निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
मूफ़स्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फुँकार रही थी। आराम से सेकंड क्लास में जाने के लिए दाम अधिक लगते हैं। दूर तो जाना नहीं था। भीड़ से बचकर, एकांत में नई कहानी के संबंध में सोच सकने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के लिए सेकंड क्लास का ही ले लिया।
गाड़ी जाने के लिए क्या कर रही थी?
- फूत्कार
- फुँकार
- चीत्कार
- चीत्कार
77 Views
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
मूफ़स्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फुँकार रही थी। आराम से सेकंड क्लास में जाने के लिए दाम अधिक लगते हैं। दूर तो जाना नहीं था। भीड़ से बचकर, एकांत में नई कहानी के संबंध में सोच सकने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के लिए सेकंड क्लास
का ही ले लिया।
कौन-सी ट्रेन चलने के लिए उतावली हो रही थी?
- राजधानी
- पैसेंजर
- गुडज़
- गुडज़
123 Views
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंतत: सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
नवाब साहब ने बहुत नजाकत और सलीके से खीरा काटा, उन पर नमक-मिर्च लगाया। उन नमक-मिर्च लगी खीरे की फाँकों को खाया नहीं अपितु सूँघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया था। उनकी इस हरकत का यह कारण होगा कि वे एक नवाब थे, जो दूसरों के सामने खीरे जैसी आम खाद्य वस्तु खाने में शर्म भव करते थे। लेखक को अपने डिब्बे में देखकर नवाब को अपनी रईसी याद आने लगी। इसीलिए उन्होंने खीरे को मात्र सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया।
नवाब साहब के ऐसा करने से ऐसा लगता है कि वे दिखावे की जिंदगी जी रहे हैं। वे दिखावा पसंद इंसान थे। उनके इसी प्रकार के स्वभाव ने लेखक को देखकर खीरा खाना अपमान समझा।
गुड -शक्कर, मूँगफली, तिल, चाय, कॉफी आदि का प्रयोग किया जाता है। बरसात में कई लोग कढ़ी खाना अच्छा नहीं समझते। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी को चावल नहीं खाने चाहिए।
633 Views
‘लखनवी अंदाज’ पाठ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
‘लखनवी अंदाज’ पाठ के लेखक यशपाल हैं। लेखक इस पाठ के माध्यम से यह बताना चाहता है कि बिना पात्रों, घटना और विचार के भी स्वतंत्र रूप से रचना लिखी जा सकती है। इस रचना के माध्यम से लेखक ने दिखावा पसंद लोगों की जीवन शैली का वर्णन किया है। लेखक को रेलगाड़ी के डिब्बे में एक नवाब मिलता है। नवाब बड़े सलीके से खीरे को खाने की तैयारी करता है लेकिन उसे लेखक के सामने खीरा खाने में संकोच होता है इसलिए अपने नवाबी अंदाज में लजीज रूप से तैयार खीरे को केवल सूँघकर खिड़की के बाहर फेंक देता है। नवाब के इस व्यवहार से लगता है कि वे लोग आम लोगों जैसे कार्य एकांत में करना पसंद करते हैं उन्हें लगता है कि कहीं किसी के देख लेने से उनकी शान में फर्क न आ जाए। आज का समाज भी ऐसी ही दिखावा पसंद संस्कृति का आदी हो गया है।
3450 Views
लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
लेखक ने डिब्बे में प्रवेश किया तो वहाँ पहले से ही एक सज्जन पुरुष पालथी लगाए सीट पर बैठे थे। उनके सामने खीरे रखे थे। लेखक को देखते ही उनके चेहरे के भाव ऐसे हो गए जैसे लेखक का आना अच्छा नहीं लगा। ऐसा लग रहा था जैसे लेखक ने उनके एकांत चिंतन में विघ्न डाल दिया था। इसीलिए वे परेशान हो जाते हैं। परेशानी की स्थिति में कभी खिड़की के बाहर देखते हैं और कभी खीरों को देखते हैं। उनकी असुविधा और संकोच वाली स्थिति से लेखक को लगा कि नवाब उनसे बातचीत करने में उत्सुक नहीं है।
700 Views
Solution : नवाब साहब अपनी नवाबी का दिखावा कर रहे थे। नवाब साहब की नवाबी पर व्यंग्य किया गया है उन्होंने खीरे को पहले धोया, सुखाया, छीला और फिर फाँकों में काटकर सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया इससे उनके दिखावटी पूर्ण जीवन का पता चलता है कि वे खीरे को अपदार्थ और तुच्छ समझते हैं। इस प्रकार नवाबों का वास्तविकता से बेखबर होना दर्शाया गया है।
विषयसूची
नवाब साहब ने खीरा खीरा को खिड़की से बाहर क्यों फेंक दिया?
