ईरान और इराक के बीच युद्ध कब हुआ था? - eeraan aur iraak ke beech yuddh kab hua tha?

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ओटोमन साम्राज्य के औपनिवेशिक विभाजन के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में अन्य सृजित देशों की भाँति इराक को भी 2003 तक सत्तावादी प्रसंग में राष्ट्र आधारित अस्तित्व वाला देश बनने के लिए संघर्ष करना पड़ा। अरब के क्षेत्रीय तन्त्र में स्थित रहते हुए न केवल इसने भाषायी, धार्मिक तथा सांस्कृतिक सामंजस्य बनाया बल्कि इस्लामी और ओटोमन साम्राज्य के अधीन अपने साझा इतिहास को भी सँजोया; शाही और गणतान्त्रिक दोनों प्रकार के इराक का बाह्य व्यवहार राज्य की सुरक्षा, शक्ति के आन्तरिक ढाँचे की पारदेशीय विचारधारा सम्बन्धी चुनौतियों का सामना तथा क्षेत्रीय स्थिति के बनाये रखने के माध्यम से निर्धारित किया गया था। शाही ढाँचे में जिसमें अधिकांश लोगों का नीति निर्माण तथा निर्णय निर्माण में कोई दखल नहीं था, इराकी नेतृत्व ने बाह्य चुनौतियों का सामना करने के लिए इराकी नेतृत्व ने सैन्य साधनों का उपयोग किया और इराक को क्रान्तिकारी ईरान के विरुद्ध रणनीतिक संतुलन की स्थिति में ला खड़ा किया। सद्दाम हुसैन ने ईरान के साथ आठ वर्षों के लम्बे युद्ध में इराक को अरब राष्ट्रों के रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया जिसमें सीरिया तथा लीबिया को छोड़कर समस्त अरब राष्ट्रों द्वारा समर्थन दिया गया। किन्तु 1990 में कुवैत पर इराकी आक्रमण तथा बाद में इराक द्वारा सैन्य मार्ग अपनाने के कारण यह देश अलग-थलग पड़ गया और इराक पर अनेक कठोर प्रतिबन्ध लगाये गये और पड़ोसी देशों द्वारा इसका बहिष्कार कर दिया गया।

इस्लामिक स्टेट इन इराक एण्ड सीरिया (आईएसआईएस) के रूप में क्षेत्रीय बहिष्कार का सामना करते हुए तथा कट्टरपन्थी विप्लव और कुर्दिश अलगाववाद के दौरान आन्तरिक विभाजन की सम्भावना को समझते हुए इराक की लोकतान्त्रिक रूप से चुनी सरकार को देश के भीतर अपकेन्द्रीय शक्तियों पर क्षेत्रीय प्रतिद्वन्द्विता का प्रभाव बढ़ रहा है। ईरान के साथ अपने सम्बन्ध बनाये रखते हुए अपने अरब पड़ोसियों के साथ इराक अपने सम्बन्धों को इस प्रकार बनाना चाहता है जिससे इसके पड़ोसियों की सुरक्षा को कोई खतरा न उत्पन्न हो और साथ ही साथ उनके साथ आर्थिक निष्ठा को प्रोत्साहित करने वाली व्यावहारिक नीति हो। इस आलेख में इरान तथा पड़ोसी अरब राष्ट्रों के साथ इराक की बदलती नीति का परीक्षण किया गया है। 2017 के प्रथम भाग में सऊदी-इराकी घनिष्ठता की दशाओं को ध्यान में रखते हुए इस आलेख में बताया गया है कि आइसिस जैसी ताकतों को अपना विस्तार करने में सहायक कट्टरपन्थी विचारधारा से परे होकर एक संगठित लोकतान्त्रिक राज्य के निर्माण की अनिवार्यता इराक को ईरान पर कम निर्भर रहने वाली तथा पड़ोसी अरब राष्ट्रों से अपने सम्बन्ध प्रगाढ़ करने वाली एक व्यावहारिक विदेश नीति अपनाने की ओर उन्मुख करती है।

