भरत प्राचीन भारत के एक चक्रवर्ती सम्राट थे जो कि राजा दुष्यन्त तथा रानी शकुंतला के पुत्र थे[1] अतः एक चन्द्रवंशी राजा थे।[2] भरत के बल के बारे में ऐसा माना जाता है कि वह बाल्यकाल में वन में खेल ही खेल में अनेक जंगली जानवरों को पकड़कर या तो उन्हें पेड़ों से बाँध देते थे या फिर उनकी सवारी करने लगते थे। इसी कारण ऋषि कण्व के आश्रम के निवासियों ने उनका नाम सर्वदमन रख दिया।[2] Show
भरत की कथा[संपादित करें]शकुन्तला पीछे मुड़कर देखती हुई शकुन्तला दुष्यंत की याद में राजा भरत दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र थे शकुंतला के पिता का नाम विश्वामित्र था, दुष्यंत गंधर्व राजकुमार से उन्होंने शकुंतला से विवाह किया था लेकिन बाद में वे उन्हें भूल गए थे लेकिन बाद में उन्हें शकुंतला को एक मुद्रिका दी थी एक समय वह मुद्रिका का शकुंतला से खो गई थी जिसे एक मछली निगल लिया था एक मछुआरे ने उस मछली को पकड़कर जब काटा तो उसे मुद्रिका प्राप्त हुई वह उसे बेचने गया लेकिन उसे इसका मूल्य कोई नहीं देख सका फिर वह राजदरबार में गया जब राजा दुष्यंत ने उस मुद्रिका को देखा तो उन्हें शकुंतला की याद वापस आ गई और सत्कार पूर्वक भी शकुंतला और अपने पुत्र भरत को लेकर आ गए आगे चलकर वही भरत चक्रवर्ती के नाम से हस्तिनापुर के राजा बने आज हमारे देश का नाम भारत उन्हीं के नाम की ऊपर रखा गया है सिंहों के साथ बचपन में खेला करते थे पर्वत महावीर शक्तिशाली और पराक्रमी राजा थे। सन्दर्भ[संपादित करें]
भरत चक्रवर्ती, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे। जैन और हिन्दू पुराणों के अनुसार वह चक्रवर्ती सम्राट थे और उन्ही के नाम पर भारत का नाम "भारतवर्ष" पड़ा।[1] जैन ग्रंथ "आदिपुराण" जिसके रचयिता आचार्य श्री जिनसेन स्वामी है ने सातवीं शताब्दी में लिखें गए आदिपुराण में प्रथम चक्रवर्ती भरत का विस्तार से वर्णन किया है ; प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव और यशावती के पुत्र चक्रवर्ती भरत एक महान शासक थे जिनके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा| इनके बाहुबली, वृषभसेन, अनंतविजय, अनंतवीर्य, अच्युत, बरवीर आदि 99 भाई और ब्राह्मी एवं सुंदरी नाम की दो बहनें थी| अनेकों वर्ष राजपाठ करने के उपरांत भरत चक्रवर्ती ने अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज पाठ सौंपकर दिगंबर जैन मुनि की दीक्षा ली और केवल ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष को प्राप्त किया|- आदिपुराण( आचार्य जिनसेन) हिन्दू ग्रन्थ, स्कन्द पुराण (अध्याय ३७) के अनुसार: "ऋषभदेव नाभिराज के पुत्र थे, ऋषभ के पुत्र भरत थे, और इनके ही नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा"|[2] ऋषभो मरुदेव्याश्च ऋषभात भरतो भवेत् ।भरताद भारतं वर्षं, भरतात सुमतिस्त्वभूत् ॥ — विष्णु पुराण (2, 1, 31)ऋषभ मरुदेवी को पैदा हुए थे, भरत ऋषभ को पैदा हुए थे,भारतवर्ष भरत से उगा और सुमति भरत से उगी।ततश्च भारतं वर्षमेतल्लोकेषुगीयतेभरताय यत: पित्रा दत्तं प्रतिष्ठिता वनम् ॥ - विष्णु पुराण (2, 1, 32)यह भूमि तब से भारतवर्ष के रूप में जानी जाती हैजब से पिता अपने पुत्र भरत को राज्य सौंप कर तपस्या के लिए जंगल में गएआदिपुराण[संपादित करें]भरत चक्रवर्ती द्वारा देखे गए १६ स्वप्न। यह वर्तमान (दुखमा) काल से जुड़े थे। 7 वी सदी में लिखे गए आदिपुराण में ऋषभदेव, भरत और बाहुबली के दस जन्मों के बारे में बताया गया है। [3][4] जन्म और बचपन[संपादित करें]भरत के जन्म से पूर्व उनकी माता ने ६ स्वप्न देखे। ऋषभदेव ने उन्हें इनका अर्थ समझाया और बताया कि बालक प्रथम चक्रवर्ती बनेगा।[5][6] भरत की बहन हुई ब्राह्मी।[7] भरत को मुख्य रूप से न्याय की शिक्षा मिली।[8] चक्रवर्ती[संपादित करें]जैन कालचक्र के अनुसार हर काल में ६३ सलाकापुरुष जन्म लेते है। इनमे से १२ चक्रवर्ती होते है, जो सम्पूर्ण विश्व पर राज करते है। चक्रवर्ती सबके आदर्श माने जाते है।[9] भरत अवसर्पिणी (वर्तमान काल) के प्रथम चक्रवर्ती थे।[10] सप्त रत्न[संपादित करें]जैन ग्रंथों के अनुसार चक्रवर्ती के पास सात रत्न होते है-
राज[संपादित करें]जब ऋषभदेव ने मुनि बनने का निश्चय किया, तब उन्होंने अपना साम्राज्य अपने १०० पुत्रों में बाँट दिया |[11][12] इसके पश्चात् भरत ने विश्व विजेता बनने का निश्चय किया। सम्पूर्ण विश्व पर विजय करने के पश्चात् चक्रवर्ती बनने के लिए उन्होंने अपने भाइयों से अधीनता स्वीकारने को कहा। ९८ भाइयों ने अपने पुत्रों को राज्य सौंप कर जैनेश्वरी दीक्षा ले ली, परंतु बाहुबली ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा।[13] झगड़ा सुलझाने के लिए तीन तरह के युद्ध हुए:
बाहुबली युद्ध में जीत गए पर उन्हें संसार से वैराग्य हो गया और वह मुनि बन गए।[14][15] भरत ने कर्म युग में नीति राज की शुरुआत की।[16] उन्होंने चार तरह के दंड निश्चित किए।[17] आदिपुराण के अनुसार उन्होंने ब्राह्मण वर्ण की शुरुआत की[18], पर यह ब्राह्मण वर्ण आज की ब्राह्मण जाति से बहुत भिन्न है ।[19] भरत के पास पास अवधि ज्ञान था|[20] सभी चक्रवर्तियों की तरह भरत भी संसार की असारता जान मुनि बन गए और अंत में मोक्ष गए। मंदिर[संपादित करें]
इरिंजालकूदा (कूदलमणिचकाम) भरत मन्दिर असल में एक जैन मन्दिर था जिसके मूलनायक सिद्ध भरत थे।
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
सन्दर्भ सूची[संपादित करें]
भरत के वंशज कौन है?भरत प्राचीन भारत के एक चक्रवर्ती सम्राट थे जो कि राजा दुष्यन्त तथा रानी शकुंतला के पुत्र थे अतः एक चन्द्रवंशी राजा थे।
राजा भरत का जन्म कैसे हुआ?भरत का जन्म
निराश शकुंतला को उनकी मां मेनका अप्सरा ने कश्यप ऋषि के पास भेज दिया। उस समय वह गर्भवती थी समयानुसार शकुंतला ने एक अत्यंत सुंदर और साहसी बालक भरत को जन्म दिया। भरत बचपन से ही वीर और साहसी था । वो तो बड़े-बड़े सिंह की भी सवारी करता था डर का तो उसे नाम तक पता नहीं था ।
राजा भरत की कितनी स्त्रियां थी?विवाह और सन्तानें
भरत ने विदर्भराज की तीन कन्याओं से विवाह किया। इन तीन पत्नियों से प्रत्येक से तीन पुत्र हुए। भरत ने अपनी तीनों पत्नियों से कहा कि 'ये पुत्र मेरे अनुरूप नहीं हैं। '
राजा भरत की मां कौन थी?भरत रामायण के अनुसार, राजा दशरथ के दूसरे पुत्र थे, उनकी माता कैकेयी थी।
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