हिन्दी की कितनी शैलियाँ होती है? - hindee kee kitanee shailiyaan hotee hai?

विषयसूची

  • 1 शैली कितनी प्रकार की होती है?
  • 2 कथन शैली से क्या तात्पर्य है इसके प्रकार लिखिए?
  • 3 भाषा के विकास की दृष्टि से शैली कितने प्रकार की होती हैं?
  • 4 प्रयोजनमूलक हिन्दी की कितनी शैलियाँ हैं?
  • 5 शैली से आप क्या समझते हैं स्पष्ट कीजिए?
  • 6 शैली के 2 अंग कौन से हैं?
  • 7 कथात्मक शैली क्या है?
  • 8 मनस्वी शैली क्या है?
  • 9 लेखन शैली से आप क्या समझते हैं?

शैली कितनी प्रकार की होती है?

कथन शैली के प्रकार

  • व्याख्यापरक या व्याख्यात्मक शैली
  • विवरणपरक या विवरणात्मक शैली
  • मुल्यांकनपरक शैली
  • विचारात्मक शैली

कथन शैली से क्या तात्पर्य है इसके प्रकार लिखिए?

इसे सुनेंरोकेंकथन की शैली से तात्पर्य किसी व्यक्ति द्वारा अपनी बात को कहने की शैली से होता है। हर व्यक्ति का अपनी बात कहने या बातचीत करने का एक विशेष तरीका होता है, यानी किसी व्यक्ति द्वारा उसके बोलने और लिखने का यह विशिष्ट तरीका ही ‘कथन की शैली’ कहलाता है। कथन की शैली विचारों के संप्रेषण की एक कला है।

शैली से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकें’शैली’ शब्द अंग्रेजी के स्टाइल (Style) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। शैलीविज्ञान एक ओर भाषाशैली का अध्ययन साहित्यशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर करता है, जिसमें रस, अलंकार, वक्रोक्ति, ध्वनि, रीति, वृत्ति, प्रवृत्ति, शब्द-शक्ति, गुण, दोष, बिंब, प्रतीक आदि आते हैं।

विवरणात्मक लेख क्या है?

इसे सुनेंरोकेंविवरणात्मक अनुसंधान – इस प्रकार के शोध के अंतर्गत अध्ययन के समय जो परिस्थितियाँ हैं उनका उसी रूप में शोधार्थी द्वारा प्रस्तुतीकरण किया जाता है। इसमें तथ्यों का संकलन महत्वपूर्ण होता है। इसे वर्णनात्मक अनुसंधान की संज्ञा भी दी जाती है। इस प्रकार के अनुसंधान का परिचय देते हुए ‘शोध प्रविधि’ नामक पुस्तक में डॉ.

भाषा के विकास की दृष्टि से शैली कितने प्रकार की होती हैं?

इसे सुनेंरोकेंकिसी भी भाषा में शैली भेद के मूल चार आधार होते हैं —- 1) इतिहास, 2) भूगोल, 3) समाज, और 4) व्यक्ति ।

प्रयोजनमूलक हिन्दी की कितनी शैलियाँ हैं?

इसे सुनेंरोकेंजिस भाषा का प्रयोग किसी विशेष प्रयोजन के लिए किया जाए, उसे ‘प्रयोजनमूलक भाषा’ कहा जाता है। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि प्रयोजन के अनुसार शब्द-चयन, वाक्य-गठन और भाषा-प्रयोग बदलता रहता है। व्यावहारिक हिन्दी, कामकाजी हिन्दी, प्रयोजनी हिन्दी, प्रयोजनपरक हिन्दी, प्रायोगिक हिन्दी, प्रयोगपरक हिन्दी ।

मैं शैली में लिखी रचना को क्या कहते हैं?

इसे सुनेंरोकें(3) आत्मकथात्मक शैली – इसमें लेखक ही नायक लगता है, ‘मैं’ का प्रयोग होता है। आधुनिक कहानी-साहित्य में इस शैली का अधिक प्रयोग हुआ है। मोहन राकेश, राजेन्द्र यादव, अमरकांत, निर्मल वर्मा आदि ने इस शैली में कहानियाँ लिखी हैं। प्रायः इसमें एक ही पात्र कथा कहता है।

एकार्डियन शैली क्या है?

इसे सुनेंरोकेंयहाँ की मुख्य भाषा चीनी है जिसका पाम्परिक तथा आधुनिक रूप दोनों रूपों में उपयोग किया जाता है। प्रमुख नगरों में बीजिंग (राजधानी), शंघाई (प्रमुख वित्तीय केन्द्र), हांगकांग, शेन्ज़ेन, ग्वांगझोउ इत्यादी हैं।

इसे सुनेंरोकेंशैली का अर्थ होता है कोई भी ढंग का तरीका। शैली के चार प्रकार होते हैं। पहली विवरणात्मक शैली इस शैली में किसी व्यक्ति द्वारा या लेखक द्वारा किसी घटना का वर्णन ही प्रमुख प्रस्तुति होती है। दूसरी व्याख्यात्मक शैली किसी भी घटना या विचार को व्याख्या के द्वारा समझाया जाता है और सरल किया जाता है व्याख्यात्मक शैली कहलाती है।

शैली से आप क्या समझते हैं स्पष्ट कीजिए?