इराक-सऊदी मैत्री : संरोधन से सहयोग तक

बाथवादी शासन से अमेरिका के हटने के कारण ईरान के विरुद्ध एक प्रमुख सैन्य सन्तुलन समाप्त हो गया और खाड़ी क्षेत्र में शक्ति का सन्तुलन ईरान के पक्ष में झुक गया। क्षेत्रीय यथास्थिति को चुनौती देने वाले ईरानी एजेंडे सहित इराक में शिया शक्ति के उत्थान ने इस क्षेत्र में रूढ़िवादी शाही शासन के लिए खतरे की घंटी बजा दी जिन्हें अलगाववादी विखण्डन को सुरक्षा प्रदान करके प्रत्युत्तर दिया जा रहा था। उनका कहना था कि अरब राष्ट्रों में शियाओं का राजनीतिक सशक्तीकरण होने से अरब राष्ट्रों में ईरानी प्रभाव का विस्तार करेगा जिससे अमेरिका के साथ जुड़े रूढ़िवादी शासन के संरक्षण को खतरा उत्पन्न होगा। जिस प्रकार बगदाद में शिया नेतृत्व वाली सरकार सुन्नी बहुल क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में असफल रही उसी प्रकार खाड़ी राजतन्त्र और विशेष रूप से सऊदी अरब तथा यूएई इराक में सुन्नियों की बगावत का समर्थन करते प्रतीत हुए थे।

इराक में विद्रोह के प्रति सऊदी समर्थन औंधा पड़ गया क्योंकि इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एण्ड सीरिया (आईएसआईएस) का उद्भव सीरिया में असद विरोधी विद्रोह तथा इराक में बाथवादियों तथा अलकायदा की उपस्थिति से हुआ जिससे आधुनिक इस्लामिक खलीफा शासन की स्थापना के लिए वर्तमान राज्य-तन्त्र को भंग करने का खतरा उत्पन्न हो गया। सऊदी-इराक के बीच सद्‌भाव की पृष्ठभूमि का सृजन ईरान-स्नेही अलगाववादी प्रधानमन्त्री नूरी-अल-अबदी के सत्ताच्युत होने से हुआ जिन्हें उदारवादी दावा पार्टी के सदस्य हैदर अल-अबदी द्वारा प्रतिस्थापित किया गया। आइसिस से इराकी क्षेत्र को मुक्त कराने के कठिन कार्य को सम्पन्न कराने और एक असफल राष्ट्र को एकीकृत करने के लिए उत्तरदायी अबदी को एक समावेशी सरकार बनाने के लिए संयुक्त राज्य तथा ग्रैण्ड अयातुल्ला अल-सिस्तानी का समर्थन प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त इराक के शिया राजनीतिक दलों के मध्य बढ़ते शियावाद ने मुकतदा अल-सद्र जैसे कुछ शिया राजनीतिक नेताओं को ईरान समर्थक प्रतीत होने वालों की तुलना में स्वयं को अरब तथा राष्ट्रवादी के रूप में प्रदर्शित करने एकमात्र इरादे सहित इराक के अरब पड़ोसियों से बेहतर सम्बन्ध बनाने के लिए बाध्य किया।

लगभग चौथाई शताब्दी के अन्तराल के बाद 2016 की शुरुआत में राजनियक सम्बन्धों की बहाली के साथ सऊदी और बगदाद की निकटता ने भी ईरान के प्रभाव को समाप्त करने में किंग सलमान द्वारा सकारात्मक रणनीति अपनाने के साथ ही सम्बन्धों को मुखरित किया। जब ईरान तथा अमेरिका सहित विश्व की पाँच महाशक्तियों के मध्य आणविक समझौते ने रियाद में इस सोच को विकसित किया कि इसकी सुरक्षा के हित अब वाशिंगटन में संरक्षित नहीं हैं तो सऊदी शासन ने अनुबन्धोपरान्त विश्व से सम्बन्ध बढ़ाने शुरू कर दिये। ट्रम्प प्रशासन सऊदी अरब की चिन्ताओं से सहानुभूति रखता रहा है क्योंकि वह इसे इस क्षेत्र में ईरान के प्रभाव को अस्थिर करने के रूप में देखता है, अत: बगदाद में सऊदी प्रयासों को समर्थन करना ईरान के विरुद्ध वाशिंगटन की पश्च-कर्ष की नीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक बन गया। तत्काली राज्य सचिव रेक्स टिलरसन रियाद में प्रधानमन्त्री अल-अबदी तथा किंग सलमान के मध्य अक्टूबर 2017 में सम्पन्न हुई बैठक में उपस्थित थे जिसमें दीर्घ कालीन सम्बन्धों तथा प्रत्येक स्तर पर सहयोग में वृद्धि के लिए सऊदी-इराकी समन्वय परिषद के गठन की घोषणा की गयी। दोनों देशों के मध्य व्यापार और निवेश प्रोत्साहित करने के क्रम में "दोनों पक्ष सीमावर्ती पत्तनों को खोलने तथा समुद्री पत्तनों, सड़कों तथा सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास करने पर सहमत हुए और साथ ही दोनों देशों के मध्य सीमा शुल्क सहयोग और दोनों देशों के मध्य व्यापार विनिमय के क्षेत्रों के अध्ययन के लिए समझौते की समीक्षा के लिए भी सहमत हुए।"

