जामवंत का दूसरा नाम क्या है? - jaamavant ka doosara naam kya hai?

जाम्बवन्त रामायण के एक प्रमुख पात्र हैं। वे ऋक्ष प्रजाति के थे।

उनका सन्दर्भ महाभारत से भी है। स्यमंतक मणि के लिये श्री कृष्ण एवं जामवन्त में नंदिवर्धन पर्वत (तत्कालीन नाँदिया, सिरोही, राजस्थान ) पर २८ दिनो तक युध्द चला। जामवंत को जब श्रीकृष्ण के भीतर श्रीराम के दर्शन हुए तब जामंवत ने अपनी पुत्री जामवन्ती का विवाह श्री कृष्ण द्वारा स्थापित शिवलिंग ( रिचेश्वर महादेव मंदिर नांदिया ) की शाक्शी में करवाया। युद्ध मे जाम्बवन्त ने यग्यकूप नामक राक्षस का वध किया था। हनुमान की माता अंजना ने जाम्बवन्त को अपना बड़ा भ्राता माना था जिससे वह शिवान्श हनुमान के मामा बन गये।

रायसेन जिले में स्थित जामगड नाम का एक गांव है माना जाता है की यहां स्थित गुफा ही जामवंत जी की गुफा है

पौराणिक कथा[संपादित करें]

जांबवंत जी का जन्म ब्रह्मा जी से ही हुआ था उनके पत्नी का नाम जयवंती था। यह जब जवान थे, तब भगवन त्रिविक्रम वामन जी का अवतार हुआ। तब भगवन बलि के पास तीन पग भिक्षा मांगने गए और बलि तैयार भी हो गया, भगवान ने अपना स्वरुप बढ़ाया और भगवान ने देख़ते ही देखते दो पग से ही पूरा ब्रह्मण्ड नाप लिआ अब भगवान ने बलि को बांधने लगे तब जामवंत जी ने बलि को बांधते हुए प्रभु की सात प्रदिक्षणा कर ली और तब तक प्रभु पूरा बलि को पूरा बांध भी नहीं पाए थे। जब सुग्रीव जी, बलि के डर से ऋषिमुख गिरी पहाड़ पर था तब भी जामवंत जी उनके साथ थे। अब उनके ज्ञान के बारे में बात बता दू की जब राम जी बाली को मारने जाने वाले थे तब भी जामवंत जी ने बताया था की इन सात पेड़ो को एक बाण से भेदेगा वही बाली को मारेगा और ऐसा ही हुआ। एक कथा यह भी हे जब हनुमान जी लंका को जाने वे थे तब भी वह जामवंत जी की सलाह लेकर गए थे। अब उनके बल की बात जब भगवान राम ने रावण क मारा तो जामवन्तजी ने भगवान से ये वर माँगा की मुझे युद्ध में ललकारने वाला कोई हो तब भगवान ने कहा की द्वापर में मैं ही तुम से युद्ध करूंगा और ऐसा ही हुआ।

जामवन्त को ऋक्षपति कहा जाता है। यह ऋक्ष बिगड़कर रीछ हो गया जिसका अर्थ होता है भालू अर्थात भालू के राजा। लेकिन क्या वे सचमुच भालू मानव थे? रामायण आदि ग्रंथों में तो उनका चित्रण ऐसा ही किया गया है। ऋक्ष शब्द संस्कृत के अंतरिक्ष शब्द से निकला है। 

दरअसल दुनियाभर की पौराणिक कथाओं में इस तरामंडल को अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है, लेकिन सप्तऋषि तारामंडल मंडल को यूनान में बड़ा भालू (larger bear) कहा जाता है। इस तरामंडल के संबंध में प्राचीन भारत और यूनान में कई दंतकथाएं प्राचलित हैं।

पुराणों के अध्ययन से पता चलता है कि वशिष्ठ, अत्रि, विश्वामित्र, दुर्वासा, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम, मार्कण्डेय ऋषि, वेद व्यास और जामवन्त आदि कई ऋषि, मुनि और देवता सशरीर आज भी जीवित हैं। कहते हैं कि जामवन्तजी बहुत ही विद्वान् हैं। वेद उपनिषद् उन्हें कण्ठस्थ हैं। वह निरन्तर पढ़ा ही करते थे और इस स्वाध्यायशीलता के कारण ही उन्होंने लम्बा जीवन प्राप्त किया था। परशुराम और हनुमान के बाद जामवन्त ही एक ऐसे व्यक्ति थे जिनके तीनों युग में होने का वर्णन मिलता है और कहा जाता है कि वे आज भी जिंदा हैं। लेकिन परशुराम और हनुमान से भी लंबी उम्र है जामवन्तजी कि क्योंकि उनका जन्म सतयुग में राजा बलि के काल में हुआ था। परशुराम से बड़े हैं जामवन्त और जामवन्त से बड़े हैं राजा बलि।

