मानव भूगोल का अर्थ क्या है - maanav bhoogol ka arth kya hai

मानव भूगोल का अर्थ क्या है - maanav bhoogol ka arth kya hai

देशों के अनुसार जनसंख्या का घनत्व, 2006

मानव भूगोल, भूगोल की प्रमुख शाखा हैं जिसके अन्तर्गत मानव की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक उसके पर्यावरण के साथ सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता हैं। मानव भूगोल की एक अत्यन्त लोकप्रिय और बहु अनुमोदित परिभाषा है, मानव एवं उसका प्राकृतिक पर्यावरण के साथ समायोजन का अध्ययन।[1] मानव भूगोल में पृथ्वी तल पर मानवीय तथ्यों के स्थानिक वितरणों का अर्थात् विभिन्न प्रदेशों के मानव-वर्गों द्वारा किये गये वातावरण समायोजनों और स्थानिक संगठनों का अध्ययन किया जाता है। मानव भूगोल में मानव-वर्गो और उनके वातावरणों की शक्तियों, प्रभावों तथा प्रतिक्रियाओं के पारस्परिक कार्यात्मक सम्वन्धों का अध्ययन, प्रादेशिक आधार पर किया जाता है।[2] मानव भूगोल जिग्यासावान मनुष्य पर प्रगतिशील प्रकृति के नियंत्रण व समन्वय का। अध्ययन हैं ।

मानव भूगोल का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। यूरोपीय देशों, पूर्ववर्ती सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा भारत के विश्वविद्यालयों में इसके अध्ययन में अधिकाधिक रूचि ली जा रही है। पिछले लगभग ४० वर्षों में मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र का वैज्ञानिक विकास हुआ है और संसार के विभिन्न देशों में वहाँ की जनसंख्या की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक उन्नति के लिये संसाधन-योजना में इसके ज्ञान का प्रयोग किया जा रहा है।

रेटजेल के अनुसार, "मानव भूगोल के के दृश्य सर्वत्र पर्यावरण से संबंधित होता है जो की स्वयं भौतिक दशाओं का एक योग्य होता है ellsworth एलटी गठन के अनुसार मानव भूगोल मानवीय क्रियाकलापों तथा मानवीय गुणों के भौगोलिक वातावरण से संबंधों की प्रकृति एवं उसके विवरण का अध्ययन है

रेटजेल की शिष्या व प्रसिद्ध अमेरिकन भूगोलवेत्ता एलन सैम्पल के अनुसार " मानव भूगोल चंचल मानव और अस्थायी धरती के पारस्पपरिक परिवर्तनशील सम्बन्धो का अध्ययन है ।

परिचय[संपादित करें]

मानव भूगोल पृथ्वी की सतहों और मानव समुदायों के बीच सम्बंधों का संश्लेषित अध्ययन है। यह तीन संघटकों से निकटतम रूप में जुड़ा हैः

  • मानवीय जनसंख्या का स्थानिक विश्लेषण
  • मानवीय जनसंख्या और पर्यावरण के बीच के संबंधों का पारिस्थितिक भूगोल
  • विश्लेषण और प्रादेशिक सश्लेषण, जो कि धरातल के क्षेत्रीय विभेदीकरण में पहली दोनों विषयवस्तुओं को जोड़ता है।

मानव भूगोल की कई उप-शाखायें है :

मानवविज्ञान भूगोल : यह बड़े पैमाने पर स्थानिक सन्दर्भ में विविध प्रजातियों का अध्ययन करता है।

सांस्कृतिक भूगोल : यह मानवीय संस्कृतियों की उत्पत्ति, संघटकों और प्रभावों की चर्चा करता है।

आर्थिक भूगोल : यह स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर आर्थिक गतिविधियों की अवस्थिति व वितरण का अध्ययन करता है। आर्थिक भूगोल का अध्ययन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता हैः संसाधन भूगोल, कृषि भूगोल, औद्योगिक व परिवहन भूगोल।

राजनीतिक भूगोल : यह स्थानिक सन्दर्भ में राजनीतिक परिघटनाओं का अध्ययन करता है। इसका मुख्य उद्देश्य राजनीतिक व प्रशासनिक प्रदेशों के उद्भव व रूपान्तरण की व्याख्या करना है।

ऐतिहासिक भूगोल : भौगोलिक परिघटनाओं का स्थानिक व कालिक अध्ययन ऐतिहासिक भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है।

सामाजिक भूगोल : यह स्थान की सामाजिक परिघटनाओं का विश्लेषण करता है। निर्धनता, स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवनयापन सामाजिक भूगोल के कुछ मुख्य क्षेत्र हैं।

