स्वर्ण और चांदी कौन से खनिज है? - svarn aur chaandee kaun se khanij hai?

जैसा कि ऊपर बता चुके हैं, पाइराइट में लोहा और गंधक मिला होता है। इसमें लोहा होता है, फिर भी इसका इस्तेमाल लौह उद्योग में नहीं किया जाता है। इसका कारण गंधक या सल्फर है। गंधक लोहे को नुकसान पहुंचाता है। इस वजह से इससे सल्फर यानी गंधक और गंधक का अम्ल (सल्फ्यूरिक एसिड) तैयार किया जाता है। सोने जैसी चमक की वजह से पाइराइट का इस्तेमाल रत्न के तौर पर भी होता है।

(फोटो: साभार विकिमीडिया कॉमंस)

पहचान के आसान तरीके

स्वर्ण और चांदी कौन से खनिज है? - svarn aur chaandee kaun se khanij hai?

धब्बा: पाइराइट के ज्यादातर नमूने में आपको उसकी सतह पर कुछ न कुछ धब्बे दिखाई पड़ेंगे जबकि आमतौर पर सोने के छोटे टुकड़े चमकीले होते हैं और उन पर धब्बा नहीं होता।

रंग: पाइराइट पीतल के जैसा पीला होता है जबकि गोल्ड गोल्डन से पीले रंग का होता है।

लाइन: पाइराइट के कई क्रिस्टल पर साफ दिखने वाली समानांतर लाइनें होती हैं जबकि सोने के क्रिस्टल पर नहीं होते।

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​ऐसे भी पहचानें

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कठोरता: पाइराइट की कठोरता सोने से ज्यादा होती है। सोने की मदद से आप कॉपर की सतह पर खरोंच नहीं लगा सकते हैं जबकि पाइराइट की मदद से आसानी से खरोंच लगा सकते हैं।

लचीलापन: सोना में काफी लचीलापन पाया जाता है। सोने के एक छोटे टुकड़े को भी मोड़ा जा सकता है लेकिन पाइराइट काफी कठोर होता है। इस पर अगर दबाव डाला तो टूट जाएगा लेकिन मुड़ेगा नहीं यानी इसमें लचीलापन नहीं पाया जाता है।

काटने योग्य: सोने के छोटे टुकड़े को भी धारदार चाकू से काटा जा सकता है लेकिन पाइराइट को नहीं।

(फोटो: साभार विकिमीडिया कॉमंस)

​ये भी खनिज देते हैं 'धोखा'

स्वर्ण और चांदी कौन से खनिज है? - svarn aur chaandee kaun se khanij hai?

पाइराइट के अलावा चालकोपाइराइट और बायोटाइट माइका के छोटे टुकड़े भी लोगों को सोना होने का भ्रम पैदा कर देते हैं। चालकोपाइराइट कॉपर, आइरन और सल्फर का यौगिक है। यह बहुत हद तक पाइराइट से मिलता-जुलता होता है। बायोटाइट माइका की भी चमक लोगों को बेवकूफ बना देती है और वह इसे सोना समझ लेते हैं। माइका को आसानी से पहचाना जा सकता है क्योंकि इस पर थोड़ा सा दबाव डालने पर यह टूट जाता है जबकि सोना नहीं टूटता है।

(फोटो: साभार विकिमीडिया कॉमंस)

पाइराइट नाम क्यों?

स्वर्ण और चांदी कौन से खनिज है? - svarn aur chaandee kaun se khanij hai?

पाइराइट का नाम ग्रीक शब्द 'पायर' से लिया गया है जिसका मतलब होता है 'आग'। इसका कारण यह है कि जब पाइराइट पर धातु या किसी अन्य कठोर चीजों से चोट मारा जाए तो चिंगारी निकलती है। इस वजह से इसका नाम पाइराइट पड़ गया। बाकी सोने जैसी चमक, रंग और हाई ग्रैविटी की वजह से इसे 'फूल्स गोल्ड' के उपनाम से जाना जाता है।

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राजस्थान में खनिज संसाधन | राजस्थान राज्य का भूविज्ञान (जिओलॉजी) प्रत्येक दृष्टिकोण से अद्वितीय है। देश में खनिजों की उपलब्धता और विविधता के मामले में राजस्थान सर्वाधिक समृद्ध राज्यों में से एक है। राजस्थान को खनिजों का अजायबघर कहा जाता है यहां 81 विभिन्न प्रकार के खनिजों के भण्डार हैं। इनमें से वर्तमान में 57 खनिजों का खनन किया जा रहा है।

Mineral Resources in Rajasthan: Read in English

राजस्थान में खनिज संसाधन: मुख्य बिंदु

  • खनिज भण्डारों की दृष्टि से राजस्थान का देश में झारखण्ड के बाद दुसरा स्थान है।
  • खनिजों की उपलब्धता की दृष्टि से राजस्थान देश में मध्यप्रदेश तथा छतीसगढ के बाद तीसरा बडा राज्य है।
  • राजस्थान में सर्वाधिक उपलब्ध खनिज राॅक फास्फेट है।
  • राजस्थान सीसा एवं जस्ता अयस्क, सेलेनाईट और वॉलेस्टोनाइट का एकमात्र उत्पादक राज्य है।
  • देश में चाँदी, केल्साइट और जिप्सम का लगभग पूरा उत्पादन राजस्थान में होता है।
  • राजस्थान देश में बॉल क्ले, फॉस्फोराइट, ओकर, स्टिएटाइट,फेल्सफार एवं फायर क्ले का भी प्रमुख उत्पादक है।
  • राज्य का आयामी और सजावटी पत्थर यथा- संगमरमर, सेण्डस्टोन, ग्रेनाईट आदि के उत्पादन में भी देश में प्रमुख स्थान है।
  • भारत में सीमेन्ट ग्रेड व स्टील ग्रेड लाइम स्टोन का राज्य अग्रणी उत्पादक है।
  • राजस्थान के कुछ नगर या कस्बे खनिजों के कारण ही प्रसिद्ध है जैसे ताबानगरी (खेतड़ी) व संगमरमर नगरी (मकराना)।
  • राजस्थान में कुछ ऐसे खनिज हैं जिसमें हमें लगभग एकाधिकार प्राप्त है, जैसे संगमरमर, सीसा, जस्ता, चांदी, बोलस्टोनाइट, जास्पर, फलोराइट, जिप्सम, ऐस्बेस्टास, रॉकफॉस्फेट,टंगस्टन, तथा तामड़ा।

