मानव शरीर में लिवर क्या काम करता है? - maanav shareer mein livar kya kaam karata hai?

हर साल वर्ल्ड लिवर डे पर लीवर से जुड़ी बीमारियों (Liver disorders) के बारे में जागरुक किया जाता है। लीवर मानव शरीर का दूसरा सबसे बड़ा अंग होता है। लीवर शरीर से हानिकारक और विषाक्त तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है। यह विटामिन, वसा जैसे अन्य पोषक तत्वों को पचाने में मदद करता है। खाने को पचाने के लिए पित्त और एंजाइम का उत्पादन भी लीवर ही करता है। एक स्वस्थ्य जीवन के लिए लीवर का सही तरीके से काम करना बेहद जरूरी है। 

लीवर के डैमेज होने के कारण पीलिया का खतरा बढ़ जाता है: डॉ रूचि 

डॉ रूचि गुप्ता (Dr. Ruchi Gupta), सीईओ, 3 एच केयर डॉट इन ने बताया कि  “आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग अपनी सेहत पर ध्यान ही नहीं देते हैं। उनके खाने-पीने की आदतों के कारण लीवर ठीक से काम करना बंद कर देता है, साथ ही कई अन्य बीमारियों को भी जन्म देता है। लीवर के डैमेज होने के कारण पीलिया (jaundice) का खतरा बढ़ जाता है। पीलिया दूषित पानी, खाना या वायरल इंफेक्शन के कारण होता है। कई बार लीवर में वसा जमने लगता है, जिसे आम भाषा में फैटी लीवर भी कहा जाता है। डायबिटीज और हाई बल्ड प्रेशर (Diabetes and high blood pressure) के लोगों में लीवर की बीमारियां होना एक आम समस्या है। अगर लीवर का समय पर इलाज न किया जाए तो लीवर कैंसर होने का खतरा भी बढ़ जाता है। लीवर की बीमारी के लक्षणों में बेवजह वजन का घटना, पीलिया होना, भूख न लगना, पाचन में समस्या होना, थकान महसूस करना, बार-बार उल्टी आना आदि शामिल हैं। बेहतर होगा कि आप लोग समय-समय पर जांच करवाते रहे ताकि बीमारी से बचा जा सके और बीमारी हो जाने पर सही समय पर इसका इलाज हो सके।“ 

लीवर के डिटॉक्सीफिकेशन के लिए वसामुक्त भोजन करना चाहिए: डॉ. रवींदर

नई दिल्ली स्थित सरोज सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल (Saroj Super Specialty Hospital) के सेंटर फॉर लीवर ट्रांसप्लांट एंड गैस्ट्रो साइंसेज (Liver transplant and gastro sciences) के डायरेक्टर एवं एचओडी डॉ. रवींदर पाल सिंह (HOD Dr Ravinder Pal Singh) का कहना है कि हमारे लीवर के डिटॉक्सीफिकेशन (Detoxification) के लिए हमें वसामुक्त या बिना चिकनाई वाला भोजन करना चाहिए. कॉलेस्ट्रोल एक ऐसा वसा है, जिसे हमारा लीवर संश्लेशित करता है और इसके बाद हमारा शरीर इसे ऊर्जा के स्रोत के रूप में काम  लेता है. ऐसे में यह हमारे भोजन का अहम हिस्सा तो है, लेकिन हमें अधिक कॉलेस्ट्रोल वाला भोजन करने से बचना चाहिए. अधिक कॉलेस्ट्रोल वाले भोजन में हम लाल मांस, अधिक चिकनाई वाला भोजन, शक्कर, नमक आदि शामिल करते है. अधिक कॉलेस्ट्रॉल वाला भोजन करने से लीवर के कई तरह के रोग हो सकते हैं, जैसे लीवर का मोटापन जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा पाई जाने वाली बीमारियों में से एक है. हमें अधिक कॉलेस्ट्रॉल वाले भोजन के बजाए रेशेदार सब्जियां और अनाज का उपयोग करना चाहिए.

