गणित शिक्षक के लिए सेवाकालीन कार्यक्रम के प्रकार - ganit shikshak ke lie sevaakaaleen kaaryakram ke prakaar

गणित शिक्षक के लिए सेवाकालीन कार्यक्रम के प्रकार - ganit shikshak ke lie sevaakaaleen kaaryakram ke prakaar

अध्यापकों के सेवाकालीन शिक्षा कार्यक्रम | programmes for In-service Education of Teachers in Hindi

  • अध्यापकों के सेवाकालीन शिक्षा कार्यक्रम
    • (1) कार्यगोष्ठी (Seminar)- 
    • (2) कार्यशालाएँ (Workshops) –
    • (3) अध्ययन समूह (Study Groups)-
    • (4) रिफ्रेशर कोर्स (Refresher Course)-
    • (5) व्यावसायिक लेखन का अध्ययन (Study of Professional Writings)-
    • (6) सम्मेलन (Conferences)-
    • (7) स्कूल कार्यक्रम (School Programmes) –
    • (8) विविध कार्यक्रम (Miscellaneous Programmes)-
      • शिक्षाशास्त्र –  महत्वपूर्ण लिंक

अध्यापकों के सेवाकालीन शिक्षा कार्यक्रम

(Programmes for In-service Education of Teachers)

सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा के निम्नलिखित विभिन्न कार्यक्रम हैं-

(1) कार्यगोष्ठी (Seminar)- 

सभी से सम्बन्धित समस्या के पूर्णरूपेण निष्कर्ष निकालने के लिए कार्यगोष्ठी बहुत सहायक है। कार्यगोष्ठियों का आयोजन शिक्षा के किसी भी रूप से सम्बन्धित अनेक शैक्षिक समस्याओं पर किया जा सकता है। पहले से ही एक कार्यपत्र (working paper) तैयार कर लिया जाता है और इसे भाग लेने वालों को भेज दिया जाना चाहिए। तब इसे खुले अधिवेशन में पढ़ा जाता है और इस पर विवेचन कर लिया जाता है । समस्या के विभिन्न पक्षों पर विचार करने के लिए अनेक कमेटियाँ बना दी जाती हैं। कमेटियों की रिपोर्ट आम सभा (खुले सदन) में पढ़ी जाती है और सुधार आदि के सुझाव के लिए उन पर विवेचन किया जाता। वाचन के रूप में भी कार्य गोष्ठियों का प्रबन्ध किया जा सकता है। कुछ पत्र तैयार किये जाते हैं और तब पढ़े जाते हैं तथा प्रकाशित किये जाते हैं।

शिक्षा के उद्देश्यों के पुनर्निर्धारण, पाठ्यक्रम सुधार, नयी शिक्षण विधियाँ, प्रशासन, पर्यवेक्षण (Supervision) तथा वित्तीय सहायता और शिक्षा के अन्य पक्षों पर भी कार्य गोष्ठियों का आयोजन किया जा सकता है। कार्य गोष्ठियाँ किसी विशिष्ट समस्या के गहन विचार के लिए अवसर प्रदान करती हैं। भाग लेने वाले व्यक्ति मिलकर रहते हैं और इकट्ठे खाते हैं जो अनौपचारिक सम्बन्धों को प्रेरित करते हैं और मैत्रीपूर्ण विवेचन तथा विचारों को विनिमय का अवसर प्रदान करते हैं। कार्य गोष्ठियाँ भाग लेने वालों के व्यावसायिक दृष्टिकोण को विशाल बनाती हैं।

(2) कार्यशालाएँ (Workshops) –

कार्यशालाएँ कार्यगोष्ठी से भिन्न होती हैं। कार्यशालाओं में क्रियात्मक मार्ग अपनाया जाता है। सभी भाग लेने वाले सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। कार्यशालाओं का आयोजन कक्षा भवन शिक्षण की क्रियात्मक समस्याओं पर गहन रूप से विचार करने के लिए किया जाता है। व्यक्तिगत अध्ययन तथा कार्य के लिए स्वतन्त्र समय दिया जाता है। सहकारी समूह कार्यशालाओं के लिए प्रचुर अवसर किसी के साथियों द्वारा चुनौती देने का अवसर होता है। भाग लेने वाले अपने अनुभवों से उठने वाली समस्याओं का गहन अध्ययन करते हैं।