जनसंख्या भूगोल : यह जनसंख्या के विविध पक्षों जैसे जनसंख्या वितरण, घनत्व, संघटन, प्रजनन क्षमता, मर्त्यता, प्रवास आदि का अध्ययन करता है।

अधिवास भूगोल : यह ग्रामीण/नगरीय अधिवासों के आकार, वितरण, प्रकार्य, पदानुक्रम और अधिवास व्यवस्था से सम्बंधित अन्य आधारों का अध्ययन करता है।

मानव भूगोल के विषय[संपादित करें]

  • आर्थिक भूगोल
  • राजनीतिक भूगोल
  • जनसंख्या भूगोल
  • सांस्कृतिक भूगोल
  • कृषि भूगोल
  • परिवहन भूगोल
  • प्रादेशिक भूगोल
  • नगरीय भूगोल
  • ग्रामीण भूगोल
  • अधिवास भूगोल
  • प्रजातिय भूगोल
  • भाषा भूगोल
  • निर्वाचन भूगोल
  • गणितीय भूगोल
  • जनसंख्या भूगोल
  • वाणिज्यिक भूगोल
  • व्यावहारिक भूगोल
  • अनुप्रयुक्त भूगोल
  • औद्योगिक भूगोल
  • सैन्य भूगोल
  • परिवहन भूगोल
  • पर्यटन भूगोल
  • चिकित्सा भूगोल

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. हुसैन, माजिद (१९९७). मानव भूगोल. जयपुर: रावत पब्विकेशन्स. पृ॰ ९.
  2. एस डी, कौशिक (२००८). मानव भूगोल. मेरठ: रस्तोगी पब्विकेशन्स. पृ॰ १.

    • मानव भूगोल का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, विषय-क्षेत्र और महत्त्व
  • मानव भूगोल की परिभाषा (Definitino of Human Geography)
  • मानव भूगोल के उद्देश्य (Aims of Human Geography)
  • मानव भूगोल का विषय-क्षेत्र (Scope of Human Geography)
  • मानव भूगोल के अध्ययन का महत्त्व (Significance of the Study of Human Geography)
      • Important Links
    • Disclaimer

मानव भूगोल का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, विषय-क्षेत्र और महत्त्व

मानव भूगोल का अर्थ क्या है - maanav bhoogol ka arth kya hai

मानव भूगोल का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, विषय-क्षेत्र और महत्त्व

मानव भूगोल का अर्थ – मानव भूगोल, भूगोल की एक प्रमुख शाखा है, जिसमें मानव को केन्द्र मानकर पार्थिव एवं प्राकृतिक वातावरण का अध्ययन किया जाता है। वस्तुतः मानव का प्राकृतिक वातावरण से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। एक ओर मानव के कार्यकलाप और आचार-विचार प्राकृतिक वातावरण से प्रभावित होते हैं तो दूसरी ओर मानव भी अपने कार्यकलापों द्वारा प्राकृतिक वातावरण को प्रभावित करता है और आवश्यकतानुसार उसमें परिमार्जन एवं परिवर्तन करता है। इसी आधार पर फेब्बर ने कहा है कि, “मानव वातावरण की उपज मात्र नहीं है, वरन् वह एक भौगोलिक अभिकर्ता है।” (Man is a geography agent and not a beast)

मानव भूगोल की परिभाषा (Definitino of Human Geography)

उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में मानव भूगोल एक स्वतन्त्र विषय के रूप में अस्तित्व में आया। सन् 1882 में प्रसिद्ध जर्मन विद्वान फ्रेडरिक रेटजेल (Frdric retzel) जिन्हें वर्तमान
मानव भूगोल का जनक कहा जाता है, ने अपनी पुस्तक ‘एन्थ्रोपोज्योग्राफिक (Anthropogeographic) तीन खण्डों में प्रकाशित कर मानव भूगोल का शुभारम्भ किया। रेटजेल ने मानवीय भूदृश्यों को मानव भूगोल का विषय माना है। उनके अनुसार-

रेटकेल“मानव भूगोल के दृश्य सर्वत्र वातावरण से सम्बद्ध हैं, जो भौतिक दशाओं का योग होता है।”

रेटजेल की शिष्या अमरीकी भूगोलवेत्ता कुमारी ई.सी.सेम्पल (Ellen Sample) के मतानुसार प्राकृतिक वातावरण तथा मानव दोनों ही क्रियाशील हैं, जिनमें प्रतिक्षण परिवर्तन होता रहता है। इन्होंने मानव भूगोल की निम्नलिखित लोकप्रिय परिभाषा दी-

