पाठ के आधार पर बताइए कि विद्यालय कैसे होने चाहिए जिनसे बच्चों की रुचि पढ़ाई में बढ़ाई जा सके? - paath ke aadhaar par bataie ki vidyaalay kaise hone chaahie jinase bachchon kee ruchi padhaee mein badhaee ja sake?

‘सपनों के-से दिन’ पाठ में जिस समय का वर्णन हुआ है उस समय अधिकांश अभिभावक अनपढ़ थे। वे निरक्षर होने के कारण शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझते थे। इतना ही नहीं वे खेलकूद को समय आँवाने से अधिक कुछ नहीं मानते थे। अपनी इसी सोच के कारण, बच्चे खेलकूद में जब चोटिल हो जाते और कई जगह छिला पाँव लिए आते तो उन पर रहम करने की जगह पिटाई करते। वे शारीरिक विकास और जीवन-मूल्यों के उन्नयन में खेलों की भूमिका को नहीं समझते थे, इसलिए बच्चों को खेलकूद में रुचि लेना उन्हें अप्रिय लगता था। 

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छात्रों के लिए पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का भी विशेष महत्त्व है। ये खेलकूद एक ओर हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक हैं, तो दूसरी ओर सहयोग की भावना, पारस्परिकता, सामूहिकता, मेल-जोल रखने की भावना, हार-जीत को समान समझना, त्याग, प्रेम-सद्भाव जैसे जीवन-मूल्यों को उभारते हैं तथा उन्हें मजबूत बनाते हैं। इन्हीं जीवन-मूल्यों को अपना कर व्यक्ति अच्छा इनसान बनता है।

'सपनों के से दिन' पाठ में पीटी सर की किन चारित्रिक विशेषताओं का उललेख किया गया है? वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में स्वीकृत मान्यताओं और पाठ में वर्णित युक्तियाओं के संबंध में अपने विचार जीवन मूल्यों की दृष्टि से व्यक्त कीजिए।


पी.टी. सर कठोर स्वभाव के व्यक्ति थे। बच्चों को सजा देते हुए वह भूल जाते थे कि बच्चे कोमल होते हैं। उनकी आह का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। यह उनकी कठोरता का प्रमाण है। अनुशासन बनाए रखने के लिए बच्चों के साथ कठोरता की हद पार कर जाते थे। उनके अनुसार अनुशासन के माध्यम से ही बच्चों को सुधारा जा सकता था। उनके अंदर हृदय ही नहीं था। बच्चों के साथ अमानवीय व्यवहार करते थे। जो व्यक्ति बच्चों को जानवरों से भी बुरा मारता हो, उसके अंदर मानवीय भावनाओं का होना असंभव लगता है। जीवनमूल्यों के आधार पर देखा जाए, तो यह उचित नहीं है। शायद यही सभी कारण थे कि आज की शिक्षा व्यवस्था में नई मान्यताओं को स्वीकृति मिली है। प्रधानाचार्य शर्मा जी द्वारा अपनाया गया व्यवहार बच्चों को नई विकासधारा देता है। शर्मा जी के माध्यम से बताया गया है कि कैसे बच्चों को पढ़ाया जाए, उनके साथ कैसा व्यवहार हो कि वे विद्यालय के वातावरण में स्वयं को सहज महसूस करें। यह युक्तियाँ अध्यापक और बच्चों के मध्य अच्छा संबंध बनाती है और बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करती है।

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निम्‍नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्‍नों के उत्तर दीजिए :
(क) टोपी शुक्ला के घर की बूढ़ी नौकरानी को टोपी के प्रति प्रेम और सहानुभूति क्यों थी? कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
(ख) 'टोपी शुक्ला' पाठ के आधार पर बताइए कि इफ़्फ़न की दादी मिली-जुली संस्कृति में विश्वास क्यों रखती थी। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
(ग) 'सपनों के-से दिन' पाठ के आधार पर बताइए कि कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं डालती। उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए। 


