सबसे हानिकारक गैस कौन सी है? - sabase haanikaarak gais kaun see hai?

नासा सैटेलाइट तस्वीरों और आंकड़ों से पता चला है कि 97% SO2 उत्सर्जन वहां पर है जहां कोयला बड़ी मात्रा में जलाया जा रहा है. ऐसे सभी हॉटस्पॉट भारत के थर्मल पावर प्लांट वाले इलाके हैं. सिंगरौली, कोरबा, झारसुगुड़ा, कच्छ, चेन्नई, रामागुंडम, चंद्रपुर और कोराड़ी इसके प्रमुख केंद्र हैं.

धुआं, धूल व विषैली गैसें वातावरण में मिलकर लगातार हवा को प्रदूषित कर रही हैं। इसमें पेट्रोल, डीजल व मिंट्टी तेल दहन का योगदान सबसे ज्यादा है। इसके साथ ही, खुले में किया गया मल त्याग, खुले पड़े नाले, मृत जानवरों के शरीर आदि भी हवा को दूषित करते हैं। आज हालात इतने बदतर हो चले है कि खुले में घूमना तो दूर घर में भी लोग मास्क लगाकर रहने को मजबूर हैं। इसे लेकर प्रशासन की ओर से कई सार्थक प्रयास भी किए जा रहे हैं, बावजूद इसके नतीजा सिफर मालूम हो रहा है।

दरअसल प्रशासन प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए शहरी क्षेत्रों पर ही ज्यादा ध्यान देता है। गांव में इसे लेकर ज्यादा प्रयास नहीं किए जाते हैं। जबकि गांव में पराली व कंडे जलाने से भी वायु प्रदूषण की मात्रा में लगातार इजाफा हो रहा है। वायु प्रदूषण श्वांस व हृदय रोगियों के लिए हृदयाघात का कारण बन सकता है।

इसी प्रकार दीपावली के दिनों में पटाखों से निकलने वाली घातक कार्बन मोनोआक्साइड फेफड़ों को संक्रमित कर सकती है, जो मौत का कारण भी बन सकता है। वायु को प्रदूषित करने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार, कार्बन मोनोआक्साइड, कार्बन डाइआक्साइड, सल्फर नाइट्रेट एवं नाइट्रोजन आक्साइड इत्यादि गैसें हैं। अगर यह गैस श्वास रोग से पीड़ित व्यक्ति के श्वास नली में प्रवेश कर जाएं तो उसकी मौत भी हो सकती है। इसमें कार्बन मोनोआक्साइड सर्वाधिक खतरनाक है। अंगीठी के जलने पर भी यही गैस निकलती है, जिसकी वजह से बंद कमरे में अंगीठी जलाने वालों की मौत की खबरें अक्सर आती रहती हैं। इसी प्रकार यह गैस यदि किसी हृदयरोग से पीड़ित व्यक्ति के हृदय में प्रवेश कर जाएं तो वह ब्लड में घुल जाती हैं, इससे जब हृदय से पंप होकर ब्लड शरीर के दूसरे हिस्सों में जाता है तो यह गैस उसके साथ पूरे शरीर में फैल जाती है और शरीर में आक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में हृदयाघात से मौत भी हो सकती है।

-धुआं, धूल व हानिकारक गैस वायु में जहर घोल रही है। इससे हृदयाघात हो सकता है और रोगी की मौत भी हो सकती है। इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए जल्द ही प्रभावी प्रयास करने होंगे।

-डॉ. डीएस गंभीर, हृदय रोग विशेषज्ञ कैलाश अस्पताल।

वायु प्रदूषित होने से श्वास रोगियों की सांस फूलना, खांसी आना, बलगम का बढ़ना, आक्सीजन की कमी होना, फेफड़ों में संक्रमण आदि शिकायतें हो सकती हैं। इस समय प्रदूषण से बच्चे बहुत ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। अगर इन गैसों की ज्यादा मात्रा शरीर में प्रवेश कर जाएं तो रोगी की मौत हो सकती है।