सऊदी राज्य को सुधारवादी इस्लाम की ओर अग्रसर करने के लिए क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान की पहल ने सऊदी और इराक को निकट लाने में अतिरिक्त बल दिया जिसका उद्देश्य केवल घरेलू तथा क्षेत्रीय स्तर पर सुन्नी कट्टरपन्थ तथा आइसिस के खतरों का मुकाबला करना ही नहीं था बल्कि सऊदी को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि सुधारना भी था। सऊदी द्वारा ईरान पर अरब देशों में मिलिशिया का समर्थन करने का आरोप लगाकर उसकी साख गिराने का प्रयत्न करना और इराकी शिया धार्मिक नेता मुकतदा अल-सद्र के सऊदी दौरे और शियाओं के पवित्र नगर नजफ में वाणिज्य दूतावास खोलने का सऊदी का प्रस्ताव सऊदी को कट्टरपन्थी संघर्ष से विच्छिन्न क्षेत्र में रचनात्मक कार्य करने वाले के रूप में प्रदर्शित करना था। 2005 से देश पर शासन करने वाले ईरान समर्थक शिया इस्लामिक दल के साथ प्रसिद्ध निराशा का सफलतापूर्वक राजनीतिकरण करने वाले लोकप्रिय नेता सद्र के साथ सऊदी की निकटता का लक्ष्य इरानी प्रभाव को समाप्त करने की सऊदी रणनीति का समर्थन करने के लिए इराक की आन्तरिक शिया प्रतिद्वन्द्विता का उपयोग करना था। जुलाई, 2017 में सऊदी अरब के दौरे के पश्चात सद्र शासन ने घोषणा की कि दाएश के विरुद्ध हुए युद्ध के कारण विस्थापित इराकियों को पुनर्वासित करने के लिए उनकी सरकार 10 मिलियन डॉलर दान करेगी।

इराक के पड़ोसी खाड़ी देशों को एक अवसर तब मिला जब इराक के दक्षिणी प्रान्त ईरान के पश्चात व्यापक विरोध के कारण अशान्त थे और अप्रदत्त बिलों का हवाला देते हुए तथा गर्मियों के दौरान ईरानी उपभोग में वृद्धि के कारण ईराक को विद्युत आपूर्ति रोक दी गयी। सऊदी अरब ने बहुत कम दानों पर इराक को ईरान द्वारा दी जा रही विद्युत की तीन गुना आपूर्ति करने का प्रस्ताव किया। बसरा की अस्थिरता से चिन्तित कुवैत ने ठप पड़े विद्युत गृहों को पुन: संचालित करने के लिए तेल की आपूर्ति की।

