चीनी क्रांति के जनक कौन थे?

माओ, चीनी क्रान्तिकारी, राजनैतिक विचारक और साम्यवादी (कम्युनिस्ट) दल के सबसे बड़े नेता थे जिनके नेतृत्व में चीन की क्रान्ति सफल हुई। उन्होंने जनवादी गणतन्त्र चीन की स्थापना (सन् 1949) से मृत्यु पर्यन्त (सन् 1973) तक चीन का नेतृत्व किया। मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा को सैनिक रणनीति में जोड़कर उन्होंने जिस सिद्धान्त को जन्म दिया उसे माओवाद नाम से जाना जाता है|

वर्तमान में कई लोग माओ को एक विवादास्पद व्यक्ति मानते हैं परन्तु चीन में वे राजकीय रुप में महान क्रान्तिकारी, राजनैतिक रणनीतिकार, सैनिक पुरोधा एवं देशरक्षक माने जाते हैं। चीनियों के अनुसार माओ ने अपनी नीति और कार्यक्रमों के माध्यम से आर्थिक, तकनीकी एवं सांस्कृतिक विकास के साथ देश को विश्व में प्रमुख शक्ति के रुप में ला खडा करने में मुख्य भूमिका निभाई। वे कवि, दार्शनिक, दूरदर्शी महान प्रशासक के रुप में गिने जाते हैं।

लेकिन कुछेक बातें इसके विपरीत भी हैं। माओ के 'ग्रेट लीप फॉरवर्ड' (Great Leap Forward) और 'सांस्कृतिक क्रांति' नामक सामाजिक तथा राजनीतिक कार्यक्रमों के कारण देश में गंभीर अकाल पैदा हुए थे। उनके कार्यक्रमों के क्रियान्यन के दौरान करोड़ों चीनी लोगों की मौत भी हुई। इसलिए  कहा जाता है कि उनके विचारों ने चीनी समाज, अर्थव्यवस्था तथा संस्कृति को बहुत ठेस पहुंचाई।  

ले‍‍‍क‍िन इन सारी खूबियों और खामियों के बावजूद माओ संसार के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में गिने जाते हैं। टाइम पत्रिका के अनुसार 20वीं सदी के 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में माओ भी गिने जाते हैं। माओ का जन्म 26 दिसम्बर 1893 में हूनान प्रान्त के शाओशान कस्बे में हुआ। उनके पिता एक ग़रीब किसान थे जो आगे चलकर एक धनी कृषक और गेहूं के व्यापारी बन गए। 8 साल की उम्र में माओ ने अपने गांव की प्रारम्भिक पाठशाला में पढ़ना शुरू किया लेकिन 13 की आयु में अपने परिवार के खेत पर काम करने के लिए पढ़ना छोड़ दिया। 

लेकिन बाद में खेती छोड़कर वे हूनान प्रान्त की राजधानी चांगशा में माध्यमिक विद्यालय में पढ़ने गए। जिन्हाई क्रांति के समय माओ ने हूनान के स्थानीय रेजीमेंट में भर्ती होकर क्रान्तिकारियों की तरफ से लड़ाई में भाग लिया और राजशाही को समाप्त करने में अपनी भूमिका निभाई। चिंग राजवंश के सत्ताच्युत होने पर वे सेना छोड़कर पुनः विद्यालय गए। बाद में, माओ-त्से-तुंग ने च्यांग काई शेक की फौज को हराकर 1949 में चीन की मुख्य भूमि में साम्यवादी शासन की स्थापना की।

माओ इतने ताकतवर थे कि कोई उनका विरोध करने की हिम्मत नहीं करता था और जिसने भी उनका विरोध करने की हिम्मत की उसे माओ ने आजीवन कारावास में डाल दिया। वैसे भी चीन में 1949 से आज तक लोगों को विचार-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं मिली है। इसीलिए चीनी नेताओं या वहां की मुख्य घटनाओं के बारे में सच्ची खबर बाहर की दुनिया को नहीं के बराबर मिलती है।

जब से चीन में कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आई, सारा राजकाज अत्यन्त ही गुपचुप तरीके से चलता रहा है। बाहर की दुनिया को उसके बारे में कोई खबर नहीं होती है। सच कहा जाए तो बाहर की दुनिया को न तो माओ-त्से-तुंग के बारे में कभी कोई खबर मिली न ही उनके बाद सत्ता संभा लने वाले देंग शियाओ‍ पिंग के बारे में। 1976 में माओ-त्से-तुंग की मृत्यु हो गई उसके बाद देंग एक अत्यंत ही ताकतवर नेता होकर उभरे और 1978 आते-आते उन्होंने चीन का प्रशासन अपने मजबूत हाथों में ले लिया और सच कहा जाए तो उन्होंने आर्थिक मामलों में चीन का कायापलट कर दिया। 

माओ सही मायने में एक तानाशाह थे और इस बात को कभी बर्दाश्त नहीं कर सकते थे कि कोई उनके विचारों से भिन्न विचार रखे। देंग ने यह समझ लिया कि चीन में कोई भी छोटा या बड़ा नेता माओ-त्से-तुंग का विरोध कर जिंदा नहीं रह सकता है। धीरे-धीरे वे फिर से माओ के प्रिय पात्र बन गए। 1978 में जब देंग चीन के सर्वशक्तिमान नेता बनकर उभरे तब उन्होंने देश की जनता से कहा कि वे चीन का कायाकल्प करना चाहते हैं। राजनीतिक और आर्थिक दोनों मामलों में। परन्तु ज्यादा आवश्यक है कि आर्थिक मामलों में चीन का कायाकल्प हो क्योंकि चीन संसार के अत्यन्त ही गरीब देशों में से एक है। 

उन्होंने आर्थिक मामलों में उदारवादी रवैया अपनाया और देश के निजी उद्योगपतियों को इस बात की पूरी छूट दी कि वे चाहे जितना भी उद्योग लगाएं या निर्यात करें, सरकार की तरफ से कोई मनाही नहीं होगी। उन्होंने निजी उद्योगपतियों को कहा कि वे दक्षिण के प्रांतों के समुद्र तटीय शहरों में उपभोक्ता वस्तुओं के कारखाने लगाये और जमकर सस्ती उपभोक्ता वस्तुओं को विदेशों को खासकर अमेरिका को निर्यात करें। उनकी यह योजना आश्चर्यजनक रूप से सफल हुई। देंग ने यह भी देखा कि दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ देश बड़ी तेजी से आर्थिक प्रगति कर रहे हैं। इन देशों का व्यापक दौरा कर उन्होंने इस रहस्य का पता लगाना चाहा कि आखिर इन गरीब देशों में इतनी आर्थिक संपन्नता कैसे आई। 