इसे सुनेंरोकेंउत्तर: नवाब साहब द्वारा दिए गए खीरा खाने के प्रस्ताव को लेखक ने अस्वीकृत कर दिया। खीरे को खाने की इच्छा तथा सामने वाले यात्री के सामने अपनी झूठी साख बनाए रखने के कश्मकश में नवाब ने खीरे को काटकर खाने की सोची तथा फिर अन्तत: जीत नवाब के दिखावे की हुई। अत: इसी इरादे से उसने खीरे को फेंक दिया।
नवाब साहब का कैसा भाव परिवर्तन लेखक को अच्छा नहीं लगा और क्यों लखनवी अंदाज़ पाठ के आधार पर लिखिए?
इसे सुनेंरोकेंउत्तरः लेखक को डिब्बे में आया देखकर नवाब साहब ने असंतोष, संकोच तथा बेरुखी दिखाई, लेकिन थोड़ी देर बाद उन्हें अभिवादन कर खीरा खाने के लिए आमंत्रित किया। लेखक को उनका यही भाव परिवर्तन अच्छा न लगा, क्योकि अभिवादन सदा मिलते ही होता है। पहले अरुचि का प्रदर्शन और कुछ समय बाद अभिवादन, कोई औचित्य नहीं।
नवाब साहब ने खीरे के गुण अवगुण के बारे में कौन सी बात नहीँ कही?
इसे सुनेंरोकेंउनका यह स्वभाव उनके दिखावटी स्वभाव को प्रकट करता है। नवाब साहब ने लेखक के सामने खीरा काटा और फिर सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया। शायद वह अपनी झूठी आन-बान के एक के सामने खीरा खाने से शर्मा रहे हों। वह खीरे को एक साधारण वस्तु समझते थे और खीरे जैसी आम वस्तु को खाकर वह अपनी श्रेष्ठता को कम नहीं करना चाहते।
लेखक ने क्या क्या अनुमान लगाया?
इसे सुनेंरोकेंलेखक ने उनकी असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान लगाया कि नवाब साहब यह नहीं चाहते होंगे कि कोई उन्हें सेकंड क्लास में यात्रा करते देखें। यह उनकी रईसी के विरुद्ध था। नवाब साहब ने आम लोगों द्वारा खाए जाने वाले खीरे खरीद रखे थे। अब उन खीरों को लेखक के सामने खाने में संकोच आ रहा था।
लखनवी अंदाज पाठ में नवाब साहब द्वारा अपने नवाबी अंदाज को दिखाना क्या इंगित करता है?
इसे सुनेंरोकेंउत्तर- नवाब के व्यवहार को देखकर लेखक के मन में नवाब के नवाबी सनक संबंधी तरह-तरह के विचार आए। जैसे कि नवाब साहब ट्रेन में अकेले यात्रा करना चाहते थे। दूसरी बात वह किसी से बातचीत नहीं करना चाहते थे । इस तरह से लेखक को नवाब के व्यवहार में खानदानी तहजीब, नवाबी तरीका, नजाकत और नफासत के भाव पूरी तरह फरे हुए दिखाई दिए।
खीरा खाने की इच्छा होने पर लखनवी अंदाज़ पाठ के लेखक ने मना क्यों किया?
इसे सुनेंरोकेंलेखक ने खीरा खाने से मना इसलिए कर दिया है क्योंकि जिस तरह नवाब साहब ने उनसे खीरा खाने के लिए पुछा था उससे साफ-साफ पता लगता है कि नवाब साहब बिल्कुल भी इछुक नहीं थे उन्हें खीरा देने में तो लेखक उनका यही व्यवहार देखकर खीरा खाने से मना कर दिया होगा।