इराकी सरकार सऊदी अरब की ओर अपनी विद्युत अवसंरचना में निवेश के एक महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में देख रही है। देश की ऊर्जा राजधानी के रूप में प्रसिद्ध बसरा इन प्रयासों का केन्द्र है। गत वर्ष दिसम्बर में बसरा में तेल एवं गैस सम्मेलन तथा प्रदर्शनी में सऊदी राज्य गणमान्य अतिथि के रूप में आमन्त्रित था। सम्मेलन में पेट्रोकेमिकल महारथी सऊदी बेसिक इण्डस्ट्रीड कॉरपोरेशन (एसएबीआईसी) ने इराक में अपना कार्यालय खोलने की घोषणा की। सऊदी तथा इराकी कम्पनियों ने ऊर्जा के क्षेत्रों में 18 समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये। यथार्थत: बन्दरगाहहीन देश होने की भौगोलिक प्रतिकूलता के कारण इराक बसरा के उम कस्र पत्तन पर पूरी तरह निर्भर है जहाँ होरमुज जलसन्धि के मार्ग से इराकी कच्चे तेल का निर्यात किया जाता है। अत: इसे अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों तक पहुँचने के लिए दीर्घकालीन वैकल्पिक मार्ग तलाशने होंगे। ईरान-इराक युद्ध के दौरान इराकी धन से निर्मित बसरा को यानबू के सऊदी लाल सागर पत्तन से जोड़ने वाली पाइपलाइन कुवैत पर इराक के आक्रमण के समय अवरुद्ध कर दी गयी थी। वैकल्पिक मार्गों के विकसित करने में बगदाद की उत्सुकता के बावजूद बसरा तथा यानबू के बीच की अत्यधिक दूरी और इस पाइपलाइन को दुबारा चालू करने में होने वाले भारी खर्च ने दोनों पक्षों को अपने पैर वापस खींचने पर बाध्य कर दिया। किन्तु जोर्डन तथा इराक ट्विन ऑयल तथा बसरा से जोर्डन के अकाबा पत्तन तक गैस पाइपलाइन बिछाने में परस्पर सहयोग कर रहे हैं। रिपोर्टों के अनुसार चाइना पेट्रोलियम पाइपलाइन ब्यूरो इस परियोजना में भाग ले सकता है जिससे इराक प्रतिदिन लाखों बैरल प्रतिदिन (बीपीडी) तेल निर्यात कर सकेगा जिसमें से 1,50,000 बीपीडी जोर्डन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगा और शेष निर्यात के लिए उपलब्ध होगा।

सऊदी अरब, जोर्डन तथा कुवैत सहित इराक के अरब पड़ोसियों ने भी इराकी बाजार में इरानी प्रभाव की चुनौतियों का सामना करने के लिए कदम उठाये हैं। वर्तमान में ईरान इराक का सबसे बड़ा सहयोगी है जिसका वार्षिक कारोबार लगभग 12 बिलियन डॉलर है। इराकी सेनाओं द्वारा आइसिस आतंकवादियों से सीमा से लेकर बगदाद तक 550 राजमार्गों को अपने कब्जे में वापस लेने के पश्चात जोर्डन तथा इराक ने तेजी से सीमा शुल्क तथा सीमा व्यवस्थाओं पर  कार्य  किया और व्यापार के लिए सीमा खोल दी गयी। अनबार प्रान्त के विशाल रेगिस्तानी क्षेत्र इराकी सीमा से जोर्डन तक फैले होने के कारण दोनों देशों ने सीमा की सुरक्षा के लिए विशेषज्ञता तथा सूचना के विनिमय तथा सतर्कता क्षमताओं में वृद्धि और प्रत्येक प्रारूप के आतंकवाद का सामना करने के उद्देश्य से एक सैन्य तथा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए। इराक के पुनर्निर्माण हेतु कुवैत अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में सऊदी अरब ने सऊदी फण्ड फॉर डेवलमेंट के माध्यम से 1 बिलियन डॉलर का ऋण तथा निर्यात साख हेतु 500 मिलियन डॉलर का ऋण प्रदान किया है।

