गाय के पेट में कीड़े हो तो क्या करें? - gaay ke pet mein keede ho to kya karen?

शनवारा गुजराती मोढ़ वणिक समाज धर्मशाला में गो प्रबंधन पर कार्यशाला हुई। गो प्रबंधन पीएचडी डॉ. महेंद्रकुमार गर्ग ने किसानों को गो पालन के टिप्स दिए। उन्होंने कम लागत में अधिक उत्पादन और देशी गाय से उत्पादन के तरीके बताए।

डॉ. गर्ग ने कहा गाय चारा खाती है, लेकिन पर्याप्त दूध नहीं दे पाती। इसका मुख्य कारण पेट के कीड़े हैं। यह चारा अंदर जाकर कीड़े खाते हैं। इसे खत्म करने साल में तीन बार डी-बर्निंग की गोली देना होगी। पेट के कीड़े मरने से दूध का उत्पादन बढ़ेगा। पशु पालकाें को उन्होंने कहा समय पर पशुओं का टीकाकरण होना चाहिए। हर रोज 60 ग्राम मीरनल मिक्चर खिलाएं। साल में 10 किलो नमक का चारे के साथ सेवन कराएं। पानी दिन में 30 से 35 लीटर तक पिलाएं। इससे पशु दूध अधिक देगा। पशु तंदुरुस्त रहेगा।

शाम 4 बजे विधायक अर्चना चिटनीस आईं। उन्होंने पशु विभाग के अफसराें को डॉ. गर्ग के बताए टिप्स का प्रचार-प्रसार करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा अफसरा लक्ष्य पूरा करने में समय न बिताए। गांव-गांव में पशु पालकों में प्रचार-प्रसार करें। डॉ. गर्ग से उन्होंने बार-बार आने का आग्रह किया। कार्यशाला में जिले के 356 किसान आए। कार्यशाला में इंदौर सहकारी दुग्ध संघ मर्यादित महाप्रबंधक अतुल येवलेकर, केसी गोयल मौजूद थे। शाम 5 बजे तक कार्यशाला चली।


    नवजात बच्छे/बच्छियों का बीमारियों से बचाव रखना बहुत आवश्यक है क्योंकि छोटी उम्र के बच्चों में कई बिमारियाँ उनकी मृत्यु का कारण बनकर पशुपालक को आर्थिक हनी पहुंचती है| नवजात बच्छे/बच्छियों की प्रमुख बीमारियां निम्नलिखित है:-

    1.काफ अतिसार(काफ डायरिया व्हायट स्कौर/कोमन स्कौर):


    छोटे बच्चों में दस्त उनकी मृत्यु में एक प्रमुख हार्न है| बच्चों में दस्त लगने के अनेक कारण हो सकते हैं| जिनमें अधिक मात्रा में दूध पी जाना, पेट में संक्रमण होना, पेट में कीड़े होना आदि शामिल हैं| बच्चे को दूध उचित मात्रा में पिलाना चाहिए| यह मात्रा न्छे के वज़न का 1/10 भाग पर्याप्त होती है|अधिक दूध पिलाने से बच्चा उसे हज़म नहीं कर पात और वह सफेत अतिसार का शिकार हो जाता है|कई बार बच्चा खूंटे से स्वयं खुलकर माँ का दूध अधिक पी जाता है और उसे दस्त लग जताए हैं|ऐसी अवस्था में बच्चे को एंटीबायोटिक्स अथवा कई अन्य एन्तिबैक्टीरीयल दवा देने कई आवश्यकता पड़ती है जिन्हें मुंह अथवा इंजेक्शन के दार दिया जा सकता है| बच्चे के शरीर में पानी की कमी हो जाने पर ओ.आर.एस. का घोल अथवा इंजेकशन द्वारा डेक्ट्रोज-सेलायं दिया जाता है| पेट के संक्रमण के उपचार के लिए गोबर के नमूने के परीक्षण करके उचित दवा का प्रयोग किया जा सकता है| कई बच्चों में कोक्सीडियोसिस से खुनी दस्त अथवा पेचिस लह जाते हैं जिसका उपचार कोक्सीडियोस्टेट दवा का प्रयोग किया जाता है|

    2.पेट में कीड़े (जूने) हो जाना:


    प्राय: गाय अथवा भैंस के बच्चों के पेट में कीड़े हो जाते हैं जिससे वे काफी क्म्जोत हो जाते है| नवजात बच्चों में ये कीड़े मन के पेट से ही आ जाते हैं| इसमें बच्चों को गस्त अथवा कब्ज लग जाते हैं| पेट के कीड़ों के उपचार के लिए पिपराजीन दवा का प्रयोग सर्वोतम हैं| गर्भवस्था कई अंतिम अवधि में गाय या भैंस को पेट में कीड़े मारने कई दवा देने से बच्चों मेंजन्म के समय पेट में कीड़े नहीं होते| बच्चों को लगभग 6 माह की आयु होने तक हर डेढ़ -दो महीनों के बाद नियमित रूप से पेट के कीड़े मारने कई दवा (पिपरिजिन लिक्किड अथवा गोली) अवश्य देनी चाहिए|

    3.नाभि का सडना (नेवल इल):