सन् 1962 की लड़ाई के बाद से चीन और भारत के संबंध अत्यन्त कटु हो गये थे। देंग ने पहली बार इस संबंध को सामान्य बनाने का प्रयास किया जिसके अंतर्गत तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन गए और चीन तथा भारत के संबंध कुछ हक तक सामान्य हो सके। अब तो चीन के साथ भारत का खुलेआम व्यापार हो रहा है जिसमें पलड़ा चीन के पक्ष में है। ज्यादा माल चीन से भारत आता है। भारत का चीन को निर्यात नगण्य है। यह कहना गलत न होगा कि साम्यवादी चीन में अब पूंजीवाद पनप रहा है।

द्वितीय विश्व-युद्ध के फलस्वरूप गरहराये अंतरराष्ट्रीय संकट ने दुनिया में परिवर्तन की तेज लहर पैदा कर दी थी। रूसी क्रांति की सफलता ने एशिया के कई देशों में कम्युनिस्टों को क्रांति के लिए प्रेरित किया। चीन में माओ चतुड चूं और चाओ अनलाए और ल्यू शाआछी ने मिलकर क्रांति की एक नवीन पद्धति ईजाद की, जिसे दीर्घकालीन प्रतिरोध युद्ध के जरिए इलाकावार सत्ता दखल करते हुए नवजनवादी क्रांति करने के सिद्धांतों के तौर पर जाना जाता है। माओ की स्थापनाओं को शुरू में मार्क्सवाद के परंपरागत विद्वानों ने सैद्धांतिक रूप से ठुकरा दिया पर अनुभव ओर व्यवहार जगत में वे एकदम सही साबित हुई। चीन के इसी जन संघर्ष को चीन की क्रांति के नाम से जाना जाता है चीन की यह जन क्रांति सन् 1919 से लेकर 1949 तक चली। और चीन के लोक गणराज्य स्थापना के इसका अंत हुआ। अपने इस लेख में हम चीन की क्रांति का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:—

  • चीन की क्रांति किस वर्ष हुई थी?
  • चीन की क्रांति के परिणाम क्या थे?
  • चीन की क्रांति कब हुई थी?
  • चीन की क्रांति के नेता कौन थे?
  • चीन की क्रांति के बारे में विस्तार से जानकारी?
  • चीन की क्रांति का उल्लेख?
  • चीन की क्रांति इन हिन्दी?
  • चीन की सर्वप्रथम राष्ट्रीय महासभा की स्थापना कब हुई थी?
  • चीन की साम्यवादी क्रांति किसके नेतृत्व में हुई?
  • 1949 की चीनी क्रांति के कारण क्या थे?
  • चीनी क्रांति के जनक कौन थे?
  • चीन में सांस्कृतिक क्रांति किसने शुरू की थी?

चीन की क्रांति का उदय कारण और परिणाम

माओ चतुड और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में हुई चीन की क्रांति को नवजनवादी क्रांति कहते है। क्योंकि यह क्रांति हुई तो पूंजीवादी क्रांति के ढांचे के तहत ही थी पर इसका नेतृत्व चीन के किसानों और मजदूरों के हाथ में था। पुरानी जनवादी क्रांति से अलग दिखाने के लिए इसे नवजनवादी क्रांति कहा जाता है। कम्यूनिस्टों के हाथ से सपन्न होने के बावजूद इस क्रांति का अनुभव सोवियत समाजवादी अक्टूबर क्रांति से अलग था। सोवियत क्रांति औद्योगिक शहरी इलाकों में मजदूर वर्ग के सशस्त्र विद्रोह के जरिए हुई थी पर चीन की क्रांति पूरे तीस साल तक चलाये गये किसानों के दीर्घकालीन प्रतिरोध युद्ध से विजयी होकर निकली थी। इसमे इलाकावार सत्ता दखल की नीति अपनाई गयी थी। इस क्रांति और इसके नेता माओ चतुड ने सारी दुनिया, खासकर एशिया के कम्यूनिस्टों को बेहद प्रभावित किया। कुछ कम्युनिस्ट पार्टियों ने तो अपने नाम के साथ एक नयी अभिव्यक्ति ही जोडनी शुरू कर दी जिसे माक्सवाद, लेनिनवाद और माओ विचारधारा कहते है।

4 मई 1919 को पेरिस शांति सम्मेलन के अन्याय पूर्ण निर्णयों के विरूद्ध पइचिड के तीन हजार से ज्यादा विधार्थियों ने थ्यनआनमन चौक में इकट्ठे होकर एक विशाल जूलूस निकाला। प्रदर्शनकारियों ने हमारी प्रभुसत्ता का सम्मान करो देश के गद्दारों को सजा दो और वसाई (पेरिस) संधि पर हस्ताक्षर न करो आदि नारे लगाते हुए मांग पेश की कि जापान की तरफदारी करने वालों को सजा दी जाये। इस प्रकार साम्राज्यवाद और यद्ध चौधरियों की तानाशाही के खिलाफ चीनी जनता का देश भक्ति आंदोलन देश के कोने कोने में फैलने लगा।

शरू में इस संघर्ष की मख्य शक्ति विद्यार्थी थे। 3 जून के बाद इस संघर्ष ने विकसित होकर सर्वहारा वर्ग निम्न पूंजीपति वर्ग तथा राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग के एक ऐसे देशभक्तिपूर्ण आंदोलन का रूप ले लिया जिसमें मुख्य भूमिका सर्वहारा वर्ग द्वारा अदा की गयी। 5 जून को शाडहाण के मजदूरों ने आम हडताल कर ली जिसमें शामिल होने वाले मजदूरों की संख्या 10 जून तक लगभग 70000 तक पहुंच गयी। समुचे देश की जनता को देश भक्ति पूर्ण आंदोलन के सामन उत्तरी युद्ध- सर्वहारा की सरकार को जुझना पडा। उसने गिरफ्तार विद्यार्थियों को रिहा कर दिया छाआ रूलिन लचुडय्वी व चाड चूइ श्याड नामक तीनों गद्दारों को उनके पद से हटा दिया गया और वर्साई शांति-संधि पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया। इस प्रकार देश भक्ति पूर्ण 4 मई आंदोलन की पहली विजय प्राप्त की।

4 मई आंदोलन ने नव संस्कृति आंदोलन को भी बढावा दिया और उसे एक नयी व ऊची मजिल पर पहुच दिया। 4 मई आंदोलन के बाद समुचे देश में प्रगतिशील विचारों की पत्रिकाओं की बाढ़ सी आ गयी और मार्क्सवाद का प्रचार प्रसार नव संस्कृति आंदोलन की मुख्यधारा बन गया। मई 1920 में छन तुश्यू तथा कुछ अन्य लोगों ने शाडहाए में चीन का पहला कम्युनिस्ट ग्रुप कायम किया। कुछ समय बाद ली ताचाओ ने पइचिड में, माओ चतुड ने हूनान प्रांत में और तुड पिऊ ने ऊहान में कम्युनिस्ट ग्रप कायम किये। इनके अलावा चीनान क्वाडचआ जापान और पेरिस में भी चीनी कम्युनिस्ट ग्रुप स्थापित किये गये।