ई.सा.सेम्पल-“क्रियाशील मानव एवं गतिशील पृथ्वी के परिवर्तनशील सम्बन्धों का अध्ययन ही मानव भूगोल है।”

फ्रान्सीसी मानव भूगोलवेत्ता विडाल डी ला ब्लाश (Blache Vidal De Lal) ने मानव भूगोल को भौगोलिक विज्ञान के सम्मानित तने का अभिनव अंकुर माना है और एक विज्ञान के स्तर पर रखा। इनके मतानुसार मानव जाति एवं मानव समाज एक प्राकृतिक वातावरण के अनुसार ही विकसित होते हैं और मानव भूगोल इसके अध्ययन का मार्ग प्रशस्त करता है।

ब्लाश“मानव भूगोल पृथ्वी एवं मानव के पारस्परिक सम्बन्धों को एक नयी संकल्पना प्रदान करता है। वह पृथ्वी को नियन्त्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा पृथ्वी पर निवास करने वाले जीवों के पारस्परिक अन्तर्सम्बन्धों का संश्लेषणात्मक ज्ञान होता है।”

ब्लाश के शिष्य फ्रान्सीसी विद्वान जीन ब्रूशं ने बताया कि भौगोलिक तथ्य जिस पर मानव का अधिकार है अथवा जिससे मानव प्रभावित है, मानव भूगोल के अध्ययन का विषय है।

जीन ब्रूशं-“मानव भूगोल उन सभी तथ्यों कर अध्ययन है, जो मानव के क्रियाकलापों से प्रभावित है और जो हमारे ग्रह के धरातल पर घटित होने वाली घटनाओं में से छाँटकर एक विशेष श्रेणी रखे जा सकते हैं।”

फ्रान्सीसी विद्वान डीमांजियाँ ने फ्रान्स के ग्रामीण जीवन का अध्ययन किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि प्राकृतिक वातावरण प्रगाढ़ प्रभाव मानव एवं बसाव पर पड़ता है और मानव भी वातावरण को प्रभावित करता है।

डीमांजियाँ-“मानव भूगोल मानव समुदायों और समाजों के भौतिक वातावरण से सम्बन्ध का अध्ययन है। डीमांजियाँ अमरीकी मानव भूगोलवेत्ता एल्सवर्थ हंटिंग्टन ने लिखा है कि पृथ्वी पर  अनेक प्रकार के लोग निवास करते हैं, जो एक-दूसरे से शारीरिक गठन, खान-पान, वेष भाषा रहन-सहन, आचार-विचार तथा आदर्श एवं सिद्धान्तों में भिन्न होते हैं। शारीरिक गठन एवं रंग-रूप का अन्तर जैविक होता है, किन्तु जनसंख्या के घनत्व, सभ्यता एवं मानसिक क्षमता पर प्राकृतिक वातावरण का परोक्ष प्रभाव पड़ता है।

हंटिम्डन“मानव भूगोल को प्राकृतिक वातावरण तथा मानवीय कार्यकलापों एवं गुणों के सम्बन्ध के स्वरूप और वितरण के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”

अमरीकी भूगोलवेत्ता ह्वाइट एवं रेनर ने मानव भूगोल को सामाजिक विज्ञान बताया, जिसमें पृथ्वी के संदर्भ में मानव समाज का अध्ययन होता है।

ह्वाइट एवं रेनर“मानव भूगोल अनुपम क्षेत्र एवं संसाधनों की व्यूह व्यवस्था का अध्ययन है।”

अन्य भूगोलवेत्ताओं ने मानव भूगोल को लिम्नलिखित प्रकार परिभाषित किया है-

डेविस“मानव भूगोल मुख्यतः, प्राकृतिक वातावरण और मानव कार्य-कलाप दोनों ही के पारस्परिक सम्बन्ध और उस सम्बन्ध के परिणाम के पार्थिव स्वरूप, की खोज है अथवा प्राकृतिक वातावरण के नियन्त्रण को उनके आधार के रूप में सिद्ध करने का प्रयास है।”

“मानव भूगोल मानव तथा उसके कार्यो को समाविष्ट करता है।”-डिकेन्स एवं पिट्स

“मानव भूगोल वह विज्ञज्ञन है, जो व्यापक अर्थ में मानव समूहों द्वारा प्राकृतिक वातावरण के समायोजन की प्रक्रिया का अध्ययन प्रस्तुत करता है।”-कैमिले वेलासे

