संविधान में संशोधन करने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता क्यों है? - sanvidhaan mein sanshodhan karane ke lie vishesh bahumat kee aavashyakata kyon hai?

विषयसूची

  • 1 संविधान में संशोधन करने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
  • 2 संविधान संशोधन की आवश्यकता क्यों है?
  • 3 भारत को राजभाषा कार्यान्वयन के उद्देश्य से कितने भागो में विभाजित किया गया है?
  • 4 राजभाषा की दृष्टि से भारत को कितने क्षेत्रों में बांटा गया है?

संविधान में संशोधन करने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता क्यों पड़ती है?

इसे सुनेंरोकेंसंविधान में संशोधन करने के लिए दो प्रकार के विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है। पहले, संशोधन विधेयक के पक्ष में मतदान करने वाले सदस्यों की संख्या सदन के कुल सदस्यों की संख्या की कम से कम आधी होनी चाहिए। दूसरे, संशोधन का समर्थन करने वाले सदस्यों की संख्या मतदान में भाग लेने वाले सभी सदस्यों की दो तिहाई होनी चाहिए।

संविधान संशोधन की आवश्यकता क्यों है?

इसे सुनेंरोकेंसंविधान संशोधन की आवश्यकता संविधान में संशोधन के प्रावधान को इस दृष्टिकोण के साथ बनाया गया कि भविष्य में संविधान को लागू करने में कठिनाइयाँ न आयें। यह इसलिए भी आवश्यक है कि संविधान लागू होंने के समय में हुई कमियों को ठीक करना। आदर्श, प्राथमिकताएं और लोगों की दृष्टि पीढ़ी दर पीढ़ी बदलती हैं।

राजभाषा को कार्यान्वित करने के लिए देश को कितने क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया?

इसे सुनेंरोकेंराज्यभाषा, राष्ट्रभाषा और राजभाषा भारतीय संविधान में राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों के लिए हिन्दी के अतिरिक्त 21 अन्य भाषाएँ राजभाषा स्वीकार की गई हैं। संविधान की अष्टम अनुसुचि में कुल 22 भारतीय भाषाओं स्थान प्राप्त हुआ है।

संविधान में समय समय पर संशोधन करना आवश्यक होता है क्योंकि सही विकल्प?

इसे सुनेंरोकेंExplanation: संविधान में समय-समय पर संशोधन करना आवश्यक/ होता है क्योंकि परिस्थितियाँ बदलने पर संविधान में उचित संशोधन करना आवश्यक हो जाता है। भारत के संविधान में अब तक कई महत्वपूर्ण संशोधन हो चुके हैं। भारत में संविधान के संशोधन के लिए विशेष बहुमत की जरूरत पड़ती है।

भारत को राजभाषा कार्यान्वयन के उद्देश्य से कितने भागो में विभाजित किया गया है?

इसे सुनेंरोकें120(7) में राज्य के विधान मंडल मे कार्य राज्य की राजभाषा या भाषाओं में या हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जायेगा। किया हो । इसी प्राकार हिन्दी भाषी सरकारें भी उपर्युक्त राज्य सरकार के साथ अंग्रेजी में पत्र व्यवहार करेगी और यदि वे ऐसे राज्योंको पत्र हिन्दी मे भेजें तो उसके साथ अंग्रेजी अनुवाद भी भेजा जाएगा।

राजभाषा की दृष्टि से भारत को कितने क्षेत्रों में बांटा गया है?

इसे सुनेंरोकेंराजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 3(3) कब प्रवृत्त हुई? ‘ग क्षेत्र’ – तीन क्षेत्रों में बांटा गया है।

भारत की संविधान संशोधन प्रक्रिया में क्या दोष है?

