इंटरनेट के विभिन्न घटकों की व्याख्या कीजिए इंटरनेट की कार्यप्रणाली पर भी चर्चा कीजिए - intaranet ke vibhinn ghatakon kee vyaakhya keejie intaranet kee kaaryapranaalee par bhee charcha keejie

उत्तर : इंटरनेट की परिभाषा

इंटरनेट, कंप्यूटरों का वैश्विक नेटवर्क है जो कि सामान्य भाषा के उपयोग के साथ संपर्क करता है। इंटरनेट आपस में जुड़े हुए नेटवर्क का तंत्र है जो कि विश्वव्यापी रूप से विस्तारित होता है तथा डाटा की संप्रेषण सेवाओं को भी सुविधाजनक बनाता है जैसे कि रिमोट लॉग–इन, फाइल स्थानांतरण, इलेक्ट्रॉनिक मेल, वर्ल्ड वाइड वेब एवं समाचार समूह । इंटरनेट नेटवर्क निरंतर कुछ सॉफ्टवेयर अथवा इसी तरह के कुछ कदम उठा रहा है ताकि सारे संसार सूचना को सुपर हाइवे बनाया जा सके। कनेक्टिविटी (कनेक्शन) के लिए माँग में अभूतपूर्व उछाल के साथ, इंटरनेट, लाखों उपयोगकर्ताओं हेतु संप्रेषण का सुपर हाइवे बनने जा रहा है । इंटरनेट पहले सेना तथा शैक्षणिक संस्थानों तक सीमित था। लेकिन अब यह सभी के लिए पूरी तरह से संचालित हो रहा है एवं वाणिज्य और सूचना के सभी रूपों में प्रयोग हो रहा है । इंटरनेट वेबसाइट अब संसार के हर कोने में, व्यक्तिगत,शैक्षणिक, राजनीतिक तथा आर्थिक संसाधनों को प्रदान कर रहा है । इस प्रकार हम देख सकते हंय कि हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर घटक दोनों, इंटरनेट के निर्माण में संलग्न रहते हैं।

इंटरनेट तकनीकी का उदभव

इंटरनेट का निर्माण एक दिन में नहीं हुआ। यह 1969 के साल के प्रारंभ में विकसित हआ जब अर्पानेट ने 4 नोड, यूनाइटेड स्टेट की चार अलग–अलग विश्वविद्यालयों में जोड़े। मानवता के जन्म के साथ ही मानव भौगोलिक दूरियाँ मिटाने का अथक प्रयत्न कर रहा है तथा आवाज एवं तस्वीर के संप्रेषण द्वारा सफलता भी प्राप्त की है।

सबसे पहली सफलता इस कार्य में आवाज का संप्रेषण था । एनालॉग सिग्नल के रूप में, तब से आवाज संप्रेषण तकनीकी नई–नई ऊंचाइयों के साथ सुधर चुकी है तथा वर्तमान में यह टेली–कम्युनिकेशन का विश्वसनीय स्रोत है एवं टेलीफोन के नेटवर्क के साथ सारी दुनिया को बदल रही है और उसके बाद लंबी दूरी पर तस्वीरों के प्रसारण की सफलता प्राप्त हुई तथा इसे भी टेली–कम्युनिकेशन के क्षेत्र में एक महान कदम की उपमा दी गई। इस तरह मनुष्य तस्वीरों के रूप में दूरस्थ स्थानों तक पहुँचने में समर्थ हुआ। अपनी दो महत्वपर्ण इन्द्रियों आंख तथा कान के उपयोग से कुछ ही सेकंडों में ये संभव हो सकता था।

डिजिटल तकनीकी का आगमन कंप्यूटर के प्रादुर्भाव को साथ लाया। एक यंत्र का आविष्कार हुआ जो कार्यालयीन कार्यों को स्वचालित कर सकता था। जो कि व्यक्ति के कार्यालयीन शैली में एक क्रांति का सूचक था। एक मेज से दूसरी मेज तक डाटा के स्थानांतरण की मानवीय प्रक्रिया को बदलकर पूरी तरह से ऑटोमेट करना था। इसके लिए कंप्यूटरों का भौतिक रूप से एक–दूसरे से जोड़ने की जरूरत हुई एवं आपसी समझ हेत् तथा आंकड़ा क स्थानांतरण हेतु कुछ नये तरीकों की जरूरत थी। इस पूरे लेख को अगर हम सारबद्ध करें तो हम बहुत अच्छी तरह कह सकते हैं कि इंटरनेट तकनीकी आधारभूत रूप से इन तीन तकनीकों को मिलाने वाली है।