“मानव भूगोल का सर्वोपरि कार्य उस मनुष्य का अध्ययन है, जो सक्रिय एवं जीवन तत्व के रूप में अपने अस्तित्व की दशाओं को सुनिश्चित करता है और प्राकृतिक वातावरण से उपलब्ध उद्दीपनों (Stimuli) से प्रतिक्रियात्मक सम्बन्ध जोड़ता है।” –प्रो. मैक्स मोरे

उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से मानव भूगोल के सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से एक ही विचारधारा प्राप्त होती है। मानव भूगोल वह विज्ञान है, जिसके अध्ययन का एक पक्ष मानव तथा उसके कार्यकलाप तथा दूसरा पक्ष उसके प्राकृतिक वातावरण की शक्तियाँ एवं उनका प्रभाव है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि मानव भूगोल में किसी प्रदेश के मानव समुदाय एवं उनके प्राकृतिक वातावरण की शक्तियों, प्रभावों तथा दोनों पक्षों की पारस्परिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। किसी प्रदेश में निवास करने वाले मानव समुदायों तथा वहाँ के प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक वातावरण में परस्पर कार्यात्मक सम्बन्ध होता है। अतः विभिन्न प्रदेशों के मानव समुदायों तथा उनके जीवन-ढंग का अध्ययन मानव भूगोल है।

वास्तव में विश्व की समसत क्रियाओं का केन्द्र मानव है, जो सभी प्रकार के प्राकृतिक तत्वों (भूमि, जल, मिट्टी, खनिज, वनस्पति एवं जीव) तथा सांस्कृतिक तत्वों (जनसंख्या, मकान, बसती, कृषि, विनिर्माण उद्योग तथा परिवहन का उपयोग करता है और यही मानव के अध्ययन का केन्द्र-बिन्दु है।

मानव भूगोल के उद्देश्य (Aims of Human Geography)

मानव भूगोल का प्रमुख लक्ष्य भौतिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों तथा मनुष्य के क्रियाकलापों
के मध्य समन्वय स्थापित करना होता है। इसके लिए दोनों पक्षों की अन्योन्याश्रित का ज्ञान और मानव द्वारा कैसे अनुकूलन एवं परिवर्तन लाये गये हैं? इसी सम्बन्ध का अध्ययन मानव आवश्यक होता है। यह भी जानकारी आवश्यक होती है कि दोनों पक्षों में क्या एवं कैसा सम्बन्ध है भूगोल का मुख्य विषय है।

मानव भूगोल का लक्ष्य या उद्देश्य यह भी है कि वह मानव तथा वातावरण को एक सम्पूर्ण इकाई मानकर इस पृथ्वी तल पर एकता का सिद्धान्त प्रस्तुत करता है। मानव भूगोल में जाति-भेद, समाज-भेद एवं अन्य भेदों के लिए विशेष स्थान नहीं है, क्योंकि ये सभी भेद वातावरण के कारण उत्पन्न होते हैं। विश्व एक है, पृथ्वी एक है और इस पर निवास करने वाले मानव एक विश्व के, एक पृथ्वी के और एक वायुमंडल में साँस लेने वाले हैं, अतः सभी एक हैं।

यह विज्ञान समूह का अध्ययन करता है और व्याख्या करता है कि पृथ्वी के किस भाग का मानव-वर्ग अपने सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक उन्नति के लिए वातावरण का उपयोग तथा उसमें परिवर्तन किस हद तक करता है। यह सत्य है कि चेतन एवं जड़ दोनों पदार्थों के कार्यकलाप एवं प्रगति में एक विशिष्ट क्रम मिलता है। इसके फलस्वरूप कार्यकलाप, प्रगति तथा प्राकृतिक विकास चक्र (Natural Evolution cycle) के सिद्धानत मानव भूगोल के अध्ययन के विशेष अंग होते हैं।

जीन ब्रन्शू के अनुसार मानव भूगोल का उद्देश्य निम्नवत् है-

“मानव भूगोल का उद्देश मानव कार्यकलापों और भैतिक भूगोल के तत्वों के आपसी अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करना है।”

मानव भूगोल का दूसरा लक्ष्य पार्थिव एकता का अध्ययन है। इसका तात्पर्य यह होता है कि सम्पूर्ण पृथ्वी एक है और इसके जड़ एवं चेतन एक-दूसरे से घनिष्टता से जुड़े हुए हैं तथा इनके मध्य अटूट सम्बन्ध होता है। इस पार्थिव एकता के फलस्वरूप ही मनुष्य की आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रगति होती है। इसको स्पष्ट शब्दों में कहा जाता है कि प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक वातावरण मनुष्य के क्रियाकलापों तथा जीवन-क्रमों को एक विशेष साँचे में ढालते हैं और मनुष्य इसमें परिवर्तन लाता है तथा उसके साथ समायोजन स्थापित करता है। यह समायोजन विभिन्न प्रदेशों में भिन्न-भिन्न प्रकार से किया जाता है। इस प्रकार मानव भूगोल का लक्ष्य मानव वर्ग एवं वातावरण के कार्यात्मक सम्बन्धों का प्रादेशिका स्तर पर अध्ययन करना होता है।