रामायण काल में हमारे देश में तीन प्रकार की संस्कृतियों का अस्तित्व था। उत्तर भारत में आर्य संस्कृति जिसके प्रमुख राजा दशरथ थे, दक्षिण भारत में अनार्य संस्कृति जिसका प्रमुख रावण था और तीसरी संस्कृति देश के मध्य भारत में आरण्यक संस्कृति (जनजातीय और आदिवासी) के रूप में अस्तित्व में थी जिसके संरक्षक महर्षि अगस्त्य मुनि थे। अगस्त मुनि, वनवासियों के गुरु व मार्ग-दर्शक थे। ऋक्ष और वानर, बाली, सुग्रीव, जामवन्त, हनुमान, नल, नील आदि अस्त्य मुनि के शिष्य थे। 

कहा जाता है कि जामवन्त सतयुग और त्रेतायुग में भी थे और द्वापर में भी उनके होने का वर्णन मिलता है। जामवन्त एक रीछ थे या किसी देवता की संतान? आखिर जामवन्तजी इतने लंबे काल तक कैसे जिंदा रहे? यह सब हम जाएंगे अगले पन्ने पर..

अगले पन्ने पर पहला रहस्य... 

जामवंत का दूसरा नाम क्या है? - jaamavant ka doosara naam kya hai?

जाम्बवंत भगवान ब्रह्मा के पुत्र थे (Jambvant In Hindi) जिन्हें हमेशा अमर होने का वरदान प्राप्त था। उनका जन्म सतयुग काल में हुआ था व द्वापर युग के अंत तक वे जीवित रहे थे। जामवंत जन्म से ही अत्यधिक बुद्धिमान व शक्तिशाली थे। अपनी बुद्धि के बल पर ही उन्होंने अनेक महारथियों को परास्त कर दिया था। मुख्यतया त्रेता युग में उन्होंने भगवान राम की बहुत सहायता की थी। उन्हें अलग-अलग भाषाओँ में कई नामों से जाना जाता हैं (Jamwant Ka Dusra Naam) जैसे कि जामवंत, जाम्बवंत, जामुवन (Jambavan), जामवंता, जाम्बावान, सम्बुवन इत्यादि। आज हम उनके बारे में विस्तार से जानेंगे।

जामवंत के बारे में संपूर्ण जानकारी (Jambvant In Hindi)

चूँकि जामवंत भी भगवान परशुराम व हनुमान की भांति अमर थे (Jambavan Power) इसलिये उनका योगदान भी कई युगों तक रहा। साथ ही उन्होंने भगवान विष्णु के कई अवतारों को धरती पर जन्म लेते व अपना कार्य करते देखा। उनकी मुख्य भूमिका त्रेतायुग में भगवान राम के समय रही व एक छोटी भूमिका द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के समय रही। आज हम दोनों युगों में उनके योगदान को जानेंगे।

त्रेता युग में जाम्बवंत का योगदान (Jamvant In Ramayan In Hindi)

जब भगवान विष्णु ने त्रेता युग में अयोध्या नगरी में महाराज दशरथ के घर जन्म लिया तब उनका मुख्य उद्देश्य पापी रावण का अंत करना था जो कि लंका का राजा था। इसी के लिए उन्होंने 14 वर्षों का कठिन वनवास भोग व माता सीता का रावण के द्वारा अपहरण करवाया गया (Jamvant Kaun The)।

जब भगवान श्रीराम माता सीता की खोज में वानर राज सुग्रीव से मिले तो जाम्बवंत की सुग्रीव के मंत्री के रूप में भगवान श्रीराम से भेंट हुई। तब से उन्होंने भगवान राम की हर विपत्ति में अपनी बुद्धिमता से सहायता की।