खनिज की परिभाषा

भूमि से खनन प्रक्रिया द्वारा निकाले गये रासायनिक तथा भौतिक गुणों वाले पदार्थ जो कि मानव के लिए विभिन्न क्षेत्रों में उपयोगी होते है खनिज पदार्थ कहलाते है। खनिजों के निर्माण में भौतिक तथा जैविक कारकों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। इस कारण इन्हें जैविक तथा अजैविक खनिजों के रूप में विभाजित किया जाता है जैसे- कोयला व प्राकृतिक तेल जैविक खनिजों की श्रेणी में तथा लोहा, मैगनीज, अभ्रक आदि अजैविक खनिजों की श्रेणी में आते हैं।

राजस्थान में खनिज संसाधन का वितरण

खनिजों का सम्बन्ध चट्टानों से होता है। चट्टानें मुख्यत तीन प्रकार की होती है:

  • आग्नेय चट्टानें – आग्नेय चट्टानों में सोना, चाँदी, ताँबा, जस्ता, सीसा, मैंगनीज, अभ्रक, गंधक आदि खनिज पाये जाते हैं।
  • कायान्तरित चट्टानें – कायान्तरित चट्टानों में ग्रेफाइट, हीरा, संगमरमर आदि पाये जाते हैं।
  • अवसादी चट्टानें– कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, रॉक फॉस्फेट, पोटाश, नमक आदि खनिज अवसादी चट्टानों में प्रमुखता से पाये जाते है।

राजस्थान में खनिजों का वर्गीकरण

राजस्थान में खनिजों को भौतिक तथा रासायनिक गुणों के आधार पर 3 भागों में विभाजित किया जाता है :

  • अ. धात्विक खनिज
  • ब. अधात्विक खनिज
  • स. ऊर्जा खनिज

स्वर्ण और चांदी कौन से खनिज है? - svarn aur chaandee kaun se khanij hai?
राजस्थान में खनिज संसाधन: खनिजों का वर्गीकरण

अ. धात्विक खनिज

ऐसे खनिज जिसमें किसी धातु का अंश हो धात्विक खनिज कहलाते है। इन्हे लौह तत्व की उपस्थिति के आधार पर दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है।

स्वर्ण और चांदी कौन से खनिज है? - svarn aur chaandee kaun se khanij hai?
राजस्थान में खनिज संसाधन: धात्विक खनिज

लौह धातु खनिज

ऐसे खनिज जिसमें लोहे के अंश की प्रधानता पायी जाती है जैसे लौह अयस्क, मैगनीज, पाइराइट, टंगस्टन, कोबाल्ट आदि।लौह खनिजों में राजस्थान का भारत में चतुर्थ स्थान है।

1. लौह अयस्क

लोहा किसी भी देश के आर्थिक विकास की धुरी है। सुई से लेकर विशालकाय मशीन तक सबमे लोहे का उपयोग होता है। लोहे के अत्यधिक उपयोग के कारण ही वर्तमान युग को लोह-इस्पात युग कहा जाता है।

  • लोहे की कच्ची धातु को लोह अयस्क कहते है जिसे धमन भट्टियों में पिघलाकर साफ किया जाता है।
  • साफ की हुई लोहे की ठण्डी धातु को कच्चा लोहा कहते हैं। लोहे में मैंगनीज, टंगस्टन और निकिल आदि मिलाकर विभिन्न प्रकार का इस्पात तैयार किया जाता है।
  • भारतीय विदेशी व्यापार संरचना में लोह-अयस्क तीसरा प्रमुख निर्यात तत्व है जिसका निर्यात जापान तथा यूरोपियन देशों को किया जाता है।

लौह अयस्क के प्रकार

लौह अयस्क में लोहे की मात्रा अलग-अलग होती है इस आधार पर इसे 4 भागों में बांटा गया है :

  • मैग्नेटाइट अयस्क – लोहे की मात्रा 72 प्रतिशत तक
  • हेमेटाइट अयस्क – लोहे की मात्रा 60 से 70 प्रतिशत राजस्थान में हेमेटाइट किस्म का लोहा प्राप्त होता है।
  • लिमोनाइट अयस्क – लोहे की मात्रा 30 से 60 प्रतिशत
  • सिडेराइट अयस्क – लोहे की मात्रा 10 से 48 प्रतिशत

राजस्थान के प्रमुख लोहा उत्पादक क्षेत्र

क्र. सं.जिलास्थान1जयपुर(सर्वाधिक भण्डार)मोरीजा बानोल क्षेत्र2उदयपुरनाथरा की पाल, थुर-हुण्डेर3दौसानीमला राइसेला क्षेत्र4अलवरराजगढ़, पुरवा5झुंझुनूडाबला-सिंघाना6सीकरनीम का थाना

2. टंगस्टन

वोल्फ्रेमाइट और शीलाइट टंगस्टन के मुख्य अयस्क है। इसका उपयोग बिजली के बल्बों के तंतु बनाने में बहुत होता है। टंगस्टन को दूसरी धातुओं में मिलाने पर उनकी कठोरता बढ़ जाती है और ये मिश्रधातुएँ अम्ल, क्षार आदि से प्रभावित नहीं होतीं है।

टंगस्टन का उपयोग – टंगस्टन का उपयोग काटने के औजार, शल्यचिकित्सा के यंत्र, इस्पात उद्योग में बहुतायत से होता है। टंग्स्टन इस्पात के पुर्ज़े बहुत कठोर, टिकाऊ तथा न घिसनेवाले होते हैं।

राजस्थान के प्रमुख टंगस्टन उत्पादक क्षेत्र

राज्य में डेगाना (नागौर जिला) क्षेत्र में टंगस्टन के भण्डार है। डेगाना स्थित खान देश में टंगस्टन की सबसे बड़ी खान है ।

क्र. सं.जिलास्थान1नागौरडेगाना2पालीनाना कराब3सिरोहीरेवदर, बाल्दा, आबूरोड

3. मैगनीज

मैंगनीज़ एक रासायनिक तत्व है। प्रकृति में यह शुद्ध रूप में नहीं मिलता बल्कि अन्य तत्वों के साथ बने यौगिकों में मिलता है, जिनमें अक्सर लोहे के यौगिक शामिल होते हैं। मैगनीज के मुख्य अयस्क साइलोमैलीन, ब्रोनाइट, पाइरोलुसाइट है।

मैग्नीज का उपयोग – इस्पात और रासायनिक उद्योग में बैटरी, कांच, सिरेमिक, कृत्रिम उर्वरक, ऑटो पेंट, दुर्दम्य, दवा, सीमेंट, पेट्रो रसायन आदि में तथा शुष्क सेल के निर्माण में होता है। इस्पात में मिलाये जाने पर यह ज़ंगरोधी का कार्य करता है।

राजस्थान के प्रमुख मैंगनीज़ उत्पादक क्षेत्र

क्र. सं.जिलास्थान1बांसवाड़ा(सर्वाधिक भण्डार)लीलवाना, तलवाड़ा, सागवा, तामेसर, कालाबूटा2उदयपुरदेबारी, स्वरूपपुरा, नैगाडि़या3राजसमंदनाथद्वारा