1. डिजिटल संकेत संप्रेषण तकनीकी।

2. पैकेट स्विचिंग तकनीकी ।

3. ग्राहक सेवा (क्लाइंट सर्वर) तकनीकी ।

इंटरवर्किंग में आधारभूत मुद्दे

निम्न बातें मुख्य हैं जिन्हें इंटरनेट कार्य करते समय हल करना होता है–

– किस प्रकार मशीनों को संबोधित करें ताकि कुछ अद्वितीय पहचान हो।

– किस प्रकार से आंकड़ों के स्थानांतरण हेतु विश्वसनीय भौतिक माध्यम प्रदान करें।

– किस प्रकार से लंबी दूरी पर आंकड़ों का संप्रेषण करें।

– अलग–अलग नेटवर्कों में कमी की समस्या को कैसे हल करें।

– इंटरनेट के अंतिम उपयोगकर्ता तक आसान पहुँच कैसे प्रदान करें।

– किस प्रकार से कंप्यूटरों में प्रवेश की मूल समझ को विकसित किया जाये।

एस.आर.आई. में इंटर NIC का गठन हर मशीन को एक विशेष पहचान देने की समस्या को हल करने हेतु किया गया। इंटरनेट की संकल्पना के साथ हर मशीन हेतु 32 बिट एड्रेस की योजना बनाई गई जो कि सारे संसार में 2**32 मशीनों को कवर करेगी। छोटे तथा बड़े नेटवर्क का हिसाब रखने हेतु 2**32 एड्रेस के खंड को ए, बी, सी समूह में पुनर्विभाजित किया गया एवं जो ए क्लास, बी क्लास, सी क्लास,डी क्लास, ई क्लास एड्रेसों से जाना गया। नेटवर्क एड्रेस जो 32 बिट नंबर के हैं। प्रायः बिन्दुवार दशमलव प्रतीकों में लिखे जाते हैं। इंटरनेट एड्रेस प्रायः दो भागों में बने होते हैं।

(i) नेटवर्क एड्रेस, (ii) नोड एड्रेस

ए क्लास नेटवर्क एड्रेस में पहली बाइट को नेटवर्क एड्रेस के रूप में लिया जाता है तथा अन्य तीन बाइट तीन एड्रेस प्रकट करते हैं जो किसी विशेष नेटवर्क हेतु होता है । इस तरह विशेष ए क्लास नेटवर्क में 2**24 नोट होते हैं । उदा. के लिए 80.190.200.201 एक क्लास नेटवर्क एड्रेस है । ए क्लास नेटवर्क की पहली बाइट दशमलव मान 0 से 127 के मध्य ही होना चाहिए । बी क्लास इंटरनेट एड्रेस में पहली दो बाइट नेटवर्क एड्रेस को पेश करती है एवं अगली दो बाईट नोड एड्रेस को पेश करती है एवं यह किसी विशेष नेटवर्क के लिए होता है। इस तरह किसी विशेष बी क्लास नेटवर्क में 2**16 नोड होते हैं । उदा. के लिए 144.16.11.1 एक बी क्लास नेटवर्क है । बी क्लास नेटवर्क में प्रथम बाइट दशमलव मान 128 से 191 के मध्य होता है। सी क्लास, इंटरनेट नेटवर्क एड्रेस प्रथम तीन बाइट नेटवर्क एड्रेस को पेश करते हैं एवं अंतिम बाइट किसी विशेष नेटवर्क हेतु नोड एड्रेस पेश करता है। इस तरह किसी विशेष बी क्लास नेटवर्क में 2**8 नोड हो सकते हैं। उदा. के लिए 202.41.111.66 एक सी क्लास नेटवर्क एड्रेस है । सी क्लास नेटवर्क में प्रथम बाईट मान 192 से 233 के बीच होना चाहिए । उसी तरह डी क्लास एड्रेस में 28 बिट मल्टीकास्ट एड्रेस को पेश करती है । डी क्लास नेटवर्क में मान 224 से 239 के बीच ही होना चाहिए। ई क्लास इंटरनेट एड्रेस को भविष्य के उपयोग हेतु आरक्षित रखा गया है । ई क्लास नेटवर्क का मान 240 से 247 के बीच ही होना चाहिए । सबसे निम्नतम आई पी एड्रेस है 0.0.0.0 तथा सबसे उच्चतम है 255.255.255.255 ।

