सूरदास भक्तिकालीन कवि और कृष्ण के अनन्य उपासक थे। इस लेख में आप सूरदास के पद जो कक्षा ग्यारहवीं में पढ़ना है , उसका सप्रसंग व्याख्या , काव्य सौंदर्य , प्रश्न उत्तर आदि का बारीकी से अध्ययन करेंगे। यह प्रश्न परीक्षा के अनुकूल है। Show
सूरदास को कृष्ण भक्ति का अग्रणी कवि माना जाता है , उनकी भक्ति कभी दास्य भाव की होती तो कभी सखा भाव की। उनके संदर्भ में अनगिनत कहानियां प्रचलित है , कभी उन्हें जन्मांध माना जाता है , तो कभी कुछ लोगों के अनुसार वह बाद में अंधे हुए । उनकी लेखनी जिन बारीकियों को उकेरती है वह किसी ना देखने वाले व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। ऐसा माना जाता है कि कृष्ण भक्ति के कारण उन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई थी , जिसके कारण उन्होंने कृष्ण के छवि को बारीकी से उकेरा था। सूरदास भक्तिकालीन कवि थे और सगुण रूप का उपासक थे , कृष्ण को अपना आराध्य मानकर उनकी भक्ति की और जनमानस में कृष्ण के महत्व को बताते हुए समाज को भक्ति का मार्ग दिखाया। सूरदास का संक्षिप्त जीवन परिचयजन्म – सूरदास का जन्म स्थान को लेकर साहित्यकारों में पर्याप्त मतभेद है। कुछ साहित्यकार सूरदास जी का जन्म आगरा मानते हैं तो कुछ मथुरा के बीच रुनकता नाम गांव में मानते हैं। रचनाएं –
काव्यगत विशेषताएं –
सप्रसंग व्याख्यासूर के पद -1खेलन में………………………………………………. करि नंद – दुहैया। प्रसंग – कवि – सूरदास कविता – पद संदर्भ – इस पर में कवि ने भगवान श्री कृष्ण की खेल में हार हो जाने को बड़े ही स्वाभाविक रूप में चित्रित किया है। श्रीदामा से हार जाने पर भी श्रीकृष्ण हार स्वीकार नहीं करते और रूठ कर एक और बैठ जाते हैं। पुनः खेलने का मन होने पर वे नंद बाबा की दुहाई देकर श्रीदामा को दांव देने के लिए तैयार हो जाते हैं। श्री कृष्ण की बाल सुलभ खीझ का व बाल लीला का स्वभाविक सहज वर्णन बड़े सुंदर ढंग से चित्रित किया गया है। व्याख्या –श्री कृष्ण और श्रीदामा खेल रहे हैं , जिसमें श्री कृष्णा हार जाते हैं। हारने पर भी वह श्रीदामा को दाव देने को तैयार नहीं होते , जिसके कारण श्रीदामा पर क्रोधित होने लगते हैं। श्रीदामा तथा अन्य मित्र कृष्ण से कहते हैं कि तुम हम पर इतना क्रोध क्यों दिखा रहे हो , खेल में कोई छोटा बड़ा नहीं होता सभी बराबर होता है। श्रीदामा , कृष्ण से कहते हैं ना तो तुम जाति में हमसे बड़े हो , ना ही हम तुम्हारे शरण में रहते हैं जो तुम इतनी ऐंठ दिखा रहे हो। हां तुम्हारे पास हमसे कुछ गाय अधिक है जिस पर तुम इतना अधिकार जता रहे हो। खेल में रुठ जाने वाले के साथ कोई खेलना पसंद नहीं करेगा। ऐसा कहकर सभी ग्वाल बाल इधर-उधर बैठ जाते हैं , हालांकि श्री कृष्ण भीतर मन से खेलना चाहते हैं , पर वह श्रीदामा पर ही एहसान रखते हुए। कहते हैं कि देखो मैं दोबारा खेल रहा हूं , वह नंद बाबा की दुहाई देते हैं। श्रीदामा की बाजी देने को तैयार हो जाते हैं। शिल्प सौंदर्य –
