सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति का सुकुमार क्यों कहा जाता है? - sumitraanandan pant ko prakrti ka sukumaar kyon kaha jaata hai?

Question

Prakrati ke Sukumar kise kaha jata hai ?

प्रकृति के सुकुमार किसे कहा जाता है ?

A.Suryakant Tripathi Nirala(सूर्यकांत त्रिपाठी निराला )

B.Sumitranandan Pant(सुमित्रानंदन पंत )

C.Jayshankar Prasad(जयशंकर प्रसाद )

D.Ramdhari Singh Dinkar(रामधारी सिंह दिनकर )

Answer B.

B.

प्रकृति के सुकुमार सुमित्रानंदन पंत को कहा जाता है l वह प्रकृति को अपनी मां मानते थे और अपनी समस्त रचनाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत भी वह प्रकृति को ही मानते थे। यही कारण है कि सुमित्रानंदन पंत जी को प्रकृति के सुकुमार कवि के नाम से जाना जाता है। इसलिए सही उत्तर विकल्प B है।

B.

प्रकृति के सुकुमार सुमित्रानंदन पंत को कहा जाता है l वह प्रकृति को अपनी मां मानते थे और अपनी समस्त रचनाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत भी वह प्रकृति को ही मानते थे। यही कारण है कि सुमित्रानंदन पंत जी को प्रकृति के सुकुमार कवि के नाम से जाना जाता है। इसलिए सही उत्तर विकल्प B है।

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Question

Avagya Ka prayayvachi shabd hai ?

अवज्ञा का पर्यायवाची शब्द है ?

Answer B.

Question

Nimnlikhit prashn me samas ke liye char viklp diye gye hai? Shi viklp ka chayan kare. Chakrapani

निम्नलिखित प्रश्न में समास के लिए चार विकल्प दिए गये है? सही विकल्प का चयन करे l चक्रपाणि

Answer A.

Question

Nimnlikhit prashn me vakyansh ke anek shabdo ke sthan pr ek shabd ke liye char-char vikalp diye hai inme se koi ek viklp shi hai. Shi vklp chuniye. Jo vaani dwara vyakt na kiya ja sake.

निम्नलिखितप्रश्न में वाक्यांश के अनेक शब्दों के स्थान पर एक शब्द के लिए चार-चार विकल्प दिए गये है इनमे से कोई एक विकल्प सही है. सही विकल्प को चुनिए ? जो वाणी द्वारा व्यक्त न किया जा सके -

A.Aatmsakshatkar(आत्मसाक्षात्कार )

C.Anirvachniye(अनिर्वचनीय)

Answer C.

Question

Muhavare k liye uchit vikalp ka chayan kare. Ande ka shahjada -

मुहावरे के लिए उचित विकल्प का चयन कीजिए। अंडे का शहजादा -

A.Kamjor vyakati(कमजोर व्यक्ति)

B.Chalak vyakti(चालाक व्यक्ति)

C.Anubhavi vyakti(अनुभवी व्यक्ति )

D.Anubhavheen vyakati(अनुभवहीन व्यक्ति)

Answer D.

बरेली। इज्जत नगर रेल मंडल की ओर से राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठक में बरेली कालेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डा. अशोक उपाध्याय ने महान कवि डा. सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति का सुकुमार कवि बताया।

मंडलीय सभाकक्ष में उन्होंने कहा कि पंत ने हिंदी साहित्य में छायावाद युग का प्रारंभ किया था। प्रकृति में मानवीय व्यापारों एवं मनोभावों की छाया की काव्य प्रस्तुति छायावाद है। छायावाद कविता की भाषा में सहजता एवं सुकोमलता पाई जाती है। इसमें अनंत सत्ता के प्रति प्रेम प्रकट किया जाता है। उन्होंने कहा कि पंत जी ने प्रकृति के कण कण में मानवीय सौंदर्य और प्रेम का अनुभव किया था। डीआरएम चंद्रमोहन जिंदल ने पंत को हिंदी साहित्य का युग प्रवर्तक बताया जिन्होंने भाषा को निखार और संस्कार देने के अलावा उसके प्रभाव को भी सामने लाने का प्रयत्न किया। अपर मंडल रेल प्रबंधक के अलावा राजभाषा समिति से जुड़े तमाम अफसर मौजूद रहे। संचालन राजभाषा अधिकारी राजेंद्र कुमार ने किया।

अपनी कविता के माध्यम से प्रकृति की सुवास सब ओर बिखरने वाले कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौसानी (जिला बागेश्वर, उत्तराखंड) में 20 मई, 1900 को हुआ था। जन्म के कुछ ही समय बाद मां का देहांत हो जाने से उन्होंने प्रकृति को ही अपनी मां के रूप में देखा और जाना।