किसी विशेष इंटरनेट एड्रेस के साथ जुड़े नेटवर्क एड्रेस की आसान पहचान हेतु प्रथम तीन बिट्स के निर्विवाद आवरण को लागू किया गया। सब नेटिंग के सिद्धांत का प्रयोग तथा परिचय उन नेटवर्कों हेतु किया गया जिसमें छोटे नेटवर्कों का समूह होता है एवं इसलिए ताकि सरल नेटवर्क प्रबंधन को संभव बनाया जा सके । सबनेटिंग में नोड एड्रेस का कुछ भाग इंटरनेट के भाग को नेटवर्क एड्रेस हेतु आरक्षित रखा जाता है जिसका अनुप्रयोग उन बिट्स के आवरण के कार्य द्वारा किया जाता है। नेटवर्क आवरण वह मापक है जो निश्चित करता है कितने बिट्स एड्रेस के नेटवर्क भाग को निर्धारित करते हैं एवं कितने एड्रेस के नोड भाग को रूप प्रदान करते हैं इसलिए एक इंटरनेट एड्रेस हमेशा नेटवर्क आवरण द्वारा सहभागी या साथ लिये होता है। अगर एड्रेस के साथ नेटवर्क आवरण नहीं होगा तब गलत आवरण की कल्पना होगी।

डाटा हस्तांतरण के लिए भौतिक माध्यम

बहुत से भौतिक माध्यमों का प्रयोग इंटरनेट के निर्माण में होता है जो निम्न तरह है।

• मुड़े हुए तारों की जोड़ी टेलीफोन में प्रयोग होती है।

• को–एक्सियल (समाक्ष) वायरों को ईथरनेट में प्रयोग किया गया।

• आप्टिकल फाइबर।

• हवा एक माध्यम के रूप में (जो माइक्रोतरंगों के प्रसारण तकनीकी तथा वी.एस.ए.टी. तकनीकी में प्रयोग होता है)।

उपरोक्त हर माध्यम की अपनी एक सीमा होती है। हर नेटवर्क के फैलाव के अनुसार इनका उपयोग होता है । मुड़े हुए तारों की जोड़ी की निम्नतम बैंडविड्थ होती है तथा विश्वसनीय रूप से यह कुछ सैकड़ों किलो बिट प्रति सेकंड की दर से डाटा की दर को प्राप्त कर पाता है। को–एक्सियल तारों में कुछ बड़ी बैंड–विड्थ होती है तथा विश्वसनीय रूप से कुछ सौ मेगा बिट प्रति सेकंड की दर से कार्य कर सकती है। आप्टिकल फाइबर कुछ गीगा बिट्स प्रति सेकंड की दर सौ आंकड़ों का कार्य करते हैं । वी.एस.ए.टी. तकनीकी, काफी अधिक बैंडविड्थ प्रदान करती है लेकिन यह ट्रांसपोडर को आवंटित फ्रिक्वेंसी पर निर्भर होती है, जो संप्रेषण में माध्यम का कार्य करता है । माइक्रोवेव प्रसारण भी बैंड चौड़ाई प्रदान करता है लेकिन उपयोगकर्ता हेतु यह कुछ मेगा बिट प्रति सेकंड की ही होती है।

लंबी दूरी के लिए डाटा संप्रेषण

भौतिक माध्यम की मूल प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए, कुछ यंत्रों का आविष्कार इसलिए किया गया कि लंबी दूरी तक के लिए त्रुटिहीन डाटा संप्रेषण हेतु जरूरी स्तर तक, संकेतों (सिग्नलों) की शक्ति बनाई रखी जा सके। दिये गये पैराग्राफ में लंबी दूरी तक आंकडों के संप्रेषण के लिए उपयोग की जाने वाली विभिन्न विधियाँ हैं।

