पाठ – दुःख का अधिकार You May Like –विडियो- एम सी क्यू दुःख का अधिकार Show प्रश्न 1 – प्रस्तुत पाठ के लेखक हैं-(क) रामविलास शर्मा (ख) यशपाल (ग) बचेंद्री पाल (घ) शरद जोशी प्रश्न 2 – लेखक किसके रोने का कारण नहीं जान सका ? (ग) दुकान वाले के रोने का प्रश्न 3 – बुढ़िया के दुःख को देख कर लेखक को किसकी याद आई ? (ग) संभ्रांत महिला की (घ) बच्चों की प्रश्न 4 – कपड़े में मुँह छिपाकर कौन रो रहा था ? (क) बुढ़िया (ख) बुढ़िया का बेटा (ग) बुढ़िया की बहु (घ) बुढ़िया की बेटी प्रश्न 5 – लेखक के लिए क्या बंधन और अड़चन बन गई थी ? (क) उसके मौजे (ख) उसकी अँगूठी (ग) उसकी पोशाक (घ) उसका पैन प्रश्न 6 – समाज में मनुष्यों का अधिकार और उसका दर्जा कैसे सुनिश्चित होता है ? (ग) पोशाक से प्रश्न 7 – खरबूजे बेचने वाली बुढ़िया के बेटे का क्या नाम था ? (क) भगवाना प्रश्न 8 – ‘पुत्र’ शब्द के पर्यायवाची हैं – (क) आत्मज , तनय , सुत (ख) आत्मजा , तनया , बेटा (ग) आत्मज , तनय , बेटी (घ) आत्मज , बेटा , मनुष्य प्रश्न 9 –पुत्र की मृत्यु के अगले दिन किसे बाज़ार आना पड़ा ? प्रश्न 10 –‘परलोक’ शब्द का विलोम शब्द है – (क) देवलोक (ख) इहलोक (ग) पाताल (घ) आकाश प्रश्न 11 – बुढ़िया को पुत्र की मृत्यु के अगले ही दिन बाज़ार क्यों आना पड़ा ? (क) ख़रबूज़े बेचने प्रश्न 12– बुढ़िया माँ बावली होकर किसे बुला लाई। (क) डाॅक्टर को (ख) पंडित को (ग) वैद्य को (घ) ओझा को प्रश्न 13 – बुढ़िया के पुत्र क्या करता था ? (क) दवाई बेचता था (ख) कपड़े बेचता था (ग) कछिहारी करता था (घ) जूते बनाता था प्रश्न 14 – कहानी में किसके मरने पर तेरह दिन का सूतक कहा गया है ? प्रश्न 15 – बुढ़िया के बेटे की मृत्यु कैसे हुई ? प्रश्न 16 – सर्प के विष से उसका बदन कैसा हो गया था ? (क) काला (ख) नीला (ग) पीला (घ) सफेद प्रश्न 17 – ‘वृद्धि , लाभ , सौभाग्य’ के लिए एक शब्द है (क) शुभलाभ (ख) बरकत (ग) निर्वाह (घ) उपर्युक्त सभी प्रश्न 18 – ‘दो खेतों के बीच की सीमा’ के लिए एक शब्द है – (क) रेखा (ख) रेनु (ग) भेड़ (घ) मेड़ प्रश्न 19 – पुत्र की मृत्यु पर कितने दिन का सूतक होता है? (क) 11 दिन का (ख) 12 दिन का (ग) 13 दिन का (घ) 14 दिन का प्रश्न 20 – बुढ़िया का बेटा कितने वर्ष का था ? (क) 22 वर्ष का (ख) 21 वर्ष का (ग) 12 वर्ष का (घ) 23 वर्ष का प्रश्न 21 – डाॅक्टर हरदम किसके सिरहाने बैठे रहते थे ? (क) बुढ़िया के पुत्र के (ख) बुढ़िया के (ग) गरीब महिला के (घ) संभ्रांत महिला के प्रश्न 22 – ‘परचून की दुकान ’ से अभिप्राय है – (क) कपड़े की दुकान (ख) आटा , चावल , दाल आदि की दुकान (ग) बर्तन की दुकान (घ्) सब्जी , फल की दुकान प्रश्न 23 – कहानी में लोगों ने किसे ‘पत्थर दिल‘ कहा है ? प्रश्न 24 – कपड़े में मुँह को छिपाए सिर को घुटनों पर रखकर कौन रो रहा था ? (क) लेखक प्रश्न 25 – किसकी मृत्यु के पश्चात् बुढ़िया के परिवार का पालन-पोषण करने वाला कोई नहीं था ? (क) लेखक की प्रश्न 26 – बाज़ार में लोग बुढ़िया को किस दृष्टि से देख रहे थे ? प्रश्न
27 – साँप के काटने पर बुढ़िया ने क्या किया ? प्रश्न 28 – किसके दुःख को देखकर लेखक को संभ्रांत महिला की याद आई ? (क) बुढ़िया के प्रश्न 29 – लेखक के अनुसार किसे दुःख मनाने का अधिकार नहीं है ? प्रश्न 30 – बुढ़िया बाजार में क्या बेचने गई थी