4. पाइराइट

अन्य नाम – माक्षिक या मूर्खों का सोना (fool’s gold)
इसमें लौह की मात्रा 46.6 प्रतिशत होती है। लौह खनिज होते हुए भी पाइराइट का उपयोग लौह उद्योग में नहीं होता, क्योंकि इसमें विद्यमान गंधक की मात्रा लोहे के लिए हानिकारक होती है। पाइराइट का महत्व इस खनिज से उपलब्ध गंध के कारण है। गंधक से गंधक का अम्ल तैयार किया जाता है, जो वर्तमान युग के उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण रसायन है।
राजस्थान के प्रमुख पाइराइट उत्पादक क्षेत्र – सलीदपुरा सीकर

5. कोबाल्ट

उपयोग – तीव्र लौहचुम्बकत्व का गुण रखने वाला यह तत्व अत्यंत चुम्बकीय होता है और उद्योग में इसका प्रयोग एक चुम्बकीय और कठोर धातु के गुणों के कारण किया जाता है। इस धातु का प्रारंभिक अध्ययन बैर्गमैन (Bergman) ने किया था।

राजस्थान के प्रमुख कोबाल्ट उत्पादक क्षेत्र – खेतड़ी नागौर

अलौह धातु खनिज

ऐसे खनिज जिसमें लोहे का अंश नहीं पाया जाता है जैसे सोना, चांदी, तांबा, सीसा, जस्ता आदि।

1. तांबा

मानव सभ्यता के विकास में ताँबे का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। ताँबा शुद्ध रूप से बहुत लचीला होने से आयात वर्धनीय एवं तन्यता युक्त धातु है।
तांबे को अन्य धातुओं के साथ मिलाकर अनेक मिश्र धातुएँ बनाई जाती है। जैसे :

  • ताँबा + एल्यूमिनियम = पीतल
  • ताँबा + राँगा = काँसा
  • ताँबा + निकिल = जर्मन सिल्वर
  • ताँबा + सोना = रोल्ड गोल्ड (आभूषणों को सुदृढ़ता प्रदान करने हेतु ताँबा स्वर्ण के साथ मिलाया जाता है)

तांबे का उपयोग – विद्युत सुचालक होने के कारण तांबे का मुख्य उपयोग विद्युत उपकरण एवं विद्युत उद्योग में तारों, विद्युत उपकरणों (विद्युत मोटरें, ट्रान्सफर व जेनरेटर) आदि में किया जाता है। तथा मिश्रधातु के रूप में इसका उपयोग पीतल, कांसा तथा स्टेनलेस स्टील बनाने में प्रमुखता से किया जाता है।

राजस्थान के प्रमुख तांबा उत्पादक क्षेत्र – देश में सर्वाधिक लगभग 54 प्रतिशत कॉपर के भण्डार राजस्थान में हैं। इसके बाद झारखण्ड तथा मध्यप्रदेश का स्थान आता है।

क्र. सं.जिलास्थान1झुंझुनू(सर्वाधिक भण्डार)खेतड़ी, सिंघाना2उदयपुरदेबारी, सलूम्बर, देलवाड़ा3राजसमन्दभीम रेलमगरा4अलवरखो दरीबा, थानागाजी, कुशलगढ़, सेनपरी तथा
भगत का बास5बीकानेरबीदासर

2. सीसा-जस्ता

सीसा व जस्ता मिश्रित अवस्था में अरावली श्रृंखला की अवसादी व परतदार चटटानों में गैलेना अयस्क के रूप में मिलने वाला खनिज है। इसके अलावा कैलेमीन, जिंकाइट, विलेमाइट इसके मुख्य अयस्क है। लेड तथा जिंक को 1956 की उद्योग नीति में सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित किया गया था। जिसे भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय खनिज नीति, 1993 में निजी क्षेत्र हेतु खोल दिया गया।

सीसा-जस्ता उपयोग –
सीसा – सीसा की चादरें सिंक, कुंड, सल्फ्यूरिक अम्ल निर्माण के सीसकक्ष और कैल्सियम फास्फेट उर्वरक निर्माण आदि के पात्रों में अस्तर देने में काम आती है। सीसे का उपयोग पीतल बनाने, सैन्य सामग्री, रेल इंजन सहित कई कार्यों में होता है। एक्स-रे और रेडियो ऐक्टिव किरणों से बचाव के लिए भी सीसा चादरें काम आती हैं क्योंकि इन किरणों को सीसा अवशोषित कर लेता है (रेडिएशन शिल्डिंग)।

जस्ता – जस्ता का सर्वाधिक उपयोग लोहा एवं इस्पात उद्योग में किया जाता है | जस्ता रसायन, शुष्क बैटरी बनाने, जंग रोधक कार्यों, मिश्रित धातु बनाने, धातुओं पर पॉलिश करने आदि में भी किया जाता है|

राजस्थान के प्रमुख सीसा-जस्ता उत्पादक क्षेत्र

सीसा और जस्ता उत्पादन और भण्डारण की दृष्टि से राजस्थान का देश में प्रथम स्थान है | भारत में 95 प्रतिशत सीसे व जस्ता का भण्डार व उत्पादन राजस्थान में चितौड़, राजसमन्द, भीलवाड़ा तथा उदयपुर जिलों में होता है। सीसे व जस्ते का शोधन कार्य सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड (उदयपुर) के द्वारा किया जाता है। एशिया का सबसे बड़ा जिंक स्मेल्टर प्लांट इंग्लैंड के सहयोग से चित्तौड़गढ़ के चंदेरिया में स्थापित किया गया। तथा अन्य जिंक स्मेल्टर प्लांट देबारी (उदयपुर) में है।

क्र. सं.जिलास्थान1उदयपुर(सर्वाधिक भण्डार)जावर-देबारी2भीलवाड़ारामपुरा, आगुचा3राजसमंदरजपुरा-दरीबा4स. माधोपुरचौथ का बरवाड़ा5अलवरगुढ़ा-किशोरी

4. चाँदी

चाँदी सर्वाधिक विद्युतचालक व ऊष्माचालक धातु है। राजस्थान में चाँदी का उत्पादन सीसा-जस्ता के साथ मिश्रित रूप में होता है। अर्जेन्टाइट, जाइराजाइट, हाॅर्न सिल्वर चाँदी के मुख्य अयस्क है। उदयपुर तथा भीलवाड़ा जिलों की सीसा-जस्ता खदानों से चाँदी प्राप्त होती है। चाँदी अयस्क का शोधन ढुंडु(बिहार) में होता है।

