मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर आक्रमण क्यों किया उसके आक्रमण का क्या प्रभाव पड़ा? - muhammad bin kaasim ne sindh par aakraman kyon kiya usake aakraman ka kya prabhaav pada?

अरबों का सातवीं शताब्दी में अचानक एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उदय हुआ| इनका भारत ही नहीं विश्व के अन्य देशों पर भी अधिकार कर लेना एक आश्चर्यजनक बात है| यद्यपि वे भारत पर अपना स्थायी प्रभाव नहीं छोड़ सकें| हम इस लेख में भारत पर अरबों का आक्रमण के बारे में बता रहे है| Bharat par Arbo ka Akraman. Arab invasion on India in hindi.

मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर आक्रमण क्यों किया उसके आक्रमण का क्या प्रभाव पड़ा? - muhammad bin kaasim ne sindh par aakraman kyon kiya usake aakraman ka kya prabhaav pada?

भारत पर अरबों का आक्रमण

भारत पर अरबों का आक्रमण विषय में पर्याप्त सूचना 9वीं शताब्दी के विलादूरी द्वारा लिखी किताब ‘फुतूल-उल वलदान’ में मिलती है। 1216 ई. में लिखी गयी एक अन्य पुस्तक ‘चचनामा’में भी bharat par arbo ka akraman के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है| यह पुस्तक फारसी में अनुवाद की गई है (अरबी का फारसी अनुवाद)|

अरब पहले मुसलमान आक्रमणकारी थे, जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया। मकरान के मरूप्रदेश के समतली मार्ग से वे सिन्ध में प्रवेश करने में सफल हुए।

708 ई. में मीरकासिम (मुहम्मद बिन कासिम) ने सिन्ध पर सफल आक्रमण किया। लेकिन इससे पहले पूर्व खलीफा उमर के समय में 636 ई. में बम्बई के निकट थाना में विजय के लिए एक अभियान भेजा गया| परन्त वह असफल रहा। इसी अभियान के दौरान भारत के लोग सर्वप्रथम इस्लाम के सम्पर्क में आये| दूसरा अभियान खलीफा उस्मान के समय 644 ई. में अब्दुल्ला बिन उमर के नेतृत्व में स्थल मार्ग द्वारा मकरान के पश्चिमी सिंध पर किया गया| इसके पश्चात अल-हरीस ने 659 ई. में और अल-मुहल्लव ने 644 ई. में अभियान किया।

708 ई. में दमिश्क के खलीफा वलीद को सिंहल राजा द्वारा भेजे गये उपहारों से भरे जहाज को सिंध के बंदरगाह देवल के पास के लुटेरों ने लूट लिया। हज्जाज ने 711 में इस अपमान का बदला लेने के लिए राजा दाहिर को दण्ड देने हेतु उबेदुल्लाह तथा फिर बुदैल के नेतृत्व में अभियान भेजे परन्तु वे असफल रहे। तत्पश्चात ‘मीरकासिम’ के नेतृत्व में अभियान भजा गया जो सफल रहा| इस अभियान को भारत पर अरबों के सफल आक्रमण आक्रमण के रूप में देखा जाता है|

712 ई. में मीरकासिम (मुहम्मद बिन कासिम) ने सिन्ध पर सफल आक्रमण किया। सबसे पहले उसने थट्टा के पास स्थित देवल बंदरगाह को अपने अधीन करना चाहा। इसे ‘रावर’ का युद्ध भी कहा जाता है। 713 ई. में मीर कासिम ने मुल्तान पर सफल आक्रमण किया। अरबों के विरूद्ध भारतीयों की असफलता का कारण सिन्ध के राजा दाहिर का नकारापन था। उसकी अदूरदर्शिता ही सिन्ध के पतन का कारण बनी।