    कई बार नवजात नवजात बच्छे/बच्छियों की नाभि में संक्रमण हो जाता है जिससे उसकी नाभि सूज जाती है तथा उसमें पिक पड़ जात है| कभी कभी तो मक्खियों के बैठने से उसमें कीड़े(मेगिट्स)भी हो जाते है| इस बिमारी के होने पर नजदीकी पशुचिकित्सालय से इसका ठीक प्रकार से ईलाज कराना चाहिए अन्यथा कई और जटिलतायें उत्पन्न होकर बचे कई म्रत्यु होने का खतरा रहता है| बच्चे के पैदा होने के बाद, उसकी नाभि को शी स्थान से काट कर उसकी नियमित रूप से एंटीसेप्टिक ड्रेसिंग करने तथा इसे साफ स्थान पर रखने से इस बीमारी को रोका जा सकता है|

    4.निमोनियां:


    बच्चों का यदि खासतौर पर सर्दियों में पूरा ध्यान ना रखा जाए तो उसको निमोनिया रोग होने कई संभावना हो जाती है| इस बीमारी में बच्चे को ज्वर के साथ खांसी तथा सांस लेने में तकलीफ हो जाती है तथा वह दूध पीना बंद कर देता है| यदि समय पर इसका इलाज ना करवाया जाय तो इससे बच्चे की मृत्यु भी हो जाती है| एंटीबायोटिक अथवा अन्य रिगाणु निरोधक दवाईयों के उचित प्रयोग से इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है| जड़ों तथा बरसात के मौसम में बच्चों की उचित देख-भाल करके उन्हें इस बीमारी से बचाया जा सकता है|

    5.बछड़े/बछडियों का टायफड (साल्मोनेल्लोसिस):


    यह भयंकर तथा छुतदार रोग एक बैक्टीरिया द्वरा फैलता है| इसमें पशु को तेज़ बुखार तथा खुनी दस्त लग जाते हैं| इलाज के आभाव में मृत्यु डर काफी अधिक हो सकती है|इस बीमारी में एंटीबायोटिक्स अथवा एन्तिबैक्टीरीतल दवायें प्रयोक की जीती है| प्रभावित पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखकर उसका उपचार करना चाहिए| पशुशाला की यथोचित सफाई रख कर तथा बछड़े/बछडियों की उचित देख भाल द्वारा इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है|

    6.मुंह व खुर की बीमारी (फुट एंड माउथ डिजीज):


    बड़े उम्र के पशुओं में तेज़ बुखार होने के साथ-साथ मुंह व खुर में छाले व घाव होने के लक्षण पाए जाते हैं लेकिन बच्छे/बच्छियों में मुंह व खुर के लक्षण बहुत कम देखे जाते हैं| बच्चों में यह रोग उनके हृदय पर असर करता है जिससे थोड़े ही समय में उन्किम्रित्यु हो जाती है|हालांकि वायरस (विषाणु) से होने वाली इस बीमारी का कोई ईलाज नहीं है लेकिन बीमारी हो जाने पर पशु चिकित्सक की सलाह से बीमारी पशु को द्वितीय जीवाणु संक्रमण से अवश्य बचाया जा सकता है| यदि मुंह व खुर में घाव हो ती उन्हें पोटैशियम परमैगनेटके 0.1 प्रतिशत घोल से साफ करके मुंह में बोरो-ग्लिसरीन तथा खुरों में फिनायल व तेल लगाना चाहिए| रोग के नियन्त्रण के लिए स्वस्थ बच्चों को बीमार पशुओं से दूर रखना चाहिए तथा बीमार पशुओं की देखभाल करने वाले व्यक्ति को स्वस्थ पशुओं के पास नहीं आना चाहिए| बच्चों को सही समय पर रोग निरोधक टीके लगवाने चाहिए|बच्चों में इस बीमारी की रोकथाम के लिए पहला टिका एक माह,दूसरा तीन माह तथा तीसरा छ: माह की उम्र में लगाने चाहिए| इसके पश्चात हर छ:-छ: महीने बाद नियमित रूप में यह टिका लगवाना चाहिए|

पशु के पेट के कीड़े कैसे मारे?

महत्वपूर्ण बातें • हर तीन महीने पर पशुओं को पेट के कीड़े (कृमिनाशक) डीवेरमैक्स की दवा दें। पशुओं के गोबर की जांच कराने के बाद ही पेट के कीड़ों की दवाई दें। जांच के लिए पशु के गोबर को एक छोटी डिब्बी में इकट्ठा करें। बीमार और कमजोर पशुओं को पशुचिकित्सक की सलाह लेकर ही कृमिनाशक की दवा दें।

गाय के कीड़े कैसे मारे?

पशुओं की पेट में कीड़ो से सुरक्षा कैसे की जाय?.
पशुओं को हर तीन महीने में एक बार पेट के कीड़ें की दवा अवश्य दी जानी चाहिए।.
नियमित रूप से गोबर की जांच कराते रहे। ... .
पशुओं में बीमारियों के टीकाकरण से पहले कृमिनाशक दवा अवश्य दें।.
एक ही कृमिनाशक दवा को बार बार ना दें अन्यथा कीड़े उस दवा के प्रति प्रतिरक्षा विकसित कर सकते हैं।.

पेट के कीड़े मारने की दवा कितनी बार लेनी चाहिए?

एल्बेंडाजोल की गोली स्वास्थ्य विभाग द्वारा वर्ष में दो बार दी जाती है।

पेट में कीड़े होने का क्या कारण है?

पेट में कीड़े होने की कई वजह होती हैं पर मुख्य रूप से यह दूषित खान-पान के सेवन की वजह से होता है जैसे- गलत खान-पान, गन्दे हाथों से भोजन करना, खुले में रखे हुए भोजन को खाना, अधिक मीठा खाना, दिन भर सिर्फ आराम करना और परिश्रम न करने से पेट में कीड़े हो जाते हैं