? You May Like –MCQ-Khushbu Rachte hain hath, Pathit and Kavyansh समाधान उत्तर 1 – (ख) यशपाल उत्तर 2 – (ख) बुढ़िया के रोने का उत्तर 3 – (ग) संभ्रांत महिला की उत्तर 4 – (क) बुढ़िया उत्तर 5 – (ग) उसकी पोशाक उत्तर 6 – (ग) पोशाक से उत्तर 7– (क) भगवाना उत्तर 8– (क) आत्मज , तनय , सुत उत्तर 9– (ग) बुढ़िया को उत्तर 10– (क) देवलोक उत्तर 11– (क) ख़रबूज़े बेचने उत्तर 12– (घ) ओझा को उत्तर 13 – (ग) कछिहारी करता था उत्तर 14– (क) भगवाना के उत्तर 15– (ग) साँप के काटने से उत्तर 16 – (क) काला उत्तर 17– (ख) बरकत उत्तर 18 – (घ) मेड़ उत्तर 19– (ग) 13 दिन का उत्तर 20– (घ) 23 वर्ष का उत्तर 21– (घ) संभ्रांत महिला के उत्तर 22– (ख) आटा , चावल , दाल आदि की दुकान उत्तर 23– (ख) बुढ़िया को उत्तर 24– (ख) बुढ़िया उत्तर 25– (ग) भगवाना की उत्तर 26– (ख) घृणा की उत्तर 27– (ग) ओझा को बुलाया उत्तर 28– (क) बुढ़िया के उत्तर 29– (ग) गरीबों को उत्तर 30– (ख) ख़रबूज़े मुख्य बिंदु मनुष्य के जीवन में पोशाक का बहुत महत्व है।मनुष्य की पहचान पोशाक से ही होती है। पोशाक मनुष्य के सामाजिक स्तर को दर्शाती है, उसे समाज में अधिकार दिलवाती है, उसका दर्जा निश्चित करती है। कई बार पोशाक जीवन के बंद दरवाजे खोल देती है। पोशाक के द्वारा ही मनुष्य आपस में भेद-भाव करते हैं और खास परिस्थितियों में पोशाक ही हमें नीचे झुकने से भी रोकती है। जब हम समाज के गरीब लोगों के दुख का कारण जानने के लिए उनके समीप बैठना चाहते हैं, उनके दुख-दर्द में शामिल होना चाहते हैं तब हमारी पोशाक हमारे लिए बंधन और अड़चन बन जाती है।हमारी अच्छी पोशाक हमें नीचे झुकने नहीं देती। यह पोशाक गरीब और अमीर के बीच दूरियां बढ़ाने का काम करती है। अगर हम किसी गरीब के दुख को कम करके उसे दिलासा देना चाहते हैं तो यह पोशाक हमारे लिए बंधन और अड़चन बन जाती है। लेखक उस स्त्री के रोने का कारण इसलिए नहीं जान पाया क्योंकि फुटपाथ पर उसके समीप बैठ सकने में लेखक की पोशाक रुकावट बन रही थी। बुढ़िया को फफक -फफक कर रोते देख लेखक बहुत दुखी था .वह उसके बारे में जानना चाहता था लेकिन अपनी अच्छी पोशाक के कारण वह ऐसा नहीं कर पाया। भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा ज़मीन पर सब्ज़ी-तरकारी बोकर, उसे बाजार में बेचकर अपने परिवार का निर्वाह करता था। कभी वह स्वयं बाज़ार चला जाता था ,कभी उसकी माँ फल और तरकारियों को बाजार में बेचने जाती थी। लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बढ़िया खरबूजे बेचने इसलिए चली गई क्योंकि उसके पास जो कुछ था,वह सब भगवान की मृत्यु के बाद दान दक्षिणा में खत्म हो चुका था। उसके घर में खाने के लिए कुछ नहीं बचा था, सब कुछ बुढ़िया ने अपने पुत्र के क्रिया कर्म में लगा दिया था। उसके पोता पोती भूखे थे और बहु बुखार से तप रही थी। इसी मजबूरी के कारण लड़के की मृत्यु के दूसरे दिन ही बुढ़िया को खरबूजे बेचने के लिए बाज़ार जाना पड़ा । बुढिया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद इसलिए आई क्योंकि लेखक ने अपने मन में सोचा कि अमीर और गरीब में जन्मजात अंतर होता है, दोनों का दुख अलग-अलग होता है। अमीर को दुख मनाने का अधिकार है गरीब को नहीं। इस बुढ़िया का पुत्र मरा था और लोग इसकी मजबूरी और दुख को न समझकर तरह-तरह के ताने मार रहे थे और इसकी ओर घृणा की दृष्टि से देख रहे