मोडेम्स तथा लाइन ड्राइवर– ये तंत्र टेलीफोन लाइन पर लंबी दूरी तक डाटा के संप्रेषण सुविधा को प्रदान करने हेतु पेश किये गये। ये संयंत्र 2400 बिट्स प्रति सेकंड से 115 किलो बिट्स प्रति सेकंड एवं इससे भी ज्यादा गति को प्राप्त करने में सहयोग देते हैं तथा अभी भी टेलीफोन नेटवर्क में प्रयोग किये जा सकते हैं।

पुनरावर्तक (रिपिटर) – इन यंत्रों को को–एक्शियल ऑप्टिकल फाइबर तथा माइक्रोवेव संप्रेषण में प्रयोग किया जाता है । पुनरावर्तक सिर्फ ओ.एस.आई. रेफरेन्स मॉडल में कार्य करते हैं एवं आने वाली बिट्स को उनकी रूटिंग को ध्यान में न रखकर पुनः पैदा करने तथा आउटपुट चैनल तक लौटाने में प्रयोग किये जाते हैं।

ब्रिज– ब्रिज का प्रयोग वहाँ किया जाता है जहाँ हम नेटवर्क यातायात (ट्राफिक) पर नियंत्रण करना चाहते हैं एवं अन्य नेटवर्क में अनावश्यक यातायात प्रवेश को रोकना चाहते हैं। वे ओ.एस.आई. रेफरेन्स मॉडल पर डाटा लिंक परत को संचालित करते हैं।

रूटर– इन यंत्रों का प्रयोग, इंटरनेट पर एक अच्छे नियंत्रित यातायात नियम को प्रदान करने में किया जाता है। पैकेटों को मार्ग–दर्शन कम से कम दूरी के द्वारा हो. यह इन यंत्रों के द्वारा ध्यान रखा जाता है । ये यंत्र ओ.एस.आई.रेफरेन्स मॉडल के नेटवर्क परत (लेयर) को संचालित करते हैं।

इंटरनेट के घटक

इंटरनेट के लिए जरूरी कंपोनेंट्स– 1. टेलीफोन, 2. मोडेम,3. कंप्यूटर ।

इंटरनेट, सॉफ्टवेयर तथा हार्डवेयर दोनों घटकों से मिलकर बना होता है । नीचे घटकों की सूची दी गई है।

हार्डवेयर घटक –

• मोडेम तथा लाइन ड्राइवर

• ब्रिज

• रूटर

• प्रवेश मार्ग (गेटवे)

• अन्य भौतिक माध्यम

• सॉफ्टवेयर घटक –

• डाटा के विश्वसनीय संप्रेषण हेतु सॉफ्टवेयर में प्रयुक्त विभिन्न नये तरीके, जैसे टीसीपी/आई पी।

• सूचनाओं के स्थानांतरण हेतु मार्ग प्रदान करने के विभिन्न नये तरीके जैसे आई.आर.पी.।

• सूचनाओं के आगमन अथवा वृद्धि के लिए नये तरीके जैसे एच.टी.टी.पी.।

क्लाइंट सर्वर (ग्राहक सेवा) तकनीकी के अनुसार ही सॉफ्टवेयर घटकों का अनुप्रयोग किया गया। यूनिक्स में सर्वर को सामान्यत: डोमेन' कहते हैं । उस स्थिति में तंत्र अपने ग्राहक से सतत रूप से कुछ सूचनाओं की प्रतीक्षा करता है तथा नये तरीकों के उपयोग के अनुसार कार्य करता है।

निम्न अत्यंत सामान्य सर्वरों के नाम हैं ताकि इंटरनेट का उपयोगकर्ता, इंटरनेट पर आसानी से कार्य करने को जान सके ।

नाम सर्वर– यह,डोमेन फारमेट के एड्रेस का रूपांतरण आई.पी.एड्रेस के फार्मेट में करने वाली मशीन है।

परिसर नाम सर्वर– यह एक मशीन है जो डोमेन फार्मेट के एड्रेस के आई.पी. एड्रेस फार्मेट में रूपांतरण को एक विशिष्ट डोमेन के लिए रिजाल्व करती है।

प्रधान सर्वर (आर्कि–सर्वर) – यह मशीन मुख्य क्लाइंट (आर्कि ग्राहक) के निवेदनों को सुनता है तथा सूचनाओं के आगमन के बारे में सुनता है एवं सफल नये तरीकों के अनुसार सूचनाओं को उपलब्ध कराता है।

