Delhi ka purana naam -दिल्ली पुराने जमाने में कई राजाओं की राजधानी रहा । पर Delhi ka purana naam क्या है इसके बारे में बहुत कम लोगों को पता होता है इसलिए हम यहाँ पर दिल्ली के पुराने नाम के बारे में बात करने जा रहे हैं। Show
दिल्ली का पुराना नाम “इंद्रप्रस्थ” था । जिसके साक्ष्य भारतीय महाकाव्य ‘महाभारत’ में मिलते हैं उस समय यह पांडवों की राजधानी हुआ करता था। इंद्रप्रस्थ का मतलब होता है इंद्रदेव का शहर मतलब जहां पर इंद्र निवास करते हैं। शहर का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि महाकाव्य महाभारत। यह शहर इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था, जहां पांडव रहते थे। नियत समय में इंद्रप्रस्थ से सटे आठ और शहर जीवित हो गए: लाल कोट, सिरी, दीनपनाह, किला राय पिथौरा, फिरोजाबाद, जहानपनाह, तुगलकाबाद और शाहजहानाबाद। दिल्ली 1483 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जो भारत का जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा महानगर है जिसमें करीब दो करोड़ जनसंख्या निवास करती है। दिल्ली पांच शताब्दियों से अधिक समय से राजनीतिक उथल-पुथल की गवाह रही है। यह मुगलों द्वारा खिलजी और तुगलक के उत्तराधिकार में शासित था। ११९२ में गोरी के अफगान योद्धा मुहम्मद की टुकड़ियों ने राजपूत शहर पर कब्जा कर लिया और दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई (१२०६)। १३९८ में तैमूर द्वारा दिल्ली पर आक्रमण ने सल्तनत का अंत कर दिया; दिल्ली के अंतिम सुल्तानों में से लोदी ने बाबर को रास्ता दिया, जिसने 1526 में पानीपत की लड़ाई के बाद मुगल साम्राज्य की स्थापना की। प्रारंभिक मुगल सम्राटों ने आगरा को अपनी राजधानी के रूप में पसंद किया, और शाहजहाँ द्वारा पुरानी दिल्ली की दीवारों (1638) के निर्माण के बाद ही दिल्ली उनकी स्थायी सीट बन गई। हिंदू राजाओं से लेकर मुस्लिम सुल्तानों तक, शहर की बागडोर एक शासक से दूसरे शासक के पास जाती रही। शहर की मिट्टी से खून, बलिदान और देश के प्रति प्रेम की महक आती है। पुरानी ‘हवेलियां’ और अतीत की इमारतें खामोश रहती हैं लेकिन उनकी खामोशी उनके मालिकों और सदियों पहले यहां रहने वाले लोगों के लिए भी बहुत कुछ कहती है। सन् 1803 ई. में यह शहर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया। 1911 में, अंग्रेजों ने अपनी राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया। यह फिर से सभी शासी गतिविधियों का केंद्र बन गया। लेकिन, शहर में अपने सिंहासन के रहने वालों को फेंकने की प्रतिष्ठा है। इसमें ब्रिटिश और वर्तमान राजनीतिक दल शामिल थे जिन्हें स्वतंत्र भारत का नेतृत्व करने का सम्मान मिला है।
दिल्ली भारत की एक प्रमुख यमुना नदी के किनारे पर स्थित बहुत ही प्राचीन नगर है जिसका इतिहास बहुत पुराना है। Delhi ka purana naam क्या है आप जान गए होंगे Delhi Name Story: आज दिल्ली का पूरी दुनिया में नाम है. दिल्ली को आज नई दिल्ली के नाम से पूरा विश्व जानता है, लेकिन क्या आप जानते हैं दिल्ली के इस नाम के पीछे की क्या कहानी है.3500 साल पहले युधिष्ठिर ने यमुना के पश्चिमी तट पर पांडव राज्य की बुनियाद रखी थी. भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (Delhi Name History) का नाम भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर है. दिल्ली का नाम दुनिया के प्रमुख शहरों में से गिना जाता है. लेकिन, दिल्ली के नाम के भी एक अलग कहानी है. आज जो दिल्ली का नाम है, उसने कई बदलाव देखे हैं और कई नाम बदलने के बाद आज इस शहर का नाम दिल्ली (Delhi History) हुआ है. हालांकि, दिल्ली के आज के इस नाम के पीछे कई कहानियां और तर्क बताए जाते हैं. इन कहानियों में एक खंभे की कहानी है और कहा जाता है कि इस खंभे से दिल्ली का नाम निकला है. ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि दिल्ली को ये नाम कैसे मिला है और दिल्ली के इस नाम के पीछे क्या कहानी है. आप इन कहानियों के बारे में जानने के बाद समझ पाएंगे कि किस तरह दिल्ली को ये फाइनल नाम मिला है. तो जानते हैं दिल्ली के नाम की क्या कहानी है और इसके अलावा खंभे वाली कहानी क्या है, जिसे दिल्ली के नाम की जननी माना जाता है… राजा ढिल्लो से आया नामअगर इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो पता चलता है कि दिल्ली पर कई लोगों ने राज किया है और ऐसे ही इसका नाम भी कई बार बदल चुका है. दिल्ली के नाम की कहानी मुगल काल से नहीं बल्कि महाभारत काल से शुरू हो गई थी. कहा जाता है कि करीब 3500 साल पहले युधिष्ठिर ने यमुना के पश्चिमी तट पर पांडव राज्य की बुनियाद रखी थी, जिसका नाम इंद्रप्रस्थ था. एपिक चैनल की डॉक्यूमेंट्री में बताया गया है कि फिर 800 बीसी से इसके नाम के बदलने का चर्चा शुरु हुआ. साल 800 बीसी में कन्नौज के गौतम वंश के राजा ढिल्लू ने इंद्रप्रस्थ पर कब्जा किया था. कहा जाता है राजा के नाम दिल्ली का नाम इंद्रप्रस्थ से डिल्लू हो गया. रिपोर्ट के अनुसार, स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी किताब सत्यार्थ प्रकाश में इसकी जानकारी दी है. कहा जाता है कि ढिल्लू का नाम बदलते हुए ढिली, देहली, दिल्ली, देल्ही हो गया. क्या है खंभे की कहानी?इसके अलावा दिल्ली के नाम की एक और कहानी है. इस डॉक्यूमेंट्री में कहा गया है, अगर मध्यकालीन युग की बात करें तो 1052 एडी के समय तोमर वंश के राजा आनंगपाल-2 को दिल्ली की स्थापना के लिए जाना जाता है. कहा जाता है कि उस वक्त दिल्ली का नाम ढिल्लिका था. ढिल्लिका नाम के पीछे एक रोचक कहानी भी है. इस रोचक कहानी के अनुसार, ढिल्लिका में राजा के किले में एक लौह स्तंभ खड़ा था और इस खंभे को लेकर एक पंडित ने कहा कि जब तक ये लौह स्तंभ रहेगा, तब तक तोमर वंश का राज रहेगा. ये बात सुनकर राजा ने इस खुदवाने का निर्णय किया और जब इसे खुदवाया तो पता चला कि ये लौह स्तंभ सांपों के खून में घूसा हुआ था. इसके बाद फिर से इसे लगा दिया. लेकिन, माना जाता है कि ये खंभा पहले की तरह मजबूती से स्थापित नहीं हो पाया और ये लौह स्तंभ ढीला रह गया. माना जाता है कि इस खंभे की वजह से इसका नाम ढिली या ढिलिका पड़ा था. इसका जिक्र चंद बरदाई की फेमस कविता पृथ्वीराज रासो में भी है और इसमें कहा गया है कि ये तोमर वंश की सबसे बड़ी गलतियों में से एक है. दहलीज से आया शब्दहालांकि, इतिहासकारों का अलग अलग मानना है. इतिहासकारों का कहना है कि यह शब्द फारसी शब्द दहलीज या देहली से निकला है. दोनों शब्दों का मतलब है दहलीज, प्रवेशद्वार यानी गेटवे. माना जाता है कि इसे गंगा के तराई इलाकों का गेट माना जाता है और इस वजह से इसका नाम दिल्ली हो सकता है. इंद्रप्रस्थ से पहले दिल्ली का नाम क्या था?शहर का इतिहास महाभारत के जितना ही पुराना है। इस शहर को इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था, जहां कभी पांडव रहे थे। समय के साथ-साथ इंद्रप्रस्थ के आसपास आठ शहर : लाल कोट, दीनपनाह, किला राय पिथौरा, फिरोज़ाबाद, जहांपनाह, तुगलकाबाद और शाहजहानाबाद बसते रहे।
दिल्ली का अन्य नाम क्या है?दिल्ली की स्थापना का प्राचीनतम संदर्भ महाभारत में मिलता है। हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र ने पांडवों को दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में अपना साम्राज्य स्थापित करने के निर्देश दिए। दिल्ली का यह हिस्सा खांडवप्रस्थ के नाम से जाना गया।
इंद्रप्रस्थ का दूसरा नाम क्या है?अपने साथ हुए इस अन्याय पर भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव अपने बड़े भाई युधिष्ठिर के सामने अपनी बात रखते हैं लेकिन युधिष्ठिर उन्हें समझाते हुए कहते हैं कि उन्होंने हस्तिनापुर के हिट में निर्णय लेते हुए हस्तिनापुर को छोड़ने का निर्णय ले लिया है" साथ ही कृष्ण की बातों को ध्यान में रखते हुए युधिष्ठिर ये भी कहते हैं कि वो अपने ...
हस्तिनापुर का नाम दिल्ली कैसे पड़ा?जब कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद युधिष्ठिर और परीक्षित ने राज संभाला तो वे हस्तिनापुर में थे, वंशज बढ़ते गए, बाद में जगह-जगह संरक्षक बना दिए गए। चौथा अभिलेख पुराने किला में मिला था जो दिल्ली का नाम इंद्रप्रस्थ के तौर पर स्थापित करता है।
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