थे। दूसरी ओर सभ्रांत महिला के जवान बेटे की मृत्यु के बाद शहर भर के लोग उसके पास शोक मनाने आ रहे थे और वह सभ्रांत महिला बेटे की मृत्यु दुःख के कारण ढ़ाई महीने तक पलंग से उठ नहीं सकी थी जबकि यह गरीब बुढ़िया अगले ही दिन खरबूजे बेचने बाजार आ गई थी और लोग बुढिया पर ताने कस रहे थे। उन्हें बुढ़िया की मजबूरी और दुःख नही समझ पा रहे थे क्योंकि वह उस संभ्रांत महिला की भांति बीमार न पड़कर, अपना दुख भुला कर बाज़ार में खरबूजे बेचकर अपने परिवार के लिए भोजन का प्रबंध करने आई थी। दुःख का अधिकार अमीर-गरीब में भेद-भाव उत्पन्न करता है। थोड़ा सा दुख जहाँ अमीरों को हिला देता है वहाँ बड़े से बड़ा दुख भी गरीब को सहज बने रहने पर मजबूर कर देता है। अमीर और गरीब के दुख के इसी अंतर के कारण लेखक को सभ्रांत महिला की याद आई। बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में तरह-तरह की बातें कर रहे थे। एक आदमी घृणा से थूकते हुए कह रहा था कि यह बुढ़िया कितनी बेशर्म है इसके पुत्र को मरे एक दिन भी नहीं हुआ और चली आई दुकान सजाने। एक ने अपनी दाढ़ी खुजाते हुए कहा अरे जैसी नीयत होती है, अल्लाह भी वैसी की बरकत देता है। एक अन्य सज्जन ने दियासलाई की तीली से कान खुजलाते हुए कह रहे थे कि ये कमीने लोग रोटी के टुकड़े पर जान देते हैं इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म -ईमान सब रोटी का टुकड़ा है। परचून की दुकान पर बैठे लालाजी ने कहा अरे भाई इनके लिए मरे जीए का कोई मतलब नहीं कम से कम दूसरे के दीन-ईमान का खयाल तो कर लेती, रास्ते चलते लोगों को क्या पता कि इसके घर मैं सूतक है बिलकुल ही अंधेरगर्दी हो गई। पास पड़ोस की दुकानों पर पूछने से पर लेखक को पता चला कि बुढ़िया का तेईस बरस का जवान लड़का था, जिसकी साँप के डासने से मृत्यु हो गई। लोगों ने बताया कि बुढ़िया का बेटा भगवाना सुबह-सुबह बेलों में से पके ख़रबूज़े तोड़ने गया था तभी गीली मेड़ की तरावट में आराम कर रहे साँप पर उसका पैर पड़ गया, साँप ने उसे डस लिया और उसकी मृत्यु हो गई। लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने अनेक उपाय किए। बुढ़िया माँ बावली होकर ओझा को बुला लाई, झाड़ना-फूँकना हुआ, नागदेव की पूजा हुई। पूजा के लिए दान दक्षिणा चाहिए थी, घर में जो कुछ आटा और अनाज था, दान दक्षिणा में चला गया, परन्तु बुढ़िया अपने बेटे भगवान को नहीं बचा पाई। साँप के डसने से भगवान का सारा बदल काला पड़ गया और वह मर गया। लेखक ने बुढ़िया के दुख का अंदाजा अपने पड़ोस की एक संभ्रांत महिला को याद करके लगाया। पास-पड़ोस से लेखक को जब यह पता चला कि साँप के काटने से बुढिया के तेईस बरस के जवान बेटे की मृत्यु हो गई है और घर में कमाने वाला कोई नहीं है इसलिए यह खरबूजे बेचने बाज़ार आई है। लेखक इसी सोच में डूबे हुए, अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला के बारे में सोचकर बुढ़िया के दुख का अंदाजा लगा रहे थे । कुछ समय पहले उस अमीर महिला के पुत्र की मृत्यु हो गई थी और वह उच्च वर्गीय महिला ढ़ाई महीने तक पलंग से भी ना उतरी थी। वह पंद्रह-पंद्रह मिनट के बाद बेहोश हो जाती थी, उसकी आँखों से आँसू रुकने का नाम नहीं लेते थे। दो डॉक्टर हमेशा उसके सिरहाने बैठे रहते थे। लेखक जानता था कि बुढ़िया अपने मन में दुख दबाए हुए हैं अपनी बेबसी के अनुसार अपना दुख दर्शा