दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है. जैन धर्म का संस्थापक ऋषभ देव को माना जाता है, जो जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे और भारत के चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता थे. वेदों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का उल्लेख मिलता है. माना जाता है कि वैदिक साहित्य में जिन यतियों और व्रात्यों का उल्लेख मिलता है वे ब्राह्मण परंपरा के न होकर श्रमण परंपरा के ही थे. मनुस्मृति में लिच्छवि, नाथ, मल्ल आदि क्षत्रियों को व्रात्यों में गिना है. आर्यों के काल में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि को लेकर जैन धर्म की परंपरा का वर्णन भी मिलता है. महाभारतकाल में इस धर्म के प्रमुख नेमिनाथ थे:
(1) जैन धर्म के संस्थापक और पहले तीर्थंकर थे- ऋषभदेव.
(2) जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर थे- पार्श्वनाथ
(3) पार्श्वनाथ काशी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा अग्रसेन के पुत्र थे.
(4) पार्श्वनाथ को 30 साल की उम्र में वैराग्य उत्पन्न हुआ, जिस कारण वो गृह त्यागकर संयासी हो गए.
(5) पार्श्वनाथ के द्वारा दी गई शिक्षा थी- हिंसा न करना, चोरी नृ करना, हमेशा सच बोलना, संपत्ति न रखना.
(6) महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर हैं.
(7) महावीर का जन्म 540 ई. पू. पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था.
(8) इनके पिता राजा सिद्धार्थ ज्ञातृक कुल के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छिवी राजा चेटक की बहन थीं.
(9) महावीर की पत्नी का नाम यशोदा और पुत्री का नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी था.
(10) महावीर के बचपन का नाम वर्द्धमान था.
(11) महावीर का साधना काल 12 साल 6 महीने और 15 दिन का रहा. इस अवधि में भगवान ने तप, संयम और साम्यभाव की विलक्षण साधना की. इसी समय से महावीर जिन (विजेता), अर्हत (पूज्य), निर्ग्रंध (बंधनहीन) कहलाए.
(12) महावीर ने अपना उपदेश प्राकृत यानी अर्धमाग्धी में दिया.
(13) महावीर के पहले अनुयायी उनके दामाद जामिल बने.
(14) प्रथम जैन भिक्षुणी नरेश दधिवाहन की बेटी चंपा थी.
(15) महावीर ने अपने शिष्यों को 11 गणधरों में बांटा था.
(16) आर्य सुधर्मा अकेला ऐसा गंधर्व था जो महावीर की मृत्यु के बाद भी जीवित रहा.
(17) जैन धर्म दो भागों में विभाजित है- श्वेतांबर जो सफेद कपड़े पहनते हैं और दिगंबर जो नग्नावस्था में रहते हैं.
(18) भद्रबाहु के शिष्य दिगंबर और स्थूलभद्र के शिष्य श्वेतांबर कहलाए.
(19) दूसरी जैन सभा 512 में वल्लभी गुजरात में हुई.
(20) जैन धर्म के त्रिरत्न हैं- सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण.
(21) जैन धर्म में ईश्वर नहीं आत्मा की मान्यता है.
(22) महावीर पुनर्जन्म और कर्मवाद में विश्वास रखते थे.
(23) जैन धर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारों को सांख्य दर्शन से ग्रहण किया.
(24) जैन धर्म को मानने वाले राजा थे- उदायिन, वंदराजा, चंद्रगुप्त मौर्य, कलिंग नरेश खारवेल, राजा अमोघवर्ष, चंदेल शासक.
इसे सुनेंरोकेंसप्तभंगी नय सापेक्षिक ज्ञान की तार्किकता के आधार पर जैन दर्शन में निर्णय या मत के सात प्रकार माने गये हैं। जैन दर्शन द्वारा आनुभविक निर्णय या मत के इस वर्गीकरण को ही सप्तभंगी नय कहा जाता है।
समयसार का क्या अर्थ होता है?