चीन की क्रांति का वर्णन

जुलाई 1921 में चीनी कम्युनिस्ट पाटी की पहली राष्ट्रीय कांग्रेस का आयोजन शाडहाण में किया गया। माओ चतुड, तड पीऊ, छन तश्यू, हशटड वाड चिनमई तड अनमिड लीता ली हानच्यन पाआ वहइसंड छन कडपा चआ फाहाण चाड क्वाथाओ आं ल्यृ रनचिड सहित। 13 प्रतिनिधियों ने देश के लगभग 50 कम्युनिस्टों का प्रतिनिधित्व करते हुए कांग्रेस में भाग लिया। इम कांग्रेस में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का पहला संविधान स्वीकार किया गया और छन तश्यू को पार्टी की केन्द्रीय कमेटी का महासचिव चुना गया। इस प्रकार चीनी कम्युनिम्ट पार्टी की वाकायदा स्थापना कर दी गयी।

जुलाई 1922 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने शाडहाए में अपनी दूसरी राष्ट्रीय कांग्रेस की। इम कांग्रेस का मख्य काम चीनी क्रांति के लिए पार्टी कार्यक्रम बनाना था। कांग्रेस ने उम समय की परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए पार्टी का जो बुनियादी कार्यक्रम तय किया वह इस प्रकार था—-

  • घरेलू लड़ाई को समाप्त करना
  • युद्ध कार्यक्रम का तख्ता उलट
    देना और देश में शांति कायम करना
  • चीनी राष्ट के पूर्ण व वास्तविक स्वतंत्रता के लिए
    अंतराष्ट्रीय साम्राज्यवादियों के उत्पीडन के जुएं को उतार फेंकना चीन का एकीकरण करके देश में एक असली जनवादी लोकतंत्र स्थापित करना।

इस तरह चीन क आधुनिक इतिहास में पहली बार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा एक जनवादी क्रांतिकारी कार्यक्रम जो पूर्णं रूप से साम्राज्यवाद व सामंतवाद का विरोध करता था पेश किया गया।

चीनी क्रांति के जनक कौन थे?
चीन की क्रांति

जून 1923 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की तीसरी राष्ट्रीय कांग्रेस क्वाडचओ में आयोजित की गयी। कांग्रेस में यह फैसला किया गया कि कम्युनिस्ट पार्टी क्वामिनताड (डॉ सन यातसन द्वारा स्थापित राष्टीय पार्टी) से सहयोग करेगी और कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य व्यक्तिगत हेसियत से क्वामिनताड में शामिल हो सकेंगे। साथ ही काग्रस ने यह भी तय किया कि कम्युनिम्ट क्वामिनताड सहयोग के चलते चीनी कम्युनिस्ट पार्टी राजनीतिक विचारधारात्मक और संगठनात्मक नेतृत्व में मजदूर-आंदोलन और किमान-आंदोलन तेजी से विकमित होने लगे।

इसी दौरान चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में किसान-आंदोलन का भी बडी तेजी से विकास हुआ। सबसे तीव्र प्रगति क्वाडतुड प्रांत में देखने को मिली जहां किसान-आंदोलन का नेतृत्व फड पाए नामक नेता के हाथ में था। जनवरी 1926 तक क्वाडतुड प्रांत में किसान संघ की कुल सदस्य-संख्या छः लाख बीस हजार और किसान-आत्मरक्षा दस्तों की सदस्य संख्या तीस हजार तक पहुंच चुकी थी। फरवरी 1925 में माओ चतुड अपने जन्म-स्थान हूनान प्रांत के शाओशान नामक गांव में वापस आये। वहां उन्होंने किसान-आंदोलन का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया और बीस से अधिक कस्बों में किसान संघों की स्थापना की। जून 1926 तक चीन के 12 प्रांतों में किसान-संघों की स्थापना की जा चुकी थी, जिसमें कस्बा-स्तर वाले किसान-संघों की संख्या 5300 से अधिक थी और कुल सदस्य-संख्या लगभग दस लाख थी।

चीन की क्रांति के अभियान

डॉ सून यातसेन के देहांत के बाद क्वामिनताड की फूट-परस्ती धीरे धीरे साफ हाने लगी। उत्तरी अभियान की शुरआत के होने पर दक्षिण पंथी गुट के नेता च्याड काइशक ने सिर्फ क्वामिनताड की केंद्रीय कमेटी की स्थायी समिति का अध्यक्ष और उसके संगठन व
सैनिक मामलों के विभागों का प्रधान बन बैठा, बल्कि राष्ट्रीय सरकार की फौजी कमेटी का अध्यक्ष और राष्ट्रीय क्रांतिकारी सेना का कमाडर-इन-चीफ भी बन गया।

एक जुलाई 1926 को राष्ट्रीय सरकार ने उत्तरी अभियान का घोषणा पत्र जारी किया। इस तरह उत्तरी युद्ध-सरदारों के विरुद्ध एक दंडात्मक अभियान की शुरआत हुई। इस अभियान का मुख्य निशाना इन तीन युद्ध सरदारों को बनाया गया -ऊ फइफ, जिसने हूनान हूपई और हनान पर कब्जा कर रखा था। छन छवानफाड, जिसकी शक्ति च्याड सू, आनहवई चच्याड पूच्यन ओर च्याडशी प्रांतों में केंद्रित थी और चांग च्वालिन, जिसने उत्तर पूर्वी चीन के सभी प्रांतों और पइचिड व थ्यनचिन पर नियंत्रण कर रखा था।