गोफर सर्वर– यह मशीन सूचनाओं के एक्सेस हेतु गोफर ग्राहकों के निवेदन को सुनती है तथा गोफर अथवा गोफर प्रोटोकाल्स के अनुसार सूचनायें उपलब्ध कराती हैं।

विश्वव्यापी वेब सर्वर/वर्ल्ड वाइड वेब सर्वर– यह मशीन W.W.W. सॉफ्टवेयर से एचटी.टी.पी. की सहायता से W.W.W. ग्राहकों हेतु सूचना स्थानांतरण का कार्य करती है।

इंटरनेट किस तरह कार्य करता है।

सामान्य इंटरनेट कार्यों जैसे TELNET में निम्न रीति अपनायी जाती है। हर एक्सेस टूल में निम्न चरण होते हैं। अंतर सिर्फ यह होता है कि विभिन्न प्रोटोकॉल्स के अनुसार अलग–अलग फार्मेट में सूचना स्थानांतरण होता है।

टेलनेट के क्रियान्वयन के दौरान उठाये गये कदम

1. जिस मशीन पर यह आदेश कार्यान्वित किया जाता है वह सबसे पहले स्थानीय होस्ट टेबल प्रविष्टि (एंट्री) का निरीक्षण करती है। अगर इसे चाहे गये डोमेन फार्मेट का आई.पी. एड्रेस प्राप्त हो जाता है तो यह चरण 4 पर चला जाता है।

2. अगर मशीन पहले चरण के आई.पी.एड्रेस को पहचानने में असमर्थ हो जाती है तो वह उस एड्रेस के डोमेन की खोज करती है।

अगर डोमेन मशीन को प्रदत्त डोमेन नाम प्रविष्टि से मेल करता है तो यह उस जरूरी आई.पी.एड्रेस हेतु डोमेन नाम सर्वर को देखता अथवा खोजता है। इसके बाद यह चरण–4 पर चले जाता है।

3. अगर होस्ट से संपर्क किया जाना है एवं वह होस्ट फाइल में नहीं है तथा साथ ही साथ स्थानीय डोमेन में भी नहीं है तब उस मशीन के नाम सर्वर का उपयोग, उस होस्ट के आई.पी. एड्रेस का पता लगाने में किया जाता है। अगर संपर्क किये गये होस्ट का नाम सर्वर में पंजीकृत होता है तब आई.पी. एडेस लौटा दिया जाता है। अन्यथा आई.पी. एड्रेस की स्थिति बताने में असफल यह सूचना आती है।

4. जब एक बार आई पी एड्रेस प्राप्त कर लिया जाता है तब पैकेट को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया की जाती है एवं यह विशेष मशीन की रूटिंग टेबल के अनुसार होता है। तब आगे रूटिंग सूचना के आधार पर पैकेट को अगले होस्ट को आगे बढ़ा दिया जाता है तथा जब तक पैकेट अपने गंतव्य तक नहीं पहुँच जाता तब तक पैकेट के आगे बढ़ने की प्रक्रिया चलती रहती है।

5. जब एक बार पैकेट गंतव्य तक पहुँच जाता है तब मशीन स्रोत गंतव्य सूचना को पढ़ लेती है एवं चाही गई जानकारी को निवेदन (रिक्वेस्टिंग) मशीन तक पहुँचा देती है। ऐसा तभी होगा जब माँगी गई सर्विस उस मशीन पर स्वीकृत है । (यहाँ टेलनेट सर्विस पोर्ट नं. 23 पर)। तब लॉग–इन अनुबोधन (प्रोम्प्ट) उस आवेदक को भेजा जाता है जिसे लॉग–इन नाम भेजकर प्राप्ति सूचना देनी होती है। उसके पश्चात् टेलनेट सेवा के लिए उस नये आवेदन पर कार्य प्रारंभ हो जाता है एवं आवेदक, सिस्टम में नयी प्रविष्टि प्राप्त करता है।

