कात्यायन का दूसरा नाम क्या है? - kaatyaayan ka doosara naam kya hai?

कात्यायन का दूसरा नाम क्या है? - kaatyaayan ka doosara naam kya hai?

वररुचि कात्यायन पाणिनीय सूत्रों के प्रसिद्ध वार्तिककार हैं। वररुचि कात्यायन के वार्तिक पाणिनीय व्याकरण के लिए अति महत्वशाली सिद्ध हुए हैं। इन वार्तिकों के बिना पाणिनीय व्याकरण अधूरा सा रहा जाता। वार्तिकों के आधार पर ही पीछे से पतंजलि ने महाभाष्य की रचना की।

पुरुषोत्तमदेव ने अपने त्रिकांडशेष अभिधानकोश में कात्यायन के ये नाम लिखे हैं - कात्य, पुनर्वसु, मेधाजित्‌ और वररुचि। "कात्य' नाम गोत्रप्रत्यांत है, महाभाष्य में उसका उल्लेख है। पुनर्वसु नाम नक्षत्र संबंधी है, "भाषावृत्ति' में पुनर्वसु को वररुचि का पर्याय कहा गया है। मेधाजित्‌ का कहीं अन्यत्र उल्लेख नहीं मिलता। इसके अतिरिक्त, कथासरित्सागर और बृहत्कथामंजरी में कात्यायन वररुचि का एक नाम 'श्रुतधर' भी आया है। हेमचंद्र एवं मेदिनी कोशों में भी कात्यायन के "वररुचि' नाम का उल्लेख है।

कात्यायन वररुचि के वार्तिक पढ़ने पर कुछ तथ्य सामने आते हैं-यद्यपि अधिकांश स्थलों पर कात्यायन ने पाणिनीय सूत्रों का अनुवर्ती होकर अर्थ किया है, तर्क वितर्क और आलोचना करके सूत्रों के संरक्षण की चेष्टा की है, परंतु कहीं-कहीं सूत्रों में परिवर्तन भी किया है और यदा-कदा पाणिनीय सूत्रों में दोष दिखाकर उनका प्रतिषेध किया है और जहाँ तहाँ कात्यायन को परिशिष्ट भी देने पड़े हैं। संभवत: इसी वररुचि कात्यायन ने वेदसर्वानुक्रमणी और प्रातिशाख्य की भी रचना की है। कात्यायन के बनाए कुछ भ्राजसंज्ञक श्लोकों की चर्चा भी महाभाष्य में की गई है। कैयट और नागेश के अनुसार भ्राजसंज्ञक श्लोक वार्तिककार के ही बनाए हुए हैं। प्रातिशाख्यम्

अन्य कात्यायन[संपादित करें]

वार्तिककार कात्यायन वररुचि और प्राकृतप्रकाशकार वररुचि दो व्यक्ति हैं। प्राकृतप्रकाशकार वररुचि "वासवदत्ता' के प्रणेता सुबंधु के मामा होने से छठी सदी के हर्ष विक्रमादित्य के समसामयिक थे, जबकि पाणिनीय सूत्रों के वार्तिककार इससे बहुत पूर्व हो चुके थे।

अशोक के शिलालेख में वररुचि का उल्लेख है। प्राकृतप्रकाशकार वररुचि का गोत्र भी यद्यपि कात्यायन था, इसी एक आधार पर वार्तिककार और प्राकृतप्रकाशकार एक ही व्यक्ति नहीं माने जा सकते, क्योंकि अशोक के लेख की प्राकृत वररुचि की प्राकृत स्पष्ट ही नवीन मालूम पड़ती है। फलत: अशोक के पूर्ववर्ती कात्यायन वररुचि वार्तिककार हैं और अशोक के परवर्ती वररुचि प्राकृतप्रकाशकार। मद्रास से जो "चतुर्भाणी' प्रकाशित हुई है, उसमें "उभयसारिका' नामक भाण वररुचिकृत नहीं है, क्योंकि वार्तिककार वररुचि "तद्धितप्रिय' नाम से प्रसिद्ध रहे हैं और "उभयसारिका' में तद्धितों के प्रयोग अति अल्प मात्रा में हैं। संभवत: यह वररुचि कोई अन्य व्यक्ति है।

हुयेनत्सांग ने बुद्धनिर्वाण से प्राय: ३०० वर्ष बाद हुए पालिवैयाकरण जिस कात्यायन की अपने भ्रमण वृत्तांत में चर्चा की है, वह कात्यायन भी वार्तिककार से भिन्न व्यक्ति है। यह कात्यायन एक बौद्ध आचार्य था जिसने "अभिधर्मज्ञानप्रस्थान" नामक बौद्धशास्त्र की रचना की है।

कात्याययन नाम का एक प्रधान जैन स्थावर भी हुआ है। आफ्ऱेक्ट की हस्तलिखित ग्रन्थसूची में वररुचि और कात्यायन के बनाए ग्रन्थों की चर्चा की गई है। इन ग्रन्थों में कितने वार्तिककार कात्यायन प्रणीत हैं, इसका निर्णय करना कठिन है।

इन्हें भी देखिये[संपादित करें]

  • कात्यायन - 'कात्यायन' नाम के विभिन्न प्रसिद्ध व्यक्तियों का परिचय

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • Katyayana and Advaita

कात्यायन का दूसरा नाम क्या है? - kaatyaayan ka doosara naam kya hai?