मई 1926 में उत्तरी अभियान की अग्रिम यूनिट की हैसियत से स्वाधीन रेजीमेंट में जिसके कमांडर ये थिड नामक एक मशहूर कम्युनिस्ट थे और जिसकी मुख्य शक्ति कम्युनिस्ट पार्टी और नौजवान संघ के सदस्यों की थी, हूनान के मोर्चे पर चढाई कर दी। 9 जुलाई को राष्ट्रीय क्रांतिकारी सेना के लगभग एक लाख सैनिकों ने अलग अलग रास्तों से क्वाडचाओ से कूच कर दिया। उत्तरी अभियान की विजय ने किसान -आंदोलन को तेजी से आगे बढ़ाया। हूनान प्रांत का संघर्ष जिसका परिचालन व नेतृत्व माओ चतुड कर रहे थे, सारे देश के किसान आंदोलन की मुख्य-धारा बन गया! समूचे देश में खासतोर से हूपई, च्याडशी, क्वाडतुड, फ्च्यून चच्याड और हूनान आदि प्रांतों में किसान-आंदोलन तूफान की तरह विकसित होने लगा। मार्च 1927 तक चीन में किसान संघों की सदस्य संख्या एक करोड से भी अधिक हो चुकी थी।इसी बीच मजदूरों के क्रांतिकारी संघर्ष ने भी जोर पकड़ा। जनवरी 1927 में ऊहान के मजदूरों ने ल्यू शाओछी के नेतृत्व में ब्रिटेन की बस्ती को वापस ले लिया। उत्तरी अभियान सेना के विजयपूर्ण कदमों और अपनी गतिविधियो में तालमेल कायम करने के लिए शाडहाए के मजदूरों ने तीन बार सशस्त्र विद्रोह किये। पहली बार अक्तूबर 1926 और दूसरी बार फरवरी 1927 के सशस्त्र विद्रोह असफल रहे। किंतु 21 मार्च 1927 को चाओ अनलाए और अन्य व्यक्तियों के नेतृत्व में किया गया तीसरा विद्रोह सफल रहा, जिसमें शाडहाए के मजदूरों ने 30 घंटों से अधिक लड़ाई के बाद शहर को मुक्त करा लिया था।

उत्तरी अभियान की सफलता और मजदूर किसान आंदोलन के चौतरफा विकास ने चीन में साम्राज्यवादियों का शासन हिला दिया 24 मार्च 1927 को उत्तरी अभियान– सेना द्वारा नानचिड पर कब्जा कर लिए जाने के बाद उसी रात ब्रिटेन अमेरीका, फ्रांस, जापान तथा इटली के युद्धपोतों ने नानचिड पर तोपों से गोले बरसाने शुरू कर दिये। इस घटना में दो हजार से ज्यादा चीनी हताहत हुए। यह हत्याकांड इस बात का इशारा था कि साम्राज्यवादी शक्तियां चीनी पूंजीपति वर्ग का क्रांति से गद्दारी के लिए मजबूर करने का पड्ंयत्र रच रही थी। उन्होंने च्याड काईशक को अपना नया ऐजेंट चुन लिया था और क्रांतिकारी खेमे के अंदर से तहस-नहस कर क्रांति का समूल नष्ट करने कीकोशिश शुरू कर दी थी। उस समय च्याड काईशक स्वयं भी साम्राज्यवादियों जमींदारों और दलाल पूंजीपतियों के साथ अपना गठजोड और पक्का करने को अधीर हो रहा था। 12 अप्रैल 1927 को उसने शाडहाए में प्रतिक्रांतिकारी विद्रोह कर दिया और बहुत बडे पैमाने पर मजदूरों व कम्युनिस्टों की हत्याएं करवाई। च्याडसू, चच्याड, फच्यन और क्वाडत्‌ड आदि प्रांतों में भी ऐसे ही हत्याकांड हुए। 18 अप्रैल को च्याड काईशक ने नानचिड में अपनी तथाकथित राष्ट्रीय सरकार कायम की जो बड़े जमींदारों व बड़े पूंजीपति वर्ग का प्रतिनिधित्व करती थी।

1 अगस्त 1927 को उत्तरी अभियान सेना के तीस हजार सैनिकों ने, जिनका नेतृत्व चीनी कम्युनिस्ट पार्टी कर रही थी या जिन पर कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव था, च्याडशी प्रांत के नानछोड शहर में एक सशस्त्र विद्रोह किया। यह विद्रोह चाओ अनलाए (पार्टी की
मोर्चा कमेटी के सचिव) चूंग त्शयू लुड, य थिड और ल्यू पांछड आदि के नेतृत्व में किया गया था। पांच घंटों की घमासान लड़ाई के बाद विद्रोही सैनिकों ने नानछाड में क्वांमिनताड गैरिजन सेना के दस हजार से अधिक सैनिकों को पूरी तरह नस्तेनाबूद कर दिया। कुछ दिनों के बाद विद्रोही सेना ने क्वाडचओ पर अधिकार करने और क्वाडतुड प्रांत क्रांतिकारी आधार क्षेत्र की पुनः स्थापना करने के मकसद से च्याडशी के दक्षिणी और कूच कर दिया। लेकिन अक्तूबर के शुरू में वह पूर्वी क्वाडतुड में दुश्मन की बहतर सेना के घेरे में फंस गयी और उसकी शक्ति घट गई। बचे-खुचे सैनिकों का एक दस्ता चूंग त और छन ई के नेतृत्व में संघर्ष जारी रखने के लिए हूनान प्रांत की ओर चला गया। नानछोड विद्रोह कम्युनिस्ट पार्टी के स्वतन्त्र नेतृत्व की शुरुआत था- क्रांतिकारी सेना द्वारा कवामिनताड प्रतिक्रिया वादियों पर किया गया पहला सशस्त्र प्रहार था। इसीलिए उसके बाद से 1अगस्त का दिन चीनी जनता की क्रांतिकारी सेना के स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है।

केंन्द्रीय कमेटी ने हूनान च्याडशी सीमा पर शरद फसल विद्रोह का नेतृत्वत करने के लिए माओ चतुड को वहां भेजा। 9 अगस्त को विद्रोह छेडा गया। मजदूरों किसानों की क्रांतिकारी सेना छोडशा पर कब्जा करने के लिए तीन तरफ से आगे बढ़ने लगी। लेकिन
दुश्मन की शक्ति अपने से ज्यादा होने की वजह से क्रांतिकारी सेना को भारी नुक़सान उठाना पडा। तत्कालीन परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए माओ चतुड इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि क्रांतिकारी सेना को मख्य शहर पर जहा दुश्मन शक्तिशाली है हमला नही करना चाहिए। इसके बजाय उसे उन देहाती इलाकों में जहां दुश्मन कमजोर है अपनी शक्ति व प्रयास केंद्रित करने चाहिए। इसलिए बची हुई सेना उनके नेतृत्व में हूनान और च्याडशी प्रांतों की सीमा पर स्थित चिडकाडशान पर्वत श्रृंखला की ओर आगे बढी।