(क) टोपी शुक्ला को सदैव अपने परिवारजनों से प्रताड़ना और उपेक्षा मिली  थी। वह अपने भरेपूरे घर में अकेला था। उसके परिवार में दादी, माता-पिता, भाई सभी थे। उसकी किसी को परवाह नहीं थी। कभी दादी द्वारा दुत्कारा जाता, तो कभी माता द्वारा गलत समझा जाता, पिता अपने काम में मस्त थे और बड़ा भाई तो उसे सदैव नौकर के समान काम करवाता था। घर में उपेक्षित टोपी को देखकर बूढ़ी नौकरानी को उससे प्रेम और सहानुभूति होती थी। उसके समान ही टोपी की घर में कद्र नहीं थी। इसलिए वह टोपी के प्रति प्रेम और सहानुभूति रखती थी।

(ख) इफ़्फ़न की दादी पूरब की रहने वाली थीं तथा ससुराल लखनऊ था। उनका जीवन दो अलग संस्कृतियों के मध्य गुज़रा था। वे दोनों संस्कृतियों के मध्य पली-बढ़ीं थीं। अतः दोनों के प्रति प्रेम तथा सम्मान था। पूरब से होने के कारण पूरबी बोलती थीं क्योंकि यह उनके दिल के नज़दीक थी। वे धार्मिक थी परन्तु धर्म को कभी संस्कृति के मध्य नहीं लायीं। वे रोज़े-नमाज़ की पाबंद थीं लेकिन जब उनके एकमात्र बेटे को चेचक की बीमारी ने आ घेरा, तो एक टाँग पर खड़ी होकर माता से अपने बच्चे के लिए क्षमा प्रार्थना करने लगीं। माना जाता है कि चेचक हिन्दुओं की देवी माता के प्रकोप के कारण होता है। इससे पता चलता है कि दोनों संस्कृतियों के प्रति प्रेम और आदर होने के कारण वे उनमें विश्वास रखती थीं।

(ग) यह बात बिलकुल सही है भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं डाल सकती है। लेखक का गाँव ऐसा था, जहाँ राजस्थान तथा हरियाणा से आए हुए परिवार रहते थे। उनकी बोली बिलकुल अलग थी। परन्तु बच्चों के आपसी व्यवहार में भाषा ने कभी बाधा नहीं डाली। वे सब खेलते समय एक दूसरे की बात समझ व जान लेते थे। खेल के समय भाषा का कोई स्थान नहीं होता था। बस आपसी समझ से काम चल जाता था।

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'सपनों के से दिन' पाठ में हेडमास्टर शर्मा जी की, बच्चों को मारने–पीटने वाले अध्यापकों के ​प्रति, क्या धारणा थी? जीवन–मूल्यों के संदर्भ में उसके औचित्य पर अपने विचार लिखिए। 


हेडमास्टर साहब के अनुसार बच्चे शिक्षा लेने आते हैं, उनके अमानवीय व्यवहार करना खराब बात थी। अतः जो अध्यापक बच्चों के साथ मार-पीट करते थे, उन्हें ऐसे अध्यापक पसंद नहीं थे। उनका मानना था कि बच्चे कोमल होते हैं, उनके साथ मार-पीटाई नहीं करनी चाहिए। जो अध्यापक ऐसा करते हैं, उन्हें शिक्षक बनने का अधिकार नहीं है। यही कारण है जब मास्टर प्रीतमचंद को अपनी कक्षा के बच्चों के साथ पिटाई करते देखा, तो वह क्रोधित हो गए। उन्होंने उस समय तुरंत निर्णय लिया और मास्टर प्रीतमचंद को नौकरी से निकाल दिया। शिक्षक का कार्य है बच्चों को शिक्षा देकर उन्हें ज्ञान देना। उनके भविष्य की नींव रखना। परन्तु यदि शिक्षक ही बच्चों के साथ मार-पिटाई करेंगे, तो वह शिक्षा प्राप्त करने के स्थान पर पढ़ने से डरने लगेंगे। इस तरह वे विद्यालय में आना बंद कर देंगे। शिक्षक का स्थान माता-पिता के बाद होता है। अतः यदि शिक्षक ही अपने मार्ग से हट जाए, तो बच्चों के भविष्य को कौन संवारेगा। अतः हमें समझना चाहिए कि बच्चों के साथ प्रेम और उदारता का व्यवहार करें। शिक्षक के यही मूल्य बच्चों के जीवन को संवार सकेंगे।