सप्रसंग व्याख्यासूरदास पद 2मुरली तऊ गुपलहि ……………………………………. सीस डुलावति। प्रसंग – कवि – सूरदास कविता – पद सन्दर्भ – प्रस्तुत पद में श्री कृष्ण की बांसुरी के प्रति गोपियों का सौतन भाव प्रकट हुआ है। श्री कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम होने के कारण गोपियां मुरली के प्रति ईर्ष्या की भाव रखती है। उनका कहना है कि मुरली श्रीकृष्ण को जैसे चाहती है वैसे नचाती है। वह उनको एक पाव पर खड़ा रहने को बाध्य कर देती है। अपनी हर आज्ञा का पालन करवाती है फिर भी श्री कृष्ण पूरी तरह मुरली के अधीन है। व्याख्या –एक सखी दूसरे सखी से कहती है कि मुरली श्रीकृष्ण को इतना परेशान करती है तो भी उन्हें मुरली अत्यधिक प्रिय है। बांसुरी श्री कृष्ण को नाना प्रकार से नचाती है। वह उनको एक पांव पर खड़ा रहने को बाध्य कर देती है तथा उन पर अपना पूर्ण अधिकार जमाती है। श्री कृष्ण का शरीर अत्यंत कोमल है , फिर भी मुरली उनसे अपनी आज्ञा का पालन करवाती है , उनकी आज्ञा का पालन करते-करते उनकी कमर तक टेढ़ी हो जाती है, फिर भी अपने कृतज्ञ बना देती है। गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले श्री कृष्ण की गर्दन तक को यह मुरली झुका देती है। मुरली स्वयं तो उनके अधर रूपी सैया पर लेटी रहती है और उनके हाथों से अपने पैर दबाती है। अर्थात श्री कृष्ण बांसुरी के छिद्रों पर हाथ फेरते है। मुरली बजाते बजाते श्री कृष्ण की बरौनिया टेढ़ी हो जाती है और नाक के नथुने फुल जाते हैं। इस मुद्रा को देखकर गोपियों को लगता है कि यह बांसुरी उन पर क्रोध कर रही है। यह सब मुरली के कारण ही हो रहा है। सूरदास जी कहते हैं कि गोपियों को लगता है कि यह मुरली श्री कृष्ण को क्षण भर में प्रसन्न कर लेती है और कृष्ण अपने पूरे शरीर को डुलाने लगते है अर्थात आनंद में झूमने लगते हैं। शिल्प सौंदर्य –
सूरदास के पदों पर आधारित प्रश्नप्रश्न – सूरदास श्रृंगार और वात्सल्य के अद्वितीय कवि हैं। अपने शब्दों में लिखिए। उत्तर – सूरदास श्रृंगार एवं वात्सल्य के अद्वितीय कवी हैं। कृष्ण भक्त कवियों में उनका स्थान सर्वोपरि है , उन्होंने सूरसागर नामक अमर काव्य की रचना की है। सूरदास द्वारा रचित पद विनय भक्ति , श्रृंगार , वात्सल्य , बाल लीला आदि से संबंधित है। सूरदास वात्सल्य का तो कोना-कोना झांक आए हैं। उन्होंने बालक कृष्ण की सरलता , चपलता , चंचलता , मातृस्नेह का सहज वर्णन हुआ है। मातृ हृदय के उत्साह और उल्लास का मनभावन वर्णन है। प्रश्न – कृष्ण को सुजान कनौडे क्यों कहा है ?उत्तर – सुजान का अर्थ है चतुर , कनौडे का अर्थ है कृपा से दबे रहने वाला। कृष्ण को सुजान कनौडे इसलिए कहा गया है क्योंकि वह मुरली के अधीन होकर कार्य करते हैं। मुरली ने चतुर्थ कृष्ण को भी अपना कृतज्ञ बना लिया है। वह मुरली की आज्ञा का पालन करते हैं। प्रश्न – पद में किस भाव का चित्रण किया गया है ? उत्तर – पद में प्रेम भाव का चित्रण किया गया है। जिसमें गोपियां कृष्ण प्रेम के वशीभूत होकर स्वयं और मुरली की तुलना करती है। मुरली जो श्री कृष्ण के अधरों पर सदैव विराजमान रहती है , उसे गोपियां सौतन मानती है। पूरा पद प्रेम और भक्ति भाव से सराबोर है। प्रश्न – श्रीदामा और अन्य ग्वाल सखाव ने कृष्ण के सम्मुख क्या-क्या तर्क दिए ? उत्तर – श्रीदामा तथा अन्य ग्वाल सखा ने