नानछोड विद्रोह, शरद फसल विद्रोह और कवाडचओ विद्रोह ने क्वामिनताड की कत्लेआम की नीति को भारी धक्का पहुंचाया। इसके बाद चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने एक नये दौर में प्रवेश किया, जिसमें मजदूरों और किसानों की लाल सेना कायम की जा सकी।
अक्तूबर 1927 में लाल सेना माओ चतुड के नेतृत्व में चिडकाडशान के पहाड़ी इलाकों में आ पहुची। वहा उन्होंने जन समुदाय को संगठित करके छापामार लड़ाई चलायी, भूमि -क्रांति का स्थानीय सैन्य-दल स्थापित किया। पार्टी-संगठन कायम किये और मजदूरों किसानों की राजनीतिक सत्ता की स्थापना की। चिडकाडशान पहाड़ी इलाका चीन का पहला देहाती क्रांतिकारी आधार क्षेत्र बन गया। अप्रैल 1928 में नानछोड विद्रोह में भाग लेने वाली सेना का एक भाग और हूनान विद्रोह में हिस्सा लेने वाली किसान सेना चूंग त व छन ई के नेतृत्व में इसी इलाके में पहुंच गयी और माओ चतुड के नेतृत्व वाली सेना से मिल गयी। इस मिलन के बाद चीनी मजदूरों और किसानों कीलाल सेना की चौथी कोर संगठित की गयी। जिसमें दस हजार से भी अधिक सैनिक थे। इस कोर के कमांडर चूंग त थे। माओ चतुड इसके पार्टी प्रतिनिधि और छन ई राजनीतिक विभाग के निर्देशक थे। चिडकाडशान पहाड़ी इलाके की रक्षा की लडाई में चूंग त और माओ चतुड ने जो सुप्रसिद्ध छापामार कार्यनीति अपनायी वह इस प्रकार थी– जब दुश्मन आगे बढ़ता है, तो हम पीछे हट जाते हैं, जब दुश्मन पडाव डालता है तो हम उसे हैरान परेशान करते हैं, जब दुश्मन था जाता है तो हम उस पर धावा बोल देते हैं। जब दुश्मन पीछे हटता है तो हम उसका पीछा करते है। चिडकाडशान के संघर्ष के दौरान सेना पर पार्टी के एकछत्र नेतृत्व का सिद्धांत भी निर्धारित किया गया। लाल सेना को तीन कार्य सौंपे गए। लडाई क्रांतिकारी कार्य के लिए धन संग्रह (बाद में इसे बदलकर उत्पादन कर दिया गया) और जन कार्य। इसी अवधि में जन-सेना के लिए जनशासन के तीन मुख्य नियम और ध्यान देने योग्य आठ बात भी निर्धारित की गई।

सन् 1927 के शरद से लेकर 1930 तक ममूचे देश में लाल सेना और क्रांतिकारी आधार क्षेत्रों का कदम कदम पर विकास व प्रसार हुआ। जनवरी 1929 में लाल सेना की चौथी कोर ने माओ चतुड और चूंग त के नेतृत्व में दक्षिण च्याडशी में प्रवेश किया, जहां उन्होंने क्रमश दक्षिण च्याडशी व पश्चिमी फच्यून नामक दो क्रांतिकारी आधार क्षेत्र कायम किये। सन्‌ 1930 में इन दो आधार क्षेत्रों को मिलाकर केंन्द्रीय आधार-क्षेत्र बना दिया गया, जिसका सदर मुकाम च्याडशी प्रांत के रूइचिन में था। सन्‌ 1930 के पूर्वाद्ध तक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा 300 से ज्यादा काउटिया मे सशस्त विद्रोह छेडे गये और 15 क्रांतिकारी आधार क्षेत्र कायम किये गये। उस समय तक सारे चीन में लाल सेना की संख्या साठ हजार से अधिक हो गयी थी। जब च्याड काइशक अपनी पूरी शक्ति से गृहयुद्ध चलाने में लगा हुआ था जापानी साम्राज्यवादियों ने मौके का फायदा उठाते हुए 18 सितंबर 1931 का फौज भेजकरशनयाड पर कब्जा कर लिया। यह घटना 18 सितंबर की घटना के नाम से प्रसिद्ध है। च्याड काइशक ने उत्तर पूर्वी चीन में स्थित चीनी फौजों का जापानियों का कतई मुकाबला न करने का आदेश दिया। नतीजा यह हुआ कि तीन महीन से कुछ अधिक समय में ही उत्तर-पूर्वी चीन के तीना प्रांत जिनका क्षेत्रफल दस लाख वर्ग-किलोमीटर से भी अधिक है, जापानियों के हाथ में चले गये।

जनवरी 1931 में वाड मिडन मूल नाम छन शाआत्वी(1904-74) कम्युनिस्ट पार्टी की छठी केंन्द्रीय कमेटी के चौथे पूर्ण अधिवेशन में पार्टी का नेतृत्व हथिया लिया। तब से लेकर सन् 1934 तक वह पार्टी में एक वामपंथी अवसरवादी कार्यादिशा अपनाता रहा जिसकी विशेषता कटुटरता थी और जिसके कारण क्रांति को भारी नुकसान उठाना पडा। वाड मिड बड़े शहरों पर कब्जा करने की आवश्यकता पर बल देने के अपने गलत दृष्टिकोण पर अडा रहा और देहातों से शहरों को घेरने व सशस्त्र शक्ति द्वारा राजनीतिक सत्ता छीनने की रणनीति का विरोध करता रहा। वाड मिड और उसके समर्थक चाहते थे की लाल सेना बड़े शहरों पर फौरन हमला कर दे। उन्होंने आदेश दिया कि क्वामिनताड नियंत्रित बड़े शहरों में व्यापक रूप में हडताल और प्रदर्शन आयोजित किये जाये। नतीजा यह हुआ कि क्वामिनताड अधिकृत इलाकों में कम्युनिस्ट पार्टी के लगभग सभी संगठन नष्ट हो गये। वाड मिड और उसके अनुयायियों ने उन कामरेडों के प्रति, जो वाड मिड की कार्यदशा से सहमत थे निर्मम संघर्ष और निष्ठुर प्रहार करने की नीति अपनायी। एक मौके पर तो स्वयं माओ चतुड को भी लाल सेना के नेतृत्वकारी पद से अलग कर दिया
गया।