लिवर को खराब होने से बचाने के लिए क्या करना चाहिए

डॉ. रवींदर पाल सिंह के अनुसार आज के समय में लोग धूम्रपान, शराब, तलीभुनी चीजों, जंक फूड, धूम्रपान, खट्टी चीजों का सेवन अधिक करने लगे हैं जिसके कारण लीवर को बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है। गलत खानपान के चलते कई बड़ी बीमारियों का सामना करना पड़ता है जैसे कि पीलिया, फैटी लीवर, लिवर कैंसर आदि। लीवर को लंबे समय तक स्वस्थ रखने के लिए जरूरी है कि स्वस्थ जीवनशैली के साथ ही खान-पान भी अच्छा हो। नाश्ता जरूर करें, देर से सोना और देर से उठना बंद करें, प्रोटीन की अधिकता वाला भोजन करें, शराब के अत्यधिक सेवन से बचें, प्रोसस्ड या डिब्बाबंद भोजन के प्रयोग से बचें, सुबह के समय पेशाब जरूर करें आदि। भोजन में सलाद के अलावा हरी सब्जियों का सेवन अधिक करना चाहिए। लहसुन और अदरक के नियमित प्रयोग से लीवर की कई बीमारियों से बचा जा सकता है। नियमित रूप से ताजे फल खाने चाहिए और शरीर को हाइड्रेटेड रखना चाहिए।

यकृत शरीर का एक अंग है, जो केवल कशेरुकी प्राणियों में पाया जाता है। इसका कार्य विभिन्न चयापचयों को detoxify करना, प्रोटीन को संश्लेषित करना, और पाचन के लिए आवश्यक जैव रासायनिक बनाना है।[1][2][3] मनुष्यों में, यह पेट के दाहिने-ऊपरी हिस्से में डायाफ्राम के नीचे स्थित होता है, और मानव शरीर की शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है, जो पित्त (Bile) का निर्माण करती है। पित्त, यकृती वाहिनी उपतंत्र (Hepatic duct system) तथा पित्तवाहिनी (Bile duct) द्वारा ग्रहणी (Duodenum), तथा पित्ताशय (Gall bladder) में चला जाता है। पाचन क्षेत्र में अवशोषित आंत्ररस के उपापचय (metabolism) का यह मुख्य स्थान है। इसके निचले भाग में नाशपाती के आकार की थैली होती है जिसे पित्ताशय कहते है। यकृत द्वारा स्त्रावित पित्त रस पित्ताशय में ही संचित होता है। चयापचय में इसकी अन्य भूमिकाओं में ग्लाइकोजन भंडारण का विनियमन, लाल रक्त कोशिकाओं का अपघटन और हार्मोन का उत्पादन शामिल है।[3]

स्वाभावित लक्षण एवं स्थिति[संपादित करें]

यह लालपन लिए भूरे रंग का बड़ा मृदु, सुचूर्ण एवं रक्त से भरा अंग है। मृदु होने से अन्य अंगों के दाब चिन्ह इस पर पड़ते हैं, फिर भी यह अपना आकार बनाए रखता है। यह श्वासोछवास के साथ हिलता रहता है। यकृत के दो खंड होते है, इनमें दक्षिण खंड बड़ा होता है। यकृत पेरिटोनियम (peritoneum) गुहा के बाहर रहता है। यकृत उदरगुहा में सबसे ऊपर डायाफ्राम (diaphragm) के ठीक नीचे, विशेष रूप से दाहिनी ओर रहते हुए, बाईं ओर चला जाता है। स्वाभाविक अवस्था में पर्शकाओं (ribs) के नीचे इसे स्पर्श नहीं किया जा सकता।

आकार

यह पाँच तलवाले नुकीला भाग वाम ओर रहता है। अन्य चार तल ऊर्ध्व, अध:, पूर्व तथा पश्च कहलाते हैं। इसका अध: तल चारों ओर पतले किनारे से घिरा रहता है तथा उदर गुहा के अन्य अंग इस तल से संबद्ध रहते हैं।

माप एवं भार

इसकी दक्षिण-बाम लंबाई 17.5 सेंमी0, अध: ऊँचाई 16 सेंमी0 तथा पूर्व-पश्च चौड़ाई 15 सेंमी0 होती है। इसका भार शरीर के भार का 1/50 भाग के लगभग, प्राय: 1,500 ग्राम से 2,000 ग्राम तक होता हैं। शरीर के भार से इसके भार का अनुपात स्त्री पुरूषों में एक ही होता है, परंतु वय के अनुसार बदलता है। बालकों में इसका भार शरीर के भार का 1/20 भाग होता है।

पृष्ठ भाग (Surface)

दक्षिण पृष्ठ उत्तल और चौकोर होता है। यह डायाफ्रॉम से संबद्ध रहता है, जो इसे दक्षिण फुप्फुसावरण और छह निचली पर्शुकाओं से विलग करता है।

