राष्ट्रीय आन्दोलन में छत्तीसगढ़ के सोनाखान विद्रोह का क्या महत्व? - raashtreey aandolan mein chhatteesagadh ke sonaakhaan vidroh ka kya mahatv?

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  • Sonakhan Vidroh : Veer Narayan Singh Chhattisgarh Sonakhan Rebellion
    • सोनाखान_जमींदारी ( Sonakhan Landlords)
    • सोनाखान_में_विद्रोह ( Rebellion in Sonakhan )
    • इन्हे भी एक-एक बार पढ़ ले ताकि पुरानी चीजे आपको Revise हो जाये :-

Sonakhan Vidroh : Veer Narayan Singh Chhattisgarh Sonakhan Rebellion

राष्ट्रीय आन्दोलन में छत्तीसगढ़ के सोनाखान विद्रोह का क्या महत्व? - raashtreey aandolan mein chhatteesagadh ke sonaakhaan vidroh ka kya mahatv?

“सोने की खान में एक हीरा शहीद वीर नारायण सिंह”

अट्ठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध।

ब्रिटिश काल में अंग्रेजों का राज्य विस्तार इतना अधिक था कि उनके राज्य में कभी सूरज अस्त नहीं होता था। ऐसे विशाल साम्राज्य को चुनौती देकर उनके विरूद्ध विद्रोह का शंखनाद करने वाला छत्तीसगढ़ में छोटा सा रियासत था-सोनाखान 

सोनाखान की शस्य-श्यामला भूमि में वीर नारायण सिंह जैसे क्रांतिवीर का जन्म हुआ था। इस सच्चे सपूत ने सोनाखान को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के स्वर्णिम इतिहास में अजर-अमर कर दिया।( Sonakhan Vidroh : Veer Narayan Singh Chhattisgarh Sonakhan Rebellion )

ऐतिहासिक ग्राम सोनाखान राजधानी रायपुर से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर जोंक नदी के दक्षिण तट पर स्थित है। सोनाखान ब्रिटिश काल में एक छोटी सी जमींदारी थी। यह पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ एवं सघन वन से आच्छादित पुण्यस्थली है। 

यह जमींदारी प्रारंभ में रायपुर जिले में तत्पश्चात बिलासपुर जिले में स्थानांतरित हुई तथा वर्तमान में बलौदाबाजार जिले का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। ( Sonakhan Vidroh : Veer Narayan Singh Chhattisgarh Sonakhan Rebellion)

वर्ष 1818 में छत्तीसगढ़ ब्रिटिश नियंत्रण में आ चुका था। वर्ष 1855 में डिप्टी कमिश्नर इलियट ने सोनाखान क्षेत्र का अवलोकन किया था। 10 जून, 1855 को शासन को प्रेषित अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि सोनाखान में 12 गांव शामिल माने जाते हैं और यहां से 308 ₹ और 12 आने का राजस्व जमा होता है। 

यहां से टकोली का भुगतान नहीं होता। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा था कि वर्तमान अधिपति नारायण सिंह जी बिंझवार (राजपूत) है एवं उनके परिवार के अधिकार में यह क्षेत्र पिछले 366 वर्षों से है। इस जमींदारी में किसी प्रकार का कर नहीं लगाया गया था। 

मराठा काल में (बिम्बाजी भोसले के राजस्व कार्यकाल में) सोनाखान से इमारती लकड़ी एवं लाख की पूर्ति (वार्षिक) भोंसले को की जाती थी। जो 1224 फसली तक चलता रहा। बाद में वर्तमान जमींदार के पिता रामराय के समय यह क्षेत्र अंग्रेजों के नियंत्रण में रखने हेतु पट्टे में नया संशोधन किया गया था। ( Sonakhan Vidroh : Veer Narayan Singh Chhattisgarh Sonakhan Rebellion )

जिसके अंतर्गत लकड़ी एवं लाख के वार्षिक भुगतान को समाप्त कर दिया गया था क्योंकि जमींदार ने प्रार्थना की थी कि ऐसी कोई शर्त पट्टे में उल्लेखित नहीं थी। उसे 300 ₹ नामनुक भी प्रदाय किया गया।

 देवनाथ मिश्र नामक ब्राह्मण से लिए गए कर्ज के फलस्वरूप उनके द्वारा तथाकथित अपमान किए जाने के कारण (देवनाथ ने संबलपुर के सुरेंद्र साय तथा उदयपुर के पराक्रमी शिवराज सिंह को पकड़वाने में प्रमुख भूमिका निभाई थी) कत्ल कर दिया गया। नागपुर में इसकी जांच पड़ताल के बाद इस जमींदार को उसकी रियासत में दी जाने वाली सुविधाएं समाप्त कर दी गई थी। ( Sonakhan Vidroh : Veer Narayan Singh Chhattisgarh Sonakhan Rebellion )

राष्ट्रीय आन्दोलन में छत्तीसगढ़ के सोनाखान विद्रोह का क्या महत्व? - raashtreey aandolan mein chhatteesagadh ke sonaakhaan vidroh ka kya mahatv?