इंटरनेट द्वारा प्राप्त सुविधायें

इंटरनेट द्वारा निम्न सुविधायें दी जा रही हैं–

1. ई–मेल– सूचना संप्रेषण कह एक रूप है। इस प्रणाली में नेटवर्क के द्वारा एक कम्प्यूटर को दूसरे कम्प्यूटर से जोड़कर तत्काल सूचना को भेजने की सुविधा प्राप्त की जाती है। एक कम्प्यूटर से भेजी गयी सूचना को दूसरे कम्प्यूटर पर पढ़ा जा सकता है। ई–मेल प्रणाली में मोडेम का महत्वपूर्ण स्थान होता है। जब एक कम्प्यूटर सुदूरवर्ती दूसरे कम्प्यूटर तक सूचना भेजता है. तो पहले कम्प्यूटर के साथ संलग्न मोडेम कम्प्यूटर में भंडारित डिजीटल सूचना कोड को टेलीफोन लाइन द्वारा एनलॉग रूप में परिवर्तित कर दूसरे कम्प्यूटर तक भेजता है। दूसरी तरफ दूसरे कम्प्यूटर से संलग्न मोडेम इस सूचना को अपने से संलग्न टेलीफोन से प्राप्त कर दूसरे कम्प्यूटर में डिजीटल रूप में बदलकर भंडारित करता है । इस प्रणाली में एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर में संदेश भेजने हेतु दूसरे कम्प्यूटर तक प्रेषित करना है, तो उनके पते की जानकारी होनी जरूरी है। ई–मेल का महत्व व्यवसाय एवं औद्योगिक क्षेत्रों में सबसे अधिक है। इसके प्रयोग से कम समय में ही संदेशों का आदान प्रदान हो जाता है। एक पृष्ठ ई–मेल का खर्च लगभग 5 रुपये होता है जो फैक्स, टेलेक्स, एस टी. डी. या कोरियर से सस्ता है।

2. ई–कॉमर्स– ई–कॉमर्स इन्टरनेट आधारित उपभोक्ता बाजार की एक नयी कार्यप्रणाली है, जिसके अन्तर्गत इन्टरनेट पर ठीक उसी तरह वस्तुओं का क्रय–विक्रय किया जाता है। भारत में ई–कार्मस अभी प्रारंभिक अवस्था में है। फिर भी इस वर्ष ई–कॉमर्स द्वारा भारत में किया जाने वाला कुल व्यापार 500 करोड़ रुपये तक पहँच जाने की आशा है। ई–कॉमर्स के माध्यम से सेवायें देने वाली भारतीय कंपनियों में प्रमुख हैं– अमृल, आई.सी.आई. एवं राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज । भारत में ई– कॉमर्स से सम्बन्धित विनियमों तथा कानूनों का बहुत अभाव है जिसके कारण इस माध्यम का विस्तार नहीं हो पा रहा है। हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा ई– कॉमर्स को विस्तार देने की दिशा में कुछ ठोस पहल की गयी है।

3. पेजिंग एवं सेल्युलर– सूचना प्रौद्यौगिकी के क्षेत्र में व्यापारिक रूप में परिवर्तन लाने में पेजिंग एवं सेल्युलर प्रणालियों का विशेष योगदान है। इन दोनों प्रणालियों में संदेश भेजने हेत् रेडियो तरंगों का प्रयोग किया जाता है। वर्तमान में इस प्रणाली में वैप (Wireless Application Protocol–WAP) नामक तकनीकी का समायेजन कर, इसे और भी ज्यादा सक्षम बना दिया गया है । वेप तकनीकी की शुरुआत वर्ष 1999 की प्रथम तिमाही में की गयी।

इस तकनीकी के माध्यम से सेल्युलर फोन के द्वारा इन्टरनेट से जुड़ाव कायम किया जा सकता है । इसमें फेक्स तथा ई–मेल की सुविधा प्राप्त की जा सकती है । इस बीच वैव का प्रसार काफी तीव्र गति से हुआ है।