चाँदी का उपयोग – इसका उपयोग तार व आभूषण बनाने में होता है।

राजस्थान के प्रमुख चाँदी उत्पादक क्षेत्र

  • जावर खान – उदयपुर
  • रामपुरा आगुचा – भीलवाडा

5. सोना

सोना या स्वर्ण अत्यंत चमकदार मूल्यवान धातु है। सोना प्राय: मुक्त अवस्था में पाया जाता है।

सोने का उपयोग – यह धातु बहुत कीमती है और प्राचीन काल से सिक्के बनाने, आभूषण बनाने एवं धन के संग्रह के लिये प्रयोग की जाती रही है।

राजस्थान के प्रमुख सोना उत्पादक क्षेत्र

आंनदपुर भुकिया और जगपुरा में सोने का खनन हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है। हाल ही में अजमेर, अलवर, दौसा, सवाईमाधोपुर में स्वर्ण के नये भण्डार मिले हैं।

क्र. सं.जिलास्थान1बांसवाड़ाआन्नदपुर भुकिया, जगपुर, तिमारन माता, संजेला,
मानपुर, डगोचा2उदयपुररायपुर, खेड़न, लई3चित्तौड़गढ़खेड़ा गांव4डूंगरपुरचादर की पाल, आमजरा5दौसाबासड़ी, नाभावाली

ब. अधात्विक खनिज

ऐसे खनिज जिसमें किसी धातु का अंश नहीं पाया जाता हो अधात्विक खनिज कहलाते है। जैसे-चूना पत्थर, डालोमाइट, अभ्रक, जिप्सम आदि ।

स्वर्ण और चांदी कौन से खनिज है? - svarn aur chaandee kaun se khanij hai?
राजस्थान में खनिज संसाधन: अधात्विक खनिज

1. जिप्सम

जिप्सम एक तहदार खनिज है जिसका रवेदार रूप् ‘सैलेनाइट’ कहलाता है। इसमें 16 से 19 प्रतिशत कैल्शियम एवं 13 से 16 प्रति‍शत सल्‍फर होता है।
अन्य नाम – सेलरवड़ी, हरसौंठ व खडि़या मिट्टी

जिप्सम का उपयोग – इसका उपयोग कृषि में क्षारीय भूमि सुधार हेतु मृदा सुधारक के रूप में तथा तिलहनी, दलहनी एवं गेहॅू फसलों में पोषक तत्‍व के रूप में किया जाता है। बुवाई से पहले या बुवाई के समय खेत में जिप्‍सम डालने से तिलहन में तेल की मात्रा में एवं दलहन में प्रोटीन की मात्रा में वृद्धि होती है। तथा दाने सुडोल व चमकदार बनते है ।

राजस्थान के प्रमुख जिप्सम उत्पादक क्षेत्र
राजस्थान भारत का 90 प्रतिशत जिप्सम उत्पादित करता है। इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है- बीकानेर, हनुमानगढ़, चूरू क्षेत्र, नागौर क्षेत्र, जैसलमेर-बाड़मेर, पाली- जोधपुर क्षेत्र हैं।

क्र. सं.जिलास्थान1नागौर(सर्वाधिक भंडार)भदवासी, गोठ मांगलोद, धांकोरिया2बीकानेरजामसर(देश की सबसे बड़ी खान), पुगल,बिसरासर, हरकासर3जैसलमेरमोहनगढ़, चांदन, मचाना4गंगानगरसुरतगढ़, तिलौनिया5हनुमानगढ़किसनपुरा, पुरबसर

2. रॉक फॉस्फेट

रॉक फॉस्फेट एक तरह का पत्थर है जिसके अंदर 22 फीसदी फॉस्फोरस मौजूद होता है।

रॉक फास्फेट का उपयोग – इसका उपयोग सबसे ज्यादा खाद बनाने व लवणीय भूमि के उपचार में किया जाता है। इसके साथ ही सौंदर्य प्रसाधन, जंग रोधी लेप बनाने में भी प्रयुक्त होता है।

राजस्थान के प्रमुख रॉक फास्फेट उत्पादक क्षेत्र

राजस्थान देश का लगभग 56 प्रतिशत रॉक फास्फेट उत्पादित करता है। RSMDC द्वारा झामर-कोटडा में राॅक फास्फेट बेनिफिशिल संयंत्र लगाया गया है।
फ्रांस की सोफरा मांइस ने राॅक फास्फेट परिशोधन संयंत्र लगाने का प्रतिवेदन दिया है।

क्र. सं.जिलास्थान1उदयपुर(सर्वाधिक भंडार)झामर कोटड़ा, नीमच माता, बैलगढ़, कानपुरा, सीसारमा, भींडर2सीकरकानपुरा3जैसलमेरबिरमानिया, लाठी सीरीज4बांसवाड़ासालोपत

3. चूना पत्थर

चूना पत्थर (Limestone) एक अवसादी चट्टान है जो, मुख्य रूप से कैल्शियम कार्बोनेट के विभिन्न क्रिस्टलीय रूपों जैसे कि खनिज केल्साइट और/या एरेगोनाइट से मिलकर बनी होती है। चूना पत्थर तीन प्रकार का होता है:
केमिकल ग्रेड – जोधपुर, नागौर
स्टील ग्रेड – सानू(जैसलमेर), उदयपुर
सीमेंट ग्रेड – चितौड़गढ़, नागौर, बूंदी, बांसवाड़ा, कोटा, झालावाड़

चूना पत्थर का उपयोग – यह सीमेंट उधोग, इस्पात व चीनी परिशोधन में काम आता है।

राजस्थान के प्रमुख चूना पत्थर उत्पादक क्षेत्र

चूना पत्थर राजस्थान में पाया जाने वाला सर्वव्यापी खनिज है।

क्र. सं.जिलास्थान1चित्तौड़गढ़(सर्वाधिक भंडार)भैंसरोड़गढ़, निम्बाहेड़ा, मांगरोल, शंभुपुरा2अलवारराजगढ़, थानागाजी3जैसलमेरसानु, रामगढ़4बूंदीलाखेरी, इन्द्रगढ़5उदयपुरदरौली, भदोरिया6नागौरगोटन, मुडवा7जोधपुरबिलाड़ा

4. डोलोमाइट

डोलोमाइट मैग्नीशियम का एक अयस्क है। जब चूना पत्थर में 10 प्रतिशत से अधिक मैग्नीशियम होता है तो वह डोलोमाइट कहलाता है और जब यह अनुपात 45 प्रतिशत से अधिक हो जाता है तो इसे शुद्ध डोलोमाइट कहते हैं।

डोलोमाइट का उपयोग – इसका उपयोग लोहा-इस्पात उद्योग में फर्श के लिए चिप्स व पाउडर बनाने में किया जाता है।