दादी की गोद में पले बालक का नाम गुसाई दत्त रखा गया; पर कुछ बड़े होने पर उन्होंने स्वयं अपना नाम सुमित्रानंदन रख लिया। सात वर्ष की अवस्था से वे कविता लिखने लगे थे। कक्षा सात में पढ़ते हुए उन्होंने नेपोलियन का चित्र देखा और उसके बालों से प्रभावित होकर लम्बे व घुंघराले बाल रख लिये।

प्राथमिक शिक्षा के बाद वे बड़े भाई देवीदत्त के साथ काशी आकर क्वींस कॉलिज में पढ़े। इसके बाद प्रयाग से उन्होंने इंटरमीडियेट उत्तीर्ण किया। 1921 में ‘असहयोग आंदोलन’ के दौरान जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने सरकारी विद्यालय, नौकरी, न्यायालय आदि के बहिष्कार का आह्वान किया, तो उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और घर पर रहकर ही हिन्दी, संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी का अध्ययन किया।

प्रयाग उन दिनों हिन्दी साहित्य का गढ़ था। अतः वहां का वातावरण उन्हें रास आ गया। 1955 से 1962 तक वे प्रयाग स्थित आकाशवाणी स्टेशन में मुख्य कार्यक्रम निर्माता तथा परामर्शदाता रहे। भारत में जब टेलीविजन के प्रसारण प्रारम्भ हुआ, तो उसका भारतीय नामकरण ‘दूरदर्शन’ उन्होंने ही किया था।

जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और महादेवी वर्मा के साथ वे छायावाद के प्रमुख कवि माने जाते हैं। उन्होंने गेय तथा अगेय दोनों तरह की कविताएं लिखीं। वे आजीवन अविवाहित रहे; पर उनके काव्य में नारी को मां, पत्नी, सखी, प्रिया आदि विविध रूपों में सम्मान सहित दर्शाया गया है। उनका सम्पूर्ण साहित्य ‘सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम्’ के आदर्शों से प्रभावित है।

उनकी प्रारम्भिक कविताओं में प्रकृति प्रेम के रमणीय चित्र मिलते हैं। दूसरे चरण में वे छायावाद की सूक्ष्म कल्पनाओं और कोमल भावनाओं से खेलते हुए नजर आते हैं। इसके बाद उनका झुकाव फ्रायड और मार्क्सवाद की ओर हुआ। इसके प्रसार हेतु 1938 में उन्होंने ‘रूपाभ’ नामक मासिक पत्रिका भी निकाली; पर पांडिचेरी में अरविन्द के दर्शन से वामपंथ का यह नशा उतर गया और फिर उन्होंने मानव कल्याण से संबंधित कविताएं लिखीं।

पंत के जीवन के हर पहलू में काव्य की मधुरता और सौंदर्य की छवि दिखाई देती है। सरस्वती पत्रिका के सम्पादक देवीदत्त शुक्ल को उनके बालों में भी कवित्व के दर्शन होते थे। दर्जी के पास घंटों खड़े रहकर वे कपड़ों के लिए अपनी पंसद के नये-नये कलात्मक डिजाइन बनवाते थे।

उत्तराखंड के झरने बाग बर्फ पुशो लाता भंवरा गुंजन उषा किरण शीतल पवन तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब प्रतिदिन देख पंत ने सहज रूप से कविताओं की रचना की। ये सब उनकी कविताओं में वर्णित है। निसर्ग के उपादानों का प्रतीक व बिम्ब के रूप मर प्रयोग उनकी काव्य की विशेषता हौ। उनका व्यक्तित्व बहुमुखी था। एक गज़ब का आकर्षण था उनमें। गौर वर्ण लंबे लंबे घुंघराले बाल रखते थे। ऊंची आवाज में बतियाते थे। शारीरिक सौष्ठव देखते ही बनता था। पंत वृति से शिक्षक थे। अच्छे लेखक थे। उन्होंने कई गीत व कविताएँ लिखी जो कालजयी बनी। रहस्यवाद प्रगतिवाद आंदोलन किए। पंत जब सात वर्ष के थे तभी से उन्होंने कविता लिखना प्रारम्भ कर दिया था। उस समय वे कक्षा चार में पढ़ते थे।