इसे सुनेंरोकेंसमयसार, आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसके दस अध्यायों में जीव की प्रकृति, कर्म बन्धन, तथा मोक्ष की चर्चा की गयी है। इन नौ अध्यायों में प्रवेश करने से पहले एक आमुख है जिसे वे पूर्वरंग कहते हैं। पूर्वरंग, मानो समयसार का प्रवेशद्वार है।
जैन धर्म के अनुसार पदार्थ को जानने के दो साधन कौन से हैं?
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इसे सुनेंरोकेंद्रव्य सत् हैं; क्योंकि उसमें सत्ता के तीनों लक्षण उत्पत्ति, व्यय (क्षय) और नित्यता मौजूद है। द्रव्य के दो रूप हैं- अस्तिकाय और अनस्तिकाय। अनस्तिकाय के अमूर्त होने से इसमें केवल काल की ही गणना होती है, जबकि अस्तिकाय में दो प्रकार के द्रव्य हैं- (क) जीव तथा (ख) अजीव। चेतन द्रव्य जीव अथवा आत्मा है।
द्रव्यार्थिक नय का विषय क्या है?
इसे सुनेंरोकेंमनुष्य की बुद्धि कभी तो वस्तुओ के सामान्य अंश की ओर झुकती है और कभी विशेष अंश की ओर। जब मनुष्य की बुद्धि सामान्य अंश को ग्रहण करती है तब उसका विचार द्रव्यार्थिक नय कहलता है और जब विशेष अंश को ग्रहण करती है तब पर्यायार्थिक नय कहलाता है।
अनेकान्तवाद के कितने भेद हो सकते हैं?
इसे सुनेंरोकेंजैन दर्शन के तीन मूलभूत सिद्धान्त हैं- (१) अनेकान्तवाद, (२) नयवाद, (३) स्याद्वाद। आगम युग में नयवाद प्रधान था। दार्शनिक युग अथवा प्रमाण युग में स्याद्वाद और अनेकान्तवाद प्रमुख बन गए, नयवाद गौण हो गया। सिद्धसेन ने अनेकान्त की परिभाषा ‘अनेके अन्ता धर्मा यत्र सोऽनेकान्तः’ नयवाद के आधार पर की है।
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जैन ग्रंथ कौन कौन से हैं?
इसे सुनेंरोकें। उनके बारह तेरह ग्रंथ प्रकाश में आ चुके हैं, जिनके नाम हैं – समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, रयणसार, बारस अणुवेक्खा तथा दर्शन, बोध पाहुडादि अष्ट पाहुड। इन ग्रंथों में मुख्यतया जैन दर्शन, अध्यात्म एवं आचार का प्रतिपादन किया गया है।
समयसार के लेखक कौन है?
कुन्दकुन्दसमयसार / लेखक
जैन धर्म के अनुसार पदार्थ कितने होते हैं?
इसे सुनेंरोकेंजैन तत्त्वमीमांसा सात (कभी-कभी नौ, उपश्रेणियाँ मिलाकर) सत्य अथवा मौलिक सिद्धांतों पर आधारित है, जिन्हें तत्त्व कहा जाता है। यह मानव दुर्गति की प्रकृति और उसका निदान करने का प्रयास है। प्रथम दो सत्यों के अनुसार, यह स्वयंसिद्ध है कि जीव और अजीव का अस्तित्व है।
पुद्गल का दूसरा नाम क्या है?
इसे सुनेंरोकेंआंशिक रूप से अंग्रेजी में पुद्गल को मैटर कहा जा सकता हैं, पर पाश्चात्य विज्ञान और जैन दर्शन में अणु की परिभाषा में भेद हैं, जिससे पुद्गल का भी मैटर कहा जाना संदिग्ध हैं।
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वर्तमान में जैन धर्म के कितने भेद है?
इसे सुनेंरोकेंजैन धर्म के मुख्यतः दो सम्प्रदाय हैं श्वेताम्बर (उजला वस्त्र पहनने वाला)और दिगम्बर (नग्न रहने वाला) । जैनधर्म में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल नाम के छ: द्रव्य माने गए हैं।