इसे सुनेंरोकें(क) राष्ट्रपति किसी संशोधन विधेयक को संसद के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता। (ख) संविधान में संशोधन करने का अधिकार केवल जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के पास ही होता है। (ग) न्यायपालिका संवैधानिक संशोधन का प्रस्ताव नहीं ला सकती परन्तु उसे संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है।

संविधान संशोधन की प्रक्रिया

संविधान के भाग -20 के अनुच्छेद 368 में संविधान संशोधन से संबंधित प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। संविधान में संशोधन की तीन पद्धतियां हैं -

  1. साधारण बहुमत
  2. विशेष बहुमत द्वारा
  3. विशेष बहुमत तथा राज्यों का अनुसमर्थन।

साधारण बहुमत

संविधान में कतिपय अंश ऐसे हैं जिनको संसद केवल साधारण बहुमत से परिवर्तित कर सकती है। ऐसे उपबंध निम्नलिखित हैं -

1. अनुच्छेद 2, 3 और 4 जो संसद को कानून द्वारा यह अधिकार दिलाते हैं कि वह नए राज्यों को प्रविष्ट कर सके, सीमा परिवर्तन द्वारा नए राज्यों का निर्माण कर सकें और तदनुसार प्रथम एवं चतुर्थ अनुसूची में परिवर्तन कर सकें।

2. अनुच्छेद 73(2) जो संसद की किसी अन्य व्यवस्था के होने तक राज्य में कुछ सुनिश्चित शक्तियां निहित करता है।

3. अनुच्छेद 100(3) जिसमें संसद की नई व्यवस्था के होने तक संसदीय गणपूर्ति का प्रावधान है।

4. अनुच्छेद 75, 97, 125, 148, 165(5) तथा 221(2) जो द्वितीय अनुसूची में परिवर्तन की अनुमति देते है।

5. अनुच्छेद 105(3) संसद द्वारा परिभाषित किए जाने पर संसदीय विशेषाधिकारों की व्यवस्था करता है।

6. अनुच्छेद 106 जो संसद द्वारा पारित किए जाने पर संसद सदस्यों के वेतन एवं भत्तों की व्यवस्था करता है।

7. अनुच्छेद 118(2) जो संसद के दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत किए जाने पर प्रक्रिया से संबंधित विधि की व्यवस्था करता है।

8. अनुच्छेद 120(3) जो संसद द्वारा किसी नयी व्यवस्था के न किए जाने पर 15 वर्षो के उपरान्त अंग्रेजी को संसदीय भाषा के रूप में छोडने की व्यवस्था करता है।

9. अनुच्छेद 124(1) जिसमें यह व्यवस्था है कि संसद द्वारा किसी व्यवस्था के न होने तक उच्चतम न्यायालय में सात न्यायाधीश होंगे।

10. अनुच्छेद 133(3) जो संसद द्वारा नई व्यवस्था न किए जाने तक उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के द्वारा उच्चतम न्यायालय को भेजी गई अपील को रोकता है।

11. अनुच्छेद 135 जो संसद द्वारा किसी अन्य व्यवस्था को न किए जाने तक उच्चतम न्यायालय के लिए एक सुनिश्चित अधिकार खेत्र नियत करता है।

12. अनुच्छेद 169(1) जो कुछ शर्तो के साथ विधान परिषदों को भंग करने की व्यवस्था करता है।

विशेष बहुमत से

संविधान के अधिकांश उपबन्धों में संशोधन के समय संसद में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है। विशेष या विशिष्ट बहुमत से तात्पर्य यह है कि सदन की कुल सदस्य संख्या का साधारण बहुमत तथा उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों का 2/3 बहुमत। विशेष बहुमत की आवश्यता संसद के दोनों सदनों में होती है।

विशेष बहुमत और राज्यों का अनुसमर्थन

संविधान के कुछ उपबन्ध ऐसे हैं, जिनमें संशोधन करने के लिए संसद के दानों सदनों के विशेष बहुमत के साथ - साथ कम से कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों की स्वीकृति आवश्यक है। इससे संबंधित निम्न विषय हैं -

