Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 3 टार्च बेचने वाले Textbook Exercise Questions and Answers. Show RBSE Class 11 Hindi Solutions Antra Chapter 3 टार्च बेचने वालेRBSE Class 11 Hindi टार्च बेचने वाले Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. (ख) 'प्रकाश
बाहर नहीं है, उसे अन्तर में खोजो। अंतर में बुझी उस ज्योति को जगाओ।' (ग) धंधा वही करूँगा, यानी टार्च बेचूंगा। बस कंपनी बदल रहा हूँ।' प्रश्न 9. वह लोगों को अँधरे के भय और हानियाँ सुनाकर डराता और अपनी टार्च बेचता था। पाँच साल पूरे होने पर वह उसी स्थान पर आ पहुंचा जहाँ दोनों मित्रों को मिलना था, पूरे दिन प्रतीक्षा करने पर भी जब मित्र नहीं आया तो उसे चिंता हुई और वह उसे खोजने को चल पड़ा। जब वह एक शहर की सड़क पर जा रहा था, तो उसे पास ही रोशनी से जगमगाता मैदान दिखाई दिया जहाँ हजारों लोगों को बड़ी श्रद्धा से एक भव्य स्वरूप वाले व्यक्ति का प्रवचन सुनते दिखाई दिए। प्रवचनकर्ता ने रेशमी वस्त्र धारण कर रखे थे। लम्बे केशों और दाढ़ी वाले वह प्रवचनकर्ता परमज्ञानी संत प्रतीत हो रहे थे। टार्च विक्रेता ने पास जाकर सुना तो वह संसार में छाए हुए अज्ञानरूपी अंधकार से मुक्ति पाने का उपाय बता रहे थे। टार्च बेचने के लिए लोगों जो कुछ वह कहता, वे ही बातें वह भी ज्ञान और अध्यात्म में लपेट कर श्रोताओं को सुना रहे थे। प्रवचन की समाप्ति पर वह संत के समीप पहुंचा तो उन्होंने उसे पहचान लिया। वह उसे गाड़ी में बिठाकर अपने 'साधना मंदिर' में ले गए। वहाँ संत के ठाट-बाट देखकर वह चकित रह गया। दोनों में मित्रों की तरह खुलकर बातें हुई। टार्च विक्रेता ने इस ठाट-बाट का रहस्य पूछा तो संत ने कुछ दिन अपने पास रखा। टार्च विक्रेता समझ गया कि बिजली की टार्च बेचने के बजाय अध्यात्म की टार्च बेचने का धंधा ही सबसे लाभदायक धंधा है। अतः उसने अपनी 'सूरज छाप- टार्चा की पेटी को नदी में फेंक दिया और दाढी-केश बढ़ाना आरम्भ कर दिया। आज के सामाजिक परिवेश में धन कमाना ही जीवन का प्रमुख लक्ष्य बन गया है। चाहे उसके लिए कुछ भी उपाय क्यों न अपनाना पड़े। मेरा मानना है कि धनार्जन ही जीवन का उद्देश्य नहीं हो सकता। जीवन मूल्यों की रक्षा करते हुए धन कमाने में कोई बुराई नहीं, लेकिन छल, कपट, पाखंड और ठगी से कमाया गया धन समाज में ईर्ष्या, द्वेष और असंतोष पैदा करता है। आज कोरोना महामारी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है जहाँ अरबों-खरबों की संपत्ति कमाने वाले इससे नहीं बच पा रहे हैं। अतः मैं टार्च विक्रेता बना रहना उचित मानता हूँ। परिश्रम की कमाई पर निर्भर होना ही श्रेष्ठ समझता हूँ। पाखंडी संत बनकर करोड़पति नहीं बनता। प्रश्न 10. टार्च बेचने वालों की इस प्रकार की स्किल का स्किल इंडिया प्रोग्राम से कोई सीधा संबंध तो दिखाई नहीं देता किन्तु इस प्रोग्राम का उद्देश्य भी कारीगरों को स्किल्ड बनाना ही है। विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बनाने वाले या बेचने वाले लोगों और शिल्पियों को कार्य-कुशल बनाना, नई तकनीकों के प्रयोग के लिए प्रेरित करना, समयानुकूल सुधार और डिजायनें बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त करना आदि इस प्रोग्राम के उद्देश्य हैं। टार्च बेचने वाला कुछ बनाता नहीं बेचता है। अत: मार्केटिंग का कौशल सिखाना प्रोग्राम का हिस्सा माना जा सकता है। योग्यता-विस्तार - प्रश्न 1. प्रश्न 2. धार्मिक अंधविश्वास - धार्मिक कर्ताओं, कथावाचकों की बातों पर अंधविश्वास, धार्मिक कट्टरता के कारण अन्य धर्मावलम्बियों को हानि पहुँचाना, कबीर आदि संतों के मतानुसार मूर्तिपूजा करना, मूर्तियों द्वारा दूध पिया जाना, रोना, दूषित जलाशयों के जल का आचमन करना और उनमें स्नान करना, धर्म के आधार पर अनुचित भेद-भाव बरतना, धर्म की आड़ लेकर लोगों को कष्ट पहुँचाना आदि ऐसे ही अंधविश्वास हैं। राजनीतिक अंधविश्वास - स्वार्थी राजनेताओं की बातों का अंधानुकरण करना, अंधविश्वासों ने मानव समाज को सदा हानि पहुँचाई है। विशेष पर्वो पर किसी मंदिर या तीर्थस्थल में लाखों की भीड़ होने से अनेक दुर्घटनाएं होती रही हैं। जिनमें हजारों लोगों की मृत्यु हो जाती है। कोरोना महामारी के समय चिकित्साकर्मियों पर किए जाने वाले हमले, अंधविश्वास के आधार पर हो रहे हैं। स्वस्थ और विकसित समाज के लिए हमें अन्धविश्वासों से बचना चाहिए, क्योंकि किसी भी घटना या मान्यता पर बिना तर्क और विचार के विश्वास में लेना बहुत हानिकारक है। प्रश्न 3. RBSE Class 11 Hindi टार्च बेचने वाले Important Questions and Answersबहुविकल्पीय प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. लघु उत्तरात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. निबंधात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. टार्च बेचने वाले Summary in Hindiलेखक परिचय : हिन्दी के सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी ग्राम में 22 अगस्त 1922 को हुआ था। नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर आप स्वतंत्र लेखन में जुट गए। सन् 1995 में आपका निधन हो गया। आप जबलपुर में 'वसुधा' नामक साहित्यिक पत्रिका निकालते रहे। आपने हास्य-व्यंग्य विधा को साहित्यिक प्रतिष्ठा प्रदान की। आपने सामाजिक विसंगतियों, विडम्बनाओं पर करारा व्यंग्य किया है। आपके व्यंग्य पाठकों को झकझोरने वाले हैं। आपकी भाषा में लक्षणा एवं व्यंजना शब्द शक्ति का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ है। रचनाएँ - हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे (कहानी संग्रह), रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज (उपन्यास), तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, पगडंडियों का जमाना आदि (निबन्ध संग्रह) ठिठुरता गणतंत्र, तिरछी रेखाएँ (हास्य-व्यंग्य संग्रह)। आपका सम्पूर्ण साहित्य 'परसाई रचना वली' (छह भाग) के रूप में छप चुका है। संक्षिप्त कथानक - एक टार्च बेचने वाले ने टार्च बेचना छोड़कर संत का वेश धारण कर लिया था। वह सूरज छाप टार्च बेचना बन्द कर चुका था। उसने लेखक को एक घटना सुनाई। हम दो मित्र थे। दोनों ने पैसा कमाने के लिए नया धन्धा करने का निश्चय किया। दोनों अलग-अलग गए और अलग होते समय पाँच साल बाद इसी स्थान पर मिलने का वचन दे गए। टार्च बेचने वाले ने पाँच साल तक सूरज छाप टार्च बेची और उसका मित्र संत बनकर प्रवचन करने लगा। उसने खूब धन कमाया। एक बार दोनों मित्रों की अचानक मुलाकात हो गई। टार्च बेचने वाले ने मित्र से कहा हम दोनों ही टार्च बेचते हैं। आज से मैं भी कम्पनी बदलकर टार्च बेचूँगा। कहानी का सारांश : टार्च बेचने वाला - लेखक को एक चौराहे पर एक टार्च बेचने वाला अक्सर दिखाई देता था। एक बार वह कुछ दिनों के बाद दिखाई दिया तो लेखक ने उससे पूछा कि इतने दिन तक कहाँ रहा ? उसने दाढ़ी बढ़ा ली थी और लम्बे बाल भी रख लिए थे। लेखक की जिज्ञासा शांत करने के लिए उसने अपनी कहानी बताई। उसने बताया कि उसने बिजली की टार्च बेचना छोड़कर आत्मा की टार्च बेचना आरम्भ कर दिया था। जीवन बदलने वाली घटना टार्च बेचने वाले ने लेखक को पाँच साल पुरानी घटना सुनाई जब वह मित्र के साथ पैसा कमाने निकला। दोनों ने ऐसा धन्धा करने का निश्चय किया जिससे पैसा मिले। पाँच साल बाद इसी स्थान पर मिलने का वचन देकर हम दोनों अलग-अलग हो गए। मैंने पाँच साल तक सूरज छाप टार्च बेचने का काम किया, उसने प्रवचन देने का काम किया। उसने लोगों की आत्मा की टार्च जलाने का कार्य किया और धनवान बन गया। टार्च बेचने की पटुता-टार्च वाला लोगों को इकट्ठा करके नाटकीय ढंग से टार्च बेचता। वह कहता सब जगह अँधेरा रहता है। रात के अंधेरे में अपना ही हाथ नहीं दिखता, रास्ता भटक जाता है। आदमी गिर जाता है, काँटे चुभ जाते हैं। रात में शेर-चीतों का डर रहता है। साँप जमीन पर रेंगते हैं। घर में भी अँधेरा रहता है। वहाँ भी टार्च की जरूरत होती है। इस पटुता से टार्च वाला लोगों को प्रभावित करके अपनी टार्च बेचता। संत का प्रवचन उसका मित्र संत बनकर गुरु-गंभीर वाणी में प्रवचन करके लोगों को प्रभावित करता। उसका विषय आध्यात्मिक होता, आत्मा की टार्च जलाने का होता। उसका प्रवचन होता मनुष्य आज अंधकार में है, उसके भीतर कुछ बुझ गया है। सारा विश्व अन्धकार में डूबा है। मनुष्य के अन्तर मन की आँखें ज्योतिहीन हो गई हैं। मनुष्य की आत्मा भय और पीड़ा से ग्रसित है। अन्तर् मन में बुझी ज्योति को जगाओ। हमारे 'साधना मन्दिर' में आकर उस ज्योति को जगाओ। संत का प्रभाव टार्च बेचने वाले पर संत बने मित्र का प्रभाव पड़ गया। संत प्रवचन करके खूब धन कमाता है। वह टार्च बेचकर अधिक धन नहीं कमा सका। संत ने कहा था कि टार्च की दुकान बाजार में नहीं, हृदय के अन्दर है। उसकी अधिक कीमत मिलती है। टार्च बेचने वाले ने निश्चय किया कि वह सूरज छाप कम्पनी की टार्च नहीं बेचेगा, कम्पनी बदलकर आत्मा की टार्च बेचेगा। कठिन शब्दार्थ :
महत्वपूर्ण गाशों की मप्रसंग. व्याख्याएं - 1. मैंने कहा, "तुम शायद संन्यास ले रहे हो। जिसकी आत्मा में प्रकाश फैल जाता है, वह इसी तरह हरामखोरी पर उतर आता है। किससे दीक्षा ले आए?" मेरी बात से उसे पीड़ा हुई। उसने कहा-"ऐसे कठोर वचन मत बोलिए। आत्मा सबकी एक है। मेरी आत्मा को चोट पहुँचाकर आप अपनी आत्मा को घायल कर रहे हैं।" संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ हास्य-व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना 'टार्च बेचने वाले' से ली गई हैं। यह व्यंग्य रचना पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित है। प्रसंग - लेखक का कुछ दिन बाद 'दुबारा उसे' टार्च बेचने वाले से साक्षात्कार हुआ। उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी। उसके वेश को देखकर लेखक ने व्यंग्य किया। व्याख्या - लेखक ने उससे कहा जो लोग आत्मा का प्रकाश फैलाने की बात कहते हैं वे परिश्रम और काम से जी चुराने वाले होते हैं। वह भी शायद संन्यासी होना चाहता है। संसार