मोको कहां ढूंढे बंदे मैं तो तेरे पास में कौन कह रहा है - moko kahaan dhoondhe bande main to tere paas mein kaun kah raha hai

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मोको कहाँ ढूंढें बन्दे मैं तो तेरे पास में लिरिक्स Moko Kaha Dhundhe Re Bande Me To Tere Paas Me Lyrics कबीर भजन लिरिक्स हिंदी Kabir Bhajan Lyrics Hindi

मोको कहाँ ढूंढें बन्दे मैं तो तेरे पास में
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकांत निवास में
ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबे कैलाश में

ना मैं जप में, ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपास में
ना मैं क्रिया क्रम में रहता, ना ही योग संन्यास में

नहीं प्राण में नहीं पिंड में, ना ब्रह्माण्ड आकाश में
ना मैं त्रिकुटी भवर में, सब स्वांसो के स्वास में

खोजी होए तुरत मिल जाऊं एक पल की ही तलाश में
कहे कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूँ विशवास में

कबीर के विचार जो बदल सकते हैं आपका जीवन / Kabir Thoughts Can Change Your Life :

  • पुरुषार्थ से धन अर्जन करो। किसी के ऊपर आश्रित ना बनो। माँगना मौत के सामान है।
  • गुरु का स्थान इस्वर से भी महान है क्यों की गुरु ही साधक को सत्य की राह दिखाता है और सद्मार्ग की और अग्रसर होता है। गुरु किसे बनाना चाहिए इस विषय को गंभीरता से लेते हुए गुरु का चयन करना चाहिए। दस बीस लोगों का झुण्ड बनाकर कोई गुरु नहीं बन सकता है।
  • समय रहते ईश्वर का सुमिरन करना चाहिए। एक रोज यहाँ संसार छोड़कर सभी को जाना है। व्यक्ति में दया, धर्म जरुरत मंदों की मदद करने जैसे मानवीय गुण होने चाहिए। निर्धन को मदद करनी चाहिए।
  • सुख रहते हुए अगर प्रभु को याद कर लिया जाय तो दुःख नहीं होगा।तृष्णा और माया के फाँस को समझकर इन्हे त्यागकर सदा जीवन बिताना चाहिए।
  • जो पैदा हुआ है वो एक रोज मृत्यु को प्राप्त होगा। सिर्फ चार दिन की चांदनी है। पलाश के वृक्ष में जब फूल लगते हैं तो बहुत आकर्षक और मनोरम प्रतीत होता है। कुछ ही समय बाद फूल झड़ जाते हैं और वह ठूंठ की तरह खड़ा रहता है। काया की क्षीण होने से पहले प्रभु को याद करना जीवन का उद्देश्य है। राजा हो या रंक यम किसी को रियायत नहीं देता है।
  • जैसे घर में छांया के लिए वृक्ष होना चाहिए उसी भांति निंदक को दोस्त बनाना चाहिए। निंदक हमारी कमियों को गिनाता है जिससे सुधार करने में सहायता मिलती है। जो मित्र हां में हां भरे वो मित्र नहीं शत्रु होता है।
  • अति हर विषय में वर्जित है। ना ज्यादा बोलना चाहिए और ना ज्यादा चुप। संतुलित व्यवहार उत्तम है।
  • कोशिश करने वालों की कभी पराजय नहीं होती। एक बार कोशिश करके निराश नहीं होना चाहिए सतत प्रयाश करने चाहिए। जो गोताखोर गहरे पानी में गोता लगाता है वह कुछ न कुछ प्राप्त अवश्य करता है।
  • धैर्य व्यक्ति का आभूषण है। धैर्य से ही सभी कार्य संपन्न होते हैं। जल्दबाजी में लिए गए निर्णय सदा घातक होते हैं। जैसे माली सब्र रखता है और पौधों को सींचता रहता है और ऋतू आने पर स्वतः ही फूल लग जाते हैं। उसकी जल्दबाजी से फूल नहीं आएंगे इसलिए हर कार्य में धैर्य रखना चाहिए।
  • उपयोगी विचारों का चयन करके जीवन में उतार लेने चाहिए। निरर्थक और सारहीन विचारों का त्याग कर देना चाहिए, जैसे सूप उपयोगी दानों को छांट कर अलग कर देता है और थोथा उड़ा देता है उसी प्रकार से महत्वहीन विचारों को छोड़कर उपयोगी विचारों का चयन कर लेना चाहिए।
  • समय रहते प्रभु की शरण में चले जाना चाहिए। काया के क्षीण होने पर यम दरवाजे पर दस्तक देने लग जाता है। उस समय उस दास की फरियाद कौन सुनेगा। विडम्बना है की बाल्य काल खेलने में, जवानी दम्भ में और फिर परिवार के फाँस में फसकर व्यक्ति सत्य के मार्ग से विमुख हो जाता है और इस संसार को अपना स्थायी घर समझने लग जाता है। बुढ़ापे में प्रभु जी याद आते है लेकिन उसकी फरियाद नहीं सुनी जाती और वह फिर से जन्म मरण के भंवर में गिर जाता है।
  • जीवन की महत्ता अमूल्य है, इसे कौड़ियों के भाव से खर्च नहीं करना चाहिए। यह जीवन प्रभु भक्ति के लिए दिया गया है। विषय विकार और तृष्णा इसे कौड़ी में बदल कर रख देते हैं। इसके महत्त्व को समझ कर प्रभु के चरणों में ध्यान लगाना चाहिए।जीवन अमूल्य मोती के समान है इसे कौड़ी में मत बदलो।
  • व्यक्ति को उसी स्थान पर रहना चाहिए जहाँ पर उसके विचारों को समझ कर उसकी क़द्र हो। मुर्ख व्यक्तियों के बीच समझदार उपहास का पात्र बनता है। जैसे धोभी का उस स्थान पर कोई कार्य नहीं है जहां लोगो के पास कपडे ही ना हों। इसलिए सामान विचारधारा के लोगों के बीच ही व्यक्ति को रहना चाहिए और अपने विचार रखने चाहिए अन्यथा वह मखौल का पात्र बनकर रह जाता है। 
  • जीवन में धीरज का अत्यंत महत्त्व होता है। जल्दबाजी से कोई निर्णय नहीं निकलता है। जीवन का कोई भी क्षेत्र हो धीरज वो आभूषण है जो मनुष्य को सुशोभित करता है। जैसे कबीरदास जी ने कहा है वो हर आयाम में लागू होता है। माली पौधों को ना जाने कितनी बार सींचता है, ऐसा नहीं है की पानी डालते ही उसमे फूल लग जाते हैं। फूल लगने का एक निश्चित समय होता है, निश्चित समय के आने पर ही पौधों में फूल लगते हैं। आशय स्पष्ट है की हमें हर क्षेत्र में धीरज धारण करना चाहिए और अपने प्रयत्न करते रहने चाहिए। अनुकूल समय के आने पर फल स्वतः ही प्राप्त हो जाता है।
  • जीवन कोई भी आयाम हो या फिर भक्ति ही क्यों ना हो, बगैर कठोर मेहनत के किसी क्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं होती है। जैसे सतही रूप से व्यक्ति कोशिश करता है, किनारे पर डूबने के डर से बैठा रहता है, निराश हो जाता है, वो कुछ भी करने से डरता है। जो इस डर को दूर करके गहरे पानी में गोता लगाता है, वह अवश्य ही मोती प्राप्त कर पाता है। यहाँ कबीर का साफ़ उद्देश्य है की कठोर मेहनत से मनवांछित परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।