अक्तूबर 1933 में च्याड काइशक ने अपनी दस लाख फौज के साथ केंन्द्रीय आधार-क्षेत्र और उसके पास हूनान, च्याडशी आधार क्षेत्र व पूच्यन-चच्याड च्याडशी आधार क्षेत्र के खिलाफ घेरा डालने और विनाश करने की पांचवीं मुहिम शुरू कर दी। वामपंथी अवसरवादियों के नेताओं ने छापामारवाद का विराध करने के नाम पर बेहतर सैन्य शक्ति को केन्द्रित करना, शत्रु को भुलावा देकर अपने प्रदेश में दूर तक प्रवेश करने देना और चलायमान लडाई चलाना आदि लचीली गतिशील कार्य नीतियों को छोड़ दिया और लाल सेना को मजबूर किया कि वह दुश्मन की बेहतर सेना से घमासान लड़ाई लडे। इस गलती का परिणाम यह हुआ कि लाल सेना सभी जगह निष्क्रिय स्थिति में पड गई। एक साल की भीषण लड़ाई के बाद भी वह दुश्मन की घेरा डालने व विनाश केरन की मुहिम को पराजित नही कर सकी और अंत में मजबूर होकर उसे केंन्द्रीय आधार क्षेत्र से अपना रणनीतिक स्थानांतरण करना पडा। अक्टूबर 1934 में लाल सेना की पहली मोर्चा सेना (केंन्द्रीय लाल सेना) के अस्सी हजार से अधिक सैनिकों ने फच्यून प्रांत के छाडथिड व निडब्हा, च्याडशी प्रांत के रूइचिन व इवीतू स्थानों से रवाना होकर अपना लंबा अभियान (लांग मार्च) शरू किया। दुश्मन की चार नाकेबंदी पंक्तियों को चीरने के बाद लाल सेना ने क्वाडतुड हूनान ओर क्वाडशी से गुजर क्वाइचओ में प्रवेश किया। इस लंबे अभियान के दौरान वामपंथी अवसरवादियों ने शक्तिशाली दुश्मन के सामने पलायनवादी नीति अपनायी जिसके कारण लाल सेना का कई बार खतरनाक परिस्थितियों का सामना करना पडा और बडी संख्या में उसके सैनिकों के हताहत होने से अंत में वह आधे से भी कम रह गयी।

खतरे में पडी लाल सेना और क्रांति को बचाने के लिए जनवरी, 1935 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केन्द्रीय कमटी के राजनीतिक ब्यूरो का एक विस्तृत सम्मेलन कवइचओ प्रांत के चनइ शहर में आयोजित किया गया जिसमें वाडमिड की वामपंथी अवसरवादी फौजी कार्य दिशा की आलोचना की गयी और माओ चतुड द्वारा प्रतिपादित सही फौजी कार्य दिशा को पुनः स्थापित किया गया। सम्मेलन में पार्टी के नेतृत्वकारी अंगों को पुनः गठित किया गया। माओ चतुड, चाओ अनलाए और वाडच्याश्याड को फौजी मामलो के नेतृत्वकारी दल का सदस्य चुना गया और पार्टी पर माओ चतुड का नेतृत्व कायम किया गया। इसके बाद में चीन की क्रांति विजय के पथ पर पुन आगे बढ़ने लगी। चनइ सम्मेलन के बाद लाल सेना ने उत्तर पश्चिम सछुवांन प्रांत में प्रवेश किया और वह वहा की चौथी मोर्चा सेना से जा मिली जिसका नेतृत्व चाड क्वाथओ के हाथ में था। पार्टी और लाल सेना माओ चतुड के नेतृत्व में चाड क्वाथओ की उन अपराधपूर्ण कार्यवाहियों का विरोध किया जो उसके द्वारा पार्टी और लाल सेना में फूट डालने के लिए की जा रही थी। इसके बाद लाल सेना ने उत्तर की ओर बढना जारी रखा। भारी नुकसान व घोर संघर्ष के पश्चात लाल सेना अक्तूबर 1935 में उत्तरी शनशी आधार क्षेत्र में पहुंच गयी और वहां तेनात लाल सेना के एक अन्य दस्ते से जा मिली। इस प्रकार चीनी मजदूर और किसानों की लाल सेना का 12500 किलोमीटर लंबा अभूतपूर्व अभियान खत्म हुआ। अक्तूबर 1936 में हूलड औरर रनपीशि की कमान में लाल सेना की दूसरी मोर्चा सेना और चौथी मोर्चा सेना का एक अन्य भाग भी उत्तरी शनशी पहुंच कर केंद्रीय लाल सेना से जा मिला।

सन्‌ 1935 में 9 दिसंबर आंदोलन ने जापान का विरोध करने और देश को बचाने के राष्ट्रव्यापी संघर्ष में एक नया उभार पैदा कर दिया। इसका क्वामिनताड फौज के देशभक्त सिपाहियो पर भी गहरा असर पडा। उत्तरी शेनशी मे लाल सेना पर हमला करने के लिए च्याड काइशक द्वारा भेजी गयी उत्तर-पूर्वी फौज (जिसके कमांडर चाड वल्याड थे) ओर उत्तर पश्चिमी फौज (जिसके कमांडर याड हूछड थे) ने लाल सेना के विरुद्ध गृह-यद्ध वस्तुत बंद कर दिया। चाड और याड के रवैये में इस परिवर्तन से च्याड काइशक क्रोधित व भयभीत हो उठा। उसने स्वयं शीआन जाकर उन दोनों को लाल सेना पर हमला करने के लिए मजबूर किया। लेकिन 12 सितंबर 1936 को चाड और याड ने अपने सैनिक भेजकर च्याड काइशक को गिरफ्तार कर लिया। अगले दिन उन्होंने सारे देश के नाम एक खुला तार भेजा जिसमें गृहयुद्ध बंद करने और जापान का प्रतिरोध करने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी के साथ सहयोग करने की मांग की गयी। यह घटना शीआन घटना के नाम से प्रसिद्ध है। लेकिन क्वोमिनताड के जापान परस्त गुट ने जिसका अगुवा हो इडछिन था, इस घटना से लाभ उठाकर गृह युद्ध का विस्तार करने की कोशिश की। ताकि जापानी हमलावरों के लिए रास्ता साफ किया जा सके और च्याड काइशक के हाथसे सत्ता छीनी जा सके। इसलिए उसने सेना भेजकर शीआन के पूर्वे में स्थित थुडक्वान पर धावा बाल दिया। राष्ट्रीय हित और जापानी आक्रमण विरोधी संघर्ष की एकता के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने दृढ़तापूर्वक हां इडछिन की साजिश का विरोध किया और शांतिपूर्ण ढंग से शीआन घटना का हल करने का सूझाव दिया। चाओ अनलाए के नेतृत्व में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का एक प्रतिनीधि मंडल मध्यस्थता करने के लिए शीआन पहुचा। च्याड काइशक को अपनी रिहाई से पहले मजबूर होकर अनेक शर्त माननी पडी, जिनमें गृह-युद्ध रोकने और जापान का प्रतिरोध के लिए कम्युनिस्ट पार्टी से सहयोग करने की शर्ते भी शामिल थी। शीआन घटना का शतिपूर्ण समाधान दस साल से चले आ रहे गृह-युद्ध की समाप्ति और जापान विरोधी राष्ट्रीय संयुक्त मोर्चे की शुरुआत का प्रतीक था।