अब तक विश्व की लगभग 9 हजार वेबसाइटों ने वैप तकनीक को अपना लिया है । भारत में भी कई कम्पनियाँ इन वेबसाइटों से जुड़ने जा रही हैं। एयरटेल ने इंडिया टुडे ऑन वाहन, इंडिया इंफोलाइन तथा इंडिया गाइड के साथ समझौता किया है। भारत में इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाली सत्या ऑन लाइन द्वारा शीघ्र ही वैप गेटवेक की स्थापना देश में की जा रही है। वैप पर आधारित फोन गति वैड विड्स के मामले में कुछ कमजोर है। भारत में वर्तमान में जी.एस.एम. नामक नयी तकनीक का प्रयोग हो रहा है, जिसके माध्यम से मात्र 9.6 किलोबाइट्स प्रति सैकण्ड की गति से सूचनाओं का प्रेषण किया जा सकता है । मई, 2000 में जी पी.आर.एस. नामक नयी तकनीकी का प्रयोग प्रारम्भ हुआ जिसकी रफ्तार 176.2 किलो बाइट्स प्रतिमिनिट है। इस तकनीकी हेतु अन्तर्राष्ट्रीय संस्था मोटोरोला एवं बी.पी.एल. में एक समझौता अभी हाल में ही सम्पन्न हुआ हैं । जहाँ एक डाटा ट्रांसमिशन का प्रयन है तीसरी पीढ़ी की तकनीक, जिसे ब्राडबैंड मोबाइल कहा जाता है, शीघ्र ही बाजार में आ चुका हैं।

4. मोबाइल फोन– देश में वर्तमान में लगभग 2 करोड़ लोग मोबाइल फोन का प्रयोग कर रहे है । इनकी संख्या में लगातार तेजी से वृद्धि हो रही है । वर्ष 1999 की प्रथम छमाही में लगभग 80,000 लोग मोबाइल फोन से जुड़े पर बाद में 6 माह में इनकी संख्या में प्रतिमाह 70,000 की वृद्धि हुई है । जनवरी, 2000 में प्रतिमाह एक लाख लोग इस सेवा से जुडे । एक सर्वक्षण के अनुसार देश के सैल्यूलर फोन के बाजार में 80 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है।

5. फैक्स– संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में फेंक्स एक लोकप्रिय प्रणाली है। फैन्स का उपयोग मुख्यतया दस्तावेजों को भेजने में किया जाता है । इस उपकरण की सहायता से टेलीफोन नेटवर्क के द्वारा किसी दस्तावेज को दूरवर्ती स्थान पर बिल्कुल इस तरह भेजा जाता है जिस तरह से हम किसी दस्तावेज की फोटोस्टेट मशीन से प्रतिलिपि प्राप्त करते हैं। फैक्स की प्रणाली त्वरित एवं सस्ती है।

6. सेटेलाइट फोन – मोबाइल अथवा सेल्युलर फोन के समान सेटेलाइट फोन भी दूरसंचार प्रौद्योगिकी की अनुपम देन है । उपग्रह आधारित मोबाइल फोन का क्षेत्र सेल्युलर फोन से कहीं ज्यादा विस्तत तथा व्यापक आधार वाला होता है । सेटेलाइट फोन के माध्यम से उपभोक्ता विश्व के किसी भी स्थान से किसी भी अन्य स्थान पर तुरंत सम्पर्क कायम कर सकता है । इस प्रणाली की विशेषता यह है कि एक ही हैंडसेट से फोन, फेक्स तथा पेजिंग सेवा का उपयोग किया जा सकता हैं।

7. टेलनेट– टेलनेट एक ऐसी सुविधा है, जिसके माध्यम से इंटरनेट से जुड़े विश्व के किसी भी कम्प्यूटर पर लॉग इन' कर उस पर इस प्रकार कार्य कर सकते हैं जैसे उक्त कम्प्यूटर का की–बोर्ड' आपके पास है। अतः इस सुविधा को 'रिमोट लॉग इन' भी कहते हैं। टेलनेट के माध्यम से न केवल विश्व के किसी भी पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तक को पढ़ा जा सकता है बल्कि उसका किसी भी पेज का प्रिंट आउट निकाला जा सकता है।