इराक-ईरान सम्बन्ध : निर्भरता से प्रतिष्ठा तक

चूँकि इस्लामी क्रान्ति ने ईरान की अमेरिका पर सुरक्षा निर्भरता समाप्त कर दी अत: ईरान ने खाड़ी क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव वाली व्यवस्था को चुनौती देते हुए अपनी सुरक्षा व्यवस्था स्वयं संभालने का प्रयास किया है। अत: जब इराक पर अमेरिकी आक्रमण ने ईरान की सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न करने वाले शासन को समाप्त कर दिया तथा फारस की खाड़ी क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील था तो इस क्षेत्र में बगदाद के विरुद्ध ईरानी लक्ष्यों के प्रति सहानुभूति रखने वाली सरकार स्थापित करना ईरान का रणनीतिक लक्ष्य बन गया। इराकी शासन का तेहरान के लिए के लिए महत्त्व तथा इसके निर्धारण में इसकी प्रभावी भूमिका को 2010 के संसदीय चुनाव में रेखांकित किया गया था। वाशिंगटने से निकटता रखने वाले अयाद अल्लावी के नेतृत्व वाले इराकिया नेशनल मूवमेंट के सबसे अधिक सीटों पर विजय प्राप्त करने के उपरान्त ईरान समर्थक मालिकी के पक्ष में अल्लावी को विस्थापित करने के लिए ईरान ने नूरी-अल-मालिकी तथा अम्मार अल-हकीम नामक दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले दलों के बीच समझौता कराया।

कट्टरपन्थी सोच के रूप में देखे जाने वाले नूरी अल-मालिकी के लिए ईरान के समर्थन और इराकी लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में ईरान के प्रत्यक्ष दखल को शियाओं सहित इराकी जनता के कुछ वर्गों के मध्य ईरान-विरोधी विचारधारा का उदय हुआ। तथापि, आइसिस द्वारा तीव्रता से आक्रमण के परिणामस्वरूप इराकी सुरक्षा बलों के संहार के कारण इराक में ईरानी प्रभाव बहुत अधिक बढ़ गया जिससे प्रधानमन्त्री मालिकी को ईरान की शरण लेनी पड़ी। सऊदी अरब ने आरोप लगाया कि प्रधामन्त्री मालिकी की कट्टरपन्थी नीति आइसिस के उत्थान के लिए उत्तरदायी है और इराक के भौतिक अस्तित्व के आसन्न संकट को महसूस करते हुए ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड की शाही कुद सेनाओं ने इराक के शीर्ष शिया धर्मगुरु अयातुल्ला सिस्तानी के आह्वान पर शिया अर्द्धसैनिक बलों को प्रशिक्षित करने की महत्त्वपूर्ण भूमिका की कल्पना की। अपनी क्षेत्रीय अखण्डता की रक्षा करने में असमर्थ बगदाद की शिया नेतृत्व वाली सरकार ईरान पर निर्भर हो गयी। अपनी ओर से ईरान राष्ट्र राज्य के रूप में इराक के साथ अपने रणनीतिक महत्त्व को जोड़कर देखता है। ईरान समर्थित इन सशक्त अर्धसैनिक बलों ने कुर्दों के स्वतन्त्रता प्रयासों का प्रभावी ढंग से दमन करते हुए तेल समृद्ध किर्कुक नगर को भी अपने कब्जे में ले लिया।

बगदाद द्वारा किर्कुक के तेलक्षेत्रों को कब्जे में लेने के पश्चात ईरान के साथ तेल के लेन-देन का एक समझौता हुआ जिसमें इराक को 30,000 से 60,000 बीपीडी तेल ईरान की कर्मनशाह रिफाइनरी भेजने की अनुमति मिली और ईरान को इतनी ही मात्रा में इसके दक्षिणी पत्तन पर निर्यात करने की सहमति बनी। यह समझौता इस वर्ष क्रियान्वित किया गया। ईरान पर प्रतिबन्धों का अनुपालन करने के बढ़ते दबाव के तहत अब्दुल मंदी के नेतृत्व वाली नवनिर्वाचित सरकार ने अपने हितों तथा स्वतन्त्रता को प्राथमिकता देते हुए एक सैद्धान्तिक स्थिति तैयार की। किन्तु इराक तथा ईरान की तेल व्यापार की नीतियाँ बहुमार्गी प्रतीत होती हैं। पिछले महीनों में इराक अपने दक्षिणी पत्तन से 1,50,000 बीपीडी तक के रिकार्ड तेल निर्यात में समर्थ था जिससे वह न केवल उत्तर से आयातित तेल की कमी को सन्तुलित करेगा बल्कि ईरान द्वारा घरेलू उपभोग के बहाना करते हुए किर्कुक से ईरान को होने वाले तेल निर्यात की अस्थायी बाधा को भी दूर कर लेगा। चूँकि अमेरिकी प्रतिबन्धों के कारण ईरानी तेल के निर्यात में कमी आयी है अत: ओपेक के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक के रूप में इराक बाजार को स्थिर बनाने के लिए अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा रहा है और आशा है कि वह ईरान के बाजारी हिस्से पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेगा। इस सन्देह पर ईरान अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में अपने तेल का निर्यात इराकी बन्दरगाह से इराकी तेल के रूप में कर सकता है अत: अमेरिका ने न केवल ईरानी तेल का आयात करने या अदला-बदली करने पर छूट देने से इन्कार कर दिया बल्कि वह किर्कुक तेल क्षेत्रों को खोलने के लिए बांग्लादेश के साथ कार्य कर रहा है ताकि इरानी तेल को कमी की क्षतिपूर्ति की जा सके।