जब वानर सैनिकों का एक दल दक्षिण दिशा में माता सीता की खोज में निकला तब उसमे हनुमान, जाम्बवंत, अंगद, नल व नीर थे। जब वे समुंद्र किनारे पहुंचे तब वहां से आगे जाना असंभव था। इस समय केवल हनुमान व जाम्बवंत ही थे जो समुंद्र पार करके उस ओर जा सकते थे। चूँकि जाम्बवंत जी अब बूढ़े हो चुके थे इसलिये वे समुंद्र को लांघने में असमर्थ थे।

उन्होंने हनुमान जी को अपनी शक्तियां याद दिलाई जिन्हें बचपन में एक श्राप के कारण भूल चुके थे। जाम्बवंत के द्वारा ही याद दिलाने पर हनुमान जी को अपनी शक्तियां वापस मिली तथा वे माता सीता को खोजने में सफल रहे।

इसके अलावा भी जाम्बवंत जी भगवान राम व रावण के युद्ध के समय योजना बनाने, कोई विपत्ति आने पर उसका हल निकलने जैसे इत्यादि कार्य किया करते थे। जाम्बवंत की बुद्धिमता के कारण ही भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम को बहुत सहायता मिली।

द्वापर युग में जाम्बवंत का योगदान (Jamwant Aur Krishna)

एक बार जब श्रीकृष्ण के ऊपर स्यमंतक मणि के चोरी होने के मिथ्या आरोप लगे तो उन्होंने उसकी खोज प्रारंभ की। वह मणि जाम्बवंत के पास थी जो एक गुफा में रहते थे। जब भगवान श्रीकृष्ण को इसके बारे में पता चला तो उनका जाम्बवंत से भीषण युद्ध हुआ। यह युद्ध कई दिनों तक चला जिसमे अंत में जाम्बवंत जी पराजित हुए (Jamwant Aur Krishna Ka Yuddh)।

भगवान ब्रह्मा के पुत्र होने व स्वयं को मिले वरदान के कारण जाम्बवंत जी किसी से हार नही सकते थे इसलिये उन्हें आश्चर्य हुआ कि वह कैसे किसी मानव से हार सकते है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से उनका परिचय जाना व अपना असली अवतार दिखाने को कहा। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि वे स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं व राम अवतार के बाद यह उनका अगला जन्म हैं।

यह सुनकर जाम्बवंत जी को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ व उन्होंने श्रीकृष्ण को अंतिम बार भगवान राम के रूप में ही दर्शन देने का अनुरोध किया। श्रीकृष्ण ने उनका यह अनुरोध स्वीकार किया व उन्हें त्रेतायुग के भगवान श्रीराम के दर्शन दिए।

इसके बाद जाम्बवंत जी ने उन्हें वह मणि लौटा दी व अपनी पुत्री जाम्बवंती (Jamvant Ki Beti) के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा। श्रीकृष्ण ने उनका यह प्रस्ताव स्वीकार किया व उनकी पुत्री जाम्बवंती के साथ विवाह किया। इसके बाद जाम्बवंत जी ने मोक्ष (Jambavan Death In Hindi) प्राप्त किया।

जामवंत का दूसरा नाम क्या था?

जामवन्त को ऋक्षपति कहा जाता है। यह ऋक्ष बिगड़कर रीछ हो गया जिसका अर्थ होता है भालू अर्थात भालू के राजा।

जामवंत किसका अवतार था?

पौराणिक कथा जांबवंत जी का जन्म ब्रह्मा जी से ही हुआ था उनके पत्नी का नाम जयवंती था। यह जब जवान थे, तब भगवन त्रिविक्रम वामन जी का अवतार हुआ।

क्या जामवंत आज भी जिंदा है?

परशुराम और हनुमान के बाद जामवन्त ही एक ऐसे व्यक्ति हैं। जिनका तीनों युगों में होने का वर्णन मिलता है। वहीं पुराणों और धर्म ग्रंथों की मानें तो कहा जाता है कि वह आज भी जीवित हैं।

जामवंत के पुत्र का क्या नाम था?

जाम्बवती-कृष्ण के संयोग से महाप्रतापी पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम साम्ब रखा गया। इस साम्ब के कारण ही कृष्ण कुल का नाश हो गया था। पंडित बलराम तिवारी बताते हैं, वाल्मीकि रामायण के युद्धकांड में जामवंत का नाम विशेष उल्लेखनीय है।