राजस्थान के प्रमुख डोलोमाइट उत्पादक क्षेत्र

डोलोमाइट का राज्य के जयपुर, गैनार व मोजिन (बांसवाडा), उदयपुर और राजसमंद जिलों में प्रमुखता से तथा अलवर, झुंझुंनु, सीकर, भीलवाड़ा, नागौर जिलों में सीमित उत्पादन होता है।

5. अभ्रक (mica)

अभ्रक उत्पादन में भारत को विश्व में प्रथम स्थान प्राप्त है। विश्व का 70 से 80 प्रतिशत अभ्रक भारत में निकाला जाता है। यहां मस्कोवाइट या रूबी अभ्रक तथा बायोराइट या गुलाबी अभ्रक आग्नेय व कायान्तरित चट्टानों से निकाला जाता है। अभ्रक नम्य, हल्का, चमकीला, पारदर्शी, परतदार, विद्युतरोधी, कठोर और उच्च द्रवणांक क्षमता वाला खनिज है।

अभ्रक का उपयोग – इसका उपयोग विद्युत कार्य, वायुयान उद्योग तथा सैन्य साज सामान बनाने में होता है। इसके अतिरिक्त औषधि निर्माण, टेलीफोन, रेडियो, दूरदर्शन मोटर, वायर लेस, सजावट के सामान, चश्में और भट्टियों की ईंटें बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है।

राजस्थान के प्रमुख अभ्रक उत्पादक क्षेत्र
आंध्रप्रदेश के बाद राजस्थान का अभ्रक उत्पादन में दूसरा स्थान है। राजस्थान में उत्तम किस्म का हल्के हरे व गुलाबी रंग का अभ्रक प्राप्त होता है। भीलवाड़ा, उदयपुर, अजमेर, राजसमन्द इसके मुख्य उत्पादक जिले हैं। कुछ अभ्रक टोंक, अलवर, भरतपुर, डूंगरपुर आदि जिलों से भी प्राप्त होता है।

  • भीलवाड़ा(सर्वाधिक भंडार) – दांता, टूंका, फूलिया,भुणास, बनेड़ी, शाहपुरा, प्रतापपुरा
  • उदयपुर – चम्पागुढा, सरवाड़गढ़, भगतपुरा

6. पन्ना

पन्ना एक दुर्लभ और बहुमूल्य रत्न है।

अन्य नाम – हरी अग्नि, मरकत, एमरल्ड(Emerald)

राजस्थान के प्रमुख पन्ना उत्पादक क्षेत्र

हाल ही में ब्रिटेन की माइन्स मैनेजमेण्ट कंम्पनी ने बुबानी(अजमेर) से गमगुढ़ा(राजसमंद) व नाथद्वारा तक फाइनग्रेड पन्ने की विशाल पट्टी का पता लगाया। पन्ना मंडी जयपुर में स्थित है।

क्र. सं.जिलास्थान1उदयपुरकाला गुमान, तीखी, देवगढ़2राजसमंदकांकरोली3अजमेरगुडास, राजगढ़,बुबनी

7. तामड़ा

अन्य नाम – रक्त मणि, गारनेट
तामड़ा एक बहुमूल्य रत्न है जो लाल, गुलाबी पारदर्शी पत्थर के रूप में प्राप्त होता है। यह जैम व अब्रेसिव 2 प्रकार का होता है। राज्य में जैम किस्म का तामड़ा अधिक मिलता है।

राजस्थान के प्रमुख तामड़ा उत्पादक क्षेत्र
तामड़ा उत्पादन में राजस्थान का एकाधिकार है। इसका सर्वाधिक उत्पादन राजमहल (टोंक) में होता है।

क्र. सं.जिलास्थान1टोंकराजमहल, कल्याणपुरा2भीलवाड़ाकमलपुरा, दादिया, बलिया-खेड़ा3अजमेरसरवाड़, बरबारी

8. ऐस्बेस्टाॅस

अन्य नाम – रॉक वूल, मिनरल सिल्क

ऐस्बेस्टाॅस कई प्रकार के रेशेदार खनिज सिलीकेटों के समूह को कहते हैं। ऐस्बेस्टाॅस की एम्फीबोलाइट और क्राइसोलाइट दो किस्में होती है। इस पदार्थ में अनेक गुण हैं, जैसे रेशेदार बनावट, आततन बल, कड़ापन, विद्युत के प्रति असीम रोधशक्ति, अम्ल में न घुलना और अदहता। इन गुणों के कारण यह बहुत से उद्योंगों में काम आता है।

ऐस्बेस्टाॅस का उपयोग – इसका उपयोग सभी प्रकार के विद्युतरोधक अथवा उष्मारोधक (इंस्यूलेटर) बनाने में, सीमेंट की चादरें, पाइप, टाइल्स, बायलर्स निर्माण में किया जाता है। इसके अतिरिक्त अम्ल छानने, रासायनिक उद्योग तथा रंग बनाने के कारखानों में भी इस्तेमाल किया जाता है। लंबे रेशों को बुन या बटकर कपड़ा तथा रस्सी आदि बनाई जाती है। इनसे अग्निरक्षक परदे, वस्त्र और ऐसी ही अन्य वस्तुएँ बनाई जाती हैं।

राजस्थान के प्रमुख ऐस्बेस्टाॅस उत्पादक क्षेत्र

राजस्थान ऐस्बेस्टाॅस का प्रमुख उत्पादक है। देश का 90 भाग यहीं उत्पादित होता है। राजस्थान में एम्फीबाॅल किस्म का ऐस्बेस्टाॅस मिलता है।

क्र. सं.जिलास्थान1उदयपुर(सर्वाधिक)ऋषभदेव, खेरवाड़ा, सलूम्बर2राजसमंदनाथद्वारा3डूंगरपुरपीपरदा, देवल, बेमारू, जकोल

वोलस्टोनाइट

वोलस्टोनाइटका उपयोग – इसका उपयोग पेंट, कागज व सिरेमिक उद्योग में होता है।

राजस्थान के प्रमुख वोलस्टोनाइट उत्पादक क्षेत्र
इसका खनन केवल राजस्थान में होता है।

क्र. सं.जिलास्थान1सिरोही(सर्वाधिक)खिल्ला, बैटका2अजमेररूपनगढ़, पीसागांव3उदयपुरखेड़ा, सायरा4डूंगरपुरबोड़किया

बेन्टोनाइट

यह एक मृदु, सरंध्र, आर्द्रता अवशोषी शैल है जो प्रमुखतः मॉन्टमोरिलोनाइट-बीडेलाइट वर्ग के मृद-खनिजों से संघटित होता है। यह शैल ज्वालामुखी राख के अपघटन से निर्मित होता है। पानी में भिगोने पर यह फूल जाता है।

