महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ पर हनुमान जी के विराजित होने के पीछे भी कारण है। इसका वर्णन आनंद रामायण में किया गया है। वर्णन के अनुसार एक बार रामेश्वरम् तीर्थ में अर्जुन और हनुमानजी जी का मिलना... Show
Yuvrajलाइव हिन्दुस्तान टीम, मेरठ Fri, 11 Dec 2020 08:04 PM हमें फॉलो करें ऐप पर पढ़ें महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ पर हनुमान जी के विराजित होने के पीछे भी कारण है। इसका वर्णन आनंद रामायण में किया गया है। वर्णन के अनुसार एक बार रामेश्वरम् तीर्थ में अर्जुन और हनुमानजी जी का मिलना होता है। इस दौरान अर्जुन ने हनुमान जी से लंका युद्ध का जिक्र किया और पूछा कि जब श्री राम श्रेष्ठ धनुषधारी थे तो फिर उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए पत्थरों का सेतु क्यों बनवाया? यदि मैं होता तो समुद्र पर बाणों का सेतु बना देता, जिस पर चढ़कर आपका पूरा वानर दल समुद्र पार कर लेता। यह सुनकर हनुमानजी से कहा कि बाणों का सेतु वहां टिक नहीं पाता, वानर दल का जरा सा भी बोझ पड़ते सेतु टूट जाता। इस पर अर्जुन कुछ बुरा लगा और उन्होंने कहा हनुमान जी से एक अजीब सी शर्त रख दी। अर्जुन ने कहा कि सामने एक सरोवर पर वह अपने बाणों से सेतु बनाएगा, अगर वह आपके वजन से टूट गया तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाउंगा और यदि नहीं टूटता है तो आपको (हनुमान जी को) अग्नि में प्रवेश करना होगा। हनुमानजी ने इसे सहर्ष ही स्वीकार कर लिया और कहा कि मेरे दो चरण ही इस सेतु ने झेल लिए तो मैं पराजय स्वीकार कर लूंगा और अग्नि में प्रवेश कर जाउंगा। इसके बाद अर्जुन ने अपने प्रचंड बाणों से सरोवर पर सेतु तैयार कर दिया। जैसे ही सेतु तैयार हुआ हनुमान जी अपने विराट रूप में आ गए और भगवान श्री राम का स्मरण करते हुए उस बाणों के सेतु पर चढ़ गए। पहला पग रखते ही सेतु सारा का सारा डगमगाने लगा, दूसरा पैर रखते ही चरमराया और तीसरा पैर रखते ही सरोवर के जल में खून ही खून हो गया। हनुमानजी सेतु से नीचे उतर आए और अर्जुन से कहा कि मैं पराजित हो गया अग्नि तैयार करो। अग्नि प्रज्वलित हुई तो हनुमान जी उसमें जाने लगे लेकिन उसी पल भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए और उन्हें रोक दिया। भगवान ने कहा- हे हनुमान, आपका तीसरा पग सेतु पर पड़ा, उस समय मैं कछुआ बनकर सेतु के नीचे लेटा हुआ था, आपके पैर रखते ही मेरे कछुआ रूप से रक्त निकल गया। यह सेतु टूट तो पहले ही पग में जाता यदि में कछुआ रूप में नहीं होता तो। यह सुनकर हनुमान को काफी कष्ट हुआ और उन्होंने क्षमा मांगी। मैं तो बड़ा अपराधी निकला आपकी पीठ पर मैंने पैर रख दिया। मेरा ये अपराध कैसे दूर होगा भगवन्? तब कृष्ण ने कहा, ये सब मेरी इच्छा से हुआ है। आप मन खिन्न मत करो और मेरी इच्छा है कि तुम अर्जुन के रथ की ध्वजा पर स्थान ग्रहण करो। इसलिए द्वापर में श्रीहनुमान महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ के ऊपर ध्वजा लिए बैठे रहते हैं। Mahabharat's Interesting Facts: 18 दिन के महाभारत युद्ध (Mahabharat War) ने सब कुछ खत्म कर दिया था. इस युद्ध ने कौरवों का लालच, उनके पाप कर्म, धृतराष्ट्र का पुत्र मोह ही खत्म नहीं किया था, बल्कि कई शूरवीरों, लाखों योद्धाओं को भी मौत की नींद सुला दिया था. महाभारत युद्ध से जुड़ी कई रोचक बातें मशहूर हैं और कई रहस्य भी हैं, जो आज भी अनसुलझे हैं. ऐसी ही एक खास बात अर्जुन के रथ (Arjun's Chariot) से जुड़ी थी, जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. अर्जुन के रथ पर श्रीकृष्ण के अलावा भी थे 2 सवारपूरे महाभारत के दौरान अर्जुन के रथ पर उनके अलावा सबको सारथी के रूप में केवल भगवान श्रीकृष्ण ही नजर आ रहे थे. जबकि असलियत में उस रथ पर इन दोनों के अलावा भी 2 सवार थे. दरअसल, युद्ध शुरू होने से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि यह युद्ध बहुत भयावह होगा क्योंकि इसमें एक से एक शूरवीर युद्ध करेंगे. लिहाजा हनुमान जी से प्रार्थना करो कि वो तुम्हारे रथ के ऊपर ध्वज के साथ विराजमान हों. अर्जुन ने हनुमान जी से रथ पर विराजमान होने की प्रार्थना की, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया. इसके अलावा रथ के पहियों को स्वयं शेषनाग ने थामे रखा था, ताकि