मानव भूगोल का विषय-क्षेत्र (Scope of Human Geography)

मानव भूगोल का विषय-क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। भूगोल की इस शाखा में विभिन्न प्रदेशों में निवास करने वाले जनसंख्या के समूहों एवं उनकी प्राकृतिक परिस्थितियों के पारस्परिक सम्बन्धों की तार्किक विवेचना की जाती है। अतः इसके अध्ययन के अन्तर्गत किसी प्रदेश के निम्नलिखित पक्षों को सम्मिलित किया जाता है-

(1) जनसंख्या तथा उसकी क्षमता और मानव-भूमि अनुपात;

(2) प्राकृतिक संसाधनों का मूल्यांकन;

(3) मानव समुदाय द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के शोषण एवं उपयोग से निर्मित सांस्कृतिक भूदृश्य;

(4) प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक वातावरणों के कार्यात्मक सम्बन्धों से उत्पन्न मानव वातावरण-समायोजन का प्रारूप, तथा

(5) वातावरण समायोजन का समयानुसार विकास तथा इसकी दिशा का इतिहास।

मानव भूगोल के अध्ययन का महत्त्व (Significance of the Study of Human Geography)

मानव भूगोल, भूगोल की नवीनतम तथा महत्त्वपूर्ण शाखा है। यह मानव को प्राकृतिक एवं सामाजिक दोनों ही वातावरण की पूर्ण जानकारी कराता है। मानव भूगोल में मनुष्य, वातावरण के प्रत्येक पहलू का सूक्ष्म अध्ययन करने के बाद वातावरण से समन्यव करना सीखता है।

मानव भूगोल में मानव वातावरण के सम्बन्धों का अध्ययन क्षेत्रीय आधार पर किया जाता है। वस्तुतः मानव भूगोल में भौतिक वातावरण के संदर्भ में ही अध्ययन किया जाता है किन्तु विभिन्न जिसके प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानों के अध्ययन के लिए मानव भूगोल का अध्ययन अनिवार्य बिना इन विषयों के मूल तथ्यों को समझना सम्भव नहीं है। मानव का जन्मजात गुण अध्ययन है, जिसके द्वारा विभिन्न विज्ञानों का प्रादुर्भाव हुआ है। सारा मानव विकास ही प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक तथ्यों पर अवलम्बित है। अतः मानव भूगोल का अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक है।

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मानव भूगोल का अर्थ क्या होता है?

मानव भूगोल, भूगोल की प्रमुख शाखा हैं जिसके अन्तर्गत मानव की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक उसके पर्यावरण के साथ सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता हैं। मानव भूगोल की एक अत्यन्त लोकप्रिय और बहु अनुमोदित परिभाषा है, मानव एवं उसका प्राकृतिक पर्यावरण के साथ समायोजन का अध्ययन।

भूगोल कितने प्रकार के होते हैं?

भूगोल की तीन मुख्य शाखायें है: भौतिक, मानव और प्रादेशिक । भौतिक भूगोल विविध उपशाखाओं में विभाजित है, जिनके नाम इस प्रकार है : भूआकृतिविज्ञान, जलवायु विज्ञान, समुद्र विज्ञान, मृदा और जैव भूगोल । मानव भूगोल भी विविध उपशाखाओं में विभाजित है, जैसे सांस्कृतिक, जनसंख्या, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक।

भूगोल का पिता कौन है?

Manav Bhugol Ka Janak Kise Kahaa Jata Hai कार्ल रिटर (1779-185 9), आधुनिक भूगोल के संस्थापकों में से एक और बर्लिन के हम्बोल्ट विश्वविद्यालय में भूगोल में पहली कुर्सी में से एक माना जाता है, उन्होंने अपने कार्यों में कार्बनिक समानता के उपयोग के लिए भी उल्लेख किया।

मानव भूगोल के उद्देश्य क्या हैं?

मानव भूगोल का उद्देश्य विश्व के विभिन्न प्रदेशों में रहने वाले मानव समूह एवं वहाँ के वातावरण से सम्बन्धित संसाधनों के प्रयोग से उस प्रदेशों के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य का अध्ययन करना है