रही है। खास पोशाक पहनकर व्यक्ति आसमानी बातें सोचने लगता है। वह न तो जमीन से जुड़ा रहता है वो ना ही ऊपर उठता है, उसकी स्थिति त्रिशंकु जैसी हो जाती है ,वह चाहते हुए भी किसी के दुख दर्द में शामिल नहीं हो पाता। इन पंक्तियों में लेखक पोशाक के विषय में वर्णन करते हुए कहता है कि जिस प्रकार पतंग को डोर के अनुसार नियंत्रित किया जाता है और जब डोर, पतंग से अलग हो जाती है तब पतंग हवा के साथ बहती हुई उड़ती है, हवा के कारण अचानक ही धरती पर नहीं आ गिरती । किसी ना किसी वस्तु में अटक कर रह जाती हैं वैसी ही स्थिति हमारी पोशाक के कारण उत्पन्न होती है। खास पोशाक व्यक्ति को अपनी अमीरी का आभास करवाती है, वह गरीबों को अपने बराबर स्थान नहीं देना चाहता। चाहते हुए भी साँप उनके दुख में शामिल नहीं हो पाता। गरीब व्यक्ति जिसके घर में खाने के लिए एक भी दाना न हो ,उसके लिए रोटी ही सबसे पहली प्राथमिकता होती है। रोटी मिलने पर ही वह और किसी चीज़ के बारे में सोच सकता है। समाज में रहते हुए व्यक्ति को नियमों कानूनों व परंपराओं का पालन करना पड़ता है क्योंकि समाज में अपनी दैनिक आवश्यकताओं से अधिक महत्व ,जीवन मूल्यों को दिया जाता है। बेटे की मृत्यु के बाद खरबूजे बेचने आई बुढ़िया को, लोग तरह तरह के ताने देते हैं यह नहीं सोचते कि वह गरीब बुढ़िया रोटी की चिंता में दुख मनाने के अधिकार से भी वंचित है। हमारे समाज में दुख मनाने का अधिकार भी केवल धनी वर्ग को ही है। यह सच है कि दुख सभी को होता है, मातम सभी मनाना चाहते हैं लेकिन गरीब व्यक्ति के पास न तो दुख मनाने की सुविधा है और ना ही समय है। धनी वर्ग दुःख का दिखावा अवश्य करता है परंतु गरीबों के पास दुख मनाने के लिए कोई सहूलियत नहीं होती, उन्हें परिस्थितियों के सामने घुटने टेकने पड़ते हैं और दुखी होते हुए भी काम करना पड़ता है। गरीब वर्ग रोटी की चिंता में दुख मनाने के अधिकार से वंचित रह जाता है। 372 total views, 2 views today Continue Readingसंभ्रांत महिला के सिरहाने कितने डॉक्टर बैठे रहते थे?वह संभ्रांत महिला पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी। उन्हें पन्द्रह-पन्द्रह मिनट बाद पुत्र-वियोग से पूछा आ जाती थी और मूर्छा ने आने की अवस्था में आँखों से आँसू न रुक सकते थे। दो-दो डॉक्टर हरदम सिरहाने बैठे रहते थे।
संभ्रांत महिला को कितने मिनट के बाद बाद मुरझा जाती थी?संभ्रांत महिला पुत्र वियोग से व्याकुल होने के कारण अढ़ाई मास तक पलंग से न उठ सकी। पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद वो वेहोश हो जाती थी और जब ठीक होती थी तो रोटी रहती थी। उसकी सेवा में दो डॉक्टर सदा लगे रहते थे।
संभ्रांत महिला को पंद्रह पंद्रह मिनट बाद पुत्र वियोग से क्या आ जाती थी?वह संभ्रांत महिला पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी। उन्हें पंद्रह—पंद्रह मिनट बाद पुत्र—वियोग से मूर्छा आ जातीथी और मूर्छा न आने की अवस्था में आँखों से आँसू न रुक सकते थे।
पुत्र वियोग में संभ्रांत महिला की क्या दशा हुई?माँ जिधर से आती है बच्चे पुचकारती हुई उसे आती है। बच्चा उसकी जिन्दगी का अहम हिस्सा हो जाता है। वह एक पल भी उसके बिना रह नहीं पाती। माँ अपने पुत्र को कहीं जाने नहीं देती इसलिए कि उसे कहीं सर्दी न लग जाए।
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