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'सपनों केसे दिन' पाठ के आधार पर बताइए कि बच्चों का खेलकूद में अधिक रुचि लेना अभिभावकों को अप्रिय क्यों लगता था|पढ़ाई के साथ खेलों का छात्र जीवन में क्यामहत्त्व है और इससे किन जीवनमूल्यों की प्रेरणा मिलती है? स्पष्ट कीजिए।


अभिभावकों का मानना था कि बच्चे पढ़ाई के स्थान पर खेलते रहेंगे, तो पढ़ाई नहीं कर पाएँगे। इससे उनका समय और पैसा दोनों बर्बाद होगा। यही कारण है कि वे बच्चों को पढ़ने के लिए कहते थे। यदि बच्चे कहीं खेलते दिख जाते थे, तो उनकी बहुत पिटाई होती थी। जीवन में पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का भी बहुत महत्त्व है। विद्यार्थियों के लिए तो खेल उत्तम औषधी के समान है। पढ़ाई करने के बाद खेलने से मन को नई शक्ति प्रदान होती है। खेलने से विद्यार्थियों में उपजा तनाव कम होता है। लगातार पढ़ने से उत्पन्न झुंझलाहट भी समाप्त हो जाती है। शरीर मज़बूत बनता है। पढ़ाई में मन लगा रहता है। विद्यार्थी आज खेलों के माध्यम से उज्जवल भविष्य भी पा रहे हैं। खेलों को व्यवसाय के रूप में अपनाने से खिलाड़ी देश-विदेश में यश और धन दोनों कमा रहे हैं। इन सब बातों को देखते हुए हम खेलों के महत्व को नकार नहीं सकते हैं। इसके अतिरिक्त खेलों से जीवन में परिश्रम करने की प्रेरणा मिलती है। आलस को दूर भगाने में सहायता मिलती है और जीवन में आगे बढ़ते रहने का संदेश मिलता है। यह बच्चों में प्रेम भावना और आपसी सहयोग की भावना को भी बढ़ाता है।

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बच्चों की रुचि पढ़ाई के प्रति कैसे बढ़ाई जा सकती है पाठ के आधार पर बताइए?

Solution : अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाना-लिखाना नहीं चाहते थे। यहाँ तक कि परचून वाले दुकानदार और आढ़ती भी अपने बच्चों को बहीखाता लिखना सिखाना काफी समझते थे। उनमें प्रगति की अंधी भूख नहीं थी अत: गाँव के अनेक बच्चे स्कूल नहीं जाते थे और जो जाते थे उन्हें स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था।

पाठ सपनों के से दिन के आधार पर बताइये कि बच्चों का खेल कूद में अधिक रुचि लेना अभिभावकों को अप्रिय क्यों लगता था?

अपनी इसी सोच के कारण, बच्चे खेलकूद में जब चोटिल हो जाते और कई जगह छिला पाँव लिए आते तो उन पर रहम करने की जगह पिटाई करते। वे शारीरिक विकास और जीवन-मूल्यों के उन्नयन में खेलों की भूमिका को नहीं समझते थे, इसलिए बच्चों को खेलकूद में रुचि लेना उन्हें अप्रिय लगता था

सपनों के से दिन पाठ के आधार पर बताए कि अभिभावकोंको बच्चों की पढ़ाई में रुचि क्यों नहीं थी?

➲ 'सपनों के से दिन' पाठ के आधार पर अगर कहें तो अभिभावकों की अपने बच्चों की पढ़ाई में रुचि इसलिए नहीं थी क्योंकि लेखक के आसपास के जितने भी परिवार थे, उनमें जो भी बच्चे थे, उनके परिवार में उनके पिता छोटे-मोटे आढ़तिये, परचूनिए (किरानेवाला), दुकानदार या अन्य कोई छोटा मोटा काम धंधा करने वाले लोग थे।

पढ़ाई के साथ खेलों का छात्र जीवन में क्या महत्व है और इससे किन जीवन मूल्यों की प्रेरणा मिलती है?

छात्रों के लिए पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का भी विशेष महत्त्व है। ये खेलकूद एक ओर हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक हैं, तो दूसरी ओर सहयोग की भावना, पारस्परिकता, सामूहिकता, मेल-जोल रखने की भावना, हार-जीत को समान समझना, त्याग, प्रेम-सद्भाव जैसे जीवन-मूल्यों को उभारते हैं तथा उन्हें मजबूत बनाते हैं।