विषयसूची रानी लक्ष्मी ने अपना जीवन क्यों कुर्बान कर दिया था?इसे सुनेंरोकें’अपने हक़ के लिए लड़ी थीं लक्ष्मीबाई’ झांसी की रानी लक्ष्मीबाई किताब की लेखिका प्रतिभा रानाडे कहती हैं कि रानी लक्ष्मीबाई का मानना था कि झांसी रियासत पर उनका हक़ है और अपने हक़ के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी थी. नेवालकर कौन सी जाती है? इसे सुनेंरोकेंNewalkar राजवंश थे हिन्दू Karhade ब्राह्मणों , कौन थे महाराजाओं के झांसी 1769 से 1858 उनके परिवार देवता को देवी था महालक्ष्मी । रानी लक्ष्मीबाई के लिए आजादी की क्या कीमत थी? इसे सुनेंरोकेंउत्तर 8: (क) गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी। परन्तु रानी लक्ष्मीबाई के विरोध ने सारे भारत को झकझोर दिया। तब भारत की निंद्रा जागी कि जब एक स्त्री लक्ष्मीबाई इनका विरोध कर सकती है तो हम क्यों नहीं, हम क्यों इस गुलामी में जिए हमें भी अपनी स्वतंत्रता प्यारी है और पूरे भारत में स्वतंत्रता की लहर दौड़ पड़ी। रानी लक्ष्मीबाई का झलकारी बाई से क्या संबंध था?इसे सुनेंरोकेंरानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति। झलकारी बाई (22 नवंबर 1830 – 4 अप्रैल 1857) झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं इस कारण शत्रु को गुमराह करने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। झांसी की रानी कविता के रचयिता कौन है? इसे सुनेंरोकेंसिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी की रचयिता सुभद्रा कुमारी चौहान की जयंती पर उनकी सर्वकालिक महानतम कविता ‘झांसी की रानी’ और आखिरी कविता ‘प्रभु तुम मेरे मन की जानो’ गंगाधर के कितने पुत्र थे? गंगाधर राव का परिचय (Introduction to Gangadhar Rao)
डलहौजी मन ही मन क्यों हर्ष आया?इसे सुनेंरोकेंक्योंकि नि:संतान राजा गंगाधर राव की मृत्यु होने पर झाँसी का अधिकार स्वतः ही अंग्रेज़ी सरकार को मिल जाना था इसलिए डलहौज़ी प्रसन्न था। स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई की पहली वीरांगना का क्या नाम है? इसे सुनेंरोकेंरानी चेन्नम्मा उन भारतीय शासकों में से हैं जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए सबसे पहली लड़ाई लड़ी थी। स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई की पहली वीरांगना का क्या नाम है *? इसे सुनेंरोकेंऐसी ही 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की एक वीरांगना हैं रानी अवंतीबाई लोधी जिनके योगदान को हमेशा से इतिहासकारों ने कोई अहम स्थान न देकर नाइंसाफी की है। आज देश में बहुत से लोग हैं जो इनके बारे में जानते भी नहीं है। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी यह पंक्तियां किसकी है?इसे सुनेंरोकेंजी हां, यह पंक्तियां हैं मशहूर कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की. आज इनका जन्मदिन है. सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताओं में वीर रस की प्रधानता रही है. उनकी रचनाओं में झांसी की रानी सर्वाधिक चर्चित है. Last Updated on October 20, 2021 by Contents
Jhansi Ki rani Kavita : हिंदी भाषा की महान कवियत्रियों में से एक सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गयी देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत अबतक की महानतम कविता है। कविता को सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका और बलिदान की गाथा के रूप में प्रस्तुत की गई है। सन सत्तावन के संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई के अदम्य साहस और शौर्य को कवियत्री ने बड़ी सुंदरता से दर्शाया है। रानी लक्ष्मीबाई के युद्ध कौशल के आगे बड़े बड़े सूरमाओं, योद्धाओं और अंग्रेज अफसरों की एक ना चली यह भी इस कविता के माध्यम से उल्लेख किया गया है। सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित झाँसी की रानी कविता, वीर रस की कविता है। जब यह कविता लिखी गयी, हिंदी साहित्य (Hindi Sahitya) का वो दौर वीर रस का नहीं बल्कि छायावाद का दौर था। उस दौर में लिखी गयी अधिकतर कविताओं पर छायावाद मुखर था। कवियत्री (kaviyatri) ने बुंदेली लोकगीत को आधार बना कर यह कविता लिखी थी जिसे रानी लक्ष्मी बाई के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में देख सकते हैं। झाँसी की रानी कविता का परिचय