इसे सुनेंरोकेंशैली ‘शील’ धातु से व्युत्प्न्न है। सामान्यतः शैली का आशय लहजा, ढंग, परिपाटी, पद्धत्ति, विधि, तौर-तरीका आदि से है। शैली आंग्ल शब्द ‘स्टाइल’ का समानार्थी है।

शैली के 2 अंग कौन से हैं?

इसे सुनेंरोकेंशैलीविज्ञान एक ओर भाषाशैली का अध्ययन साहित्यशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर करता है, जिसमें रस, अलंकार, वक्रोक्ति, ध्वनि, रीति, वृत्ति, प्रवृत्ति, शब्द-शक्ति, गुण, दोष, बिंब, प्रतीक आदि आते हैं।

साहित्य कितनी शैलियों में लिखा जाता है?

इसे सुनेंरोकेंशैलियों को फिर उप- शैलियों में विभाजित किया जाता है । साहित्य को प्राचीन ग्रीस, कविता , नाटक और गद्य के क्लासिक तीन रूपों में विभाजित किया गया है । कविता को तब गीत , महाकाव्य और नाटकीय की शैलियों में विभाजित किया जा सकता है ।

लेखन में शैली का होना क्यों आवश्यक है?

इसे सुनेंरोकेंबग़ैर वर्तनी के सही हुए हम सोच भी नहीं सकते कि हमारी हिंदी लेखन शैली बेहतर होगी। हिंदी केवल लिखने से नहीं होता ये आसान है तो उतना ही कठिन भी। बहुत बारीकी से निरीक्षण करना होता है अपने द्वारा लिखित शब्दों का तब कहीं जाकर शुद्ध हिंदी लिखी जाती है।

कथात्मक शैली क्या है?

इसे सुनेंरोकेंकथा शैली की विशेषताएँ में कथात्मक कार्यएक कथावाचक घटनाओं की एक कार्रवाई या उत्तराधिकार प्रस्तुत करता है जिसमें पात्रों की एक श्रृंखला जो किसी दिए गए स्थान में स्थित होती है और पूर्व-स्थापित समय के दौरान भाग लेती है। ये सभी घटक कथा के तत्व बन जाते हैं (जिसे हम नीचे और अधिक विस्तार से देखेंगे)।

मनस्वी शैली क्या है?

इसे सुनेंरोकेंमंझन कृति मधुमालती हिंदी का प्रथम प्रेमाख्यान काव्य है जिसमें वह पत्नी बाद का सर्वथा अभाव है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ईश्वर दास कृत सत्यवती कथा को भक्ति काल के किसी भी धारा में स्थान नहीं दिया है।

शैली से क्या अभिप्राय है?

इसे सुनेंरोकेंशैली Meaning in Hindi – शैली का मतलब हिंदी में शैली संस्कृत [संज्ञा स्त्रीलिंग] 1. ढंग ; तरीका ; रीति 2. साहित्य के लेखन का विशिष्ट ढंग 3.

साहित्य में शैली क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसाहित्यिक शैली ऐसा लगता है कि साहित्य में अनंत मात्रा में विधाएं हैं, लेकिन वास्तव में, वास्तव में कई उप-शैलियां हैं। ये उप-शैलियों साहित्य के तीन प्राथमिक रूपों से उपजी हैं: कविता , नाटक और गद्य ।

लेखन शैली से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंएक लेखक न केवल एक बिंदु बनाने या एक कहानी बताने के लिए वाक्य पैटर्न का उपयोग करता है, बल्कि इसे एक निश्चित तरीके से करने के लिए करता है जो एक व्यक्तिगत हस्ताक्षर के बराबर होता है, वास्तविकता को प्रस्तुत करने का एक विशिष्ट तरीका है।

भाषा शैली कितने प्रकार की होती हैं?

भाषा शैली के प्रकार.
विवरात्मक शैली.
मूल्यांकन शैली.
व्याख्यात्मक शैली.
विचारात्मक शैली.

हिन्दी की चार प्रमुख शैलियाँ कौन कौन सी है *?

भाषाशास्त्र के अनुसार हिन्दी के चार प्रमुख रूप या शैलियाँ हैं :.
मानक हिन्दी - हिन्दी का मानकीकृत रूप, जिसकी लिपि देवनागरी है। ... .
दक्षिणी - उर्दू-हिन्दी का वह रूप जो हैदराबाद और उसके आसपास की जगहों में बोला जाता है। ... .
रेख्ता - उर्दू का वह रूप जो शायरी में प्रयुक्त होता था।.

हिंदी भाषा की शैली से आप क्या समझते हैं?

विभिन्न संदर्भों में विभिन्न प्रकार से बोलने के रूप को "शैली" कहा जाता है। इस शैली को हम औपचारिक भी बना सकते हैं और अनौपचारिक भी। हिंदी भाषा अपनी बोलियों और भारतीय भाषाओं के बीच संप्रेषण-सूत्र का कार्य करती है। इस संप्रेषण के लिए हमें अनेक शैली भेद मिलते हैं

उपन्यास लेखन की कितनी शैलियाँ प्रचलित हैं?

व्यापक सामाजिक चित्रण की दृष्टि से दोनों में पर्याप्त साम्य है। लेकिन जहाँ महाकाव्यों में जीवन तथा व्यक्तियों का आदर्शवादी चित्र मिलता है, उपन्यास, जैसा फ़ील्डिंग की परिभाषा से स्पष्ट है, समाज की आलोचनात्मक व्याख्या प्रस्तुत करता है। उपन्यासकार के लिए कहानी साधन मात्र है, साध्य नहीं।