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प्रभाव

अरबों ने भारतीय जनजीवन को काफी प्रभावित किया और स्वयं भी प्रभावित हुए। अरबों ने चिकित्सा, दर्शनशास्त्र, नक्षत्र विज्ञान, गणित और शासन प्रबन्ध की शिक्षा भारतीयों से ली। मंसूर के समय (753-774 ई.) अरब विद्वान भारत से बगदाद अपने साथ दो पुस्तकें लेकर गये। ब्रह्मगुप्त का ब्रह्म सिद्धान्त तथा खण्ड-खाद्य।

भारतीयों की सहायता से अलफजारी ने अरबी में इन पुस्तकों का अनुवाद किया। पंचतंत्र का अनुवाद अरबी भाषा में ‘कलिलावादिम्ना’ नाम से हुआ जिसका उल्लेख अल्बरूनी ने किया है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सूफी मत पर बौद्ध धर्म का प्रभाव था।

अरबों ने सिंध में ‘ऊँट पालन’ तथा ‘खजूर की खेती’ का प्रचलन किया। उन्होंने दिरहम नामक सिक्के का प्रचलन करवाया। अरब आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम ने सिंधवासियों से ‘जजिया’ नामक कर की पहली बार वसूली की।

स्पष्ट है की मुसलमानों में अरबों ने सबसे पहले भारत पर आक्रमण किया| इनका सातवीं शताब्दी में अचानक एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उदय हुआ| और इन्होने भारत ही नहीं विश्व के अन्य देशों पर भी अधिकार कर लिया| यह भारत पर पहला मुसलमान आक्रमण था इसके बाद भारत पर तुर्कों का आक्रमण होता है| इसके बारे में हम अगले लेख में चर्चा करेंगें|

हम आशा करते है की इस लेख ने आपको भारत पर अरबों के आक्रमण(Arab invasion on India in hindi) के बारे में मोटे तौर पर समझने में सहायता की| आपको दिल्ली सल्तनत के आरम्भिक तुर्क शासकों के बारे में पढना पंसद हो सकता है|

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अरबों का आक्रमण

मोहम्मद बिन कासिम

भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम अरब मुस्लिम मुहम्मद बिन कासिम था।

मुहम्मद बिन कासिम ईरान के गवर्नर अल हज्जाज का सेनापति व दामाद था।

712 ई. में अल हज्जाज ने कासिम को भारत पर आक्रमण हेतु भेजा।

मुहम्मद बिन क़ासिम

मुहम्मद बिन कासिम इस्लाम के शुरुआती काल में उमय्यद खिलाफत का एक अरब सिपहसालार था। उसने 17 साल की उम्र में ही उसे भारतीय उपमहाद्वीप पर हमला करने के लिए भेज दिया गया था। कासिम का जन्म सउदी अरब में स्थित ताइफ शहर में हुआ था। वह अल-सकीफ कबीले का सदस्य था। उसके पिता कासिम बिन युसुफ थे जिसनके देहांत के बाद उसके ताऊ हज्जाज बिन युसुफ ने उसे संभाला। उसने हज्जाज की बेटी जुबैदाह से शादी कर ली और फिर उसे सिंध पर मकरान तट के रास्ते से आक्रमण करने के लिए रवाना कर दिया गया। कासिम के अभियान को हज्जाज कूफा नामक शहर में बैठकर नियंत्रित कर रहा था।

मोहम्मद बिन कासिम को मकरान के राज्यपाल(गवर्नर) मुहम्मद हारून की ओर से पत्थर फेंकने के लिए प्राचीन युग के यन्त्र भी मिले थे जिनसे मध्यकाल में तोपखानों का काम लिया जाता थौ।

मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के समय सिंध का शासक दाहिर था।

रावड़ का युद्ध - 20 जून 712 ई. को यह युद्ध मोहम्मद बिन कासिम व सिन्ध के राजा दाहिर के बीच हुआ। इस युद्ध में दाहिर पराजित हुआ।

दाहिर के पुत्र व ब्राह्मणवाद के राजा जयसिंह को पराजित कासिम ने इस पर अधिकार कर लिया।

713 ई. में मुल्तान को जीत कर कासिम ने बहुत सारा धन प्राप्त किया तथा इसका नाम स्वर्ण नगर रख दिया।