बेन्टोनाइट का उपयोग – यह चीनी मिट्टी के बर्तनों पर पाॅलिश करने, काॅस्मेटिक्स और वनस्पति तेलों को साफ करने में प्रयुक्त होता है।

राजस्थान के प्रमुख बेन्टोनाइट उत्पादक क्षेत्र

  • बाड़मेर – हाथी की ढाणी, गिरल, अकाली
  • बीकानेर
  • सवाईमाधोपुर

फ्लोराइट या फ्लोर्सपार

फ्लोरस्पार या फ्लोराइट अभ्रक के साथ सहउत्पाद के रूप में निकलता है। इसकी चमक काँच के समान होती है। फ्लोर्सपार बेनिफिशियल संयत्र(1956) मांडों की पाल में स्थित है।

फ्लोराइट या फ्लोर्सपार का उपयोग – विश्व का लगभग तीन प्रतिशत फ्लोराइट चीनी मिट्टी उद्योग में प्रयुक्त होता है। इसके अतिरिक्त फ्लोराइट का उपयोग बहुत से रासायनिक पदार्थ, जैसे हाइड्रोफ्लोरिक एसिड आदि बनाने के काम में होता है।

राजस्थान के प्रमुख फ्लोराइट उत्पादक क्षेत्र

  • डूंगरपुर – माण्डों की पाल, काहिला
  • जालौर, सीकर, सिरोही, अजमेर

चीनी मिट्टी(केओलिनाइट / Kaolinite)

यह एक प्रकार की सफेद और सुघट्य मिट्टी हैं, जो प्राकृतिक अवस्था में पाई जाती है। यह राजस्थान की सबसे महंगी मिट्टी है। नीमकाथाना (सीकर) में चीनी मिट्टी धूलाई कारखाना है।

चीनी मिट्टी का उपयोग – चीनी मिट्टी का उपयोग बर्तन, खिलौने अस्पताल में काम में लाए जाने वाले सामान, बिजली के पृथक्कारी (इंसुलेटर), मोटरगाड़ियों के स्पार्क प्लग बनाने में होता है। रबर, कपड़ा तथा कागज बनाने में चीनी मिट्टी को पूरक की तरह उपयोग में लाते हैं।इसके अतिरिक्त सिरेमिक और सिलिकेट उद्योग में इसका उपयोग होता है।

राजस्थान के प्रमुख चीनी मिटटी उत्पादक क्षेत्र

उतरप्रदेश के बाद चीनी मिट्टी के उत्पादन में राजस्थान का दुसरा स्थान है। इसका सर्वाधिक उत्पादन सवाई माधोपुर में होता है।

क्र. सं.जिलास्थान1सवाई माधोपुर(सर्वाधिक)रायसिना, वसुव क्षेत्र2बीकानेरचांदी, पलाना, कोटड़ी, मुढ़3सीकरपुरूषोतमपुरा, वूचर, टोरड़ा4उदयपुरखारा- बारिया

संगमरमर

संगमरमर एक कायांतरित शैल है, जो कि चूना पत्थर के कायांतरण का परिणाम है। इसका नाम फारसी से निकला है, जिसका अर्थ है मुलायम पत्थर।

संगमरमरका उपयोग – यह एक इमारती पत्थर है। यह शिल्पकला के लिये निर्माण अवयव हेतु प्रयुक्त होता है।

राजस्थान के प्रमुख संगमरमर उत्पादक क्षेत्र

भारत में सर्वाधिक संगमरमर उत्पादक राज्य राजस्थान है। उत्पादन में राजसमंद का स्थान प्रथम है। जबकि राजस्थान में सर्वश्रेष्ठ संगमरमर मकराना (नागौर) में होता है। मार्बल की सबसे बड़ी खान किशनगढ़ अजमेर में है। राजस्थान में निम्न प्रकार के संगमरमर उत्पादित होते हैं-

  • सफेद(केल्साइटिक) संगमरमर– राजसमंद, मकराना (ताजमहल इसी संगमरमर से निर्मित है। )
  • हरा-काला मिश्रित संगमरमर – डुंगरपुर, कोटा
  • काला संगमरमर – भैंसलाना (जयपुर)
  • लाल संगमरमर – धौलपुर
  • गुलाबी संगमरमर – भरतपुर तथा जालौर
  • हरा(सरपेन्टाइन) संगमरमर– उदयपुर
  • हल्का हरा संगमरमर– डूंगरपुर
  • बादामी संगमरमर– जोधुपर
  • पीला संगमरमर – जैसलमेर
  • सफेद स्फाटिकीय संगमरमर – अलवर
  • लाल-पीला छीटदार संगमरमर– जैसलमेर
  • सतरंगी संगमरमर– खान्दरा गांव(पाली)
  • धारीदार संगमरमर– जैसलमेर
  • संगमरमर मण्डी – किशनगढ़(राष्ट्रिय राजमार्ग-8 पर स्थित है)
  • संगमरमर मूर्तियां – जयपुर
  • संगमरमर जाली – जैसलमेर
क्र. सं.जिलास्थान1राजसमंद(सर्वाधिक)राजनगर, मोरवाड़, मोरचना, भागोरिया, सरदारगढ़ नाथद्वारा, केलवा2उदयपुरऋषभदेव, दरौली, जसपुरा, देवीमाता3नागौरमकराना, कुमारी-डुंगरी, चैसीरा4सिरोहीसेलवाड़ा शिवगंज, भटाना5अलवरखो-दरीबा, राजगढ़, बादामपुर6बांसवाड़ात्रिपुर-सुन्दरी, खेमातलाई, भीमकुण्ड

राजस्थान में पाए जाने वाले अन्य धात्विक-अधात्विक खनिज

क्र. सं.खनिजप्राप्ति स्थान1सिलिका सैंडबारोदिया खीमज (बूंदी), जयपुर, सवाई माधोपुर2गेरूचित्तौडग़ढ़,उदयपुर, बीकानेर,जैसलमेर3मुल्तानी मिटटीबाड़मेर,बीकानेर,जोधपुर4केल्साइटसीकर5वरमीक्यूलाइटअजमेर, बांसवाड़ा6मैग्नेसाइटअजमेर, डूंगरपुर,नागौर व पाली7अग्नि अवरोधक मिट्टी (फायरक्ले)(कोलायत) बीकानेर,जैसलमेर, अलवर8बॉलक्लेबीकानेर, नागौर9क्वार्ट्ज़अजमेर10केओलिनचित्तौड़गढ़11एपेटाइटसीकर,उदयपुर12स्लेट पत्थरस्लेट पत्थर रायसलाना(अलवर), गीगलाना, बहरोड़, मढ़ाण, भोपासर13ग्रेनाइटअजमेर,अलवर, जोधपुर, बांसवाड़ा14हीराकेसरपुरा(प्रतापगढ़)15बलुआ पत्थर/ सैंड स्टोनबंसी-पहाड़पुर(भरतपुर), बीकानेर, धौलपुर, जैसलमेर16ग्रेफाइटअजमेर, अलवर, बांसवाड़ा, जोधपुर

