दांतों और हड्डियों की संरचना के लिए आवश्यक तत्व क्या है? - daanton aur haddiyon kee sanrachana ke lie aavashyak tatv kya hai?

दूध से बना पनीर हम सभी में से बहुत से लोगों का प्रिय खाद्य है। पनीर की केवल सब्जी ही नहीं बनाई जाती बल्कि यह सलाद के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है। दूध में पाए जाने वाले समस्त पोषक तत्व इसमें पाए जाते हैं। यह कई तरह से हमारी सेहत के लिए फायदेमंद होता है। पनीर खाने से हमारे दांतों की सेहत बेहतर बनी रहती है। इसके अलावा यह हड्डियों की मजबूती में, तनाव कम करने में, पाचन शक्ति बढ़ाने सहित कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी फायदों से भरपूर होता है। तो चलिए जानते हैं कि पनीर खाने के फायदे क्या क्या हैं।

दातों को बनाए मजबूत – दांतो को मजबूत बनाने के लिए कैल्शियम बहुत जरूरी है। पनीर में कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। पनीर में दांतों को नुकसान पहुंचाने वाला लैक्टोस बहुत कम मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा पनीर सेल्विया के प्रवाह को बढ़ाता है और दांतों से एसिड और शर्करा को साफ करता है।

तनाव कम करने में मददगार – अगर आपको रात में नींद नहीं आती या फिर आप तनावग्रस्त हैं तो सोने से पहले खाने में पनीर का सेवन करें। इससे नींद अच्छी आएगी। ऐसा इसलिए क्योंकि पनीर में ट्रिप्टोफन एमिनो एसिड पाया जाता है, जो तनाव कम करने और नींद बढ़ाने में मददगार होता है।

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हड्डियां होंगी मजबूत – पनीर में मौजूद कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाता है। पनीर में विटामिन ए, फास्फोरस और जिंक पाए जाते हैं। साथ ही इसमें विटामिन बी भी पाया जाता है जो शरीर को कैल्शियम प्रदान करता है। खासतौर से बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों की हड्डियों को मजबूत करने में यह काफी मददगार होता है।

पाचन शक्ति रखे दुरुस्त – पनीर का सेवन करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। ऐसे में बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है।

गठिया से राहत दिलाए – कैल्शियम की कमी की वजह से ही गठिया रोग होता है। पनीर इस रोग से पीड़ितों के लिए सबसे अच्छा उपाय है। इस बीमारी का इलाज प्रोटीन, कैल्शियम और उच्च मात्रा में विटामिन और मिनरल्स का सेवन है और ये सभी चीजें पनीर में मौजूद होती है।

हमारे शरीर में कई खनिज लवण पाए जाते है जिनमे से फास्फोरस भी एक खनिज है | शरीर के विकास और वर्द्धि के लिए अन्य खनिज लवणों की तरह फास्फोरस की भी अत्यंत आवश्यकता होती है | मानव शरीर में खनिजों में कैल्शियम सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है और कैल्शियम के बाद अगर देखा जाए तो दूसरा नम्बर फॉस्फोरस का ही आता है | शरीर के कुल भार का 1% भाग फास्फोरस होता है | यह शरीर की प्रत्येक कोशिकाओं में उपस्थित रहता है और कोशिकाओं के केंद्र में रहकर यह इनके विभाजन में सहायक होता है | दांतों और हड्डियों के निर्माण में फॉस्फोरस का 80% भाग कैल्शियम के साथ मिलकर कैल्शियम फॉस्फेट बनाता है | कैल्शियम फॉस्फेट ही हड्डियों और दांतों के निर्माण में उपयोगी होता है | एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में लगभग 400 से 700 ग्राम फास्फोरस रहता है |

दांत मुंह (या जबड़ों) में स्थित छोटे, सफेद रंग की संरचनाएं हैं जो बहुत से कशेरुक प्राणियों में पाया जाता

है। दांत, भोजन को चीरने, चबाने आदि के काम आते हैं। कुछ पशु (विशेषत: मांसभक्षी) शिकार करने एवं रक्षा करने के लिये भी दांतों का उपयोग करते हैं। दांतों की जड़ें मसूड़ों से ढ़की होतीं हैं। दांत, अस्थियों (हड्डी) के नहीं बने होते बल्कि ये अलग-अलग घनत्वकठोरता के ऊतकों से बने होते हैं।