1.अनुच्छेद - 54 राष्ट्रपति का निर्वाचन।

2.अनुच्छेद - 55 राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रणाली।

3.अनुच्छेद - 72 संघ की कार्यपालिका शक्ति की सीमा।

4.अनुच्छेद - 162 संघ के राज्यों की कार्यपालिका शक्ति सीमा।

5.अनुच्छेद - 241 केन्द्रशासित क्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय।

6.भाग 5 का अध्याय 4 - संघ की न्यायपालिका।

7.भाग 6 का अध्याय 5 - राज्यों के उच्च न्यायपालिका।

8.भाग 11 का अध्याय 1 - संघ और राज्यों के विधायी संबंध।

9.अनुच्छेद - 368 संविधान में सेशोधन प्रक्रिया।

संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं

अनुच्छेद 368 के अधीन रहते हुए संविधान संशोधन विधेयक उसी प्रक्रिया के पारित किए जाते हैं। किन्तु यदि संविधान संशोधन विधेयक पर दोनों सदनों में विरोध है तो गतिरोध दुर करने हेतु संयूक्त बैठक का कोई प्रावधान नहीं है।

राष्ट्रपति संशोधन विधेयक पर अनुमति देने के लिए बाध्य है

अनुच्छेद 111 के अनुसार जब साधारण विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजे जाते हैं तो वह अनुमति न देकर उसे सदनों को पुनर्विचार करने के लिए लौटा सकता है किन्तु अनुच्छेद 368 के अन्तर्गत राष्ट्रपति संविधान संशोधन विधेयक पर अनुमति देने के लिए बाध्य है। न ही विधेयक प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की पूर्वानुमति की आवश्यकता है।

केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य के ऐतिहासिक मामलों में उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 368 में संसद को जो संशोधन की शक्ति प्राप्त है, वह असीमित नहीं है। न्यायालय ने 7ः6 से दिये गये निर्णय में यह स्पष्ट किया कि संसद संविधान संशोधन शक्ति के प्रयोग द्वारा संविधान के आधारभूत ढांचे को नष्ट नहीं किया जा सकता है। किन्तु आधारभूत ढांचा क्या है, इसका निर्धारण न्यायालय आवश्यकता अनुरूप करेगा। न्यायालय ने आधारभूत ढांचा के सिद्धांत को अनेक विनिश्चयों - इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण, मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ, वमन राव बनाम भारत संघ में लागू किया।

संविधान के संशोधन करने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता क्यों पड़ती है?

संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों में स्वतंत्र रूप से पारित करने की आवश्यकता होती है। इसके लिए संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान नहीं है। कोई भी संशोधन विधेयक विशेष बहुमत के बिना पारित नहीं किया जा सकता।

संविधान संशोधन के लिए विशेष बहुमत क्या है?

विशेष बहुमत से विशेष या विशिष्ट बहुमत से तात्पर्य यह है कि सदन की कुल सदस्य संख्या का साधारण बहुमत तथा उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों का 2/3 बहुमतविशेष बहुमत की आवश्यता संसद के दोनों सदनों में होती है।

हमें अपने संविधान में संशोधन करने की आवश्यकता क्यों है?

संविधान संशोधन की आवश्यकता संविधान में संशोधन के प्रावधान को इस दृष्टिकोण के साथ बनाया गया कि भविष्य में संविधान को लागू करने में कठिनाइयाँ न आयें। यह इसलिए भी आवश्यक है कि संविधान लागू होंने के समय में हुई कमियों को ठीक करना। आदर्श, प्राथमिकताएं और लोगों की दृष्टि पीढ़ी दर पीढ़ी बदलती हैं।

विशेष बहुमत से क्या आशय है भारतीय संविधान में संशोधन हेतु किस प्रकार के विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है?

विशेष बहुमत= सदन में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई (2/3) बहुमत, जो सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत (50% से) अधिक हो। यहा कुल सदस्य संख्या से मतलब है, की सदन की रिक्त सीटे और अनुपस्थित सदस्य को भी गिना जायेगा। उसको संशोधित कर सकती है।

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