संवैधानिक उपचारों का अधिकार एवं महत्त्व
संवैधानिक उपचारों का अधिकार स्वयं में कोई अधिकार न होकर अन्य मौलिक अधिकारों का रक्षोपाय है। इसके अंतर्गत व्यक्ति मौलिक अधिकारों के हनन की अवस्था में न्यायालय की शरण ले सकता है। इसलिये डॉ० अंबेडकर ने अनुच्छेद 32 को संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद बताया- “एक अनुच्छेद जिसके बिना संविधान अर्थहीन है, यह संविधान की आत्मा और हृदय हैं।” Show
उपरोक्त बिंदुओं से संवैधानिक उपचारों के अधिकार एवं उसकी महत्ता को देखा जा सकता है। संवैधानिक उपचारों का अनुच्छेद नागरिकों के लिहाज से भारतीय संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। संवैधानिक उपचार का अधिकार अनुच्छेद 32 के तहत – UPSC की तैयारी के लिए भारतीय राजनीति नोट्स पढ़ें!Deepanshi Gupta | Updated: मई 5, 2022 15:31 IST This post is also available in: English (English) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत संवैधानिक उपचार का अधिकार (Right to Constitutional Remedies in Hindi) एक मूल अधिकार है जो प्रदान करता है कि व्यक्तियों को संवैधानिक रूप से संरक्षित अन्य मौलिक अधिकारों के कार्यान्वयन के लिए सर्वोच्च न्यायालय(एससी) में याचिका दायर करने का विशेषाधिकार है।
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अनुच्छेद 32 | Article 32 in Hindiअनुच्छेद 32 में निम्नलिखित चार प्रावधान हैं:
सार और तत्व का सिद्धांत के बारे में जानें! न्यायालयों द्वारा जारी रिट के प्रकार | Types of Writs issued by the courts in Hindi
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सनसेट क्लॉजके बारे में जानें! परमादेश- ‘वी कमांड’ | Mandamus- ‘We Command’
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सुप्रीम कोर्ट का मूल अधिकार क्षेत्र के बारे में यहां जाने! हम आशा करते हैं संवैधानिक उपचार का अधिकार (Right to Constitutional Remedies in Hindi) पर आधारित लेख पसंद आया होगा! टेस्टबुक एक ऑनलाइन शिक्षण मंच है जिसका उपयोग किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए किया जा सकता है। हमारे टेस्टबुक ऐप पर उपलब्ध लाइव कोचिंग सत्र, करंट अफेयर्स सत्र और परीक्षाओं में भाग लेने वाले अपनी तैयारी को बढ़ा सकते हैं। टेस्टबुक ऐप डाउनलोड करने का समय आ गया है! अब डाउनलोड करो! संवैधानिक उपचार का अधिकार – FAQsQ.1 साधारण कानूनी अधिकार और मौलिक अधिकारों में क्या अंतर है? Ans.1 साधारण कानूनी अधिकार सामान्य कानूनों द्वारा संरक्षित और लागू किए जाते हैं, जबकि मौलिक अधिकार देश के संविधान द्वारा संरक्षित और गारंटीकृत होते हैं। विधायिका द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया द्वारा साधारण अधिकारों को बदला जा सकता है, लेकिन मौलिक अधिकार को केवल संविधान में संशोधन करके ही बदला जा सकता है। Q.2 निवारक निरोध क्या है? Ans.2 जब किसी व्यक्ति को किसी भी गैरकानूनी कार्रवाई के लिए गिरफ्तार किया जाता है तो उसे जेल में 3 महीने से अधिक की अवधि के लिए हिरासत में रखा जा सकता है। यह तब किया जाता है जब सरकार को लगता है कि वह व्यक्ति कानून और व्यवस्था या राष्ट्र की शांति और सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। तीन महीने के बाद ऐसे मामले को समीक्षा के लिए एक सलाहकार बोर्ड के सामने लाया जाता है। Q.3 संविधान में कितने प्रकार के रिट का उल्लेख है? Ans.3 संविधान में 5 प्रकार की रिटों का उल्लेख किया गया है जिनमें बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेधाज्ञा, सर्टिओरीरी और क्वो-वारंतो की रिट शामिल हैं। Q.4 कौन सी रिट किसी भी निजी संस्था या संगठन के खिलाफ जारी नहीं की जा सकती है? Ans.4 किसी भी निजी निकाय या संगठन या विधायी निकाय के खिलाफ निषेधाज्ञा और प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा सकता है। Q.5 संविधान में अनुच्छेद 35 का क्या महत्व है? Ans.5 भारतीय संविधान का अनुच्छेद 35 संसद को मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए कानून बनाने का अधिकार देता है।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार कौन से अनुच्छेद में आता है?भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचार का अधिकार (Right to Constitutional Remedies) शामिल है। अनुच्छेद 32 और 226 मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन को सशक्त बनाते हैं।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार क्या है?संवैधानिक उपचारों का अधिकार स्वयं में कोई अधिकार न होकर अन्य मौलिक अधिकारों का रक्षोपाय है। इसके अंतर्गत व्यक्ति मौलिक अधिकारों के हनन की अवस्था में न्यायालय की शरण ले सकता है।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार के अंतर्गत न्यायालय कौन कौन से विशेष आदेश जारी कर?संवैधानिक उपचारों के अधिकार में बताया गया है कि यदि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार छीन लिए जाएं या उसे उन से वंचित कर दिया जाए तो वह सीधे जाकर उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। न्यायालय हमारे अधिकारों की रक्षा के लिए आदेश जारी करता है।
संवैधानिक अधिकार कौन कौन से हैं?संविधान द्वारा मूल रूप से सात मूल अधिकार प्रदान किए गए थे- समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म, संस्कृति एवं शिक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार, संपत्ति का अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
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