उर्ध्व पृष्ठ (Superior surface)

यह दोनों ओर उत्तल तथा मध्य में अवतल होता है। यह डायाफ्रॉम द्वारा दोनों फुफ्फस, फुप्फुसावरण तथा ह्रदयावरण से विलग हो जाता है।

अग्र पृष्ठ (Anterior surface)

यह त्रिभुजाकार होता है। त्रिभुज का आधार दाहिने होता है। इसके सामने उदरीय ऋजु पपेशियाँ (Rectus abdominus), उनका आवरण उदर सीवनी (Linea alba) तथा हँसियाकार स्नायु (Falci form-ligament) रहते हैं।

अध पृष्ठ (Inferior surface)

यह उत्तलावतल होता है। यह (1) दक्षिण वृक्क, (2) दक्षिण उपवृक्क, (3) वृहदांत्र दक्षिण बंक (Right flexure), (4) पक्वाशय का द्वितीय भाग, (5) पित्ताशय तथा (6) आमाशय से संबद्ध रहता है। ये अंग प्राय: इस पर अपना खाता सा बना लेते हैं।

निर्वाहिका यकृत् (portal hepatics)

यह अनुप्रस्थ दिशा में 5 सेंमी0 लंबा खाता है। यह यकृत के अध: तल पर रहता है। इसके दोनों ओष्ठ पर लघुता संलग्न रहता है। इसमें ये यकृत् धमनी, निर्वाहिका शिरा (portal vein) एवं नाड़ियाँ यकृत् में प्रवेश करती हैं संयुक्त यकृत् वाहिनी और लसिका वाहिनियाँ बाहर निकलती हैं।

पश्च पृष्ठ (psurface osterior)

यह सामने वक्र बनाते हुए रहता है। दाहिने डायाफ्राम द्वारा दक्षिण पर्शुकाआं, दक्षिण फुप्फुस और उसके फुप्फुसावरण (pleura) से विलग किया जाता है तथा दक्षिण अधिवृक्क (supra renal) से संबद्ध रखता है। अध: महाशिरा (inferior venacava) इसमें लंबी खात बनाते हुए जाती है। इस खात के वाम भाग में दक्षिण यकृत खंड का एक और खंड है, जिसे पुच्छिल (caudate) खंड कहते हैं, जो महाधमनी (aorta) के वक्षीय भाग डायाफ्राम द्वारा विलग किया जाता है। पुच्छिल खंड वाम खंड से एक विदर द्वारा अलग किया जाता है, जिसमें शिंरा स्नायु (ligamentum venosum) रहता है। इस स्नायु विदर के वाम और वाम खंड के पश्चिम पृष्ठ पर ग्रसिका (oesophagus) खाता रहता है।

पेरिटोनियम के द्विगुणित पर्त इसके स्नायु (ligament) बनाते हैं। ये स्नायु हैं:

(1) चक्रीय (coronary), (2) हँसियाकार (falciform), (3) गोल (teres), (4) सिरा,

(5) वाम एवं दक्षिण त्रिकोण (triangular) स्नायु तथा (6) लघुवपा (lesser omentum)।

पुच्छिल खंड

यह काम ओर शिरा स्नायु के विदार, दक्षिण और अध: महाशिरा विदार ओर निर्वाहिका यकृत के मध्य से होता हुआ दक्षिण खंड से जुडा रहता है, पुच्छिल प्रवर्ध (Caudatte process) कहते हैं। इसके वाम और पुच्छिल खंड का नुकीला भाग अंकुरक प्रवर्ध कहलाता (Papillary process) हैं।

चतुरस्त्र खंड

यकृत अध:पृष्ठ पर दिखाई देता है। इसके वाम और तंत्र स्नायु विदर तथा दक्षिण ओर पित्ताशय खुला रहता है।

यकृत स्नायुओं, उदरीय अन्त: दाब, रक्त वाहिनियों तथा वायुमंडलीय दाब के कारण अपने स्थान पर स्थित रहता है।