वररुचि कात्यायन, पाणिनीय सूत्रों के प्रसिद्ध वार्तिककार हैं। वे नौ शुल्ब सूत्रों में से एक के रचयिता भी हैं।

पुरुषोत्तमदेव ने अपने त्रिकांडशेष अभिधानकोश में कात्यायन के ये नाम लिखे हैं - कात्य, पुनर्वसु, मेधाजित् और वररुचि। "कात्य" नाम गोत्रप्रत्यांत है, महाभाष्य में उसका उल्लेख है। पुनर्वसु नाम नक्षत्र संबंधी है, "भाषावृत्ति" में पुनर्वसु को वररुचि का पर्याय कहा गया है। मेधाजित् का कहीं अन्यत्र उल्लेख नहीं मिलता। इसके अतिरिक्त, कथासरित्सागर और बृहत्कथामंजरी में कात्यायन वररुचि का एक नाम "श्रुतधर" भी आया है। हेमचंद्र एवं मेदिनी कोशों में भी कात्यायन के "वररुचि" नाम का उल्लेख है।

वररुचि कात्यायन के वार्तिक पाणिनीय व्याकरण के लिए अति महत्वशाली सिद्ध हुए हैं। इन वार्तिकों के बिना पाणिनीय व्याकरण अधूरा सा रहा जाता। वार्तिकों के आधार पर ही पीछे से पतंजलि ने महाभाष्य की रचना की।

कात्यायन वररुचि के वार्तिक पढ़ने पर कुछ तथ्य सामने आते हैं - यद्यपि अधिकांश स्थलों पर कात्यायन ने पाणिनीय सूत्रों का अनुवर्ती होकर अर्थ किया है, तर्क वितर्क और आलोचना करके सूत्रों के संरक्षण की चेष्टा की है, परंतु कहीं-कहीं सूत्रों में परिवर्तन भी किया है और यदा-कदा पाणिनीय सूत्रों में दोष दिखाकर उनका प्रतिषेध किया है और जहाँ तहाँ कात्यायन को परिशिष्ट भी देने पड़े हैं। संभवत: इसी वररुचि कात्यायन ने वेदसर्वानुक्रमणी और प्रातिशाख्य की भी रचना की है। कात्यायन के बनाए कुछ भ्राजसंज्ञक श्लोकों की चर्चा भी महाभाष्य में की गई है। कैयट और नागेश के अनुसार भ्राजसंज्ञक श्लोक वार्तिककार के ही बनाए हुए हैं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • कात्यायन (विश्वामित्रवंशीय) - जिन्होंने श्रोत, गृह्य और प्रतिहार सूत्रों की रचना की।
  • अन्य कात्यायन
  • कात्यायन (गोमिलपुत्र) - जिन्होंने छंदोपरिशिष्टकर्मप्रदीप की रचना की।

महर्षि कात्यायन कौन थे?

कात्यायन नाम से कालांतर में कई ऋषि हुए हैं। एक विश्वामिंत्र के वंश में जिन्होंने श्रोत, गृह्य और प्रतिहार सूत्रों की रचना की थी, दूसरे गोमिलपुत्र थे जिन्होंने 'छंदोपरिशिष्टकर्मप्रदीप' की रचना की थी और तीसरे कात्यायन वररुचि सोमदत्त के पुत्र थे जो पाणिनीय सूत्रों के प्रसिद्ध वार्तिककार थे

कात्यायन का जन्म कब हुआ था?

समकालीन कवयित्री कात्यायनी का जन्म 7 मई 1959 को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। हिंदी साहित्य में उच्च शिक्षा के बाद वह विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से संबंद्ध रहीं और वामपंथी सामाजिक-सांस्कृतिक मंचों से संलग्नता के साथ स्त्री-श्रमिक-वंचित से जुड़े प्रश्नों पर सक्रिय रही हैं।

कात्यायनी किसकी रचना है?

कात्यायन (विश्वामित्रवंशीय) जिन्होंने श्रोत, गृह्य और प्रतिहार सूत्रों की रचना की। कात्यायन (गोमिलपुत्र) जिन्होंने छंदोपरिशिष्टकर्मप्रदीप की रचना की। सोमदत्त के पुत्र कात्यायान (वररुचि), जो पाणिनीय सूत्रों के प्रसिद्ध वार्तिककार हैं।

ऋषि कात्यायन की पत्नी का नाम क्या है?

कात्यायिनी
मंत्र
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥
अस्त्र
कमल व तलवार
जीवनसाथी
शिव
सवारी
सिंह
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