सोनाखान_जमींदारी ( Sonakhan Landlords)

सोनाखान अर्थात सोने की खदान कहलाने वाली जमींदारी को अपने नाम के अनुरूप, समय के बदलते करवट ने सब कुछ उथल-पुथल कर दिया। छत्तीसगढ़ की इस जमींदारी में एक छोटी सी घटना घटी। वर्ष 1856 में छत्तीसगढ़ प्राकृतिक आपदाओं से भीषण सूखे की चपेट में आ गया। लोग दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए थे। मवेशी चारे के अभाव में मरने लगे थे। 

उन दिनों इसी जमींदारी में गांव में माखन नाम का एक अन्न का व्यापारी था, जिसके पास अन्न का विशाल भंडार था। जमींदार नारायण सिंह को यह असहय लगा कि एक तरफ गांव में लोग दाने-दाने के लिए तरस रहे हैं और दूसरी ओर यह व्यापारी जमाखोरी में लगा हुआ था। 

नारायण सिंह ने अनाज व्यापारी माखन सिंह को पीड़ितों को अनाज बांटने के लिए कहा परंतु इस व्यापारी ने इंकार कर दिया। वीर नारायण सिंह ने गोदाम का ताला तोड़कर भूखे किसानों एवं मजदूरों को अनाज बाँट दिया।

उनके इस कार्य से नाराज व्यापारी माखन ने इसकी शिकायत रायपुर के डिप्टी कमिश्नर इलियट को कर दी। जिससे इलियट ने वीर नारायण सिंह को गिरफ्तार करने के लिए फ़ोर्स भेज दी, इस बीच वीर नारायण सिंह तीर्थ यात्रा पर निकल गए थे। थोड़ी बहुत परेशानी के बाद उन्हें (वीर नारायण सिंह) गिरफ्तार कर लिया गया। ( Sonakhan Vidroh : Veer Narayan Singh Chhattisgarh Sonakhan Rebellion )

उन्हें संबलपुर में 24 अक्टूबर 1856 को गिरफ्तार किया गया था। इस गिरफ्तारी की सूचना कमिश्नर इलियट रायपुर के द्वारा पत्र लिखकर नागपुर के कमिश्नर प्लाउडन को दी गई। इलियट ने अपने पत्र में सोनाखान के जमींदार नारायण सिंह के संदिग्ध चरित्र का उल्लेख करते हुए लिखा कि ये जमीदार कोई टकोली नहीं देता, बल्कि कंपनी से नामनुक बतौर  564 ₹ 4 आने 7 पैसे वार्षिक प्राप्त करता है। जमींदार नारायण सिंह का यह कृत्य कंपनी शासन के अधिकारी के लिए चुनौती थी।

इधर सोनाखान के ग्रामीण सूखे की चपेट में अन्न के लिए तरस रहे थे। चारों और अकाल के कारण हाहाकार मचा हुआ था। गांव के लोग पलायन करने लगे थे। उन्हें रोकने एवं अनाज की व्यवस्था करने में नारायण सिंह जुट गए।  ( Sonakhan Vidroh : Veer Narayan Singh Chhattisgarh Sonakhan Rebellion )

उन्होंने कुछ गांव में बैठक बुलाई और तय किया कि कसडोल के मिश्रा  परिवार से कर्ज में अनाज मांगा जाए, जिसे ब्याज सहित लौटा दिया जाएगा किंतु अकाल की स्थिति में ज्यादा ब्याज व अधिक मुनाफे के लालच में मिश्रा परिवार ने नारायण सिंह को अनाज देने से इंकार कर दिया। 

नारायण सिंह ने पुनः गांव के मुखिया लोगों की बैठक बुलाई। गांव-गांव बैठकें होती रहीं, लोग जुड़ने लगे तब नारायण सिंह ने कहा कि हमारे प्राण क्यों ना चले जायें परंतु हम अन्याय सहन नहीं करेंगे। नारायण सिंह के इस ओजस्वी आह्वान से लोगों में जोश भर गया।  आसपास के ग्राम वासियों के कदम सोनाखान की ओर बढ़ने लगे।

कुर्रापाट में नारायण सिंह का डेरा था। कुर्रापाट का पानी पीकर मुखिया एवं लोगों ने शपथ ली कि अब साहूकार के अत्याचार को सहन नहीं करेंगे। जो किसान इन साहूकारों के प्रति निष्ठावान थे वे अब विद्रोह के लिए उद्धत हो गए थे।

राष्ट्रीय आन्दोलन में छत्तीसगढ़ के सोनाखान विद्रोह का क्या महत्व? - raashtreey aandolan mein chhatteesagadh ke sonaakhaan vidroh ka kya mahatv?