स. ऊर्जा खनिज

ऐसे खनिज जिनसे उष्मा या ऊर्जा की प्राप्ति होती है, ऊर्जा खनिज कहलाते हैं। इनकी प्रकृति के आधार पर इन्हें भी दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है |

ईधन खनिज

ऐसे खनिज जिन्हें ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि।

कोयला

ऊर्जा के प्राथमिक और प्रारम्भिक स्त्रोतों में कोयला प्रमुख है, जिसका उपयोग प्राचीन काल से किया जाता रहा है। वर्तमान में कोयला का उपयोग तापीय ऊर्जा (Thermal Power) उत्पादित करने में किया जाता है।

कार्बन की मात्रा के आधार पर विश्व स्तर पर कोयले को चार प्रकारों में विभाजित किया जाता है।

  • एन्थेसाइट : कार्बन की मात्रा 80 से 90 प्रतिशत
  • बिटुमिनस : कार्बन की मात्रा 75 से 80 प्रतिशत
  • लिग्नाइट : कार्बन की मात्रा 50 प्रतिशत तक
  • पीट : कार्बन की मात्रा 50 प्रतिशत से कम

कोयला उत्पादन क्षेत्र

भारत में उपलब्ध कोयला दो भू-वैज्ञानिक काल खण्डों से सम्बन्धित है।

  • गौंडवाना युगीन – उत्पादन व उपभोग की दृष्टि से गौंडवाना युगीन कोयले का सर्वाधिक महत्त्व है। भारत वर्ष में इस प्रकार का कोयला विभिन्न नदियों की घाटियों में पाया जाता है।
  • टर्शयरी काल – भारत का 2 प्रतिशत कोयला टर्शयरी काल की एवं मेसोजाइक काल की चट्टानों में प्राप्त होता है। राजस्थान में इस श्रेणी के कोयले की प्राप्ति होती है।

राजस्थान राज्य कोयला प्राप्ति की दृष्टि से निर्धन है और यहाँ केवल लिग्नाइट प्रकार का कोयला प्राप्त होता है। इसे भूरा कोयला भी कहा जाता है। इसमें कार्बन की मात्रा 45 से 55 प्रतिशत तक होती है और यह धुआं अधिक देता है, अतः इसका औद्योगिक उपयोग नहीं होता।

राजस्थान में कोयला उत्पादक क्षेत्र

क्र. सं.जिलास्थान1बीकानेरपलाना क्षेत्र (सर्वश्रेष्ठ)2बीकानेरखारी, चान्नेरी, गंगा सरोवर, मुंध, बरसिंगसर3बाड़मेरकपूरडी, जालिया, गिरल4नागौरकसनाऊ5बाड़मेरकोसूल-होडू (लिग्नाइट के भंडार मिले है)

पालना में कोयला खनन कूपक शोधन (Sinking Shaft) विधि से निकाला जाता है, तत्पश्चात इसका शौधन कर तापीय विद्युत गृहों आदि में उपयोग हेतु भेजा जाता है। भूगर्भिक सर्वेक्षणों द्वारा बीकानेर के अतिरिक्त नागौर और बाड़मेर जिलों में भी लिग्नाइट के भण्डारों का पता चला है।

खनिज तेल/पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस

खनिज तेल अथवा पैट्रोलियम हाइड्रोकार्बन का यौगिक है जो अवसादी शैलों में विशिष्ट स्थानों पर पाया जाता है तथा प्राकृतिक गैस के साथ निकलता है।

  • पश्चिमी राजस्थान के बीकानेर एवं जैसलमेर जिले में तथा पश्चिमी जोधपर में अवसादी चट्टान पायी जाती है अतः खनिज तेल और गैस के भण्डार हो सकते हैं। इसी आधार पर यहाँ पैट्रोलियम की खोज का कार्य आरम्भ हुआ।
  • तेल और प्राकृतिक गैस आयोग ने जैसलमेर में भारती टीबा पर खुदाई का कार्य प्रारम्भ किया। सर्वप्रथम 1996 में जैसलमेर के उत्तर-पश्चिम में मनिहारी टीबा के पास ‘कमली ताल’ में गैस निकली।
  • जैसलमेर के अनेक क्षेत्रों में तथा बाड़मेर-सांचोर बेसिन में केयर्न कम्पनी शैल और तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग के संयुक्त प्रयासों से बाड़मेर के बायतू क्षेत्र में तेल भण्डार को खोज निकाला।

भारत में खनिज तेल की खपत

संयुक्त राज्य अमेरिका एवं चीन के बाद भारत विश्व में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। देश में विश्व का लगभग 5 प्रतिशत कच्चा तेल खपत होता है। भारत कुल घरेलू उपभोग का लगभग 16 प्रतिशत कच्चा तेल उत्पादित करता है, जबकि शेष 84 प्रतिशत खपत की आवश्यकताएं आयात से पूर्ण होती हैं।

राजस्थान में खनिज तेल/पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस उत्पादक क्षेत्र

राजस्थान भारत में कच्चे तेल का महत्वपूर्ण उत्पादक है। भारत के कच्चे तेल के कुल उत्पादन (30 एम.एम.टी.पी.ए.) में राज्य का योगदान लगभग 20 प्रतिशत (6 मिलियन मीट्रिक टन प्रतिवर्ष) है और यह बॉम्बे हाई, जो कि लगभग 40 प्रतिशत का योगदान देता है, के बाद दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।यहाँ न केवल तेल अपितु प्राकृतिक गैस का अपूर्व भण्डार है।
पेट्रोलीफेरस बेसिन के अन्तर्गत राजस्थान मे लगभग 1,50,000 वर्ग किमी.(14 जिलों) में निम्नलिखित 4 पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र चिन्हित किये गए है :-

क्र. सं.जिलाबेसिन1बाड़मेर एवं जालौर जिलेसांचौर बेसिन2जैसलमेर जिलाजैसलमेर बेसिन3बीकानेर, नागौर, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ एवं चूरू जिलेबीकानेर – नागौर बेसिन4कोटा, बारां, बून्दी, झालावाड़ जिले तथा
भीलवाड़ा एवं चित्तौड़गढ़ जिलों का कुछ हिस्साविंध्ययन बेसिन

खनिज तेल उत्पादक क्षेत्र

क्र. सं.जिलास्थान1बाड़मेर(सर्वाधिक)नागाणा, कौसल, नगर2जैसलमेरसाधेवाला, तनोट3बीकानेरबागेवाला, तुवरीवाला4हनुमानगढ़नानूवाला5बाड़मेरगुढ़ामालानी, कोसलू व सिणधरी

