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राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने ‘भारत-भारती’ में मर्मान्तक वेदना का अनुभव करते हुए लिखा है- इसी प्रकार एक दूसरे उदाहरण के अनुसार अतीत में भारत समृद्धि के शिखर पर था। यहाँ तक कि भारत को ‘सोने की चिड़िया‘ कहा जाता था। यूरोप के व्यापारी जमीन के रास्ते से यहाँ व्यापार करने के लिए आते थे। धन-दौलत एकत्र कर जब वापिस यूरोप की ओर प्रस्थान करते थे, तब मध्य में पड़ने वाले देशों के लुटेरे इन्हें लूट लिया करते थे। व्यापारी त्रस्त हो गए थे।
परन्तु भारत से व्यापार का आकर्षण इतना अधिक था कि उन्होंने भारत आने के लिए समुद्री मार्ग खोज निकाला। इन बातों से हमारी समृद्धि का पता चलता है। क्या हो गए? सम्पन्नता ने भारतीयों को आरामतलब, बेफिकर और इस सीमा तक स्वार्थी बना दिया कि हम अपनी मातृसंस्कृति और मातृभूमि के प्रति अपने उत्तरदायित्व को ही भूल गए। परिणामतः विदेशी दासता की बर्बरता को भुगतना पड़ा। पतन की कहानी लिखी जाने लगी। संघर्ष की भावना और शक्ति समाप्त हो गई। देशभक्त वीरों की उपेक्षा की जाने लगी। बिना संघर्ष कुछ पाने की लालसा ने हमें इतना निकम्मा बना दिया कि हम संस्कृति और देशहित की परवाह न कर देश का विभाजन स्वीकार कर बैठे। समझौता हमारे चरित्र का अंग बन गया। सहनशीलता, उदारता, भाईचारा, हृदयपरिवर्तन आदि ने वर्तमान को उस चौराहे पर पहुँचा दिया है, जहाँ मौत घात लगाए बैठी है। बढ़ते स्वार्थ ने भारत को भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, मिलावट, गद्दारी के गहरे गर्त में डुबा दिया है। और क्या होंगे अभी? जो देश अपने इतिहास से सबक नहीं सीखता, उसका पतन निश्चित ही होता है। पतन की कहानी का अन्त गुलामी में होता है। भाषा और संस्कृति का सर्वनाश हो जाता है। वर्तमान में चल रहे संघर्षों से यही तो संकेत मिलते हैं। “सम्पूर्ण भारत एक राष्ट्र है, सबका हित समान है, कलियुग में संघ ही शक्ति है’‘ इन सिद्धान्तों को पूर्णतः भुला दिया गया है। आज सारा भारत क्षेत्रीयता, भाषाई विवाद, पार्टीबाजी, वोटों के लिए किए जा रहे षड्यंत्र, साम्प्रदायिकता, जातीय विवादों के न मिटने वाले संघर्षों में उलझा हुआ है। जिस तरह बिल्ली चूहों के लिए छिपकर घात लगाए बैठी रहती है और मौका पाते ही झपटकर उन्हें खा जाती है, उसी तरह धर्म परिवर्तन के लिए बैठी शक्तियाँ भी घात लगाए अपना उद्देश्य पूरा कर रही हैं। एक दूसरी शक्ति बम के माध्यम से देश को आतंकित कर देश को हड़प जाना चाहती है। सत्ताधीश राष्ट्र की सत्तासंचालन में असमर्थ एवं असफल साबित हो रहे हैं। वे तो अपनी समझौतावादी और तुष्टिकरण की आत्मघाती नीति पर चल रहे हैं, उन्हें राष्ट्रहित दिखाई नहीं दे रहा है। इन स्थितियों को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि भारत के गौरवशाली इतिहास का अन्त निकट है। ऐसी दशा में मातृभूमि के एक सपूत का कथन है- “जब तक भगवान सूर्य का प्रकाश शेष है, तब तक राष्ट्रद्रोही शक्तियों को समूल नष्ट करने के लिए जुट जाएं। फिर चाहे वे अपने भाई कौरव ही क्यों न हों अथवा ऋषि संतान रावण ही क्यों न हो।“ - जगदीश दुर्गेश जोशी Who were we, what happened and what will happen now | Nationalist Maithili Sharan Gupt | Glorious | Samrat Chandragupta Maurya | Indian History | Religion Change | Power Management | Appeasement | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Chevvoor - Patuli - Patti | News Portal, Current Articles & Magazine Divyayug in Chhachhrauli - Pauni - Payal | दिव्ययुग | दिव्य युग | स्वागत योग्य है नागरिकता संशोधन अधिनियमSupport for CAA & NRCराष्ट्र कभी धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता - 2मजहब ही सिखाता है आपस में बैर करना बलात्कारी को जिन्दा जला दो - धर्मशास्त्रों का विधानUseful LinksSectionsSend us a messageहम कौन थे क्या हो गए और क्या होंगे अभी पंक्ति किसकी है?'हम कौन थे क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी' का विचार सभी के भीतर गूंज उठा। यह काव्य 1912 में रचा गया और संशोधनों के साथ 1914 में प्रकाशित हुआ। यह अपूर्व काव्य मौलाना हाली के 'मुसद्दस' के ढंग का है। राजा रामपाल सिंह और रायकृष्णदास इसकी प्रेरणा में हैं।
हम कौन थे क्या हो गए कविता की व्याख्या?उसकी उदारता का यहाँ वर्णन किया गया है।
हम कौन थे के कवि कौन है?राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (३ अगस्त १८८६ – १२ दिसम्बर १९६४) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे।
हम कौन थे कविता की व्याख्या PDF?यही कि एकता में बल है। कविता में भी देशवासियों को एक होकर रहने के लिए कहा गया है । आशय है, बनाई जा सकती है। जिस प्रकार यह हो सकता है, वैसे ही हम सब भी एक हो सकते हैं ।
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