उन पर युद्ध में प्रयोग हो रहे भयानक अस्त्र-शस्त्रों का असर न पड़े. यह भी पढ़ें: Vastu Tips For Goodluck: घर में रख लें मिट्टी की ये चीजें, सोने सी चमक जाएगी किस्मत; जानें रखने की सही दिशा धू-धू कर जल उठा था रथजैसे ही महाभारत का युद्ध खत्म हुआ अर्जुन का रथ अपने आप धू-धू करके जल उठा था और देखते ही देखते राख हो गया था. युद्ध समाप्त होते ही भगवान श्रीकृष्ण ने सबसे पहले अर्जुन से रथ से उतरने को कहा और इसके बाद वे स्वयं रथ से उतरे. इन दोनों के उतरते ही हनुमान जी और शेषनाग भी अंतर्धान हो गए. इसके बाद तत्काल ही रथ जलकर भस्म हो गया. यह देखकर अर्जुन हैरान रह गए. तब श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि ये रथ तो भीष्म पितामह, आचार्य द्रोणाचार्य और कर्ण के प्रहारों से पहले ही समाप्त हो चुका था लेकिन इस रथ पर हनुमानजी, शेषनाग और उनके सारथी के तौर पर विराजमान होने के कारण केवल संकल्प से चल रहा था. अब हमारे रथ से उतरते ही यह भस्म हो गया. (Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
महाभारत में कौरव सेना में भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण जैसे महारथी थे। इसीलिए दुर्योधन को लग रहा था कि वह आसानी से पांडवों को युद्ध में हरा देगा, लेकिन पांडव पक्ष में श्रीकृष्ण स्वयं थे। वे अर्जुन के सारथी बने और युद्ध शुरू होने से पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि हनुमानजी से प्रार्थना करो और अपने रथ के ऊपर ध्वज के साथ विराजित करो। श्रीकृष्ण की बात मानकर अर्जुन ने ऐसा ही किया। जानिए अर्जुन के रथ से जुड़ी एक प्रचलित कथा... कथा के अनुसार अर्जुन का रथ श्रीकृष्ण चला रहे थे और स्वयं शेषनाग ने रथ के पहियों को पकड़ रखा था, ताकि दिव्यास्त्रों के प्रहार से भी रथ पीछे न खिसके। अर्जुन के रथ की रक्षा श्रीकृष्ण, हनुमानजी और शेषनाग कर रहे थे। जब युद्ध समाप्त हो गया तो अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि पहले आप रथ से उतरिए मैं आपके बाद उतरूंगा। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि नहीं अर्जुन पहले तुम उतरो। भगवान की बात मानकर अर्जुन रथ से उतर गए, इसके बाद श्रीकृष्ण भी रथ उतर गए। शेषनाग पाताल लोक चले और हनुमानजी रथ के ऊपर से अंतर्ध्यान हो गए। जैसे ही ये सब उतर गए तो अर्जुन के रथ में आग लग गई। थोड़ी ही देर में रथ पूरी तरह जल गया। ये देखकर अर्जुन हैरान गए। उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा कि भगवान ये कैसे हुआ? श्रीकृष्ण ने कहा कि ये रथ तो भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण के दिव्यास्त्रों के प्रहारों से पहले ही खत्म हो चुका था। इस रथ पर हनुमानजी विराजित थे, मैं स्वयं इसका सारथी था, इस वजह ये रथ सिर्फ मेरे संकल्प की वजह से चल रहा था। अब इस रथ का काम पूरा हो चुका है। इसीलिए मैंने ये रथ छोड़ दिया और ये भस्म हो गया है। महाभारत के युद्ध के बाद अर्जुन के रथ का क्या हुआ?कृष्ण बोले- 'हे अर्जुन- ये रथ तो भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण के दिव्यास्त्रों के वार से बहुत पहले ही जल गया था, क्योंकि पताका लिए हनुमानजी और मैं स्वयं रथ पर बैठा था, इसलिए यह रथ मेरे संकल्प से चल रहा था। अब जब कि तुम्हारा काम पूरा हो चुका है, तब मैंने उसे छोड़ दिया, इसलिए अब ये रथ भस्म हो गया।
महाभारत में अर्जुन का रथ कौन चला रहा था?कथा के अनुसार अर्जुन का रथ श्रीकृष्ण चला रहे थे और स्वयं शेषनाग ने रथ के पहियों को पकड़ रखा था, ताकि दिव्यास्त्रों के प्रहार से भी रथ पीछे न खिसके। अर्जुन के रथ की रक्षा श्रीकृष्ण, हनुमानजी और शेषनाग कर रहे थे।
महाभारत में अर्जुन की मौत कैसे हुई थी?कुंती पुत्र अर्जुन को महाभारत के समय का सबसे बड़ा धनुर्धर माना गया है। ऐसा भी माना जाता है कि अर्जुन के पास अगर धनुष चलाने का कौशल नहीं होता तो पाण्डव शायद ही महाभारत युद्ध जीत पाते। साथ ही अधिकतर लोग यही जानते हैं की अर्जुन की मृत्यु पांडवों के सशरीर स्वर्ग यात्रा के दौरान हुई थी।
महाभारत में अर्जुन के रथ में कितने घोड़े थे?वरुण ने ही अर्जुन को गांडीव धनुष दिया था जबकि मदद से खुश होकर अग्नि देव ने अर्जुन को दिव्य रथ दिया जिसमें चार घोड़े बंधे थे।
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