कार्यशालाओं का आयोजन पाठ योजना, पाठ्यक्रम के निर्माण तथा परीक्षणों के निर्माण पर किया जा सकता है। प्रत्येक भाग लेने वाले को कुछ कार्य करने के लिए दिया जाता है। कार्यशाला की प्रमुख उपयोगिता, एक या दो पाठ-योजनाएँ बनाने या किसी विशिष्ट विषय अथवा किसी विशिष्ट श्रेणी के लिए सिलेबस/पाठ्यक्रम बनाने में या किसी स्कूल के विषय में उपलब्धि परीक्षण (Achievement test) बनाने में प्रत्याशित है। प्रत्येक भाग लेने वाले के कार्य को सबके लिए उपयोगी बनाने के लिए, सभी भाग लेने वालों के सामने प्रस्तुत किया जाता है।

(3) अध्ययन समूह (Study Groups)-

विभिन्न विषयों के अध्यापक एक अध्ययन समूह बना सकते हैं जिसकी बैठक सप्ताह अथवा पन्द्रह दिन में एक बार हो सकती है। विचार-विमर्श के लिए कुछ सामान्य रुचि वाले विषयों को लिया जा सकता है। उप-विषय का चुनाव यथासम्भव इस अध्ययन समूह के अध्यापकों की व्यावहारिक आवश्यकताओं तथा व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर किया जाये। विचार-विमर्श व्यावहारिक क्रिया की ओर अग्रसर होना चाहिए । अध्ययन समूह शैक्षिक योजनाओं के बनाने में सहायता कर सकते हैं।

(4) रिफ्रेशर कोर्स (Refresher Course)-

रिफ्रेशर कोर्स बड़े प्रभावशाली ढंग से अध्यापकों को अन्त: सेवा शिक्षा प्रदान करते हैं। इनका उद्देश्य अध्यापकों को अपने विषय तथा शिक्षा के सिद्धान्त एवं प्रयोग में नये परीक्षणों के साथ-साथ चलने के योग्य बनाना है। इनका आयोजन स्कूल विषयों तथा नयी शिक्षण प्रणालियों के सन्दर्भ में किया जा सकता है। विशेषज्ञ, अध्यापकों के लाभ के लिए अपनी सेवाएं अर्पित करते हैं। इन कार्यक्रमों में भाग लेने से अध्यापकों की कार्यक्षमता बढ़ती है जो वैसे अपने विषयों तथा शिक्षण विधियों में हुए सुधारों से अनभिज्ञ रहते हैं अथवा पिछड़े रहते हैं।

(5) व्यावसायिक लेखन का अध्ययन (Study of Professional Writings)-

अध्यापक नवीन शोध-उपलब्धियों (Research Findings) की जानकारी प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा अनुसन्धान तथा प्रशिक्षण परिषद (N.C.E.R.T.) के तथा विश्वविद्यालयों के प्रसारण सेवाएं विभागों के प्रकाशनों का अध्ययन कर सकते हैं। वे अपने विषयों, कला तथा विज्ञान शिक्षण में नवीनतम विकासों पर पुस्तकों का अध्ययन कर सकते हैं।

(6) सम्मेलन (Conferences)-

अध्यापकों के सम्मेलनों का संगठन व्यावहारिक रुचि वाले विषयो के लिए किया जा सकता है। ये विषय हैं—पाठ्यक्रम का संशोधन, पाठ्य-पुस्तकों का चुनाव, सफल शैक्षिक परीक्षणों के परिणाम, पिछड़े हुए बालकों का निर्देशन तथा दैनिक शिक्षण से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित इसी प्रकार की समस्याएँ।

विशिष्ट विषयों के अध्यापन पर विचार करने के लिए भी सम्मेलन बुलाया जा सकता है। कुछ प्रमु विषय इस प्रकार है-सामाजिक अध्ययन, साधारण-विज्ञान अथवा भाषाएँ। ये सम्मेलन,प्रान्त, जिला अथवा क्षेत्र स्तर पर आयोजित किये जा सकते हैं।

(7) स्कूल कार्यक्रम (School Programmes) –

क्लब मीटिंग, अलग विषयों की मीटिंग (सभाऐं) अध्ययन मण्डल (Study Circles), स्कूल में प्रदर्शनियाँ, प्रयोगात्मक प्रोजेक्ट, फिल्म शो, प्रदर्शन पाठ, प्रसार-भाषण (Extension Lectures) तथा पुस्तकालय सेवाएँ भी अध्यापकों को सेवाकालीन शिक्षा प्रदान कर सकते हैं। इन कार्यक्रमों का लाभ यह है कि अध्यापक स्कूल से अनुपस्थित नहीं हो सकते।

(8) विविध कार्यक्रम (Miscellaneous Programmes)-

अध्यापकों के व्यावसायिक विकास (अभिवृद्धि) के लिये शैक्षिक भ्रमण (Educational Tours), शैक्षिक महत्व के स्थानों को देखना, अध्यापक विनिमय कार्यक्रम (Teacher-exchange Programmes) आदि का संगठन किया जा सकता है।

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