कृष्ण को खेल में छोटा बड़ा होने का तर्क दिया। खेल सामर्थ को प्रकट करता है , घर की संपन्नता को नहीं। खेल खेलने की भावना खिलाड़ी में होनी चाहिए। खेल को खेलते समय दबाव बनाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। अन्य ग्वाल-बाल कृष्ण से किसी प्रकार कम नहीं थे , बस उनके पास गाय कुछ कम थी या धन-संपत्ति कम थी , लेकिन खेल में वह कृष्ण से अधिक थे। प्रश्न – सूरदास के वात्सल्य वर्णन को अपने शब्दों में लिखो ?उत्तर – सूरदास ने श्री कृष्ण के बाल रूप का सर्वाधिक वर्णन किया है। उनके साहित्य में कृष्ण के बाल रूप की छवि अधिक देखने को मिलती है। सूरदास जी ने कृष्ण के बाल छवि का जीवंत चित्रण किया है , जिसमें कृष्ण घुटने के बल चलते हुए धूल मिट्टी से लिपटे और हाथ में माखन लिए बाल क्रीड़ा करते है। गोपियां उन्हें किस प्रकार माखन के लिए ललचाती है और अपना स्वार्थ पूर्ति करती हैं। गोपियों के साथ लीला का प्रदर्शन , यशोदा मां का दुलार तथा नंद बाबा का प्रेम सूरदास जी ने प्रकट किया है जो वात्सल्य रूप का सशक्त उदाहरण है। प्रश्न – खेल में जातिवाद की भावना आना सूरदास के समय की सामाजिक व्यवस्था की कैसी स्थिति के बारे में संकेत करता है ? उत्तर – प्रस्तुत पद के माध्यम से सूरदास जी ने सामाजिक व्यवस्था का बारीकी से वर्णन किया है। उस समय समाज की स्थिति कैसी थी उसको समझाने का भी प्रयत्न किया है। सूरदास जी के अनुसार उस समय समाज गौधन पर आधारित था। जिसके पास गाय जितनी बड़ी मात्रा में हुआ करती थी वह उतना ऊंचा और श्रेष्ठ समझा जाता था। नंद बाबा के पास अधिक गाय थी जिसके कारण वह अपने समाज के मुखिया थे लोग उनका आदर किया करते थे। प्रश्न – कृष्ण ने नंद बाबा की दुहाई देकर दांव क्यों दिया ?उत्तर – कृष्ण किसी भी विपत्ति या स्वार्थ सिद्धि के लिए तथा मां यशोदा के पिटाई से बचने के लिए नंदबाबा का सहारा लिया करते थे। नंद बाबा कृष्ण को अत्यधिक प्रेम किया करते थे , वह उनकी गलतियों पर भी विरोध नहीं किया करते थे। समाज में नंद बाबा की स्थिति मजबूत थी, लोग उनका आदर सत्कार किया करते थे और अपना मुखिया मानते थे। कृष्ण इस स्थिति का लाभ सदैव लिया करते थे कि वह नंद बाबा के पुत्र हैं। उन्होंने खेल में भी इसका लाभ लेना चाहा और नंद बाबा की दुहाई देने लगे। प्रश्न – खेल में किस चीज का स्थान नहीं है ? उत्तर – खेल में जात-पात छोटा बड़ा का कोई स्थान नहीं होता है। खेलने वाला व्यक्ति अपनी कुशलता को एक दूसरे से श्रेष्ठ साबित करता है। प्रश्न – सूरदास के काव्य की विशेषताएं बताइए ? उत्तर – सूरदास के काव्य की यही विशेषता है कि उन्होंने वात्सल्य रस तथा भक्ति रस का बड़ा ही सुंदर और सजीव चित्रण किया है। सूरदास ने जहां सखा रूप में भक्ति किया है , वही एक भक्तों का रूप भी उन्होंने दिखाया है। जिसमें कृष्ण को विष्णु का अवतार और जगत पालनकर्ता के रूप में स्पष्ट किया गया है , जो समाज की सदैव रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। काव्य सौंदर्य लिखिए“कोमल तन आज्ञा करावति , कटि डेढ़ौ हवे आवति। अति अधीन सुजान कनौडे , गिरधर नार नवावति। ।” उत्तर – भाव पक्ष – उपरोक्त पद में गोपियां श्री कृष्ण के अधरों पर मुरली को देखकर अपने मन की वेदना को प्रकट कर रही है। दिन-रात गोपियां कृष्ण का प्रेम प्राप्त करने के लिए संघर्ष करती है , किंतु उसे कृष्ण का प्रेम प्राप्त नहीं होता। वही मुरली सदैव कृष्ण के होठों पर विराजमान रहती है , यह मुरली गोपियों की सौतन का कार्य कर रही है , जिसमें गोपियां अपनी अवहेलना पाती है। गोपी कहती है मुरली अपने इशारों पर कृष्ण को जैसा चाहे वैसा नाचाती है। कृष्ण का शरीर इतना कोमल है फिर भी वह मुरली के वशीभूत होकर घंटों एक पैर पर खड़े रहते हैं। कई बार उनका शरीर अकड़ जाता है , उनके आंखें लाल हो जाती है , भौ तने जाते हैं मगर फिर भी कृष्ण मुरली से प्रेम नहीं छोड़ते। काश इस प्रकार का प्रेम हम सभी नारियों को अर्थात गोपियों को प्राप्त हो सकता। शिल्प पक्ष – कवी – सूरदास कविता – पद रस – शृंगार रस भाषा – ब्रज अलंकार – मुरली का मानवीकरण किया गया है अर्थात मानवीकरण अलंकार है। गुण – माधुर्य सूरदास के महत्त्वपूर्ण प्रश्न उत्तर – Question and answerप्रश्न – मुरली के प्रति गोपियों का क्या भाव है ? उत्तर – मुरली के प्रति गोपियों का बैरन का भाव है , क्योंकि जिस स्थान पर गोपियों को होना चाहिए वहां मुरली ने अपनी साख जमा ली है। प्रश्न – सखियां आपस में क्या-क्या बात करती है ? उत्तर – सखियां आपस में मुरली और स्वयं के प्रति होने वाले बर्ताव के बारे में बात करती है। जिस प्रकार मुरली कृष्ण को अधिक प्यारा है उस प्रकार काश हम लोग भी प्यारे होते और कृष्ण का स्नेह प्यार हमें भी मिल पाता। इस प्रकार की वार्तालाप सखियां करती हैं। प्रश्न – मुरली कृष्ण से क्या-क्या कार्य करवाती है ? उत्तर – मुरली कृष्ण से मनचाहा कार्य करवाती है , अगर मुरली निरंतर बजने की आज्ञा देती है तो वह उसके वशीभूत निरंतर बांसुरी को बजाते हैं। बांसुरी के ही इशारे पर कृष्ण घंटों एक पैर पर खड़े रहते हैं। भूख -प्यास लगने पर भी वह बांसुरी का मोह नहीं छोड़ते अर्थात मुरली कृष्ण से मनचाहा कार्य करवाती है। प्रश्न – गोपियों को ऐसा क्यों लगता है कि मुरली ही कृष्ण के क्रोध का कारण है ? उत्तर – क्योंकि मुरली कृष्ण और गोपियों के प्रेम में बाधा उत्पन्न करती है। कृष्ण मुरली से इतना अधिक प्रेम करते हैं कि उन्हें गोपियों की सुध नहीं रहती। मुरली के प्रेम के आगे किसी और कि उन्हें खबर तक नहीं रहती। यह भी पढ़ेंEidgah premchand summary in hindi Chapter Kabir Class 11 Sangya in Hindi Grammar – संज्ञा की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण। अलंकार की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण – Alankar in hindi सर्वनाम की पूरी जानकारी – परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण – Sarvanam in hindi Hindi varnamala | हिंदी वर्णमाला की पूरी जानकारी अनेक शब्दों के लिए एक शब्द – One Word Substitution उपसर्ग की संपूर्ण जानकारी Abhivyakti aur madhyam ( class 11 and 12 ) रस की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण श्रृंगार रस – भेद, परिभाषा और उदाहरण Sampadak ko Patra |