मानव मुखड़े की सुंदरता बहुत कुछ दंत या दाँत पंक्ति पर निर्भर रहती है। मुँह खोलते ही 'वरदंत की पंगति कुंद कली' सी खिल जाती है, मानो 'दामिनि दमक गई हो' या 'मोतिन माल अमोलन' की बिखर गई हो। दाड़िम सी दंतपक्तियाँ सौंदर्य का साधन मात्र नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिये भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। दाँत डेंटाईन के बने होते हैं।

कार्य के आधार पर चार प्रकार के दांत

दांतों की वैज्ञानिक गिनती

आदमी को दो बार और दो प्रकार के दाँत निकलते हैं -- दूध के अस्थायी दांत तथा स्थायी दांत। दूध के दाँत तीन प्रकार के और स्थायी दाँत चार प्रकार के होते हैं। इनके नाम हैं-

  • (1) छेदक या कृंतक (incisor) -- काटने का दाँत,
  • (2) भेदक या रदनक (canine)-- फाड़ने के दाँत,
  • (3) अग्रचर्वणक (premolar) और
  • (4) चर्वणक (molar) -- चबाने के दाँत।

ये चार प्रकार के होते हैं। मुख में सामने की ओर या जबड़ों के मध्य में छेदक दाँत होते हैं। ये आठ होते हैं, चार ऊपर, चार नीचे। इनके दंतशिखर खड़े होते हैं। रुखानी के आकार सदृश ये दाँत ढालू धारवाले होते हैं। इनका समतल किनारा काटने के लिये धारदार होता है। इनकी ग्रीवा सँकरी, तथा मूल लंबा, एकाकी, नुकीला, अनुप्रस्थ में चिपटा और बगल में खाँचेदार होता है। भेदक दाँत चार होते हैं, छेदकों के चारों ओर एक एक। ये छेदक से बड़े और तगड़े होते हैं। इनका दंतमूल लंबा और उत्तल, शिखर बड़ा, शंकुरूप, ओठ का पहलू उत्तल और जिह्वापक्ष कुछ खोखला और खुरदरा होता है। इनका छोर सिमटकर कुंद दंताग्र में समाप्त होता है और यह दंतपंक्ति की समतल रेखा से आगे निकला होता है। भेदक दाँत का दंतमूल शंकुरूप, एकाकी एवं खाँचेदार होता है। अग्रचर्वणक आठ होते हैं और दो-दो की संख्या में भेदकों के पीछे स्थित होते हैं। ये भेदकों से छोटे होते हैं। इनका शिखर आगे से पीछे की ओर सिमटा होता है। शिखर के माथे पर एक खाँचे से विभक्त दो पिरामिडल गुलिकाएँ होती हैं। इनमें ओठ की ओरवाली गुलिका बड़ी होती है। दंतग्रीवा अंडाकार और दंतमूल एक होता है (सिवा ऊपर के प्रथम अग्रचर्वणक के, जिसमें दो मूल होते हैं)। चर्वणक स्थायी दाँतों में सबसे बड़े, चौड़े शिखरयुक्त तथा चर्वण क्रिया के लिये विशेष रूप से समंजित होते हैं। इनकी संख्या 12 होती है -- अग्रचर्वणकों के बाद सब ओर तीन, तीन की संख्या में। इनका शिखर घनाकृति का होता है। इनकी भीतरी सतह उत्तल और बाहरी चिपटी होती है। दंत के माथे पर चार या पाँच गुलिकाएँ होती हैं। ग्रीवा स्पष्ट बड़ी और गोलाकार होती है। प्रथम चर्वणक सबसे बड़ा और तृतीय (अक्ल दाढ़) सबसे छोटा होता है। ऊपर के जबड़े के चर्वणकों में तीन मूल होते हैं, जिनमें दो गाल की ओर और तीसरा जिह्वा की ओर होता है। तीसरे चर्वणक के सूत्र बहुधा आपस में समेकित होते हैं। नीचे के चर्वणकों में दो मूल होते हैं, एक आगे और एक पीछे।

रचना की दृष्टि से ये स्थायी दाँत से ही होते हैं, सिवा इसके कि आकार में अपेक्षाकृत छोटे होते हैं। इनकी ग्रीवा अधिक सँकरी होती है। द्वितीय चर्वणक दाँत सबसे बड़ा होता है। इसके दंतमूल भी छोटे और अपसारी होते हैं, क्योंकि इन्हीं के बीच स्थायी दाँतों के अंकुर रहते हैं। दूध के चर्वणकों का स्थान स्थायी अग्रचर्वणक लेते हैं।