पहली बार सोनाखान में एकत्र किसानों ने हथियार उठा लिए थे। वे साहूकार के विरुद्ध एकत्र हो गए और नारायण सिंह के नेतृत्व में कसडोल की ओर कूच कर गए। नारायण सिंह ने साहूकारों के भंडारों से अनाज जप्त कर भूखे किसानों में बाँट दी।  छत्तीसगढ़ के इतिहास में यह ब्रिटिश कंपनी शासन के विरुद्ध पहली क्रांतिकारी घटना थी। 

नारायण सिंह का यह क्रांतिकारी कदम अंग्रेजों को नागवार गुजरा। उसे कानून का उल्लंघन मानकर ब्रिटिश कंपनी ने सोनाखान के जमीदार नारायण सिंह को चोरी एवं डकैती के जुर्म में उनके कुछ साथियों के साथ बंदी बनाकर जेल में डाल दिया। सोनाखान के 18 गांव के आदिवासी किसान अपने इस नेता के विरुद्ध इस कार्रवाई का विरोध करने लगे।  (Sonakhan Vidroh : Veer Narayan Singh Chhattisgarh Sonakhan Rebellion )

इसी बीच सोनाखान के किसान ने संभवतः संबलपुर के विद्रोही नेता एवं क्रांतिकारी सुरेंद्र साय से संपर्क किया। उनके मदद से रायपुर जेल से भाग निकलने की योजना बनाई गई।  रायपुर जेल में 10 माह 4 दिन बंदी रहने के बाद रायपुर के डिप्टी कमिश्नर ने नागपुर के कमिश्नर को 28 अगस्त 1857 को नारायण सिंह तथा तीन अन्य साथियों के साथ जेल में सुरंग बनाकर सुरंग के रास्ते से भाग जाने की सूचना दी।

सोनाखान_में_विद्रोह ( Rebellion in Sonakhan )

वीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ के प्रथम क्रांतिकारी नेता थे। किसानों में चेतना जागृत कर उन्हें संगठित किया और ब्रिटिश शासन से लोहा लेने के लिए सर्वप्रथम सोनाखान से शंखनाद किया। सोनाखान के विद्रोह ने अंग्रेज शासन की नींव हिला दी और देखते ही देखते सोनाखान फौजी छावनी के रूप में बदल गया।

 जंगल में आदिवासियों की तीर-कमान एवं बंदूकों की आवाज गूंजने लगी। लेफ्टिनेंट स्मिथ की सैन्य टुकड़ी सोनाखान का चप्पा चप्पा छान चुका था। नारायण सिंह सोनाखान के पहाड़ी रास्तों से पहुंचकर जंगल के बीच बसे गांव के किसानों को संगठित करते। अंग्रेजों को इन मार्गों की जानकारी ना होने से वे उन्हें रोकने में असफल हो गए। ( Sonakhan Vidroh : Veer Narayan Singh Chhattisgarh Sonakhan Rebellion )

स्मिथ ने कंपनी से और सैन्य टुकड़ी की मांग की तथा इस मार्ग के भटगांव, बिलाईगढ़ व कटंगी के जमींदारों से मदद मांगी। ये जमीदार कंपनी शासन के सहयोग के लिए आगे आए और स्मिथ से 26 से 29 नवंबर 1857 को शस्त्र एवं बारूद इकट्ठा करने हेतु विविध दल भेजे। 

रायपुर के ब्रिटिश कमिश्नर ने इस गंभीर स्थिति को भांपकर 1 दिसंबर, 1857 को 100 सैनिक भेजें। अंग्रेजों के दबाव से आसपास के जमींदार भी इस विद्रोह को दबाने के लिए संगठित हो गए थे। वीर नारायण सिंह के लिए अब ये जमीदार रोड़े बन गए थे। अंग्रेजों ने इनसे उन पहाड़ी एवं जंगली मार्ग की जानकारी ली, जहां से वे वहां पहुंच सकते थे। 