प्राकृतिक गैस उत्पादक क्षेत्र

  • जैसलमेर – शाहगढ़ तनौट, मनिहारीटिबा, चिमनेवाला घोटाडू व गमनेवाला
  • बीकानेर – बाघेवाला

राजस्थान रिफाईनरी परियोजना

एच.पी.सी.एल राजस्थान रिफाईनरी लिमिटेड, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन एवं राजस्थान सरकार का क्रमशः 74 प्रतिशत और 26 प्रतिशत की इक्विटी साझेदारी के साथ संयुक्त उद्यम है। 9 मिलियन टन वार्षिक क्षमता की रिफाईनरी सह-पेट्रोकेमिकल कॉम्पलेक्स परियोजना के कार्य का शुभारम्भ दिनांक 16 जनवरी, 2018 को पचपदरा, जिला बाड़मेर में किया गया।

अणु शक्ति खनिज

ऐसे खनिज जिनसे आणविक ऊर्जा प्राप्त की जाती है जैसे यूरेनियम, थोरियम, बेरिलियम, इल्मेनाइट आदि।

आणविक ऊर्जा

देश में ऊर्जा की बढ़ती हुई माँग और सीमित संसाधनों को देखते हुए परमाणु ऊर्जा का विकास किया गया है। यह ऊर्जा रेडियोधर्मी परमाणुओं के विखण्डन से प्राप्त की जाती है। प्राकृतिक विखण्डन जटिल एवं खर्चीला होता है। परन्तु इससे प्राप्त विद्युत सस्ती पड़ती है। इसका कारण है एक टन यूरेनियम से तीन मिलियन टन कोयले अथवा 12 मिलियन बैरल कच्चे तेल के बराबर ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है।विद्युत उत्पादन के अलावा इसका उपयोग ईंधन के रूप में भी किया जाता है। अंतरिक्ष यान, समुद्री पोतों और खाद्य प्रसंस्करण इकाईयों के लिए आणविक ऊर्जा का बहुत महत्व है।

देश में आणविक ऊर्जा के सम्बन्ध में मुख्य बिंदु:

  • भारत में परमाणु कार्यक्रम के शुभारम्भ कर्ता डॉ. होमी जहागीर भाभा थे। 1948 में परमाणु ऊर्जा आयोग(Atomic Energy Commission of India, AEC) की स्थापना हुई।
  • देश में परमाणु ऊर्जा के विकास हेतु 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग(Department of Atomic Energy, DAE) की स्थापना की गई थी।
  • 1954 में परमाणु ऊर्जा संस्थान ट्रॉम्बे में स्थापित किया गया। जिसे 1967 में भाभा अनुसंधान केन्द्र नाम दिया गया।
  • एशिया के पहले अनुसंधान रिएक्टर “अप्सरा” का परिचालन अगस्त 1956 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के ट्रॉम्बे परिसर में हुआ था।
  • भारतीय आणविक ऊर्जा अधिनियम, 1962 में आणविक और रेडियोधर्मी प्रौद्योगिकियों के विकास से सम्बंधित सभी पहलुओं के लिए कानून सम्मत अवसंरचना का प्रावधान किया गया है। इसके अंतर्गत आणविक प्रौद्योगिकियों की सुरक्षा किया जाना भी शामिल है।
  • 1969 में भारत के तारापुर परमाणु संयंत्र में आणविक ऊर्जा का उत्पादन शुरू हुआ था।
  • 1983 में भारत ने आणविक ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) की स्थापना की थी। यह भारत में ऊर्जा हेतु एक नियामक संस्था है जो परामाणु उर्जा के सुरक्षित उपयोग से संबन्धित पहलुओं पर निगरानी रखता है।
  • 1987 में भारतीय परमाणु विद्युत निगम की स्थापना की गई।
  • नाभिकीय विज्ञान अनुसंधान बोर्ड (BRNS) के द्वारा अनुसन्धान और विकास सम्बन्धी गतिविधियाँ की जाती हैं।

परमाणु शक्ति के स्रोत

परमाणु शक्ति के लिये रेडियोधर्मिता युक्त विशिष्ट प्रकार के खनिजों, यूरेनियम, थोरियम, बेरेलियम, ऐल्मेनाइट, जिरकन, ग्रेफाइट और एन्टीमनी का प्रयोग किया जाता है। इन सभी खनिजों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण आण्विक खनिज यूरेनियम व थोरियम हैं| आणविक ऊर्जा के उत्पादन के लिए यूरेनियम तथा थोरियम की बहुत सीमित मात्रा की आवश्यकता होती है। कम मात्रा में ही इनका प्रयोग कर बड़ी मात्रा में आणविक ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। भारत में इस प्रकार के खनिजों की उपलब्धि का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है।

सोना और चांदी कौन से खनिज है?

सोना और चाँदी धात्विक खनिज हैं। सोना और चांदी धात्विक खनिज के अंतर्गत आते हैं। खनिज मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं। धात्विक खनिज भी तीन श्रेणियों में बांटे जा सकते हैं। जैसे लौह धातु, अलौह धातु और बहुमूल्य खनिज

सोना कौन सी धातु से बनता है?

सोना आमतौर पर या तो अकेले या पारे या सिल्वर के साथ मिश्र धातु के रूप में पाया जाता है। कैलेवराइट, सिल्वेनाइट, पेटजाइट और क्रेनराइट अयस्कों के रूप में भी यह पाया जाता है। अब ज्यादातर स्वर्ण अयस्क या तो खुले गड्डों से आता है या फिर अंडरग्राउंड खानों से। कई बार इन अयस्कों में सोने की मात्रा बहुत कम होती है।

चांदी का कैसे बनता है?

चांदी इन धातुओं को संसाधित करने के उपज के रूप में उभरती है। जस्ता असर अयस्क से चांदी को ठीक करने के लिए, पार्क प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। इस विधि में, अयस्क गर्म हो जाता है जब तक यह पिघला हुआ हो जाता है। चूंकि धातुओं के मिश्रण को ठंडा करने की अनुमति दी जाती है, सतह पर जस्ता और चांदी के रूपों की एक परत।

सोना का निर्माण कैसे होता है?

चट्टानों पर जल के प्रभाव द्वारा स्वर्ण के सूक्ष्म मात्रा में पथरीले तथा रेतीले स्थानों में जमा होने के कारण पहाड़ी जलस्रोतों में कभी कभी इसके कण मिलते हैं। केवल टेल्डूराइल के रूप में ही इसके यौगिक मिलते हैं। भारत में विश्व का लगभग दो प्रतिशत स्वर्ण प्राप्त होता है। मैसूर की कोलार की खानों से यह सोना निकाला जाता है।