रक्तवाहिनियाँ एवं नाड़ियाँ

1. यकृत धमनी उदरगुहा (coeliac) धमनी की शाखा है।

निर्वाहिका शिरा- पाचन तंत्र से पाचित अन्नरसयुक्त रक्त लाती है।

यकृत शिराएँ (Hepatic veins)- रक्त को अध: महाशिराएँ ले जाती है।

लसिकावाहिनियाँ- ये यकृत शिराओं और निर्वाहिका शिरा के साथ जाती हैं। यकृत की अनुंपी (sympathetic) तथा परानुकंपी (parasympathetic) तंत्रिकाएँ सीलक जाती तथा वेगस तंत्रिका से आती हैं।

यकत का कार्य- 1. ग्लूकोज से बनने वाले ग्लाइकोजन (शरीर क लिये इन्धन) को संग्रहित करना। आवश्यकता होने पर, ग्लाइकोजन ग्लूकोस में परिवर्तित होकर रक्तधारा में प्रवाहित हो जाता है। 2. पचे हुए भोजन से वसाओं और प्रोटीनों को संसिधत करने में मदद करना। 3. रक्त का थक्का बनाने के लिये आवशक प्रोटीन को बनाना। 4. विषहरण (डीटॉक्सीफिकेशन) 5. भ्रुणिय अवस्था में यह रक्त (खून) बनाने का काम भी करता है। 6. bile salt और bile pigment का स्रवण करता है! 7. रक्त से bilirubin को अलग करता है. 8. गैलेक्टोज को ग्लूकोज में परिवर्तित करता है. 9. कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन को वसा में परिवर्तित करता है . 10. antibody और antigen का निर्माण करता है. 11. यकृत अमोनिया (Nh3) को यूरिया(NH2coNH2) में परिवर्तित करता है। 12. यकृत विटामिन ए को भी संग्रहित करता है।

यकृत के कार्य[संपादित करें]

  • विटामिन A का निर्माण एवं संचयन
  • अधिक शर्करा को ग्लाइकोजन के रुप में संचित करना
  • रक्त स्कन्दन में फाइब्रिनोजन तथा प्रोथ्रोम्बिन का संश्लेषण करना
  • हिपैरीन का निर्माण जिससे रूधिर वाहनियो में थक्का न जमे
  • RBC का कब्रिस्तान

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Elias, H.; Bengelsdorf, H. (1 July 1952). "The Structure of the Liver in Vertebrates". Cells Tissues Organs. 14 (4): 297–337. डीओआइ:10.1159/000140715.
  2. Abdel-Misih, Sherif R.Z.; Bloomston, Mark (2010). "Liver Anatomy". Surgical Clinics of North America. 90 (4): 643–653. PMC 4038911. PMID 20637938. डीओआइ:10.1016/j.suc.2010.04.017.
  3. ↑ अ आ "Anatomy and physiology of the liver – Canadian Cancer Society". Cancer.ca. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2015-06-26.

लिवर खराब होने से क्या होता है?

लिवर के खराब होने पर भूख कम लगती है, जिससे शरीर में कमजोरी आ जाती है. कमजोरी की वजह से पैरों और टखनों में दर्द होने व सूजन आने की समस्या भी देखने को मिलती है. इसके साथ ही जब लिवर खराब होता है, तो इससे स्किन पर पपड़ी भी जमने लगती है, जिससे त्वचा पर खुजली आने लगती है.

लीवर कमजोर होने के लक्षण क्या है?

लीवर कमजोर होने के लक्षण क्या होते हैं? यदि आपका लीवर कमजोर हो रहा है तो आपके शरीर में कुछ विशेष लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इसमें कमजोरी होना, भूख कम होना, उल्टी होना, नींद ना आना, दिनभर थकान महसूस होना, शरीर में सुस्ती बनी रहना, तेजी से वजन घटना और लीवर में सूजन जैसे लक्षण शामिल है।

लिवर खराब होने से कौन कौन सी बीमारियां होती है?

लिवर की बीमारी कई तरह की होती है, जिसमें नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिसीज, अल्कोहॉल संबंधित लिवर डिसीज, हेपेटाइटिस, हेमोक्रोमैटोसिस और प्राइमरी पित्त सिरोसिस आदि शामिल हैं. ये सभी बीमारियां लिवर को प्रभावित करती हैं इसलिए लिवर की खास देखभाल करना काफी जरूरी होता है.

लिवर का मुख्य काम क्या होता है?

यकृत शरीर का एक अंग है, जो केवल कशेरुकी प्राणियों में पाया जाता है। इसका कार्य विभिन्न चयापचयों को detoxify करना, प्रोटीन को संश्लेषित करना, और पाचन के लिए आवश्यक जैव रासायनिक बनाना है।

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