कटंगी के जमीदार 2 दिसंबर, 1857 को 40 सहयोगियों के साथ आ पहुंचे तथा स्मिथ की सेना से जा मिले।  सोनाखान के वन-पर्वत युद्ध के मैदान बन गए। इधर नारायण सिंह के सैनिक धीरे-धीरे समाप्त होने लगे। देशी हथियारों से अंग्रेजी फौज का मुकाबला अब संभव नहीं था। 

नारायण सिंह ने सोनाखान से 10 किलोमीटर दूर तोपों सहित अंग्रेजी सेना पर आक्रमण की योजना बनाई थी, परंतु देवरी के जमींदार महाराज साय द्वारा धोखा दिए जाने से योजना क्रियान्वित नहीं हो सकी। उनकी सेना पहाड़ी में यत्र-तत्र बिखर कर रह गई। जंगल में नारायण सिंह की सेना रसद के अभाव में बिखर गई थी। ( Sonakhan Vidroh : Veer Narayan Singh Chhattisgarh Sonakhan Rebellion )

उनकी शक्ति क्षीण होने लगी। अब नारायण सिंह ने अंग्रेजी सेना से और मुकाबला करना व्यर्थ समझा और बची हुई जनता की हिफाजत के लिए 2 दिसंबर, 1857 को अपने एक साथी के साथ नारायण सिंह लेफ्टिनेंट स्मिथ के सामने पहुंचे किंतु हथियार नहीं डाला।

अंग्रेजी सेना ने उन्हें चारों ओर से घेरकर बंदी बना लिया। अपने नेता नारायण सिंह की गिरफ्तारी की खबर मिलते ही संगठन बिखर गया। उन्हें 5 दिसंबर को रायपुर के डिप्टी कमिश्नर इलियट को सौंप दिया गया इस प्रकार सोनाखान के वीर सपूत के गिरफ्तारी के साथ ही सोनाखान जमींदारी का सूर्यास्त हो गया।

छत्तीसगढ़ से डिप्टी कमिश्नर इलियट ने लिखा कि कोर्ट के समक्ष जमीदार को पेश किया गया और उन पर 1857 का अधिनियम के सेक्शन 6 एक्ट 14 के अंतर्गत अभियोग लगाया गया। 10 दिसंबर, 1857 की सुबह जनरल परेड के समय सैनिक टुकड़ी के समक्ष (शंभू दयाल गुरु के अनुसार) फांसी की सजा दी गई। ( Sonakhan Vidroh : Veer Narayan Singh Chhattisgarh Sonakhan Rebellion)

 छत्तीसगढ़ के वीर सपूत ने हंसते-हंसते अपने गले में फांसी का फंदा डालकर अंतिम विदा ली।  सोनाखान आज भी वीर नारायण सिंह की वीर गाथा को ह्रदय में गौरव के साथ संजोए हुए है। सोनाखान की मिट्टी उस वीर सपूत के बलिदान के स्वातंत्र तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है।

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राष्ट्रीय आंदोलन में छत्तीसगढ़ के सोनाखान विद्रोह का क्या महत्व है?

वीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ के प्रथम क्रांतिकारी नेता थे। किसानों में चेतना जागृत कर उन्हें संगठित किया और ब्रिटिश शासन से लोहा लेने के लिए सर्वप्रथम सोनाखान से शंखनाद किया। सोनाखान के विद्रोह ने अंग्रेज शासन की नींव हिला दी और देखते ही देखते सोनाखान फौजी छावनी के रूप में बदल गया।

सोनाखान विद्रोह क्या था?

सन् 1819-20 में सोनाखान के जमींदार रामराय ने अंग्रेजों के खिलाफ स्वाधीनता संग्राम की शुरुआत की थी। सन् 1818 में अंग्रेजी संरक्षणकाल के दौरान, छत्तीसगढ़ के जमींदारों की संख्या 27 थी, जो राजनैतिक, प्रशासनिक और पारिवारिक कारणों से सदैव घटती – बढ़ती रही।

सोनाखान क्यों प्रसिद्ध है?

ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण है सोनाखान पांच सौ आदिवासियों की सेना बनाकर इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी थी। लेकिन बगावत के बौखलाकर अंग्रेज सरकार ने जनता पर अत्याचार बढ़ा दिए, इससे दुखी होकर वीरनारायण सिंह ने सरेंडर कर दिया जिसके बाद रायपुर के जयस्तम्भ चौक पर उन्हें तोप से बांध कर उड़ा दिया था।

सोनाखान विद्रोह के नेतृत्वकर्ता कौन थे?

वीर नारायण सिंह(सोनाखान का विद्रोह) - Veer Narayan Singh.