के कर्तव्यों से विमुख होकर ही ऐसा हो पाता है। क्या उसने वह किसी धर्मगुरु का शिष्य बन गया है? लेखक की बात में निहित कठोर व्यंग्य उसे दुःखदायी लगा। उसने लेखक से कहा कि वह वैसी कठोर बातें न कहे। उसने जो वेश धारण किया है, वह हरामखोरी के लिए नहीं किया। उसकी आत्मा प्रकाशित हो गई है। व्यंग्य करने से उसकी आत्मा को कष्ट पहुँचता है। सभी में एक ही आत्मा है। यदि उसकी आत्मा को कष्ट होगा तो लेखक की आत्मा को भी कष्ट होगा। जो दूसरों को कष्ट पहुँचाता है, उसकी स्वयं की आत्मा पतित होती है। विशेष :
2. मगर यह बताओ कि तुम एकाएक ऐसे कैसे हो गये ? क्या बीवी ने तुम्हें त्याग दिया ? क्या उधार मिलना बंद हो गया ? क्या साहूकारों ने ज्यादा तंग करना शुरू कर दिया ? क्या चोरी के मामले में फँसे गये हो ? आखिर बाहर का टार्च भीतर आत्मा में कैसे घुस गया ? संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना 'टार्च बेचने वाले' से ली गयी हैं, जिन्हें हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित किया गया है। प्रसंग - लेखक का परिचित टार्च बेचने वाला जब बहुत दिनों बाद दिखा तो उसने देखा कि अब उसने दाढ़ी बढ़ा ली थी और लम्बा कुर्ता पहन रखा था। व्याख्या - लेखक ने उस टार्च बेचने वाले व्यक्ति को जब दाढ़ी बढ़े हुए और लम्बा कुर्ता पहने देखा और पूछे जाने पर उसने बताया कि उसने टार्च बेचने का काम बंद कर दिया था। क्योंकि उसकी आत्मा के भीतर की टार्च जल उठी थी। उस प्रश्न करते हुए कहा-क्या उसकी बीबी ने उसे छोड़ दिया या उसे उधार मिलना बंद हो गया। कहीं ऐसा तो नहीं है कि जिन महाजनों (साहूकारों) से उसने कर्जा लिया था वे उसे ज्यादा तंग करने लगे थे? क्या इसी वजह से उसने व काम छोड़ दिया था। कहीं ऐसा तो नहीं था कि चोरी के मामले में फँस गये हों। अतः संसार से निराश होकर संन्यासी का चोला (वस्त्र) धारण कर लिया था। ये उसकी बाहर वाली टार्च आत्मा में कैसे घुस गयी, जो वह संत-महात्माओं जैसी बातें करने लगा था। विशेष :
3. पाँच साल पहले की बात है। मैं अपने एक दोस्त के साथ हताश एक जगह बैठा था। हमारे सामने आसमान को छूता हुआ एक सवाल खड़ा था। वह सवाल था - 'पैसा कैसे पैदा करें ?' हम दोनों ने उस सवाल की एक-एक टाँग पकड़ी और उसे हटाने की कोशिश करने लगे। हमें पसीना आ गया। पर सवाल हिला भी नहीं। दोस्त ने कहा- “यार, इस सवाल के पाँव जमीन में गहरे गढ़े हैं। यह उखड़ेगा नहीं। इसे टाला जाए।" संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ हास्य-व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की रचना 'टार्च बेचने वाले' से ली गई हैं जो कि पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित है। प्रंसग - इन पंक्तियों में टार्च बेचने वाला लेखक को अपनी पाँच साल पुरानी कहानी सुना रहा है। व्याख्या - टार्च बेचने वाला कहने लगा कि पाँच साल पहले वह अपने मित्र के साथ बड़ा निराश होकर एक स्थान पर बैठा था। दोनों मित्र मन में उठने वाले एक विराट सवाल को लेकर बड़े परेशान थे। सवाल यह था कि जीवनयापन के लिए पैसे कैसे कमाए जाएँ ? कोई अन्य उपाय न सूझने पर दोनों ने उसे अपने मन से यह प्रश्न निकाल देने की कोशिश की लेकिन पूरा दम लगाने पर भी सफलता नहीं मिली। तब उसने अपने मित्र से कहा कि यह साधारण नहीं थी। उसे हल कर पाना उतना आसान नहीं है। अतः इसे भुला देना ही सही रहेगा। विशेष :