प्रहलाद सिंह टिपनिया : प्रहलाद सिंह टिपनिया मध्य प्रदेश के देवास के लुनियाखेड़ी के रहने वाले हैं और यूँ तो वे विज्ञान के शिक्षक है, लेकिन देश विदेश में लोग उन्हें कबीर भजन गायकी के रूप से जानते हैं। प्रहलाद सिंह टिपनिया ने भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका में भी कई शो किये हैं जिन्हे लोगों ने खूब सराहा है।

  • गुणवान व्यक्ति की जाती नहीं पूछनी चाहिए बल्कि उसके गुणों और ज्ञान की बातें करनी चाहिए। देखिये कबीर समकालीन जाती प्रथा के वैसे भी घोर विरोधी थे।  वे जन्मजात श्रेष्ठता के विरोधी थे और मानते थे की व्यक्ति की गुणों की पूजा की जानी चाहिए। इसी क्रम में कबीर दास जी के विचार रहे हैं की जाती और वर्ण महत्त्व नहीं रखते है जैसे की तलवार का मूल्य किया जाना चाहिए, म्यान का नहीं। 
  • कबीर दास जी की वाणी है की हम रोज हमारे शरीर को साफ करते हैं, नहाते धोते हैं, लेकिन इससे काया तो साफ़ हो जाती है लेकिन, मन का मेल दूर नहीं हो पाता है। मन, को साफ़ करना है। मन में विषय विकार, ईर्ष्या, द्वेष, बैर भाव, लालच जब तक हैं, नहाने से क्या फायदा। आशय है की जैसे हम रोज नहाकर अपने तन को साफ़ करते हैं वैसे ही हमें रोज अपने मन को निर्मल करना होगा, इसी से मानवीय गुण हमारे अंदर समाहित हो पाएंगे।
  • कबीर दास जी का सदा से ही लोगों को यह सन्देश रहा की वे पाखंड को छोड़ दें और ईश्वर की भक्ति में मन को लगाए। मन से यदि भक्ति नहीं की जाती है तो इसका कोई लाभ नहीं मिलने वाला है। हमें ईश्वर  की भक्ति दिखावे के लिए नहीं अपितु सच्चे मन से करनी होगी। उन्होंने लोगों को समझाया की माला फेरना, तिलक लगाना, गेरुआ धारण करने से कोई विशेष लाभ प्राप्त नहीं होने वाला।  मन को निर्मल करके भक्ति करनी होगी, कर्मकांड, बाह्याचार, और पाखंड से हम स्वंय को ही मुर्ख बना रहे होते हैं। यह जीवन बीतता चला जाएगा और बुढ़ापे में पछताना पड़ेगा।

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