8. मल्टीमीडिया– मल्टीमीडिया एक तकनीक है, जो वर्तमान में आधुनिक कम्प्यूटर का एक जरूरी अंग बन चुका है। पूर्व में मल्टीमीडिया से अभिप्राय संचार के विभिन्न साधनों के मिले जुले स्वरूप से लगाया जाता था लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इस शब्द का अर्थ एक ही कम्प्यूटर पर टेक्स्ट, ग्राफिक्स, एमीनेशन, ऑडियो, वीडियो इत्यादि सुविधाओं के प्राप्त होने से लगाया जाता है। मल्टी मीडिया तकनीक से युक्त कम्प्यूटरों पर टेलीविजन के कार्यक्रम देखे जा सकते है, संगीत को सुना जा सकता है। सीड़ी. लगाकर विभिन्न विषयों की जानकारी ली जा सकती है। आम व्यक्तिगत कम्पयूटरों की तुलना में मल्टी–मीडिया कम्प्यूटरों में ध्वनि ब्लास्टर, कार्ड स्पीकर, माइक्रोफोन एवं कॉम्पैक्ट डिस्क ड्राइव आदि शामिल हैं, जिन्हें संयुक्त रूप से मल्टी– मीडिया किट कहा जाता है। मल्टी– मीडिया कम्प्यूटर में सॉफ्टवेयर के रूप में मल्टी–मीडिया प्रोग्राम का प्रयोग किया जाता है जिसे सीड़ी. रोम कहा जाता है।

उत्पादन सूचना मनोरंजन शिक्षा एवं सृजनात्मक कार्यों में मल्टीमीडिया का जबरदस्त उपयोग है । मल्टी– मीडिया प्रोग्राम दो तरह के हो सकते हैं। लीनियर एवं इंटरेक्टिव प्रोग्रामों में विषय की प्रस्तुति एक बँधे–बधाये रूप में होती है। इसमें उपभोक्ता का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। जबकि इंटरेक्टिव प्रोग्रामों में उपभोक्ता हस्तक्षेप कर सकता है। मल्टीमीडिया की डिजिटल तकनीक ने मनोरंजन के क्षेत्र में जबरदस्त क्रांति पैदा कर रखी है। फिल्मों तथा विज्ञापन फिल्मों में काल्पनिक दृश्यों को वास्तविक रूप से पेश किया जाना आज मल्टी–मीडिया के कारण ही संभव हुआ है। फिल्म जुरासिक पार्क के अधिकतर दृश्य इसी तकनीक द्वारा तैयार किये गये है |

इंटरनेट के मुख्य घटक कौन कौन से हैं?

इंटरनेट, सॉफ्टवेयर तथा हार्डवेयर दोनों घटकों से मिलकर बना होता है । नीचे घटकों की सूची दी गई है। डाटा के विश्वसनीय संप्रेषण हेतु सॉफ्टवेयर में प्रयुक्त विभिन्न नये तरीके, जैसे टीसीपी/आई पी।.
डिजिटल संकेत संप्रेषण तकनीकी।.
पैकेट स्विचिंग तकनीकी ।.
ग्राहक सेवा (क्लाइंट सर्वर) तकनीकी ।.

इंटरनेट की कार्यप्रणाली क्या है?

Internet की कार्यप्रणाली इंटरनेट के जरिए आप जो Data Transfer करते हैं। वह छोटे-छोटे Packets के रूप में ट्रेवल करता है। जब आप दो या दो से अधिक नेटवर्कों के बीच डाटा ट्रांसफर करते हैं। तो Data को हैंडल करने का काम Router करता है।

इंटरनेट क्या है इंटरनेट के विभिन्न अनुप्रयोगों को लिखिए?

इंटरनेट के अनुप्रयोग- इंटरनेट कई सेवाओं की सुविधा देता है, चीजों को ऑनलाइन खरीदने और बेचने से लेकर, वेब ब्राउज़िंग, एक स्थान से दूसरे स्थान पर फाइनों के हस्तांतरण (transfer of files), ई-मेल (email), वर्ल्ड वाइड वेब (www), चैट रूम (Chat room), ब्लॉगिंग (blogging), नोटिस बोर्ड एवं इनके अलावा शोपिंग से मनोरंजन तक की सभी ...

इंटरनेट कितने प्रकार के होते हैं?

मोबाईल इंटरनेट भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल होता है इसमें हमें मोबाईल नेटवर्क के द्वारा इंटरनेट प्रदान किया जाता है भारत में जिओ , एयरटेल , बीएसएनएल और वी प्रमुख मोबाईल इंटरनेट प्रदाता हैं मोबाईल इंटरनेट के 2g, 3g और 4 g अलग – अलग प्रकार के इंटरनेट प्लान उपलब्ध होते हैं मोबाईल इंटरनेट इस्तेमाल करने का सबसे सस्ता माध्यम ...