4. आजकल सब जगहे अँधेरा छाया रहता है। रातें बेहद काली होती हैं। अपना ही हाथ नहीं सूझता। आदमी को रास्ता नहीं दिखता। वह भटक जाता है। उसके प्राँव काँटों से बिंध जाते हैं, वह गिरता है और उसके घुटने लहूलुहान हो जाते हैं। उसके आसपास भयानक अंधेरा है। शेर और चीते चारों तरफ घूम रहे हैं, साँप जमीन पर रेंग रहे हैं। अँधेरा सबको निगल रहा है। संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'टार्च बेचने वाले' नामक व्यंग्य रचना से ली गयी हैं, जिसके लेखक 'हरिशंकर परसाई हैं। यह पाठ हमारी पाठ्यपुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित है। प्रसंग - टार्च बेचने वाला व्यक्ति चौराहों या मैदानों में लोगों को प्रभावित करने के लिए जो कछ कहता है, उसका विवरण इसमें प्रस्तुत हुआ है। व्याख्या - टार्च बेचने वाला व्यक्ति सूरजछाप टार्च बेचने से पहले भूमिका बनाने हेतु लोगों का मजमा इकट्ठा करता और भाषण देता हुआ कहता था कि आजकल चारों ओर इतना घना अँधेरा छाया रहता है कि उसमें हाथ को हाथ नहीं सूझता, रास्ता नहीं दिखता इसलिये व्यक्ति रास्ता भटक जाता है। पैरों में काँटे लग जाते हैं और गिरने से उसके घुटने भी छिल जाते हैं। इस भयानक अँधेरे में शेर, चीते, साँपों का भी उसे भय रहता है। अतः यदि अँधेरा भगाना है तो उसकी टार्च खरीदो। अँधरे के प्रभाव से कोई नहीं बच पाया है। टार्च की रोशनी से अँधेरा समाप्त होगा, साफ-साफ दिखेगा और वे खतरों से बचे रहेंगे। विशेष :
5. मैं आज मनुष्य को एक घने अंधकार में देख रहा हूँ। उसके भीतर कुछ बुझ गया है। यह युग ही अंधकारमय है। यह सर्वग्राही अन्धकार संपूर्ण विश्व को अपने उदर में छिपाए है। आज मनुष्य इस अंधकार से घबरा उठा है। वह पथभ्रष्ट हो गया है। आज आत्मा में भी अंधकार है। अंतर की आँखें ज्योतिहीन हो गई हैं। वे उसे भेद नहीं पातीं। मानव आत्मा अंधकार में घुटती है।.मैं देख रहा हूँ, मनुष्य की आत्मा भय और पीड़ा से त्रस्त है। संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश पाठ्य पुस्तक 'अंतरा-भाग-1' की व्यंग्य रचना 'टार्च बेचने वाला' से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं। प्रसंग - मित्र को टार्च विक्रेता खोजने के लिए निकला, मित्र को भव्य पुरुष के रूप में मंच पर बैठे हुए देखा। वह प्रवचन कर रहा था। वह प्रवचन में जो कह रहा था, उसी प्रसंग का यहाँ वर्णन किया गया है। व्याख्या - टार्च विक्रेता का मित्र संत बनकर मंच पर बैठा था और कह रहा था कि चारों ओर अंधकार व्याप्त है। मनुष्य उसी अंधकार से घिरा हुआ था। उसके भीतर का प्रकाश बुझ गया था। उसे अन्दर से कोई प्रेरणा नहीं मिल रही थी। यह युग ही अन्धकारमय है। वह इस अन्धकार में मार्ग भूल गया था। ऐसा लगता है मानो अन्धकार ने सबको अपने में छिपा लिया था। अंधकार की इस भयानक स्थिति को देखकर सब घबरा रहे थे। वे निश्चय नहीं कर पा रहे कि क्या करें? उसे अपने अन्दर अन्धकार दिख रहा है। जिस प्रकार बाहर संसार में अन्धकार व्याप्त था। उसी प्रकार उसे आत्मा में भी अन्धकार दिख रहा था। वह प्रकाश के लिए भटक रहा था। उसके मन की आँखें निस्तेज हो गई, उनमें ज्ञान का प्रकाश नहीं जाग रहा था। मनुष्य की आत्मा इस अज्ञान के अँधेरे से घिरकर व्याकुल हो रही थी। उसे साफ समझ आ रहा था कि मनुष्य की आत्मा को डर और पीड़ा सता रहे थे। विशेष :