कवी परिचय – सुभद्रा कुमारीचौहान : जब जब हिंदी भाषा के महान और सुप्रसिद्ध कवियों या कवियत्रियों की बात होगी उनमे सुभद्रा कुमारी चौहान सबसे अग्रणी होंगी। सुभद्रा कुमारी चौहान जी का जन्म 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के निकट निहालपुर ग्राम में पिता रामनाथ सिंह जमींदार के घर हुआ था। सुभद्रा कुमारी चौहान जी की दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित किया गया था। परन्तु इन्होने प्रसिद्धि पाई झाँसी की रानी (कविता) के कारण है। सुभद्रा जी हमेशा राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, इन्होंने अपनी देशभक्ति कविताओं के कारण स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल की सजा भी पाई। उन्होंने जेल यातनाएं सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ हमेशा देशभक्ति की पाठ पद्धति है । झाँसी की रानी कविता का संक्षिप्त परिचय (Jhansi Ki rani kavita ka Parichay)कविता झाँसी की रानी के प्रत्येक अंतरे का अंत एक कथन से होता है कि लेखिका ने रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी बुंदेलों से सुनी है। कवी आगे की पंक्तियों में ये व्याख्या करते हैं कि वो कैसे राजवंश में जन्मीं और बाल्यकाल से ही अति वीरांगना थीं। रानी लक्ष्मीबाई वीर शिवाजी जैसे योद्धाओं की प्रसंशक और उपासक थीं। अल्पायु में हीं लक्ष्मीबाई का विवाह राजा गंगाधर राव के साथ हो जाता है और वो उनके साथ झाँसी आ जाती हैं। परंतु राणा (राजा) के निःसंतान मृत्यु से वे शोकाकुल हो जाती हैं, और दूसरी ओर अंग्रेज डलहाॅजी रानी कि कोई संतान न देखकर बहुत प्रसन्न होता है क्योंकि अब वो झाँसी पर अधिकार कर उनका राज्य हड़प सकता था। लेखिका यहाँ इस कविता के माध्यम से 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दूसरे वीरों को स्मरण करते हुए दूसरे राज घरानों की क्या अवस्था है उसका भी विवरण करती हैं। दूसरी ओर रानी काना और मंदरा सखियों के साथ वीरतापूर्वक युद्ध कर और वाॅकर को हराकर ग्वालियर की ओर चल पड़तीं हैं परंतु सिंधिया के द्रोह के कारण उन्हें ग्वालियर छोड़ना पड़ता है। उसके पश्चात रानी किसी प्रकार अंग्रेज अफसर स्मिथ को भी हरा दिया। परंतु रानी लक्ष्मीबाई के घोड़े के अकस्मात् मृत्यु हो जाता है। झांसी की रानी कविता की सप्रसंग व्याख्याफिर वो ह्यूरोज़ नाम के अंग्रेज सेनापति से लड़कर वे आगे चल देतीं हैं। परंतु शत्रु के घिर आने के कारण उन पर वार पर वार होने लगते हैं। आगे एक बड़ा नाला आ जाता है, रानी ने सोचा कि वो उस नाले को पार कर लेंगी। परंतु घोड़ा नया था, वो उस नाले को पार नहीं कर पाया और नाले में गिरकर घोडा और रानी दोनों घायल हो जाती हैं। उसके पश्चात् लेखिका रानी को श्रद्धांजलि देती है। रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और उनके पराक्रम से दुश्मन भी प्रभावित थे। बचपन से हीं मणिकर्णिका(लक्ष्मीबाई) को तलवारबाज़ी, घुड़सवारी, तीरंदाजी और निशानेबाज़ी का शौक था। वह बहुत ही छोटी उम्र में ही युद्ध-विद्या की सभी कलाओं में पारंगत हो गई थी। भारत के कई राजवंशो समेत देश के आम जनो तक में अंग्रेजी हुकूमत के विरूद्ध बड़ा रोष था। जिसके फलस्वरूप समस्त भारतवर्ष क्रांति कि ज्वाला भड़क उठी। झांसी में सन सत्तावन की क्रांति की बागडोर रानी लक्ष्मीबाई की हाथ में थी। जब युद्ध का विगुल बजता है तो वह युद्ध के मैदान में हजारों पुरुषो के बीच किसी पुरुष योद्धा से कही अधिक पौरुष दिखा रही थीं । सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचितझांसी की रानी कविता का सारांश – (Jhansi Ki Rani Kavita)सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी, झांसी की रानी कविता का अर्थ: प्रथम पद – कविता के इस प्रथम पद में लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साहस, पराक्रम और बलिदान का वर्णन करते हुए कहा है कि किस तरह रानी ने गुलाम भारत को स्वतंत्र करवाने के लिए हर भारतीय के मन में चिंगारी लगा दी थी। रानी लक्ष्मी बाई के साहस से हर भारतवासी जोश से भर उठा और सबने मन में अंग्रेजों को दूर भगाने की ठान लिया। 1857 में उन्होंने जो तलवार उठाई थी यानी अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ी थी, उससे सभी ने अपनी आज़ादी की कीमत पहचानी थी। कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी, वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी, झांसी की रानी कविता का अर्थ: दूसरा पद – झांसी की रानी कविता के इस दूसरे पद में लेखिका कहतीं हैं कि कानपुर के नाना साहब ने बचपन में ही रानी लक्ष्मीबाई की अद्भुत प्रतिभा से प्रभावित होकर, उन्हें अपनी मुंह-बोली बहन बना लिया था। लक्ष्मी बाई अपने पिता की एकमात्र संतान थीं, उनका बचपन , खेल कूद के दिन नाना के साथ ही बिता था, नाना साहब उन्हें युद्ध विद्या की शिक्षा भी दिया करते थे। लक्ष्मीबाई बचपन से ही बाकी लड़कियों से अलग थीं। उन्हें गुड्डे-गुड़ियों के बजाय तलवार, कृपाण, तीर और बरछी चलाना अच्छा लगता था। बचपन से ही वीर शिवाजी की कहानी सुनती आई थीं, उनपर शिवाजी के जीवन का बड़ा प्रभाव था। तभी तो हर एक बुन्देल वासियों के मुंह पर रानी लक्ष्मी बाई की वीरता की कहानी हर समय रहती हैं । लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार, महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी, झाँसी की रानी कविता का अर्थ: तीसरा पद – झांसी की रानी कविता के इस तीसरे पद में कवियत्री ने बताया है कि लक्ष्मीबाई मानो देवी दुर्गा की अवतार हों। उनकी कमाल की व्यूह-रचना, तलवारबाज़ी, लड़ाई का अभ्यास तथा दुर्ग तोड़ना इन सब खेलों में उन्हें महारथ थीं। यह देख मराठे सरदारों की खुशिया दुगनी हो जाती थीं। मराठाओं की कुलदेवी भवानी उनकी भी पूजनीय थीं। वे वीर होने के साथ-साथ धार्मिक भी थीं। हुई वीरता की