इराक ईरान से बिजली खरीदने वाला अब तक का सबसे बड़ा आयातक है और साथ ही विद्युत उत्पादन हेतु ईरानी प्राकृतिक गैस पर भी निर्भर है। ईरान से आने वाली दो गैस पाइपलाइनें बगदाद में इराकी विद्युत केन्द्रों तथा बसरा के ईरान-निर्मित रुमैला ऊर्जा केन्द्र को गैस की आपूर्ति करती हैं। इस गर्मी के महीने में विद्युत की बढ़ती माँग से देश भर में हिंसक प्रदर्शन बढ़ जाने के कारण अमेरिका ने ईरान से कुछ प्रतिबन्धों को हटा लिया और इससे वह ईरान से गैस तथा बिजली का आयात जारी रख सकेगा। आवश्यक प्रसंस्करण सुविधाओं की कमी के कारण इराक अपने तेलक्षेत्रों से सह-उत्पाद के रूप में आने वाली गैस को जला देता है।ईरान पर अपनी ऊर्जा निर्भरता को कम करने के लिए इराक की राज्य संचालित साउथ गैस कम्पनी 17 बिलियन डॉलर की 25 वर्षीय परियोजना के तहत बसरा गैस कं. (बीसीजी) पर रॉयल डच शेल के साथ कार्य कर रही है जिससे इराक का गैस उत्पादन 2020 तक प्रतिदिन 1.4 बिलियन घन फीट हो जायेगा। एक अन्य समझौते में इराक के दक्षिण में प्रथम गैस क्षेत्र स्थापित करने के लिए कुवैत एनर्जी पीएलसी की स्थापना की गयी और इसने बसरा के निकट सीबा में गैस का उत्पादन आरम्भ कर दिया है। अरब पड़ोसियों तथा पश्चिमी देशों के साथ की गयी ये परियोजनाएँ ईरान पर इराक की निर्भरता कम करने में सहायक होंगी। तथापि जबकि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबन्धों का भारी दबाव है किन्तु यह इराक में अपनी पूर्व की भाँति प्रभावी स्थिति बनाये रखने का प्रयास करेगा। गत माह अक्टूबर में इराक ने ईरान को प्रतिस्थापित करते हुए चीन का सबसे बड़ा गैर-तेल निर्यातक बाजार बन गया।

निष्कर्ष

जैसा कि लोकतान्त्रिक इराकी नेतृत्व न केवल भौतिक अवसंरचना के पुनर्निर्माण द्वारा लोकप्रिय यथार्थता हेतु बल्कि उन नस्ली-कट्टरपन्थ से परे सुसंगत इराकी राष्ट्रीय अस्मिता के लिए भी लालायित है जो राष्ट्र राज्य के रूप में इराक के अस्तित्व के लिए घातक है, इराक द्वारा चुना गया मार्ग इस क्षेत्र में भू-राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता को समाप्त करने विरोधी समूहों को जोड़ने के बजाय सन्तुलित विदेश नीति के अनुरूप अधिक प्रतीत होता है। मई, 2018 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में संसदीय चुनाव जीतने वाले इराक के नये प्रधानमन्त्री अब्दुल मंदी ने कहा कि तेहरान तथा वाशिंगटन के बीच विवाद बढ़ने की स्थिति में वह इराक के हितों तथा इसकी स्वतन्त्रता को प्राथमिकता देंगे। ईरान पर पुन: अमेरिकी प्रतिबन्ध लगने के आलोक में ईरान पर अपनी सुरक्षा तथा आर्थिक निर्भरता कम करने के लिए इराक अपने अरब पड़ोसियों के साथ साझा मुद्दों को तलाशता हुआ प्रतीत होता है जो बगदा की उस सरकार के साथ कार्य करने के इच्छुक भी हैं जो ईरान में शियावाद के साथ वैचारिक बन्धुता का पोषक नहीं है।

