नदियों का जल प्रदूषण कैसे होता है इस प्रदूषण को कम करने के उपाय? - nadiyon ka jal pradooshan kaise hota hai is pradooshan ko kam karane ke upaay?

नदियों को प्रदूषण से बचाने को करने होंगे उपाय

अनिल कुमार सिंह, बड़हरा (भोजपुर) : नदियों को धरती का प्राण माना जाता है। जो हमारी पृथ्वी व समस्त जीव-जगत को जिंदा रखती है। जब नदियों के जीवन पर ही संकट मंडरा रहा हो तो अन्य जीव जगत पर क्या असर होगा? गंभीर चिंता का विषय है।

नदियों में बढ़ते प्रदूषण से चिंतित लोगों ने प्रदूषण से बचाने को ले कुछ लोगों की राय ली गयी। प्रस्तुत है-लोगों के विचार का प्रमुख अंश। प्रखंड लोक शिक्षा समन्वयक रेवती रमण सिंह कहते हैं नदियों में मृत जानवरों को नहीं फेंकना चाहिए। नदी किनारे बसे लोगों को नदी में गंदे कपड़े नहीं साफ करने चाहिए। क्योंकि गंदे व दूषित कपड़े के रोगाणु पानी में दूर-दूर तक फैलकर बीमारी फैला सकते हैं। नदी में डिटर्जेट पाउडर, साबुन का प्रयोग और जलीय जीवों के शिकार से परहेज करना चाहिए। क्योंकि नदी के जीवों जैसे मछली, कछुआ, घड़ियाल, मेढ़क आदि प्रदूषण को दूर करते हैं। प्रदूषण दूर करने को ले सरकार को जागरूकता कार्यक्रम चलाना चाहिए।

संकुल समन्वयक मुमताज आलम ने बताया कि शहरी नालों की गंदगी व औद्योगिक कचरे को बिना शुद्ध किये बहव पर रोक लगना चाहिए। नदी जल के संरक्षक जीवों की अवैध तस्करी रोकने के कड़े कानून होने चाहिए। पूर्व प्रभारी मुखिया कृष्ण कुमार सिंह ने बताया कि शहर के गंदे नालों को रोकने के साथ नदी किनारे मल-मूत्र त्याग करने पर प्रतिबंध होना चाहिए। वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने बताया कि बड़हरा क्षेत्र में गंगा को साफ रखने को ले सबसे पहले तो आरा-केशोपुर गांगी द्वारा शहर के गंदे पानी गिरने से रोकने की जरूरत है। विकल्प के रूप में उस पानी से नहर निकालकर सिंचाई के काम में लाना चाहिए। स्वास्थ्य कर्मी अरुण कुमार सिंह कहते हैं कि नदी को प्रदूषण रहित बनाना हरेक व्यक्ति का लक्ष्य होना चाहिए। सबसे पहले तो गंगा नदी में गिरने वाले सारे गंदे नालों को बंद करा देना चाहिए।

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जल प्रदूषण को रोकने के उपाय अथवा सुझाव 

पिछेले लेख मे बताई गई जल की कमी तथा प्रदूषित जल के दुष्प्रभावों के परिप्रेक्ष्य मे जलस्त्रोतों के प्रदूषण को रोकने की आवश्यकता स्वयं सिद्ध है। जल प्रदूषण को रोकने के उपाय तथा सुझाव निम्न प्रकार है--

1. जहाँ तक संभव हो किसी भी प्रकार के अपशिष्ट या अपशिष्टयुक्त बहि:स्त्राव को जलाशयों मे मिलने नही दिया जाना चाहिए।

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2. घरों से निकलने वाले मलिन जल तथा वाहितमल को एकत्रित एक शोधन संयंत्रो से पूर्ण उपचार के उपरान्त ही नदी या तालाबों मे विसर्जित किया जाना चाहिए। संभव हो तो इस प्रकार से उपचारित जल का प्रयोग खेतो मे सिंचाई के लिए किया जाना चाहिए।

3. पेय जल स्त्रोतों जैसे तालाब, नदी इत्यादि के चारो ओर दीवार बनाकर विभिन्न प्रकार की गंदगी के प्रवेश को रोका जाना चाहिए।

4. जलाशयों के आस-पास गंदगी करने, उनमे नहाने, कपड़े धोने इत्यादि को रोका जाना चाहिए जिससे गंदगी, साबुन तथा अन्य प्रक्षालक पदार्थ जल मे न मिलने पायें।

5. नदी तथा तालाबो मे पशुओं को नहलाने पर भी पाबंदी होना चाहिए क्योंकि इससे अनेक प्रकार के रोगाणुओं के जल मे फैलने की संभावना रहती है तथा जल भी प्रदूषित होता है।