-डॉ. एसपी शर्मा, शिशुरोग विशेषज्ञ

-वायु प्रदूषण से बचने के लिए जागरूकता बहुत जरूरी है। यहां सबसे ज्यादा प्रदूषण निर्माण कार्यो की वजह से उड़ने वाली धूल की वजह से है। यहां हरे पौधे तो बहुत लगाए जाते हैं, लेकिन सभी धूल से सने पड़े रहते हैं। उनकी देखभाल नहीं की जाती।

-अनूप खन्ना, सामाजिक कार्यकर्ता

-यहां बिल्डर सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। उनकी साइटों पर ग्रीन कार्टन नहीं लगाया जाता, धूल पर पानी भी नहीं मारते। ज्यादा से ज्यादा पौधरोपण हो, लोग सार्वजनिक वाहन, पैदल, साइकिल व दोपहिया को तवज्जो दें। सभी के एकजुट होने से प्रदूषण कम होगा

-एनपी सिंह, अध्यक्ष फोनरवा।

-लोगों को चाहिए कि प्रदूषण से बचने के लिए अपने स्तर से सतर्क रहें। चश्मा व मास्क लगाकर चलें। धूल, धुएं जहरीली गैसों से बचने के लिए पौधारोपण करें।

इनमें से दो गैसें ओज़ोन परत को इतनी तेज़ी से नुकसान पहुँचा रही हैं कि वैज्ञानिक इसे लेकर काफ़ी चिंतित हैं.

ज़मीन से 15 से 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायुमंडल में पाई जाने वाली ओज़ोन की परत मनुष्यों और जानवरों को हानिकारक अल्ट्रावायलट (यूवी) किरणों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यूवी किरणों से मनुष्यों में कैंसर होता है. जानवरों की प्रजनन क्षमता पर भी इनका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

ओज़ोन परत में बढ़ते छेद के कारण 1980 के दशक के मध्य से क्लोरोफ़्लोरोकार्बन (सीएफ़सी) गैस के उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

सीएफ़सी से मिलती-जुलती इन गैसों की उत्पत्ति का सटीक कारण अभी भी रहस्य है.

सबसे पहले ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के वैज्ञानिकों ने 1985 में अंटार्कटिक के ऊपर ओज़ोन परत में एक बड़े छेद की खोज की थी.

वैज्ञानिकों को पता चला कि इसके लिए सीएफ़सी गैस ज़िम्मेदार है, जिसकी खोज 1920 में हुई थी. इस गैस का प्रयोग रेफ्रिज़रेटर, हेयरस्प्रे और डिऑडरेंट बनाने वाले प्रोपेलेंट में अधिकता से होता है.

सीएफ़सी पर नियंत्रण पाने के लिए 1987 में दुनिया के देशों में सहमति बनी और इसके उत्पादन को नियंत्रित करने के लिए मांट्रियल संधि अस्तित्व में आई.

साल 2010 में सीएफ़सी के उत्पादन पर वैश्विक स्तर पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया.

इमेज स्रोत, BBC World Service

इमेज कैप्शन,

ओज़ोन परत में छेद का पता सबसे पहले ब्रितानी वैज्ञानिकों ने 1985 में लगाया था.

इन चार नई गैसों की मौज़ूदगी का पता लगाया है ईस्ट एंजिलिया विश्वविद्लय के शोधकर्ताओं ने.

इनमें से तीन गैसें सीएफ़सी हैं और एक गैस हाइड्रोक्लोरोफ़्लोरोकार्बन (एचसीएफ़सी) है, यह गैस भी ओज़ोन परत को नुक़सान पहुँचा सकती है.

इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर जॉनसन लाउबे कहते हैं, ''हमारे शोध से पता चलता है कि ये चार गैसें 1960 तक वायुमंडल में नहीं थीं यानी ये मानवनिर्मित गैसें हैं.''

वैज्ञानिक ध्रुवीय बर्फ़ से निकाली गई हवा के विश्लेषण से पता लगा सकते हैं कि आज से 100 साल पहले कैसा वायुमंडल कैसा था.