उनकी प्रमुख रचनाएं

अनुभूति,महात्मा के प्रति, मोह, सांध्य वंदना, वायु के प्रति, सूर्यकान्त त्रिपाठी के प्रति आज रहने दो यह ग्रह काज, चंचल पग दीप शिखा से, संध्या के बाद, वे आंखे, विजय, लहरों का गीत, यह धरती कितना देती है में सबसे छोटी होऊं, मछुए का गीत, चांदनी, जीना अपने में ही, बापू के प्रति ग्रामश्री, जग के उर्वर आंगन में, काले बादल, तप रे, आज़ाद, द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र, गंगा, अमर स्पर्श, आओ हम अपना मन टोवे, परिवर्तन, जग जीवन में जो चिर महान, पाषाण खण्ड, नौका व विहार, भारत माता, आत्मा का चिर धन, धरती का आंगन इठलाता, बाल प्रश्न, ताज, बांध दिए क्यों प्राण, चींटी, याद, वह बुड्ढ़ा, घण्टा, बापू, प्रथम रश्मि, दो लड़के, पर्वत प्रदेश में पावस, छोड़ द्रुमों की मृदु छाया, धेनुएँ, पंद्रह अगस्त उन्नीस सौ सैतालीस, गीत विहंग।

सुमित्रानंदन पंत नए युग के प्रवर्तक कहे जाते हैं। प्रकृति चित्रण करने वाले पंत आकर्षक व्यक्तित्व के धनी कहे जाते हैं। पंत अंग्रेजी के रूमानी कवियों जैसी वेशभूषा में रहते थे। प्रकृति केंद्रित साहित्य की रचना करने वाले कवि थे। हिंदी साहित्य के विलियम वर्ड्सवर्थ कहे जाते थे। इन्होंने ही अमिताभ बच्चन को अमिताभ नाम दिया था।

पंत की प्रारम्भिक कविताएं ‘वीणा’ में संकलित हैं। उच्छवास तथा पल्लव उनकी छायावादी कविताओं का संग्रह है। ग्रंथी, गुंजन, लोकायतन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूलि, कला और बूढ़ा चांद, चिदम्बरा, सत्यकाम आदि उनकी अन्य प्रमुख कृतियां हैं। उन्होंने पद्य नाटक और निबन्ध भी लिखे। उनके जीवन काल में ही 28 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी थीं।

‘पद्मभूषण’ तथा ‘साहित्य अकादमी’ सम्मान से अलंकृत पंत को ‘चिदम्बरा’ के लिए ज्ञानपीठ तथा ‘लोकायतन’ के लिए सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार मिला। ज्ञानपीठ पुरस्कार से प्राप्त राशि उन्होंने एक संस्था को दे दी। पंत को पद्मभूषण 1961 में, ज्ञानपीठ पुरस्कार 1968 में सहित साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा अन्य कई पुरस्कार प्रदान किए गए। ज्ञानपीठ पुरस्कार उन्हें “चिदम्बरा’ ‘ काव्य कृति हेतु प्रदान किया गया था। पंत की रचनाओं में समाज के यथार्थ के साथ ही प्रकृति चित्रण भी देखा जा सकता है। आधी सदी से भी अधिक लंबे रचनाकाल में पंत ने कई रचनाएँ लिखी।

नेपोलियन से प्रभावित होकर इन्होंने अपने बाल भी उन्हीं की तरह रखे थे। बालपन में दादी की कहानियों ने इन्हें कवि बना दिया। पल्लव इनका तीसरा कविता संग्रह खूब लोकप्रिय हुआ जो 1928 में प्रकाशित हुआ।इनकी कविता अमर स्पर्श में लिखते हैं–

खिल उठा हृदय

पा स्पर्श तुम्हारा अमृत अभय

खुल गए साधना के बंधन

संगीत बना उर का रोदन

अब प्रीति द्रवित प्राणों का पण

सीमाएं अमिट हुई सब लय

क्यों रहे न जीवन में सुख दुख

क्यों जन्म मृत्यु से चित्त विमुख

तुम रहो दृगों के जो सम्ममुख

प्रिय हो मुझको भृम भय संशय

तन में आयें शैशव यौवन

मन में हो, विरह मिलन के व्रण

युग स्तिथियों से प्रेरित जीवन

उर रहे प्रीति में चिर तन्मय

जो नित्य अनित्य जगत का क्रम

व रहे न कुछ बदले हो कम

हो प्रगति हास का भी विभ्रं

जग से परिचय तुम से परिणय

तुम सुंदर से बन अतिसुन्दर

आओ अंतर में अंतरतर

तुम विजयी जो प्रिय हो मुझ पर

वरदान पराजय हो निश्चय।

पल्लव ऐसी ही कुल 32 कविताओं का बेहतरीन संकलन है। उन्होंने अपने जीवनकाल में 28 कृतियां लिखी। विस्तृत वांग्मय उनका आज भी सुरक्षित है। पंत एक दार्शनिक, विचारक, मानवतावादी दृष्टिकोण के कवि साहित्यकार थे। इनका व्यक्तिगत संग्रहालय का नाम ‘‘सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक वीथिका’ ‘ के नाम से आज भी मौजूद है। ये प्रगतिशील लेखक संघ सर जुड़े रहे। इनके साथ रघुपति सहाय व शमशेर प्रमुख थे। सत्र 1955 से 1962 तक ये आकाशवाणी में मुख्य निर्माता के पद पर सेवारत रहे।