13 अगस्त 1937 को जापानी हमलावर सेना ने शाडहाए पर धावा बोल दिया और नानचिड को जोखिम में डाल दिया। इस प्रकार च्याड काईशेक कु शासन और चीन में आंग्ल-अमेरीकी साम्राज्यवादियों के हितों के लिए सीधा खतरा पैदा हो गया। परिस्थिति के यह मोड लेने के बाद क्वोमिनताड सरकार को जापान विरोधी युद्ध में मजबूरन भाग लेना पडा और जापान का सयुक्त रूप से प्रतिरोध करने के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एक समझौता करना पडा। इस समझौते के अनुसार लाल सेना की मुख्य शक्तियां जो उस समय उत्तर पश्चिमी चीन में तैनात थी ओर जिसमें तीस हजार से अधिक सैनिक थे राष्ट्रीय क्रांतिकारी सेना की आठवी राह सेना का नाम दे दिया गया। चूंग त इसके कमांडर इन चीफ फड तब्हाए इसके उप कमांडर इन चीफ और य च्यनइड इसके चीफ ऑफ स्टाफ नियुक्त किये गये। जापान के बर्बरतापूर्ण आक्रमण के सामने क्वामिनताड का जापान परस्त गुट जिसके सरगना वाड चिडवई था लगातार यही राग अलापता रहा कि चीन के हथियार जापान से घटिया है, इसलिए यदि चीन ने जापान से युद्ध जारी रखा तो एक राष्ट्र के रूप में उसका अस्तित्व ही मिट जायगा। दूसरी तरफ च्याड काइशक गुट ब्रिटेन और अमेरीका की सहायता से युद्ध में शीघ्र विजय प्राप्त करने का सपना देखता रहा। इन दोनों की बेहूदा बातों का खंडन करने और सही रास्ता बताने के लिए माओ चतुड ने मई 1938 मे दीर्घंकालीन युद्ध के बारे में एक पुस्तक लिखी व प्रकाशित की। युद्ध करने की शक्ति का अथाह स्रोत जन-समुदाय में है। चीन-जापान के इतिहास ने उनकी इस भविष्यवाणी को सही साबित कर दिया।

सन्‌ 1939 की सर्दियों से लेकर सन्‌ 1943 की गर्मियों तक च्याड काइशक ने तीन कम्युनिस्ट विरोधी हमले किये। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने जवाबी प्रहारों से उसके प्रत्येक हमले को विफल कर दिया। संयुक्त मोर्चे के प्रति कम्युनिस्ट पार्टी का रुख यह था कि एकता कायम करना संघर्ष करना और संघर्ष के जरिए फिर एकता कायम करना। संघर्ष करते समय उसने न्यायाचिंतता के आधार पर अपना फायदा देखते हुए संयुक्त रूप से लडने का कार्यनीतिक उसूल ओर आत्मरक्षा का यह उसूल अपनाया, जब तक हम पर हमला नहीं तब तक हम हमला नही करेंगे। अगर हम पर हमला किया गया तो हम जरूर जवाबी हमला करेंगे। अतः कम्युनिस्ट पार्टी ने क्वामिनताड के सभी हमलों को विफल कर दिया। जापान विरोधी युद्ध में अंतिम विजय प्राप्त करने और चीनी की क्रांति को पूर्णविजय तक पहुचाने की तैयारी करने के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने यनआन में 23 अप्रैल से 11 जून 1945 तक अपनी सातवीं राष्ट्रीय कांग्रेस आयोजित की। ऐतिहासिक महत्त्व की इस कांग्रेस में 752 प्रतिर्निधि और वैकल्पिक प्रतिनिधि शामिल हुए जिन्होंने सारे देश के 12 लाख 10 हजार पार्टी सदस्यों का प्रतिनिधित्व किया। कांग्रेस ने एक संपूर्ण कार्यक्रम और यह सही कार्य-दिशा निधारित की, साहस के साथ जन-समुदाय का गोलबंद करो, जापानी आक्रमणकारियों का पराजित करो और नये चीन की स्थापना करो। कांग्रेस में पार्टी का नया संविधान भी स्वीकार किया गया और पार्टी की नयी केंद्रीय कमेटी चुनी गयी, जिसके अध्यक्ष माओ चतुड थे। पार्टी कांग्रेस के बाद जन-सेना ने जोरों के साथ अपने जवाबी हमले जारी रखे और बहुत से खोए हुए इलाके फिर से प्राप्त कर लिए। 8 अगस्त, 1945 को सोवियत संघ ने जापान के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी और उसकी लाल सेना ने उत्तर पूर्वी चीन में मौजूद जापानी हमलवरों पर धावा बोल दिया। साथ ही मुक्त क्षेत्रों की जन-सेना ने भी राष्ट्रव्यापी जवाबी हमला शुरू कर दिया। 2 सितंबर को जापानी साम्राज्यवादियों ने आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिये। इस तरह आठ साल के कटु संघर्ष के बाद चीनी जनता ने जापान-विरोधी युद्ध में अंतिम विजय हासिल की।

जापान पर विजय पाने के बाद समूची चीनी जनता ने एक स्वाधीन, शांतिपूर्ण जनवादी, समृद्ध और शक्तिशाली चीन का निर्माण करने की मांग की। लेकिन क्वामिनताड और च्याड काइशेक चीनी जनता पर अपना तानाशाही शासन थोपने पर अडे रहे ताकि चीन आग भी बडे जमीदार वर्ग व बड़े पूंजीपति वर्ग के अधिनायकत्व में एक अध-औपनिवेशिक व अर्ध सामंती देश बना रहे। दूसरी तरफ, अमेरीकी साम्राज्यवादी पूरे चीन को अपना उपनिवेश बनाना चाहते थे। 26 जून, 1946 को क्वामिनताड सेना ने मुक्त क्षेत्रों पर चारों तरफा हमला कर चीन के इतिहास में सबसे बडे गृह युद्ध को भड़का दिया। गृह-युद्ध के शुरू में क्वामिनताड के अधीन 43 लाख सैनिक थे और 30 करोड से ज्यादा आबादी के इलाकों पर उसका अधिकार तथा सभी बड़े बड़े शहरों और ज्यादातर संचार-परिवहन व सड़कों पर उसका नियंत्रण था। क्वामिनताड ने आत्मसमर्पण करने वाले दस लाख जापानी सैनिकों की समस्त युद्ध-सामग्री भी अपने अधिकार में ले ली थी। उसे अमेरिकी फौजी और आर्थिक सहायता भी प्राप्त थी। दूसरी और चीनी जन मुक्ति सेना के सैनिकों की संख्या केवल बारह लाख थी। साजों-सामान के नाम पर उसके पास सिर्फ पुरानी बंदुकें ही थी। उसे कोई विदेशी सहायता भी नही मिली थी। मुक्त क्षेत्र जो ज्यादातर गांवों में फैले हुए थे उनकी आबादी केवल दस करोड से थोडी ज्यादा थी। चूंकि दुश्मन और क्रांतिकारियों के बीच का शक्ति-संतुलन ऐसा ही था इसलिए कोई ताज्जुब नही कि उस समय क्वामिनताड ने डीग मारते हुए यह कहा कि जन मुक्ति सेना को तीन से छह महीनों के अंदर ठिकाने लगा दिया जायेगा।