***

* लेखिका, शोधार्थी, वैश्विक मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली।

अस्वीकरण : यहाँ व्यक्त किये गये विचार शोधार्थी के हैं न कि परिषद के।

अन्त्य टिप्पणी

"सऊदी-इराकी ज्वाइंट स्टेटमेंट इश्यूड टुडे", 22 अक्टूबर, 2017 //mci.gov.sa/en/MediaCenter/News/Pages/22­10-17-04.

दोनों पक्षों के लाभ हेतु इराक में सैबिक कार्यालय पुन: खुलना : विशेषज्ञ, 7 दिसम्बर, 2017, //www.arabnews.com/node/1205101/saudi-arabia

सऊदी-इराकी सम्बन्ध बिना शर्त उन्नत हुए, इराकी प्रधानमन्त्री का कथन, 6 दिसम्बर, 2017, //www.arabnews.com/node/1204536/middle-east.

धारणा : चीन-इराक सम्बन्ध नवीन युग में, 26 अगस्त, 2018, //news.cgtn.com/newst3d3d414831557a4e79457a6333566d54/sharep.html

पारस्परिक सहयोग, आतंकरोधी युद्ध पर इराक तथा जोर्डन ने हस्ताक्षर किये, 5 अगस्त, 2018, //www.iraqi news.com/featuresti rail ordan-i nk-deal -on-mutual -cooperation-anti -terrorism-war/

सऊदी अरब ने इराक के पुनर्निर्माण के लिए 5 मिलियन डॉलर की सहायता दी, ट्रेड, 14 फरवरी, 2018 //www.arabnews.com/node/1246236/middle-east.

घरेलू कारणों से ईरान ने किर्कुक ऑयल को तेल आपूर्ति रोकी, केआरजी पाइपलाइन का उपयोग नहीं करेगा, 5 नवम्बर, 2018 //www.rudaw.net/english/business/041120181

शेल ने इराक गैस उपक्रम को पूर्ण सहयोग की प्रतिबद्धता दिखाई, 'व्यापक' विस्तार की योजना बनाई, 30 अप्रैल, 2018, //www.reuters.com/articletus-iraq-shell-gas/shell-says-f ully-committed-to-irai-gas-venture-pl ans-massive­expansion-idUSKBN1111JZ.

ईरान पर प्रतिबन्ध के परिप्रेक्ष्य में इराक अपने हितों को प्राथमिकता देगा : नये प्रधानमन्त्री, 25 अक्टूबर, //www.reuters.com/articletus-iran-nuclear-iraq/i rai-will-prioritise-own-interests-regarding-iran-sanctions-new­pm-idUSKCN1M Z299

ईरान और इराक के बीच युद्ध कब शुरू हुआ?

आज का इतिहास:इराक के ईरान पर हमले के साथ शुरू हुआ युद्ध लगातार 8 साल तक चला, केमिकल हथियारों ने ली हजारों मासूमों की जान 22 सितंबर 1980 को इराकी सेना ने पश्चिमी ईरान की सीमा में घुसपैठ कर उस पर हमला कर दिया था। इससे दोनों देशों के बीच युद्ध भड़क उठा, जो लगातार 8 साल तक चलता रहा।

ईरान कब अलग हुआ?

सन् 1935 में रज़ाशाह पहलवी के नवीनीकरण कार्यक्रमों के तहत देश का नाम बदलकर फ़ारस से ईरान कर दिया गया थ।

ईरान का प्रथम युद्ध कब हुआ था?

ईरान इराक के युद्ध की शुरुआत कहां से हुई 22 सितम्बर 1980 को ईरान के खुर्रम शहर पर अचानक हमला कर इराक ने युद्ध की पहल की और उस पर अधिकार कर लिया।

क्या ईरान कभी भारत का हिस्सा था?

जी हाँ । आर्यों के समय ईरान का नाम आर्यान था

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