वीणा पल्लव के छोटे गीत विराट व्यापक सौंदर्य व पवित्रता से साक्षत्कार कराते हैं। 1907 से 1918 का इनकी साहित्य यात्रा का प्रथम चरण कहलाता हैं। पंत ने साहित्य यात्रा के तीन पड़ावों में छायावादी, समाजवादी, प्रगतिवादी बन उत्कृष्ट व कालजयी रचनाओं का सृजन किया।

प्रकृति चित्रण करते ये लिखते हैं:-

 “जौ गेंहूं की स्वर्णिम बाली।

भू का अंचल वैभवशाली।।’ ‘

इनके नाम से इलाहाबाद में एक उद्यान है जिसे सुमित्रानंदन उद्यान कहा जाता है। उनका मानना था कि स्वाध्याय से ही साहित्य और दर्शन का ज्ञानार्जन होता है। पंत के काव्य में प्रकृति का बहुत आत्मीय गहरा और व्यापक चित्रण मिलता है जो हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है। ये कविता में शब्दों का चयन बखूबी करते थे। उनकी कविताओं में शब्द संगीत, चित्रात्मकता एवम व्यंजना प्रधान अर्थ देने की अद्भत क्षमता है। उन्हें “प्रकृति के सुकुमार कवि“ कहा जाता है क्योंकि उनकी रचनाओं में कोमल कान्त पदावली है। उनकी स्वच्छन्दतावादी रुचि है।

पंत ने खड़ी बोली को मिठास दिलाई।हिंदी को “युगवाणी’ ‘ की संज्ञा दी। पंत की प्रगतिशील दौर की कविता वे आंखे में किसानों का दुख दर्द लिखा। उनकी कविता संध्या के बाद में उन्होंने गांवों के लोगों की विपन्नता,गरीबी के दृश्य का सुंदर शब्दों में वर्णन किया है। कविता ग्राम में उन्होंने ग्राम्य प्रकृति पर आधारित कविता लिखी।गांवों की प्राकृतिक सुषमा और समृद्धि का मनोहारी वर्णन किया है।

 वे लिखते हैं–

फैली खेतों में दूर तलक

मखमल की कोमल हरियाली,

लिपटी जिसमें रवि की किरणें

चाँदी की सी उजली जाली!

तिनकों के हरे – हरे तन पर

हिल हरित रुधिर है रहा झलक,

श्यामल भूतल पर झुका हुआ

नभ का चिर निर्मल नील फलक!

सैकड़ों मान-सम्मानों से विभूषित, प्रकृति के इस सुकुमार कवि का 28 दिसम्बर, 1977 को निधन हुआ। उनकी स्मृति में कौसानी स्थित उनके घर को ‘सुमित्रानंदन पंत वीथिका’ नाम से एक संग्रहालय बना दिया गया है, जहां उनकी निजी वस्तुएं, पुस्तकों की पांडुलिपियां, सम्मान पत्र आदि रखे हैं।

©रीमा मिश्रा, आसनसोल (पश्चिम बंगाल)

सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति का सुकुमार कवि क्यों कहा जाता है?

छायावादी युग के महान साहित्यकार सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति के सुकुमार कवि के नाम से जाना जाता है। क्योंकि उन्हें प्रकृति से बहुत लगाव था। वे प्रकृति को ही अपनी माता मानते थे तथा अपनी समस्त कृतियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत वह प्रकृति को ही मानते थे। यही कारण है कि पंत जी को प्रकृति के सुकुमार कवि के नाम से जाना जाता है।

क्या सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं?

काव्य डेस्क सुमित्रानंदन पंत को 'प्रकृति के सुकुमार कवि' के रूप में भी जाना जाता है, उनका जन्म आज के उत्तराखण्ड के बागेश्वर ज़िले के कौसानी में 20 मई 1900 को हुआ। जन्म के कुछ ही घंटों बाद उनकी माँ परलोक सिधार गईं। उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया। पंत जी का बचपन में गोसाईं दत्त नाम रखा गया था।

प्रकृति के सुकुमार कवि कहलाते हैं कौन?

सुमित्रनंदन पंत : प्रकृति के सुकुमार कवि

सुमित्रानंदन पंत को क्या कहा जाता है?

सुमित्रानंदन पंत को हिन्दी का 'वर्डस्वर्थ" कहा जाता है। सुमित्रानंदन पंत ऐसे साहित्यकारों में गिने जाते हैं, जिनका प्रकृति चित्रण समकालीन कवियों में सबसे बेहतरीन था। वर्ष 1968 में सुमित्रानंदन पंत को उनकी प्रसिद्ध कविता संग्रह “चिदम्बरा” के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।