क्या आपको पता है पाकिस्तान में भगवान शिव को समर्पित 5000 साल पुराना एक हिंदू मंदिर है. इस मंदिर का संबंध महाभारत काल से है. इस मंदिर का नाम कटासराज मंदिर है जो चकवाल जिले से करीब 40 किमी की दूर है.
क्या आपको पता है पाकिस्तान में भगवान शिव को समर्पित 5000 साल पुराना एक हिंदू मंदिर है. इस मंदिर का संबंध महाभारत काल से है. इस मंदिर का नाम कटासराज मंदिर है जो चकवाल जिले से करीब 40 किमी की दूर है. ऐसी मान्यता है कि जिस तालाब के चारों तरफ कटास मंदिर बना है, वो भगवान शिव के आंसुओं से भरा है.
इस मंदिर को लेकर पौराणिक कहानी है कि सती की मृत्यु के बाद भगवान भोलेनाथ इतने दुखी हुए कि उनके आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. ऐसा कहा जाता है कि तब उनके आसूंओं से दो तालाब बने, जिसमें से एक कटारसराज है, जो अब पाकिस्तान में है. वहीं, दूसरा मंदिर राजस्थान के पुष्कर में है, जिसे कटाक्ष कुंड कहते हैं. इस जगह को लेकर कहा जाता है कि यहां अपने 12 साल के वनवास के दौरान पांडव भी रहे थे. ऐसा कहा जाता है कि वनों में भटकने के दौरान पांडवों को जब प्यास लगी तो वो कटाक्ष कुंड गये. जहां यक्ष रहता था.
जिस पर उसने एक-एक कर चार पांडवों से जल पीने से पहले सवाल-जवाब किये और उनको मूर्छित कर दिया. आखिर में युधिष्ठिर आये और उन्होंने यक्ष के सारे सवालों का सही-सही जवाब दिया जिसके बाद यक्ष ने सभी पांडवों की चेतना वापस कर दी और जल पीने की अनुमति दी. यहां अधिकतर मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं. कुछ मंदिर भगवान हनुमान और राम को भी समर्पित हैं. इस परिसर के भीतर एक प्राचीन गुरुद्वारा के अवशेष भी हैं. कहा जाता है कि इसी गुरुद्वारा के भीतर कभी नानक ने यात्रा के दौरान निवास किया था. यह मंदिर पाकिस्तानी पंजाब के उत्तरी भाग में नमक कोह पर्वत शृंखला में स्थित है. यह मंदिर हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है, जिसका निर्माण खटाना गुर्जर राजवंश ने करवाया था. यहां मंदिरों की श्रृंखला है जो दसवीं शताब्दी के बताये जाते हैं.
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हिंगलाज माता मन्दिर, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के हिंगलाज में हिंगोल नदी के तट पर स्थित एक हिन्दू मन्दिर है। यह हिन्दू देवी सती को समर्पित इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ इस देवी को हिंगलाज देवी या हिंगुला देवी भी कहते हैं। इस मन्दिर को नानी मन्दिर के नामों से भी जाना जाता । पिछले तीन दशकों में इस जगह ने काफी लोकप्रियता पाई है और यह पाकिस्तान के कई हिंदू समुदायों के बीच आस्था का केन्द्र बन गया है।[2]
हिंगलाज माता का गुफा मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में लारी तहसील के दूरस्थ, पहाड़ी इलाके में एक संकीर्ण घाटी में स्थित है। यह कराची के उत्तर-पश्चिम में 250 किलोमीटर (160 मील), अरब सागर से 12 मील (19 किमी) अंतर्देशीय और सिंधु के मुंहाने के पश्चिम में 80 मील (130 किमी) में स्थित है। यह हिंगोल नदी के पश्चिमी तट पर, मकरान रेगिस्तान के खेरथार पहाड़ियों की एक शृंखला के अंन्त में बना हुआ है।[3] यह क्षेत्र हिंगोल राष्ट्रीय उद्यान के अन्तर्गत आता है।[5]
