Author: Sanjay PokhriyalPublish Date: Sat, 22 Dec 2018 09:07 AM (IST)Updated Date: Sat, 22 Dec 2018 09:14 AM (IST) गणित का जिक्र होते ही रामानुजन का जिक्र करना लाजिमी है। वो एक ऐसे भारतीय गणितज्ञ थे जिन्होंने बहुत से ऐसे गणितीय सिद्धांत पेश किए जिस पर शोध जारी है। नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। श्रीनिवास रामानुजन एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। इन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्रों में गहन योगदान दिए। इन्होंने अपने प्रतिभा और लगन से न केवल गणित के क्षेत्र में अद्भुत अविष्कार किए अथवा भारत को अतुलनीय गौरव भी प्रदान किया। टीबी जैसी बीमारी का इलाज उन दिनों सही से नहीं हो पाता था, जिसके चलते रामानुजन का स्वास्थ्य दिन ब दिन गिरता जा रहा था। 1919 में उन्हें भारत वापस लौटना पड़ा। अब रामानुजन वापस कुंभकोणम में थे। उनका अंतिम समय चारपाई पर ही बीता। इस दौरान भी वे पेट के बल लेटे-लेटे कागज पर तेजी से लिखते रहते थे। काफी उपचार के बावजूद उनके स्वास्थ्य में तेजी से गिरावट आती गई। 26 अप्रैल 1920 को महज 33 साल की उम्र में गणित की कुछ 600 परिणाम वाली नोटबुक के साथ रामानुजन ने सांसार में आखिरी सांस ली। जी हां इतनी कम उम्र में एक भारतीय मेधा ने दुनिया को अलविदा कह दिया। ये सच है कि आज वो हमारे बीच नहीं है लेकिन दुनिया के किसी भी कोने में जब गणितीय प्रमेयों का जिक्र होता है तो रामानुजन बरबस याद आते रहते हैं। कुछ ऐसे
थे रामानुजन 1898 में रामानुजन ने जब हाईस्कूल में दाखिला लिया तब उन्हें गणितज्ञ जीएस कार की लिखी किताब ‘ए सिनोप्सिस आफ एलीमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर एंड एप्लाइड मैथमेटिक्स’ पढ़ने का मौका मिला, जिसमे पांच हजार फार्मूले दिए गये थे। रामानुजन को मिली ये किताब उनके लिए ऐसी थी जैसे हफ्तों से भूखें किसी इंसान को रोटी मिल गयी हो। उन्होंने जल्द से जल्द किताब में दिए हुए सारे फार्मूलों को हल कर दिया। गणित में खोज करना, ईश्वर की खोज करना रामानुजन के दिमाग में गणित की ऐसी लत लग गयी थी की उनकी छात्रवृति बंद हो गयी जिसका कारण उनके बाकी विषयो में अच्छे अंक ना आना रहा।1905 में रामानुजन ने मद्रास विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में शामिल हुए लेकिन गणित को छोड़कर बाकी विषयों में फेल हो गए।1906 और 1907 की प्रवेश परीक्षा का भी यही परिणाम रहा। लेकिन इसके बाद भी गणित के प्रति प्रेम में कमी नहीं आई। 1909 में रामानुजन की शादी हो गयी जिसकी वजह से घर चलाने का पूरा जिम्मा रामानुजन के ऊपर आ पड़ा और वे नौकरी ढूंढने लगे। इसी दौरान रामानुजन कई प्रभावशाली व्यक्तियों के सम्पर्क में आए।नेल्लोर के कलेक्टर और ‘इंडियन मैथमैटिकल सोसायटी’ के संस्थापकों में से एक रामचंद्र राव भी उनमें से एक थे। राव के साथ उन्होंने एक साल तक काम किया। इसके लिए उन्हें 25 रुपये महीना मिलता था। इस दौरान रामानुजन इयंगर ने ‘इंडियन मैथमैटिकल सोसायटी’ के जर्नल के लिए प्रश्न और उनके हल तैयार करने का काम किया। 1911 में बर्नोली संख्याओं पर प्रस्तुत शोधपत्र से उन्हें शोहरत मिली। 1912 में उन्हें मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के लेखा विभाग में क्लर्क की नौकरी मिल गई। हार्डी बने सफलता के आधार ये हैं रामनुजन की कामायबी इलिनॉय विश्वविद्यालय के गणितज्ञ प्रोफेसर ब्रूस सी ब्रेंड्ट ने 20 वर्षों तक शोध किया और अपने शोध पत्र को पांच खण्डों में प्रकाशित कराया। घर पर बीमार रहते हुए रामानुजन की लिखी गयी नोटबुक मद्रास विश्वविद्यालय में जमा हो गई थी। बाद में यह प्रोफेसर हार्डी के जरिए ट्रिनिटी कालेज के ग्रंथालय पहुंची। इस नोटबुक में रामानुजन ने जल्दी-जल्दी में लगभग 600 परिणाम प्रस्तुत किए थे लेकिन उनकी उपपत्ति नहीं दी थी। Edited By: Sanjay Pokhriyal
श्रीनिवास रामानुजन ने क्या खोजा?वो रामानुजन की प्रतिभा को पहचान गए और फिर उन्होंने रामानुजन के लिए 25 रुपये की मासिक छात्रवृत्ति की व्यवस्था की. बाद में रामानुजन का प्रथम शोधपत्र “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण” शोध पत्र जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ.
रामानुजन का गणित में योगदान क्या है?श्रीनिवास रामानुजन का परिचय
कहा जाता है कि अन्य विषयों में ये फेल हो जाते थे लेकिन गणित विषय में पूरे अंक प्राप्त करते थे। ये अपना पूरा ध्यान केवल गणित पर ही देते थे। महज 12 साल की उम्र में उन्होंने त्रिकोणमिति में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था और कई थ्योरम का विकास भी किया था।
दुनिया का सबसे बड़ा गणितज्ञ कौन है?उनका जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के इरोड में हुआ था. रामानुजन को आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है. आज भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जन्मदिन है. उनका जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के इरोड में हुआ था.
विश्व का प्रथम गणितज्ञ कौन था?आर्यभट भारत में सबसे पहला गणितज्ञ आर्यभट को माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि 5वीं सदी में उन्होंने ही ये सिद्धांत दिया था कि धरती गोल है और सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है और ऐसा करने में उसे 365 दिन का वक्त लगता है.
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