवृद्धि के लिए कार्य का या रोजगार को आनंद के अवसर के रूप में देखना चाहिए। अपने कार्य को इस दृष्टिकोण से देखना कि इससे हम दूसरों को क्या देते हैं। उचित आसन ग्रहण श्वास और सौम्यता से हाथ पाव को खींचना या फैलाना अपने कार्यस्थल पर आपको तनाव रहित हुआ आराम से रहने में आपकी सहायता करता है। एक क्षण का विराम और अपने स्वास्थ्य पर दृष्टि तुरंत आराम देता है। अपने काम में रचनात्मक होना अच्छा है। कार्य को करने के नए मार्ग ढूंढने की कोशिश करिए। रोजमर्रा के कार्यों को सीखने में भी आनंद प्राप्त करना चाहिए। गीता में कहा गया है कि फल की इच्छा किए बिना कार्य को श्रेष्ठ तरह से करने के कौशल को ही योग कहते हैं।

योग का विद्यार्थी जीवन में महत्व
अनुशासित जीवनशैली शांत वातावरण तथा नियमित योगाभ्यास ध्यान आदि ऐसे कारक हैं जो सभी मानसिक क्षमताओं के लिए लाभकारी होते हैं। विद्यार्थी जीवन में एक बार जो अवसर देखने को मिलती है कि वह कुछ समय तक जो ध्यान केंद्रित करते हैं किंतु अन्य समय में उनके विचार बिखरे होते हैं। उनका मन एक चीज से दूसरी चीजों पर भी भागता रहता है। ऐसे में संयोजन के लिए विद्यार्थी को व्यायाम ध्यान व एकाग्रता से संबंधित ऐसी योगिक क्रियाओं से जोड़ कर रखना चाहिए जिससे कौशल तथा रणनीतियों को सीखने व अभ्यास करने का अवसर मिलता रहे।

1. योग बालकों में आंतरिक शांति प्रदान करता है। जिससे उनकी रचनात्मकता में वृद्धि होती है।

2. बच्चे प्राकृतिक तथा आसपास के वातावरण में शांति के महत्व को समझते हैं। योग मानसिक स्पष्टता को बढ़ाता है तथा संपूर्ण जीवन क्रम को यथार्थ रूप में लाता है।

3. योग प्रतिशत तंत्र को मजबूत तथा मन को ऊर्जावान बनाता है। इसी के साथ परिसंचरण एवं स्वसन तंत्र की फिटनेस में सुधार करता है।

4. योग बालकों को एक समय में एक कार्य करने के लिए ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। योग मन शरीर व आत्मा के अलावा अन्य इंद्रियों के बीच बेहतर समन्वय बैठाने में भी मदद करता है।

5. योग के नियंत्रण अभ्यास से विद्यार्थियों के आवेग बेहतर तरीके से नियंत्रित होते हैं।

6. इसके अतिरिक्त योगाभ्यास से विद्यार्थी मौजूद व्यस्त जीवनशैली की गति में भी आराम महसूस करते हैं। कुछ समय शांत होकर आत्मनिरीक्षण एवं चिंतन में मन को लगाने में व्यस्त होते हैं।

7. योगाभ्यास के द्वारा मस्तिष्क में ऑक्सीजन की मात्रा में बढ़ोतरी होती है। स्वसन व संतुलन में सुधार आता है। बालकों की अति सक्रियता आवेग शीलता तथा एकाग्रता स्तर के बेहतर नियंत्रण में योगाभ्यास बहुत सहायक होता है

8. किशोरावस्था को तूफानों एवं जन जावत ओं का काल कहा जाता है। इस समय शरीर में अनेक हार मोनू से संबंधित परिवर्तन भी होते हैं। इन हार मोनू के कारण किशोरों में स्वभाव में भी गहन परिवर्तन आता है। जैसे चिंता चिड़चिड़ापन आदि क्रियाएं उत्पन्न हो जाती हैं। योग एवं आसन में विभिन्न शारीरिक मुद्राएं बनाती होती हैं। प्राणायाम के द्वारा शोषण पर फोकस करना होता है और ध्यान में मन को एकाग्र एवं शांत करने का अभ्यास किया जाता है। इस तरह से योगिक क्रियाएं किशोर विद्यार्थियों के मन को संतुलित बनाए रखती हैं।

योग शिक्षा शिक्षक अभ्यर्थी विद्यार्थी प्रत्येक व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। विद्यार्थी योग के माध्यम से अपनी एकाग्रता को बढ़ाता है जिससे उसे अपने टॉपिक और सब्जेक्ट के प्रति रुचि बढ़ती है।

विद्यार्थी के जीवन में ध्यान की क्या भूमिका है?

छात्रों को अस्वास्थ्यकर या खतरनाक आदतों जैसे ड्रग्स, धूम्रपान या शराब की लत से दूर रहने में मदद करता है; नींद की गुणवत्ता में सुधार करता है; अन्य लोगों के साथ आपके द्वारा बनाए गए संबंधों के आत्मविश्वास और गुणवत्ता को बढ़ाता है; छात्रों के बीच करुणा और दृढ़ता पैदा करता है।

छात्र के लिए ध्यान कैसे लाभ करता है?

नियमित रूप से ध्यान का अभ्यास करने वाले छात्रों ने अपने आईक्यू स्तरों में नाटकीय सुधार दिखाया। जैसे-जैसे बुद्धि और रचनात्मकता में सुधार हुआ, वैसे-वैसे चिंता भी कम होती गई। नियमित रूप से ध्यान करने से छात्रों को उनकी रचनात्मक सोच, समझ और अन्य संज्ञानात्मक क्षमताओं में सुधार करने में मदद मिलती है।

ध्यान शिक्षकों की मदद कैसे करता है?

इन लाभों में बेहतर सॉफ्ट कौशल शामिल हो सकते हैं, जैसे आत्मविश्वास, सहानुभूति और भावनात्मक लचीलापन । इसके अतिरिक्त, ध्यान विशेष रूप से कक्षा अभ्यास से संबंधित पहलुओं, जैसे कि धैर्य, ध्यान और विचारशील संचार में मदद कर सकता है।

शिक्षक और छात्र के बीच संबंध कैसे होने चाहिए?

शिक्षक और छात्रों के बीच मधुर संबंध से ही कोई अच्छा परिणाम सामने आ सकता है जिससे वे अपना तथा विद्यालय का, इस देश का गौरव बढ़ा सकते हैं। इसके छात्रों को विद्यालयीन अनुशासन में रहना चाहिए, गुरुओं का आदर करना चाहिए, उनके अमूल्य परामर्शों पर अमल करना चाहिए, उनके बताए राह पर चलना चाहिए