मंदिर एक छोटी प्राकृतिक गुफा में बना हुआ है। जहाँ एक मिट्टी की वेदी बनी हुई है। देवी की कोई मानव निर्मित छवि नहीं है। बल्कि एक छोटे आकार के शिला की हिंगलाज माता के प्रतिरूप के रूप में पूजा की जाती है। शिला सिंदूर (वर्मीमिलियन), जिसे संस्कृत में हिंगुला कहते है, से पुता हुआ है, जो संभवतया इसके आज के नाम हिंगलाज का स्रोत हो सकता है।
हिंगलाज के आस-पास, गणेश देव, माता काली, गुरुगोरख नाथ दूनी, ब्रह्म कुध, तिर कुण्ड, गुरुनानक खाराओ, रामझरोखा बेठक, चोरसी पर्वत पर अनिल कुंड, चंद्र गोप, खारिवर और अघोर पूजा जैसे कई अन्य पूज्य स्थल हैं।[5]
यह डोडिया राजपूत की प्रथम कुलदेवी हिंगलाज माता पूजनीय है। यह मनणा जागीरदारो, सैफाऊ, शिदप जागीरदार (राजपुरोहितो) की कुलदेवी है | एक लोक गाथानुसार चारणों तथा राजपुरोहित की कुलदेवी हिंगलाज है, जिसका निवास स्थान पाकिस्तान के बलुचिस्थान प्रान्त में था। हिंगलाज नाम के अतिरिक्त हिंगलाज देवी का चरित्र या इसका इतिहास अभी तक अप्राप्य है। हिंगलाज देवी से सम्बन्धित छंद गीत अवश्य मिलती है।
सातो द्वीप शक्ति सब रात को रचात रास।प्रात:आप तिहु मात हिंगलाज गिर में॥अर्थात: सातो द्वीपों में सब शक्तियां रात्रि में रास रचाती है और प्रात:काल सब शक्तियां भगवती हिंगलाज के गिर में आ जाती है।
उत्पत्ति की एक और कथा के अनुसार सती के वियोग मे क्षुब्ध शिव जब सती की पार्थिव देह को लेकर तीनों लोको का भ्रमण करने लगे तो भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 51 खंडों मे विभक्त कर दिया जहाँ जहाँ सती के अंग- प्रत्यंग गिरे स्थान शक्तिपीठ कहलाये । केश गिरने से महाकाली,नैन गिरने से नैना देवी, कुरूक्षेत्र मे गुल्फ गिरने से भद्रकाली,सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने से शाकम्भरीआदि शक्तिपीठ बन गये सती माता के शव को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर यहां उनका ब्रह्मरंध्र (सिर) गिरा था।[6]
मंदिर की वार्षिक 'तीर्थयात्रा'
हिंगलाज माता को एक शक्तिशाली देवी माना जाता है जो अपने सभी भक्तों के लिए मनोकामना पूर्ण करती है। जबकि हिंगलाज उनका मुख्य मंदिर है, मंदिरों के पड़ोसी भारतीय राज्य गुजरात और राजस्थान में भी उनके लिए समर्पित मंदिर बने हुए हैं। मंदिर को विशेष रूप से संस्कृत में हिंदू शास्त्रों में हिंगुला, हिंगलाजा, हिंगलाजा और हिंगुलता के नाम से जाना जाता है। देवी को हिंगलाज माता (मां हिंगलाज), हिंगलाज देवी (देवी हिंगलाज), हिंगुला देवी (लाल देवी या हिंगुला की देवी) और कोट्टारी या कोटवी के रूप में भी जाना जाता है।
स्थानीय मुस्लिम भी हिंगलाज माता पर आस्था रखते हैं और मंदिर को सुरक्षा प्रदान करते हैं। उन्होंने मंदिर को "नानी का मंदिर" कहते है।[10] देवी को बीबी नानी (सम्मानित मातृ दादी) कहा जाता है। बीबी नानी, नाना के समान हो सकती है, जो कुशान सिक्कों पर दिखाई देने वाले एक पूज्य देव थे और पश्चिम और मध्य एशिया में व्यापक रूप से उनकी पूजा की जाती थी। एक प्राचीन परंपरा का पालन करते हुए स्थानीय मुस्लिम जनजातियां, तीर्थयात्रा समूह में शामिल होती हैं और तीर्थयात्रा को "नानी की हज" कहते हैं।