अप्रैल में प्रबल दुश्मन के हमलों का मुकाबला करने के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने जो उसूल अपनाया उसका मुख्य उदेश्य बेहतर सैन्य शक्ति को केन्द्रित कर दुश्मन की प्रभावशाली शक्ति को नस्तेनाबूद करना था न कि किसी शहर या स्थान पर कब्जा करना या उस पर अपना नियंत्रण बनाये रखना। राजनीतिक क्षेत्र में पार्टी ने अमेरीकी साम्राज्यवाद और च्याड काइशेक के विरुद्ध समूचे राष्ट्र का अत्यंत व्यापक संयुक्त मोर्चा संगठित किया। चूंकि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने सही नीति अपनायी, इसलिए जन मुक्ति सेना लडते-लडते और मजबूत होती गयी। राष्ट्रव्यापी गृह-युद्ध आरंभ होने के बाद जन मुक्ति सेना ने आठ महीनों के अदंर ही दुश्मन के सात लाख सैनिकों का सफाया कर दिया। मार्च 1947 में क्वामिनताड का चार तरफा हमले की रणनीति छोड़कर अपने हमले उत्तरी शनशी व शानतुढ के दो मुक्त क्षेत्रों पर केंद्रित करने के लिए मजबूर होना पडा। जन मुक्ति सेना न च्याड काइशेक की योजनाओं को इस बार भी धूल में मिला दिया।

जून और सितंबर 1947 के दौरान जन मुक्ति सेना ने राष्ट्रव्यापी पैमाने पर अपना आक्रमण शरू कर दिया। अब लडाई मुख्य रूप से क्वामिनताड शासित इलाकों में हाने लगी। जन मुक्ति सेना ने बहुत से ऐसे शहरों पर जहा क्वामिनताड ने रक्षा के लिए बहुत सी फौज रख छोड़ी थी, कब्जा कर लिया और दुश्मन की अधिकांश प्रभावकारी शक्तियों को नष्ट कर दिया। अगस्त 1948 में जन मुक्ति सेना ने क्रमशः तीन बडी मुहिम चलायी, त्याआशी शनयाड मुहिम व्हाए हाए मुहिम और पइचिड थ्यनचिनमुहिम। जो दुनिया भर में प्रसिद्ध है। 142 दिनों तक चलायी गयी इन तीन महिमों में
क्वामिनताड के 15 लाख 40 हजार सैनिकों का सफाया कर दिया गया। 2 जनवरी 1949 को जन-मुक्ति सेना के दस लाख सैनिकों ने छडच्याड नदी को पार करना और दक्षिणी ओर आगे बढ़ना शरू किया। 23 अपैल को उन्होंने नानचिड़ को जो च्याड काइशेक का प्रतिक्रियावादी शासन का केंद्र रहा था, मुक्त करा लिया। यहे क्वामिनताड की हकूमत के पतन का घोतक बन गया। इसके बाद जन मुक्ति सेना ने आंधी की तरह अलग अलग मोर्चो पर क्वामिनताड के बचे खुचे सैनिकों का सफाया कर डाला। जुलाई 1946 से लेकर जून 1949 तक उसने कुल मिलाकर 80 लाख 70 हजार क्वामिनताड सैनिकों को तहस नहस कर डाला और तिब्बत थाएवान और कुछ तटवर्ती द्वीपों को छोडकर समूचे चीन को मुक्त करा लिया। इस प्रकार चीनी जनता ने तीमरे गृह युद्ध में विजय प्राप्त की।

21 सितंबर 1949 को चीनी जन-राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन का प्रथम पूर्ण अधिवेशन पइचिड में आयोजित किया गया। इसमें विभिन्न क्रांतिकारी वर्गो विभिन्न जनवादी पार्टियों जन-संगठनों अल्प-संख्यक जातियों और प्रवासी चीनियों की नुमाइंदगी करने वाले 662 प्रतानिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन ने राष्टीय जन-प्राताना व सभा के सत्ताधिकारों के कामों का निष्पादन करते हुए चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मलेन का सामान्य कार्यक्रम स्वीकार किया, जो एक अस्थायी संविधान की भूमिका अदा करता था। सामान्य कार्यक्रम में चीन लोक गणराज्य की स्थापना करने का निर्णय किया गया और यह निर्धारित किया गया कि इस गणराज्य का स्वरूप जनता के जनवादी अधिवायक्त्व का होगा जिसका नेतृत्व मजदूर वर्ग करेगा और जो मजदूरों-किसानों केगठजोड पर आधारित होगा। सम्मैलन में पइचिड को चीन लोक गणराज्य की राजधानी बनाया गया। सम्मेलन ने माओ चतुड को केन्द्रीय जन सरकार का अध्यक्ष तथा चूंग त, ल्यू शाओछी, ली शीचेन और चाड लान को उपाध्यक्ष चुना। मम्मेलन के बाद केन्द्रीय जन सरकार ने अपना पहला अधिवेशन बुलाया और चाओ अनलाए को सरकार का प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री नियुक्त किया गया। एक अक्तूबर 1949 को तीन लाख लोग थ्यनआनमन चौक में इकट्ठे हुए। अध्यक्ष माओ चतुड ने चीन लोक गणराज्य की विधिवत घोषणा की। चीनी इतिहास का एक नया अध्याय खुल गया।

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1911 की चीनी क्रांति के जनक कौन थे?

सनयात सेन के कार्य अंततः, वे चीनी क्रांति के जन्मदाता सिद्ध हुए।

चीनी क्रांति की शुरुआत कब हुई थी?

10 अक्तूबर 1911 – 12 फ़रवरी 1912१९११ की चीन की क्रांति / अवधिnull

चीनी क्रांति के नायक कौन थे?

(3) चीनी क्रांति का नायक सनयात सेन था. (4) सनयात सेन ने तुंग-मेंग दल (1905 ई.

चीन में सांस्कृतिक क्रांति के जनक कौन थे?

माओ-त्से-तुंग आधुनिक चीन के जनक माने जाते हैं. चीन के इतिहास में 16 मई का एक ख़ास स्थान है क्योंकि आज से 40 वर्ष पहले इसी दिन चीन में सर्वहारा हितों की स्थापना के लिए एक सांस्कृतिक क्रांति की शुरुआत हुई थी. इस क्रांति के नायक थे माओ-त्से-तुंग जिन्हें आधुनिक चीन का जनक भी माना जाता है.