दाँतों की संख्या और प्रकार बताने के लिये दंतसूत्र का उपयोग होता है, यथा

च अ भ छ छ भ अ च
3 2 1 2 2 1 2 3
---------------------------
3 2 1 2 2 1 2 3

इसमें क्षैतिज रेखा के ऊपर ऊपरी जबड़े के दाँत और रेखा के नीचे निचले जबड़े के दिखाए हैं। शीर्ष में दाँई और बाँईं ओर वाले अक्षर—च, अ, भ और छ -- चर्वणक, अग्रचर्वणक, भेदक और छेदक प्रकार के दाँतों के तथा उनके नीचे के अंक उनकी संख्या के, सूचक हैं।

आदमी के दूध के दाँत 20 होते हैं, यथा

च भ छ छ भ च
2 1 2 2 1 2
-------------------
2 1 2 2 1 2

इनमें चर्वणक का स्थान आगे चलकर स्थायी अग्रचर्वणक ले लेते हैं। स्थायी दाँतों का सूत्र है :

च अ भ छ छ भ अ च
3 2 1 2 2 1 2 3
---------------------------------
3 2 1 2 2 1 2 3

अर्थात कुल 32 दाँत होते हैं। इनमें चारों छोरों पर स्थित अंतिम चर्वणकों (M3) को अकिलदाढ़ भी कहते हैं।

दन्तविकास (Tooth development या odontogenesis) एक जटिल प्रक्रिया है जिसके द्वारा दाँतों का निर्माण होता है और वे बाहर निअकलकर मुंह में दिखाई देने लगते हैं। गर्भस्थ जीवन के छठे सप्ताह में मैक्सिलरी और मैंडिब्युलर चापों को ढकनेवाली उपकला में छिछले दंत खूंड़ बनते हैं। खूंड के बाहर की उपकला ओठ और भीतर के दंतांकुर बनाती है। दंतास्थि, दंतमज्जा और सीमेंट मेसोडर्म से बनते हैं। अन्य भाग एपिडर्म से।

जब दंततंतु पर्याप्त मात्रा में चूने के लवणों से संसिक्त हो बाह्य जगत्‌ के दबाव उठाने योग्य हो जाते हैं, तब मसूड़ों से बाहर उनका उद्भव (eruption) होता है। दंतोद्भेदन की अवधि निश्चित है और आयु जानने का एक आधार है। यह क्रम इस प्रकार है --

नीचे के मध्य छेदक 6 से 9 मास,

ऊपर के छेदक 8 से 10 मास,

नीचे के पार्श्वछेदक 15 से 21 मास,

प्रथम चर्वणक 15 से 21 मास,

भेदक 16 से 20 मास,

द्वितीय चर्वणक 20 से 24 मास .......... 30 मास तक,

अर्थात्‌ छठे महीने से दाँत निकलने लगते हैं और ढाई वर्ष तक बीस दाँत आ जाते हैं। होल्ट ने लिखा है कि एक वर्ष के बालक में छ:, डेढ़ वर्ष में बारह और दो वर्ष में बीस दाँत मिलते हैं।

इनका कैल्सीकरण इस क्रम से होता है --

प्रथम चर्वणक : जन्म के समय,

छेदक और भेदक : प्रथम छह मास में,

अग्रचर्वणक : तृतीय या चौथे वर्ष,

दवितीय चर्वणक : चौथे वर्ष, और

तृतीय चर्वणक : दसवें वर्ष के लगभग।

ऊपर के दाँतों में कैल्सीकरण कुछ विलंब से होता है। स्थायी दंतोद्भेदन का समयक्रम इस प्रकार है :

प्रथम चर्वणक छठे वर्ष,

मध्य छेदक सातवें वर्ष,

पार्श्व छेदक आठवें वर्ष,

प्रथम अग्रचर्वणक नौवें वर्ष,

द्वितीय अग्रचर्वणक दसवें वर्ष,

भेदक ग्यारहवें से बारहवें वर्ष,

द्वितीय चर्वणक बारहवें से तेरहवें वर्ष तथा

तृतीय चर्वणक सत्रहवें से पच्चीसवें वर्ष।

छठे वर्ष, दूध के दाँतों का गिरना आरंभ होने तक, प्रत्येक बालक के जबड़ों में 24 दाँत हो जाते हैं -- दस दूध के और सभी स्थायी दाँतों के अंकुर (तृतीय चर्वणक को छोड़कर)।

छह वर्ष के बच्चे के दाँत ये निचले जबड़े में दूध के दाँत हैं। जबड़े के भीतर के स्थायी दाँत रेखाच्छादित दिखाए गए हैं।

दांतों और हड्डियों की संरचना के लिए आवश्यक तत्व क्या है? - daanton aur haddiyon kee sanrachana ke lie aavashyak tatv kya hai?