शोधकर्ताओं ने इनकी तुलना वर्तमान वायुमंडल में पाई जाने वाली गैसों के नमूने से भी की. इसके लिए तस्मानिया के दूर-दराज़ के इलाक़े से नमूने लाए गए.

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वायुमंडल में 74 हज़ार टन ऐसी गैस मौजूद हैं. इनमें से दो गैसें ओज़ोन परत में क्षरण की दर में उल्लेखनीय वृद्धि कर रही हैं.

डॉक्टर लाउबे कहते हैं, ''इन चार गैसों की पहचान बहुत चिंताजनक है, क्योंकि वो ओज़ोन परत के क्षरण में योगदान देंगी.''

वो कहते हैं, ''हम यह नहीं जानते कि इन नई गैसों का उत्सर्जन कहाँ से हो रहा है, इसकी जाँच की जानी चाहिए. कीटनाशक के निर्माण में उपयोग होने वाला कच्चा माल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अवयवों की धुलाई में काम आने वाले विलायक इसके संभावित स्रोत हो सकते हैं.''

वो कहते हैं कि ये तीन सीएफ़सी वायुमंडल में बहुत धीरे-धीरे नष्ट होते हैं. इसलिए अगर इनके उत्सर्जन को तत्काल प्रभाव से रोक भी दिया जाए, तो भी वो कई दशक तक वायुमंडल में बने रहेंगे.

वहीं अन्य वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी इन गैसों की मात्रा कम है और इनसे अभी कोई तात्कालिक ख़तरा नहीं है लेकिन इनके स्रोत का पता लगाने की ज़रूरत है.

लीड्स विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर पाइरस फॉरेस्टर को कहते हैं, ''इस अध्ययन से पता चलता है कि ओज़ोन परत का क्षरण अभी भी पुरानी बात नहीं हुई है.''

वो कहते हैं, ''जो चार गैसें खोजी गई हैं, उनमें से सीएफ़सी-113ए ज़्यादा चिंता पैदा करने वाली प्रतीत हो रही है क्योंकि कहीं से इसका मामूली उत्सर्जन हो रहा है, लेकिन यह बढ़ता जा रहा है. हो सकता है कि यह कीटनाशकों के निर्माण से पैदा हो रही हो. हमें इसकी पहचान करनी चाहिए और इसका उत्पादन रोक देना चाहिए."

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सबसे हानिकारक गैस कौन सा है?

पर्यावरण के लिए सबसे खतरनाक गैसों में कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख है. इसकी ज्यादा मौजूदगी किसी इंसान की जिंदगी भी खत्म कर सकती है. हमारे घरों के अंदर भी कम मात्रा में इस गैस की मौजूदगी होती है.

जहरीली गैस कौन कौन सी है?

Detailed Solution.
कार्बन मोनोऑक्साइड एक अत्यधिक जहरीली, गंधहीन, स्वादहीन और रंगहीन गैस है।.
कार्बन मोनोऑक्साइड का रासायनिक सूत्र CO है।.
कार्बन डाइऑक्साइड CO2 के रासायनिक सूत्र के साथ एक रंगहीन गैस है।.
मीथेन CH4 के रासायनिक सूत्र के साथ एक रासायनिक यौगिक है।.

सबसे ज्यादा हानिकारक वायु प्रदूषक कौन है?

Solution : कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) गैस वायु को सबसे अधिक प्रदूषित करती है।

ओजोन परत के लिए सबसे खतरनाक गैस कौन सी है?

धरती के आवरण यानी ओजोन परत को लाफिंग गैस या नाइट्रस ऑक्साइड से सबसे ज्यादा खतरा है। एक ताजा अध्ययन में खुलासा हुआ है। पृथ्वी के उपरी पर्यावरण का अभिन्न अंग यह परत मानव, जानवरों, पेड़—पौधों... धरती के आवरण यानी ओजोन परत को लाफिंग गैस या नाइट्रस ऑक्साइड से सबसे ज्यादा खतरा है।

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