6. जल की आवश्यकता की सुगम पूर्ति के उद्देश्य से अधिकतर उद्योगों को नदियो या तालाबों के किनारे स्थापित किया जाता है। ये उद्योग अपने अ-उपचारित बहि:स्त्राव को निकटस्थ उपलब्ध जलाशय मे विसर्जित करना आर्थिक तथा अन्य कारणों से सुविधाजनक मानते है तथा इस प्रकार जल प्रदूषण का कारण बनते है। इस दृष्टि से रासायनिक उद्योग सबसे अधिक हानिकारक होते है। इन उद्योगों से निकला विभिन्न विषैले रासायनिक पदार्थों से युक्त बहिःस्त्राव नदी के जल को ही प्रभावित नही करता अपितु मछलियों व अन्य उपयोगी जलीय जीवो के नाश का कारण भी बनता है। अतः प्रथमतः उद्योगो को, सैद्धान्तिक रूप से जलाशयों के निकट स्थापित उद्योगो को अपने अपशिष्ट जल का बिना उपचार किये जलाशयों मे विसर्जित करने से रोका जाना चाहिए।

7. कस्बों, नगरो तथा महानगरों मे शौचालयों की स्थापना की जानी चाहिए।

8. विद्युत शवदाह-गृहों की स्थापना की जाये जिससे बिना जले, अधजले शव व कार्बनिक पदार्थ नदियों मे प्रवाहित न हों।

9. मृतक पशुओं के जलाशयो मे विसर्जिन पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए।

10. नगर पालिकाओं को सीवर-शोधन संयन्त्रो की व्यवस्था करनी चाहिए।

11. सरकार को जल प्रदूषण के नियंत्रण से संबंधित उपयोगी एवं कारगर नियम एवं कानून भी बनाने चाहिए। व्यक्तियों, समुदायों, सामाजिक संगठनों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों, सरकारी अधिकारियों तथा मिल-मालिको को इन नियमों एवं कानूनो का सख्ती से पालन करना होगा। इन नियमों एवं कानूनों का उल्लंघन करने वालों को सख्त सजा मिलनी चाहिए एवं उनसे भारी आर्थिक दण्ड वसूल किया जाना चाहिए।

12. उर्वरकों एवं कीटनाशकों का उपयोग आवश्यकतानुसार ही किया जाये। डी. डी. टी. तथा इसी प्रकार के स्थाई प्रकृति के कीटनाशियों एवं पेस्टनाशियों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

13.  जल प्रदूषण के कारणों, दुष्प्रभावों एवं रोकथाम की विधियों की जानकारी जनसाधारण को दी जाये। इसके लिए रेडियो, दूरदर्शन, समाचार-पत्र, गैर सरकारी संस्थाएं महत्वपूर्ण योगदान कर सकती है।

14. जल प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। अधिनियम की समीक्षा के लिए पर्यावरणविदों एवं विधि विशेषज्ञों की एक समिति बनाई जाये। समिति की संस्तुतियों एवं सुझावो के आधार पर आवश्यकतानुसार अधिनियम को संशोधित किया जाये।

15. पशुओं को जल मे नहलाने से रोगाणुओं के फैलने की संभावना रहती है जिससे जल प्रदूषित हो जाता है इसलिए पशुओं को नदियो, तालाबों मे नहलाने पर प्रतिबंध लगाया जाये।

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नदियों का जल प्रदूषित कैसे होता है इस प्रदूषण को कम करने के उपाय समझाइए?

शहरों को पानी का इस्तेमाल कम करना चाहिए और पानी के लिए भुगतान करना चाहिए। जल संरक्षण तकनीक के सस्ता करना चाहिए और रिचार्ज जोन का संरक्षण किया जाए। नदियों को प्रदूषित करने वाली औद्योगिक इकाइयों पर कार्रवाई के लिए कड़े नियमों को लागू किया जाए और प्रदूषण नियंत्रण करने वाली तकनीकों को प्रोत्साहित किया जाए।

नदियों को प्रदूषित होने से कैसे बचाएं?

नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए सर्वप्रथम नदी में मिलने वाले नालों को बंद करना चाहिए। तटों पर निर्मित उद्योग से नदी में मिलने वाले रासायनिक पदार्थों पर पूरी तरह पाबंदी लगनी चाहिए। साथ ही शहरों में जल शुद्धीकरण संयंत्रों का उपयोग होना चाहिए जिससे नदी में साफ जल ही पहुंचे। नदियों में शव नहीं बहाए जाएं।

नदियों के प्रदूषण को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

प्रदूषण का कारण गंगा की इसी दशा को देख कर मशहूर वकील और मैगसेसे पुरस्कार विजेता एमसी मेहता ने १९८५ में गंगा के किनारे लगे कारख़ानों और शहरों से निकलने वाली गंदगी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। फिर सरकार ने गंगा सफ़ाई का बीड़ा उठाया और गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत हुई।

नदी जल प्रदूषण के मुख्य कारण क्या है इसको कैसे रोका जा सकता है?

जल प्रदूषण के कारण नगरों में पर्याप्त मात्रा में जल का उपयोग किया जाता है और सीवरों तथा नालियों द्वारा अपशिष्ट जल को जलस्रोेतों में गिराया जाता है। जल स्रोतों में मिलने वाला यह अपशिष्ट जल अनेक विषैले रासायनों एवं कार्बनिक पदार्थों से युक्त होता है जिससे जल स्रोतों का स्वच्छ जल भी प्रदूषित हो जाता है।