भारत पर अरब आक्रमण की जानकारी ‘चचनामा’ नामक ग्रन्थ से प्राप्त होती है। यह ग्रन्थ अरबी भाषा में लिखा गया है।

चचनामा ग्रन्थ के अनुसार 715 ई. में बगदाद के खलीफा सुलेमान के आदेश पर मुहम्मद बिन कासिम की हत्था करवा दी गई।

तथ्य

'चचनामा' नामक ऐतिहासिक दस्तेवाज अनुसार कासिम ने जब राजा दाहिर सेन की बेटियों को तोहफा बनाकर खलीफा के लिए भेजा तो खलीफा ने इस अपना अपमान यह समझकर समझा कि कासिम पहले ही उनकी इज्जत लूट चूका है और अब खलीफा के पास भेजा है। ऐसे समझकर खलीफा ने मुहम्मद बिन कासिम को बैल की चमड़ी में लपेटकर वापस दमिश्क मंगवाया और उसी चमड़ी में बंद होकर दम घुटने से वह मर गया। लेकिन बाद में खलिफा को पता चला कि दाहिरसेनी की बेटियों ने झूठ बोला तो उसने तीनों बेटियों को जिन्दा दीवार में चुनवा दिया।

दूसरी घटना में ईरानी इतिहासकार बलाज़ुरी के अनुसार कहानी अलग थी। नया खलीफ़ा हज्जाज का दुश्मन था और उसने हज्जाज के सभी सगे-संबंधियों को सताया। बाद में उसने मुहम्मद बिन कासिम को वापस बुलवाकर इराक के मोसुल शहर में बंदी बनाया और वहीं उस पर कठोर व्यवहार और पिटाई की गई जीसके चलते उसने दम तोड़ दिया।

भारत में जजिया कर सर्वप्रथम मोहम्मद बिन कासिम ने लगाया था। सर्वप्रथम मुहम्मद कासिम ने सिंध के क्षेत्रों में ‘जजिया’ कर वसूल किया। इस कर से बच्चे, अपाहिज, साधु-सन्त, ब्राह्मण एवं महिलाओं को मुक्त रखा गया।

मोहम्मद बिन कासिम ने सिन्ध क्षेत्र में ‘दीनार’ नामक स्वर्ण मुद्राओं का प्रचलन किया था।

अरब के लोगों भारत को हिन्दुस्तान कहते थे और भारत से ही उन्होंने अंक पद्धति, दशमलव पद्धति सीखी अतः इस पद्धति को उन्होंने ‘हिन्दजा’ नाम दिया। और यूनानियों ने अरब के लोगों से अंक पद्धति व दशमलव पद्धति को सीखा व इसे ‘अरेबियन/अरेबिक न्यूमेरल्स’ नाम दिया।

मुहम्मद बिन कासिम ने विष्णु शर्मा द्वारा लिखित पंचतंत्र का अरबी में अनुवाद करवाया। पंचतंत्र का अरबी अनुवाद कलीला दमना कहलाता है।

ब्रह्मगुप्त द्वारा लिखित ब्रह्म सिद्धांत एवं खण्डखाद्य(खण्ड खण्डवाद भी नाम है।) का अरबी में अनुवाद भारतीय विद्वानों की सहायता से अल-फाजरी ने किया था। ब्रह्म सिद्धांत का अरबी नाम इल्म-उल-साहिब रखा गया।

खगोल शास्त्र पर आधारित पुस्तक किताब-उल-जिज की रचना अल-फाजरी ने की।

किताब-फुतुल-अल-बलदान का लेखक बिलादुरी है।

मीर मासूम द्वारा लिखित ग्रन्थ तारीख-ए-सिंध एवं मासूम-ए-सिंध से भारत पर किये गये अरबों के आक्रमण की जानकारी मिलती है।

मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध एवं मुल्तान आदि को जीता किन्तु वो अधिक आगे नहीं बढ़ सका।

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