दाँत के दो भाग होते हैं। मसूड़े (दंतवेष्टि) के बाहर रहनेवाला भाग दंतशिखर कहलाता है और जबड़े के उलूखल में स्थित, गर्त में संनिहित अंश को दंतमूल कहते हैं। शिखर और मूल का संधिस्थल दंतग्रीवा है। दाँत का मुख्य भाग दंतास्थित (डेंटीन, dentine) है। दंतास्थि विशेष रूप से आरक्षित न रहे तो घिस जाय, अतएव दंतशिखर में यह एनैमल नामक एक अत्यंत कड़े पदार्थ से ढकी रहती है। दंतमूल में दंतास्थित का आवरण सीमेंट करती है। सीमेंट और जबड़े की हड्डी को बीच दंतपर्यास्थित होती है, जो दाँत को बाँधती भी है और गर्त में दाँत के लिये गद्दी का भी काम करती है। दंतास्थि के अंदर दंतमज्जा होती है, जो उस खोखले हिस्से में रहती है जिसे दंतमज्जागुहा कहते हैं। इस गुहा में रुधिर और लसिकावाहिकाएँ तथा तंत्रिकाएँ होती हैं। ये दंतमूल के छोर पर स्थित एक छोटे से छिद्र से दाँत में प्रवेश करती हैं। दाँत एक जीवित वस्तु है, अतएव इसे पोषण और चेतना की आवश्यकता होती है। तंत्रिकाएँ दाँत को स्पर्शज्ञान प्रदान करती हैं।

एनैमल दाँत का सबसे कठोर और ठोस भाग है। यह दंतशिखर को ढकता है। चर्वणतल पर इसकी परत सबसे मोटी और ग्रीवा के निकट अपेक्षाकृत पतली होती है। एनैमल की रचना षट्कोण प्रिज़्मों से होती है, जो दंतास्थि से समकोण पर स्थित होते हैं। एनैमल में चूने के फॉस्फेट, कार्बोनेट, मैग्नीशियम फास्फेट तथा अल्प मात्रा में कैलिसयम क्लोराइड होते हैं। दंतास्थित में घना एकरूप आधारद्रव्य, मेट्रिक्स (matrix) और उसमें लहरदार तथा शाखाविन्याससंयुक्त दंतनलिकाएँ होती हैं। ये नलिकाएँ एक दूसरे से समानांतर होती हैं और अंदर की ओर दंतमज्जागुहा में खुलती हैं। इनके अंदर दंत तंतु के प्रवर्ध होते हैं। दंतगुहा में जेली सी मज्जा भरी होती है। इसमें ढीला संयोजक ऊतक होता है, जिसमें रक्तवाहिका और तंत्रिकाएँ होती हैं। गुहा की दीवार के पास डेंटीन कोशिकाओं की परत होती है और इन्हीं कोशों के तंतु दंतनलिका में फैले रहते हैं। सीमेंट की रचना हड्डी सी होती है, पर इसमें रुधिरवाहिकाएँ नहीं होतीं।

दाँत स्वस्थ रहें, इसके लिये उनकी देख रेख आवश्यक है। संक्षेप में दंतरक्षा की महत्वपूर्ण बातें ये हैं :

  • सुबह शाम दंतमंजन या ब्रश से सफाई, भोजन के बाद मुँह धोना और दाँतों की सफाई, मसूड़ों की मालिश।
  • टूथब्रश रखने का तरीका सीखना चाहिए और एक मास बाद ब्रश बदल देना चाहिए।
  • दाँत खोदना खराब और कुछ भी खाने के बाद कुल्ला करना अच्छी आदत है।
  • दंतस्वास्थ्य के लिये संतुलित आहार और अच्छा पोषण, विशेषकर विटामिन ए, डी, सी तथा फ्लोरीनवाले भोजनों का उपयोग जरूरी है।
  • दंतव्यायाम के लिये कड़ी चीजें, जैसे गन्ना, कच्ची सब्जियाँ, फल आदि खाना लाभप्रद है।
  • बच्चों के दाँत निकलते समय स्वास्थ्य की गड़बड़ी पोषण के दोष से और उपसर्गजन्य होती है।
  • माता का आहार अच्छा होना आवश्यक है। स्वस्थ दन्तविकास के लिये स्तनपान आवश्यक है, इससे जबड़े, मुँह और दाँत की बनावट पर प्रभाव पड़ता है।
  • दंत स्वास्थ्य का मूल सूत्र है कि दंतचिकित्सक के पास दाँत उखड़वाने जाने से अच्छा है, दंत स्वस्थ बनाए रखने के लिये उससे मिलते रहना।