वैभव के साथ सगाई झाँसी में, चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी, झाँसी की रानी कविता का अर्थ: चौथा पद – झाँसी की रानी कविता के इस चौथे पद में कवयित्री सुभद्रा कुमारी ने रानी लक्ष्मीबाई के झांसी के राजा श्री गंगाधर राव के साथ विवाह का उल्लेख किया है। कवयित्री कहती हैं की झाँसी और झाँसी के महल में चारो ओर खुशिया उमड़ पड़ी थी। लेखिका आगे कहती हैं कि उनकी जोड़ी शिव-पार्वती और अर्जुन-चित्रा की जैसी है। उनके आने से झांसी में ख़ुशियाँ और सौभाग्य आ गया था। उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियारी छाई, निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी, झाँसी की रानी कविता का अर्थ: पांचवा पद – इस पद में लक्ष्मीबाई के जीवन के कठिन समय का वर्णन किया गया है, जिसमें उनके पति की असमय मृत्यु के बाद रानी अत्यंत दुखी थीं। उनके कोई संतान भी नहीं थी। वे झांसी को संभालने के लिए बिल्कुल अकेली रह गई थीं। बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया, अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी, अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया, रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी, छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना
बातों-बात, बंगाल, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी, रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार, यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी, कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान, हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी, महलों ने दी आग, झोपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी, जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी, इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम, लेकिन आज
जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी, इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में, ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी, रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार, अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी, विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी, पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय ! घिरी अब रानी थी, तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार, घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी, रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य
सवारी थी, दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी, जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी, तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी, यह कविता झाँसी की रानी इतनी लोकप्रिय है कि स्कूलों के पाठ्यक्रमों तक में शामिल कर लिया गया है। CBSE Class 6 Hindi Chapter 10 Jhansi Ki Rani Poem Solution के रूप में इस लेख का प्रयोग किया जा सकता है । इंटरनेट पर कई लोग इस कविता को इस प्रकार भी सर्च करते हैं Jhansi Ki Rani Poem in Hindi Summary या hindi Kavita Jhansi Ki rani, इत्यादि। इन्हे भी पढ़िए हिन्दी कविता पथ भूल न जाना पथिक कहीं Tagged hindi kavita jhansi ki rani, hindi poem jhansi ki rani, Jhansi ki rani, jhansi ki rani kavita, jhansi ki rani poem, subhadra kumari chauhan kavita झाँसी की रानी की कविता के लेखक कौन है?सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी की रचयिता सुभद्रा कुमारी चौहान की जयंती पर उनकी सर्वकालिक महानतम कविता 'झांसी की रानी' और आखिरी कविता 'प्रभु तुम मेरे मन की जानो'
झाँसी की रानी कविता में कौन से पुरुष का नाम आया है?खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली रानी थी।। हमने सुनी कहानी थी। इस स्वतंत्रता - महायज्ञ में कई वीरवर आए काम, नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम, अहमद शाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम, भारत के इतिहास- गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम, लेकिन आज जुर्म कहलाती, उनकी जो कुरबानी थी ।
झांसी की रानी कविता कब लिखी गई?संपादक : नंद किशोर नवल रचनाकार : सुभद्राकुमारी चौहान प्रकाशन : साहित्य अकादेमी संस्करण : 2006.
झाँसी की रानी कविता का विषय क्या है?झाँसी की रानी कविता की व्याख्या :
झांसी की रानी कविता के इस पद में कवयित्री ने बताया है कि लक्ष्मीबाई व्यूह-रचना, तलवारबाज़ी, लड़ाई का अभ्यास तथा दुर्ग तोड़ना इन सब खेलों में माहिर थीं। मराठाओं की कुलदेवी भवानी उनकी भी पूजनीय थीं। वे वीर होने के साथ-साथ धार्मिक भी थीं। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
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