6. भाइयो और बहनो, डरो मत। जहाँ अंधकार है, वहीं प्रकाश है। अंधकार में प्रकाश की किरण है, जैसे प्रकाश में अंधकार की किंचित कालिमा हैं। प्रकाश भी है। प्रकाश बाहर नहीं है, उसे अंतर में खोजो। अंतर में बुझी उस ज्योति को जगाओ। मैं तुम सबका उस ज्योति को जगाने के लिये आह्वान करता हूँ। मैं तुम्हारे भीतर वही शाश्वत ज्यो पारे 'साधना मंदिर' में आकर उस ज्योति को अपने भीतर जगाओ। संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'हरिशंकर परसाई' की व्यंग्य रचना 'टार्च बेचने वाले' से ली गयी हैं। यह रचना हमारी पाठ्यपुस्तक 'अंतरा' में संकलित है। प्रसंग - धार्मिक प्रवचन करने वाले किस प्रकार लोगों को पहले तो भयभीत करते हैं और फिर उस भय से मक्ति का मार्ग बताते हैं। इसी का वर्णन लेखक ने व्यंग्य के माध्यम से इस अवतरण में किया है। व्याख्या - धार्मिक प्रवचन करने वाले उस भव्य पुरुष ने पहले तो चारों ओर छाए अज्ञान के अंधकार का उल्लेख करके . लोगों को भयभीत कर दिया तत्पश्चात् उन्हें निश्चित रहने का उपाय बताते हुए कहा कि जहाँ अज्ञान का अंधकार छाया है, वहीं ज्ञान का प्रकाश भी है, इसलिये डरने की आवश्यकता नहीं। इस प्रकाश को अपने भीतर खोजो क्योंकि वह बाहर न होकर उनके भीतर विद्यमान है। वे हृदय में बुझी उसी ज्ञान ज्योति को जगाएँ। वह आप सबका आह्वान करता है कि वे अपने भीतर छिपे उस ज्ञान के प्रकाश को जगायें। वह उन्हें ऐसी विधि बताएगा जो इस ज्ञान ज्योति को जगाने के लिये आवश्यक है। विशेष :
7. मैंने कहा- "तुम कुछ भी कहलाओ, बेचते तुम टार्च हो। तुम्हारे और मेरे प्रवचन एक जैसे हैं। चाहे कोई दार्शनिक बने, संत बने या साधु बने, अगर वह लोगों को अँधेरे का डर दिखाता है, तो अवश्य ही अपनी कंपनी का टार्च बेचना चाहता है। तुम जैसे लोगों के लिये हमेशा ही अंधकार छाया रहता है। बताओ, तुम्हारे जैसे किसी आदमी ने हजारों में कभी भी यह कहा है कि आज दुनिया में प्रकाश फैला है ? कभी नहीं आज दुनिया में प्रकाश फैला है? कभी नहीं कहा। क्यों? इसीलिये कि उन्हें अपनी कम्पनी का टार्च बेचना है। संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'टार्च बेचने वाले' नामक व्यंग्य कथा से ली गयी हैं। इसके रचयिता 'हरिशंकर परसाई' हैं। यह पाठ हमारी पाठ्यपुस्तक 'अंतरा' में संकलित है। प्रसंग - इन पंक्तियों में टार्च विक्रेता और प्रवचनकर्ता मित्रों के बीच वार्तालाप हो रहा है। व्याख्या - टार्च बेचने वाले व्यक्ति ने धार्मिक प्रवचन करने वाले अपने उस मित्र से कहा कि भले ही वह साधु-संत का बाना पहनकर प्रवचन करे किन्तु बेचते वह भी टार्च ही था। हाँ, यह बात अलग है कि कम्पनियाँ अलग-अलग हैं। दोनों ही लोगों को अँधेरे का भय दिखाते हैं। इस प्रकार अपना माल बेचने से पहले जो प्रवचन वह करता है, लगभग वैसा ही प्रवचन वह टार्च विक्रेता भी करता है। अगर कोई अँधेरे का भय लोगों को दिखाता है तो समझ लो कि वह अपनी कंपनी का टार्च बेचना चाहता है। हम जैसे लोगों के लिये अंधकार कभी समाप्त नहीं होता। कभी भी उसने हजारों की भीड़ में यह नहीं कहा होगा कि आज दुनिया में प्रकाश फैला है। ऐसा वह इसलिये नहीं कह सकता क्योंकि उसे अपनी कंपनी का टार्च बेचना है। विशेष :
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