स्वस्थ व्यक्ति में मुँह बंद करने पर दाढ़ के दाँत एक दूसरे पर बैठ जाते हैं और ऊपर दाँतों की आगे की पंक्ति निचली दंतपंक्ति से तनिक आगे रहती है। बहुत से लोगों में ऊपर के दाँत ओठ से बाहर निकले होते हैं, जो रूप और व्यक्तित्व दोनों ही नष्ट करते हैं। इसके अनेक कारणों में स्थायी दंतोद्भेन के समय अंगूठा चूसना, देखरेख में दोष, दूध के दाँत के गिरने में जल्दी या विलंब, स्थायी दाँत गिरने पर नकली दाँत न लगाना आदि कारण हैं। दाँतों के रूप-दोष के लिये दंतचिकित्सा में एक अलग शाखा है।

दंतक्षरण (Dental Caries, दाँत में कीड़ा लगना)[संपादित करें]

यह जुकाम सा ही प्रचलित रोग है। इससे दाँत खोखले हो जाते हैं, उनमें खाना भर जाता है, जिससे दर्द होता है, पानी लगता है। दर्द के कारण दाँत काम नहीं करते, उनपर मैल (टारटर) जमने लगता है और अंदर फँसे भोजन के कण सड़ते हैं। मसूड़ों में सूजन और पीप आने लगती है। दाँत की जड़ में फोड़ा भी बन सकता है। इस स्थिति की शीघ्र चिकित्सा आवश्यक है।

गर्भावस्था में माता को संतुलित भोजन न मिलने पर, या माता को उपदंश रोग होने पर दंतरचना दोषपूर्ण हो जाती है।

नकली दाँत तथा बचपन के दांत[संपादित करें]

दाँत गिर जाने के बाद उनके स्थान पर नकली दाँत (denture) लगाए जा सकते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं, एक तो पूरे दाँत और दूसरे दंतशिखर मात्र। नकली दाँत बनाने का प्रचलन बहुत पुराना है। पहले हड्डी, हाथी दाँत, हिप्पो या आदमी के दाँत को सोने या हाथी दाँत के आधार पर बैठाकर लगाते थे। 18वीं शताब्दी से पोर्सिलेन के दाँतों का प्रचलन आरंभ हुआ। सन्‌ 1860 में आधार के लिये वल्कनाइज़्ड रबर का उपयोग होने लगा। अब तो प्लास्टिक के दाँत एक्रीलिकरेज़िन प्लास्टिक के ही आधार पर स्थापित किए जाते हैं। इन्हें भी देखें दांतो की सफाई कैसे करनी चाहिए

दांतों और हड्डियों में कौन सा तत्व पाया जाता है?

दांतों और हड्डियों में पाया जाने वाला तत्व कैल्शियम और फॉस्फोरस है। यह एक प्रकार का संयोजी ऊतक है।

कौन से खनिज हड्डियों और दांतों के लिए महत्वपूर्ण हैं?

कैल्शियम : कैल्शियम हमारे शरीर में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्व है। शरीर के 99 प्रतिशत कैल्शियम का संचय हड्डियों में होता है, जबकि शरीर की विभिन्न क्रियाओं में केवल 1 प्रतिशत कैल्शियम का ही उपयोग किया जाता है। इसलिये हड्डियों के स्वास्थ्य के लिये उचित मात्रा में कैल्शियम का सेवन आवश्यक है

हड्डियों और दांतों में कौन सा प्रोटीन पाया जाता है?

Solution : प्रोटीन जो अस्थि में पायी जाती है, ओसीन के नाम से जानी जाती है, जो अस्थि के निर्माण के समय सक्रिय होती है।

हड्डियों और दांतों की मजबूती के लिए क्या आवश्यक है?

ब्लड क्लॉटिंग, हड्डी और हार्ट के लिए विटामिन K सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व है. यह शरीर में ऊर्जा को बैलेंस करता है और दांत तथा हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है. हालांकि इसकी थोड़ी ही मात्रा शरीर के लिए जरूरी है लेकिन इसकी कमी से कई बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है.